Book Title: Shravak Nitya Krutya
Author(s): Jinkrupachandrasuri
Publisher: Nirnaysagar Press
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीश्रावक नित्यकृत्य। For Private And Personal Use Only Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Anh प्राचीनपुस्तकोद्धारफन्ड-प्रथांकः २४ अर्हम् श्रीश्रावकनित्यकृत्य । श्रीजिनकृपाचन्द्रसूरीश्वरजीमहाराजसाहबके उपदेससे हैदराबादकोठीनिवासी१ रायबहादुर-२ राजाबहादुर-३ दीवानबहादुर सेठ-श्रीथानमलजी लूणीयाने खसत्पुत्र सुगनमलजी श्रेयोर्थ बम्बैमे 'निर्णयसागर' छापखानेमे रामचन्द्र येसु शेडगेद्वारा छपवाया. वि. सं. १९८०, इ. स. १९२३. प्रथमावृत्तिः] किंमत-अमूल्य [प्रति १०००. For Private And Personal Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Publishod, by Shet Thanmalji Luniya, Hyderabad. (Deccan.) Printed by Ramchandra Yesu Shedge, at the "Nirnaya-sagar” Press, 23, Kolbbat Lane, Bombay. For Private And Personal Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ग्रंथांक. ग्रंथनाम. श्रावक नित्यकृत्य अनुक्रमणिका. १ नवकार २ थापनाचार्यजीना १३ पडिलेहण ३ खमासमण ४ सुगुरुसुख साता ५ मुहपत्ति २५ पडिले हण ६ शरीर २५ पडिलेहण ७. करेमि भंते सामाइयं ८ इरियावहि ९ तस्सुतरिकरणेणं १० अन्नत्थ ऊससि ० ११ लोगस्स उज्जोअगरे १२ राइ प्रतिक्रमणविधि १३ जयउसामि २ १४ किंचिनामतित्थं १५ नमुत्थुणं १६ जावतिचेइयांति १७ जावंत के विसाहू १८ नमोर्हत्सिद्धा www.kobatirth.org १९ उवसग्गहरं पासं २० जयवीयराय २१ ४ खमासमणप्रतिक्रमण ठाणेका पृष्ठ. १ १ २ २ ४ ९ ९ १० १० Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ग्रंथांक. २२ सव्वस विदे० २३ इच्छा मिठामिका ० २४ वंदणवत्तियाए ग्रंथनाम. २५ पुखरवरदीव २६ सिद्धाणंबुद्धाणं २७ वेयावच्चगराणं २० इच्छामि० वांदणा २९ देवसियं आलोडं ३० आजुणाच्यारपहर १८ पापस्था० ३१ वंदितासूत्र ३२ अम्भुट्टिओमि ३३ आयरियउवज्झाए ३४ सद्भक्त्यादेवलोके ३५ परसमय तिमिरतरणि ३६ संसारदावानलदाहनीरं For Private And Personal Use Only ३७ अश्वसेनन रेसरथुइ ३८ वीश विहरमान चैल्प ० ३९ जय २ त्रिभुवन आदिनाथ ४० श्रीसीमंधर साहिबा स्तवन ४१ पूरवविदेह पुखलावद्दस्त • ४२ महिमंडणं थुइ ४३ सिद्धोविज्जायचकीचै० पृष्ठ. ११ ११ १२ १२ १३ १३ १४ १५ १५ १७ २१ २१ २२ २४ २४ २५. २६ २७. २७ ૧૯ २८ ૨૮ Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar ग्रंथांक. ग्रंथनाम. ग्रंथांक. अंथनाम. ४४ सिद्धाचलसे_सदाचैः ७१ वरकनकशंखपिदुम ४५ रिषभजिनेसररायनाच० । ७२ भवणवइवाणमंतर ४६ जय २ नाभिनरिंद० चै. ७३ अरिहंतसिद्धप्रवचन वीस४७ श्रीपुंडरीकगणधरनमुं ख. थानकथु. ४८ सिद्धाचलगिरिमेटयारे स्त० ३० ७४ मनसुद्धवंदोभावेभविजन४९ सिद्धाचलगिरिवरराया स्त. दूजकीथु. ५० सेब्रुजगिरिनमिये ७५ पंचअनंतमहंत पांचमकीथु० ५२ ५१ प्रभातपडिलेहणविधि ७६ चोवसैजिनवर आठमकीथु० ५२ सामायक पारणविधि ७७ अरनाथ जिनदीक्षाइग्या५३ भयवं दसन्न पारण गाथा रसथु ५४ संध्यासामायिकविधि ७८ चवदसने दिन पक्षिथु० ५५ देवसि पडिकमणविधि ७९ वीरजिनेसर पजुषणथु० ५६ जयतिहुअण चैत्यवं. ८० भावानयाणेग थु० ५७ जयमहायस २ चैत्य. ५८ मुरति मनमोहन थुइ ८१ अविरल कुवल गवल मु.. ताथु० चवद. ५९ सुवर्णशालिनीदेयाथु. ८२ आये प्रभास पाटणमें स्व. ६. यासांक्षेत्रगतासंतिथु. ६१ नमोस्तुवर्द्धमानाय ८३ जीवन म्हारतेवीसमा६२ श्रीजिनबिंवजुहारोरेभ. स्त. जिन स्त. ६३ श्रीसेढीतटनीतटे चै० ८४ आदिजिनंदनितपूजिये स्व० ५८ ६४ श्रीथंभणयट्ठियपाससा. ८५ वीरजिनेसरसांभलोरे स्त. ६५ श्रीजिनदत्तसूरिकाउसग्ग। ८६ श्रीगिरिराजआमनिहाले ६६ श्रीजिनकुशलसूरिकाउसग्ग सिद्धाचल स्त. ६७ चउसकाय चैस० ८७ श्रीअरिहंतअनंतकांति २० ६८ अर्हन्तोभगवंत चैः थानक चै० ६९ शांतिंशांतिनिशांतं लघुशांति ४८ ८८ सद्गुरुपूजनजावस्या ७. चतुर्वर्णायसंघाय ५०। ८९ पांचशकस्तवदेववंदनविधि ६१ For Private And Personal Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ग्रंथांक. ग्रंथनाम. ९० वीरजिनेसर अलवेसर पान सर स्त० ९१ सद्गुरुकरुणानिधान दादा जि स्त० ९२ कुशल गुरुदेव के दरसन स्त ९३ राजेथुंभठोर २ छंद ९४ सेनुंजगिरिनमियै चैत्री १५ थुई ९५ नवकारसी पञ्चरकाण ९६ विगय प० ९७ देसावगास प० ९८ पोरसीमुसी प ९९ पुरिम अव प० १०० एकाशण प० १०१ एकलठाणो प० १०२ आंबिलपच्च० १०३ नीवी प० १०४ उपवास चउविहार प० १०५ तिविहार उपवास प० १०६ दात प० १०७ दिवसचरिमं चउविहार प० १०८ दिवसचरिमदुविहार प० १०९ पाणहार प० ११० भवचरिम प० १११ गंठसिमुठसि प्रमुख प० ११२ अहणमंते तुम्हाणं देसा वगास प० www.kobatirth.org पृष्ठ. ६२ ६३ ६३ ૬૪ ૬૪ ६५ ६५ ६५ ६५ ६६ ६६ ६६ ६६ ६७ ६७ ३ ६७ ६८ ६८ ६८ ६८ ઉદ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ग्रंथांक. ग्रंथनाम. ११३ पाणस्स लेवाडेणवा आगार ११४ पच्चरकाण आगार गाथा ३ ११५ अजियंजिअ सव्वभयं सात स्मरण १ ११६ उल्ला सिक्कम दूजोस्मरण ११७ नमिऊणपणय ३ स्म० ११८ तंजयउजएतित्थं ४ स्म० ११९ मयरहियं ५ स्म ० १२० सिग्घमवहरउविग्धं ६ स्म० १२१ उवसग्गहरं ७ स्म० १२२ भक्तामर प्रणतमौलिमणि - प्रभाणा १२३ भोभोभव्या वडीशांति १२४ जिनपंजरस्तोत्र १२५ श्रावकर्तुऊठेपरभात करणी १२६ श्री रिसहेसरपायनमी सेनुंजरास १२७ वीरजिनेसर चरणकमल कमलाकयवासी गौतमरास १२८ सूतकविचार १२९ असज्झाइविचार १३० खानेपीने की वस्तुकाकाल प्रमाण १३१ चउदेनियम चितारेसोविचार स्तवन १३२ सुमतिचरणकजदेख सच्चादेव स्त० For Private And Personal Use Only पृष्ठ. ६९ ६९ ६९ * ७५ ७७ ७९ ८० ८१ ८२ ८६ ९१ ९२ ९४ १०३ ११० ११२ ११४ ११५ १२० Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ग्रंथांक. ग्रंथनाम. पृष्ठ. ग्रंथांक. ग्रंथनाम. १३३ श्रीसुयदेविपसायकरिश्रीजिन- १४८ पांचज्ञानप्रगटायवा दत्तसूरिउत्पत्ति छं० १२० पांचम चै० १३४ रिसहजिनेसरसोजयोश्रीजिन | १४९ आठमदिन आराधिये .. कुशलसूरिउत्पत्ति छं० १२१ आठम चै० १३५ विलसैरिद्धिसमृद्धिमिलि स्त. १२३ / १५० श्रीमल्लित्रिभुवनघणी १३६ सद्गुरुमाहारारे स्त० १२४ इग्यारस चै० १३३ १३७ वासुपूज्यजिनअंतरजामी १५१ सीतलजिनपतिजगतिलो चै० १३४ बीजकीथुइ १२५ १५२ वारमजिनवरवंदिये चैः १३४ १३८ नेमिजिनेसर जगपरमेसर १५३ श्रीवीरजिनेसरभाखियो पांचमकीथु० पर्युषण चैः १३४ १३९ आठप्रातिहारजजसुसो है १५४ श्रीअरिहंतनावारगुण आठमकीथु० १२७ नवपदगुण चै० १३५ १४० एकादशीआखिआदिदेवे १५५ वासुपूज्यजिनवरन, इग्यारसथु० १२७ रोहिणी चे० १४१ श्रीसिद्धचक्रमुहंकर जाणो | १५६ चोविसमजिनवरनमें नवपदथु० चै० भद्रेसर १४२ सिरिसिद्धचक्रसेवोभविया थु० १२९ १५७ नेमीसरजिनजगधणी १४३ सांतिजिनराया थु० १२९ गिरनार चै० १४४ वासुपूज्यजिनेसरबंदु | १५८ रिषभवृषभगजअ. रोहिणी थु. २४ लांछन चै. १३६ १४५ वीरजिनेसरभवणदिनेसर १५९ श्रीजिनशासनजगजयो दीवाली थु० - पूनिम चै० १४६ श्रीसिद्धाचलतीरथसेवो १६. सोलमजिनवरसेविये चै० १३७ पूनिम थु. १६१ वामानंदनपासजी चै० चैत्यवंदन १६२ वीरजिनेसरजगधणी चै० १३८ १४७ द्विविधधर्मजिनवरकह्यो १६३ अरिहंतादिकपदतणो वीजचै. नवपदवृद्ध स्त० १३८ १३० १३७ For Private And Personal Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar पृष्ठ १४२ ग्रंथांक. ग्रंथनाम. १६४ वर्द्धमानजिनवंदिये दृजनो स्त. १६५ सिद्धारथकुलदिनमणि पंचमी त. १६६ वर्द्धमानजिनवरनमुं