________________
३०
वीरवारण
जुध्धमल बेहुँ अड़ियल्ल जुड़, भड़ठल्ल अचल्ल वहै झटकां । हुय हल्ल उथल्ल पथल्ल हकां, कसमस्स कगस्स तुरस्स कटै ।।
छड़ अंतस प्रातस तीर छंट, धसमस्स धमस्स तुरस्स धरा ।' बहु आफल सगंस ऊबंबरा, धजं घायक वायक पूर गहूं ॥
दळ नाथ पठाइक भीच दहूँ, गुण सायक दायक सौर गजै । रिष रंभ विनायक सूर रजै, षळ खायक दायक कूत षगे ॥
वरदायक गोगोय धीर वगै, सज धूहड़ धूहड़ राव सही। वध धीर तणी तरवार वही, अर सानण. मारुय उस सीयों ।।
ते तोडिय पांण रलतलियो, पडिया, पग गोगौये काप पहां । दह धीर अनै सत्र दोय दहां, बैठोय सत्र जारैय उबंबरां ॥
हुय लोह छको सलषेस हरो, ढिंय चाल, षत्री दल दोय दहै । रिण रांणक एक निलोह रहै, धिकतो रिण दीठोय षेड़ धणी ॥
तिह चाह हुई तरवार तणी कथ गा राणक गोगाय हूँत कही । सज प्राय अमां समसेर सही, जोइयो कोइ लेसीये आय जरे ॥
क्यूय रीझ सगा नेह मूझ करे, सुण देष, कमंधज तेण समै । आवे लोय राणक रूक हमै, नर धुहड़ तो मन ध्रोह नहीं ॥
सज प्रोडव मो दिस मूठ सही, चित काहळ मूछ ब्रहां अड़िये । धर मूठ अरी दिस धूहड़िय, सांमी जद राणक सालळियो ।।