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________________ . वीरवाण सज राग सिंधुय नीसांण सहां, त्रबळी तद तूर त्रंबाळ तहां। . घण वेढक गोग दिसी भिधि रिया, पिंड सांमत पूण्य पाखरिया॥ किरबांण विमाण ग्रह अहिया, रिवा ढांण मसांण छके रहिया। गत घोर अरगज है गहरै, मग पग अमूजय मांय मरै । अळगांसुय देषेय थाट अरी, तैयधीर हियै विच धकंधरी। पैय काढण वैर पत्री प्रगटा, घण सालळ सांवण मेघ घटा । षड़ बाज नजीक आया षड़ता, तीषाय भड़ काळजै ऊकळता । लंकाळ आयोय घमचाळ लियां, छळ चाळ धीरो जमरूप कियां ॥ सुताय दळ गोग तणा सधरा, अस प्रांण अचांणक लीधै डरा। सुण देष षळां भड़ गोग सही, जागे रिण सुताय काळ जुही । विषड़ी रिण चांमंड तेमं विणी, तिण वारसी बीभड़ गोग तणीं। विढवा कज वीरम अोपम वीरमरो, जोइयां दळ सोस जाग जमरो॥ षळ फोज कमंधज देष षड़ी, चवळापत जांणक पंष चढी । बळ नाहर गोगाये देव वरै, कव षांन किसुय बाषान करै ।। कस प्रावध साज बंधे कड़ियू, धुब सालळ सांमोय धूहडियू। केवियां सिर गोगे कोप कियो, इळ मायण बावन उससियो । चष्ष चोळ मुंछा भुयहार भिड़े, ऊतबंग भुजा ब्रहमंड अड़े । हुब रोस चढो सोह राव हणो, तेय नीर सजे दरियाव तणो ॥
SR No.010752
Book TitleVeervaan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRani Lakshmikumari Chundavat
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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