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________________ वीरवाण कटे उदल दलो कटियो धीर हैसु वैर वैर । वीरम तणो वाले बालजे इम वैर ॥ इम वैर जी इम वैर गोगे वालीयो इम बैर । कट धर रहै सुता सला कर उभै वटका इस । छुटती घर जाय छुटी कीसे सवालै सिस ।। धर सीस जी धर सीस जाती वाजवी धर सीस । वीजड गमीय अरांवाळ जोइयां जड़मूल । वाप कज़ वैरीया वेटो घडच भेला धूल । ए धूल जी ये धूलजी अरीया काटीया काटिया ऐ धूल। ५ भाज रांणक देव भाटी सवलडो पर साथ । कमंध गोगो अमर कीधो नमो जलंधर नाथ ।। नवनाथजी नवनाथ नाथां ऊपरी नवनाथ । दहा सात वीस नीसांणीया, ऊपर पांच सवाय । एक गीत इतरा दूहा, भणीया गुण सुभ भाय ।। १७२।। नवगुण पूणा तीन सै, वीरवांण जसवार । सुध वाचीजो सकवीयां, वाधर कही विचार ॥ १७३ सवासे नीसाणीयां, दुहा पुण सत दोय । गीत एक इण ग्रंथमै, समजहु वाचक सोय ॥ १७४ इण पोथीमे वीरमाण ग्रन्थरा दुहा पुणी दोयसे है । गीत एक चितइळोल छै और नीसांणीया एकसो पचीस तो आंकां में छै और एक नीसांणीरो भूलसं आंक नहीं दरीजीयो? । और वादररै कैणैमै नीसांणीयां एक सौ पैंतालीस छ । सो उगणीस नीसाणीयां मिली नहीं। जैतमालजी मारीजीया जको समो इणमै नहीं छ । दुरजणसालजी डाभी और दलेरा धायभाई मारीजीया जका वारता नहीं । इण मुदैरी नीसांणीया मिल नहीं । इसो जुध आकारीठ महाभारत १ नीसारणी छंद-संख्या ११७ देकर आगे की छंद संख्याओं में सुधार कर दिया गया है। -संपादिका
SR No.010752
Book TitleVeervaan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRani Lakshmikumari Chundavat
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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