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इसी समय वीरमजी ने एक और चाल चली । जिसका वर्णन इस प्रकार किया गया है:
बुकणरै दोय बेटीयां गत एक नीहाले । नाम बड़ी कसमीदे परणो देपालै ॥ रांनल कंवरी राजवण ग्रभ अछरां गाले। सो मांगी देवराज यु कर जोड़ हताले ॥ रांनल मुझकु राजवण भाभी परणाले । भावज गुण भूला नहीं ध्रम पोड़ विचालै ।। कहीयो जद कसमीर दे चढ़ क्रोध अचाले । हु परणांसु हिंदयां तुरका हरटाले ॥ सो कुछ हिंदु हस सुणां जिसकुपरणाले । परणांसु सगपण करै वीरम विगतालै ।। जद पालो कहीदो जसु आगम अपतालै । मानै भाभी माहरो वायक सिर माले ।।
वैठी रोसै वापनै कर मुडे कालै । विवाह के अवसर पर हुई मारकाट का वर्णन महत्वपूर्ण है जिसमें कवि की अन्य समान कर्मवाली जातियों के प्रति उपेक्षावत्ति की झलक मिलती है
चारण चारण कुकतां आरण जगांणा । बामण भुरी वासता सिर आप दिरांणा ।। भागा मुडा भाठदां पुल दांत पिराणा । डोफा भागा डुलड़ा भाटक झेरांणा ॥ कटिया हात कमीणदा दत नेग दिरांणां.।। गहणा गायणीयां तणां लुटे लिवराणां ।। केतां पावज कटी हातां हेरांणा । जावै गुणीयण जीव लेकर पांचा तांणा ॥ ठांवां पंथ विच एकठां मिल ठाक घतांणा । फिर कोई इसड़ा ज्याग मै मत पाव दिरांणा ।। सलपाणी जिसड़ा सुपह वनड़ा वरवांणा। बुकणका घर पो के धन सोध लिरांणा ॥ चुकण सहतां बेलीयां इक पाड़ दिरांणा । भटोयाणीदे भागका क्या चक्र फिरांणा ॥
कह भाटी कसमीर कु क्या फाग पिलांणा ॥ दला जोहिया ने समझोते का प्रयत्न फिर भी चाल रक्खा और वीरमजी को अपने प्रधान द्वारा इस प्रकार रचित किया