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________________ वीरवांण सूर उगै साइयांणमै नित ध्राह घलावै । जोयां हंदी जीवका षोसे ने पावै ।। दले अरु देपालकुं नित ध्राह सुणावै । वीरम न्याय नह लही अन्याव सुहावै ।। जोइया बडपण जाणनै कथ नीत कहावै । षोसै फेलं षाजरु सफरै । राषावै ।। ४४ १२० १२१ १२२ जावे भागा जोइया, पाळे अगली प्रीत । धीर न वीरमदे धरै, निस दिन करै अनीत ।। दस हजार जोइया दुझल, लाष लोकरी लाठ । ज्यां जोयां ऊपर जबर, वीरम घाली बाट ।। दोनुं तरफारों दलो, दुष भुगतै निस दीह । झलीया रहै न जोइया, लोपी वीरम लीह ॥ निसांणी दिन उगै पसरा दियै उठ वीरम आया । उचका डांणी उथपै अपणा बैठाया । माणस पनर मारीया जोइयाणी जाया । झरती हतां जोइया कुकाऊ आया ।। सो सारा साहीयांणमै थट भैळा थाया । अधी उच आपां दई बधी अपणाया ।। आपां ऊभां आपणां माणस मरवाया । जमी गमावै जीवंता जाने किम जाया । ज्यांरी जननी जनमता षारा नह पाया । दस हजार चढ़ीयां दुझल रज गेण ढकाया । लष वैरे ऊपर लहर दरियाव हलाया ॥ . दोय कोसां पुगो दलो वातां विलमाया ।
SR No.010752
Book TitleVeervaan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRani Lakshmikumari Chundavat
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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