आठम स्त. १६७ खस्तिश्रीमंगलकरण इग्यारस स्त. १६८ वर्द्धमानजिनवरनमी रोहणी ख. १६९ स्वस्तिश्रीसुखसंपदा पूनिम स्त. पृष्ठ.। ग्रंथांक. ग्रंथनाम. | १५० सुणोशिवपुरखामी १४१ मांडव स्त. १६१ |१७१ शांतिनाथमहाराज भोपावर स्त. १६२ १७२ सांतिजिनंदनेसेवोरे मनवा स्त. १६२ | १७३ नेमिजिनंददयालरेसेवो स्त. १६३ १७४ नेमिजिनंदा थुह १५५ पासजिनराया १६६ १७६ आषाढशुदिछट्ठीउपधान थु० १६६ १५६ | १७७ वीरजिनदेभासियो चै. १६७ For Private And Personal Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar For Private And Personal Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ अहम् ॥ प्राचीन पुस्तकोघार फन्म-ग्रन्थांकः ॥ १ ॥ श्रीश्रावकनित्यकृत्य संग्रहः ॥ अथ नवकारमंत्रम् ॥ ॥ णमो अरिहंताणं ॥१॥णमो सिघाणं ॥॥ णमो आयरियाणं ॥३॥ णमो उवद्यायाणं ॥ ४॥ णमो लोए सबसाहूणं ॥ ५ ॥ एसो पंच णमुक्कारो ॥ ६॥ सवपावप्पणासणो ॥ ७ ॥ मंगलाणं च सवेसि ॥ ७ ॥ पढमं हवश् मंगलं ॥ ए॥ ॥ इति ॥१॥ यह नवकार तीन वेर गुण के थापनाजीकी थापना करे, तब तेरे बोल चिंतवे, सो कहते हैं। ॥ अथ श्रापनाचार्यजीकी तेरे पमिलेहणा ॥ ॥ शुद्ध स्वरूप धारे ॥१॥ज्ञान ॥ १॥ दर्शन ॥५॥ चारित्र सहित ॥ ३ ॥ सईहणा शुद्धि ॥ १॥ प्ररूपणा शुद्धि ॥॥ फरसना शुद्धि ॥ ३ ॥ सहित पांच श्राचार पाले ॥१॥ पलावे ॥२॥ अनुमोदे ॥ ३ ॥ मनोगुप्ति ॥ १॥ वचन गुप्ति ॥ ॥ काय गुप्ति ॥ श्रादरे ॥ ३ ॥ एवं तेरे बोल कहे ॥ ॥ इति ॥२॥ ॥पी गुरुगुण सहित श्रीगुरुजीके सामने अथवा थापनाचार्य जीके सामने खमा होके तीन खमासमण देवे, सो लिखते हैं। For Private And Personal Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ अथ खमासमण ॥ ॥श्वामि खमासमणो वंदिन जावणिकाए निसीहिश्राए मबएण वंदामि ॥ इति ॥३॥ ॥अथ सुगुरुने सुखशाता पृला ॥ ॥श्चकार जगवन् सुहराइ, सुहदेवसी, सुख तप शरीर निराबाध सुखसंयम यात्रा निर्वहोगेजी ? स्वामी शाता बेजी? इति ॥४॥ एम कही सुगुरुने नमस्कार करे, तथा सुख साता, पूरे तेवारें गुरु कहे देवगुरु प्रसाद ॥ ॥पी3 नीचे बैठ के जिमणा हाथ नीचा कर के अप्नुहिमि कहे पी3 खमासमण देके श्वाकारेण संदिस्सह जगवन् सामायिक मुहपत्ती पमिलेहुं ? गुरु कहे, पमिलेहेह. पी3 छ कही मुजी खमासमण देई मुहपत्ती पमिलेहे ॥ ॥ अथ मुहपत्ती पमिलेहणके पच्चीश बोल लिखते हैं ॥५॥ ॥ सूत्र, अर्थ साचो सईई ॥ १ ॥ सम्यक्त्व मोहनी ॥२॥ मिथ्यात्व मोहनी ॥३॥ मिश्रमोहनी ॥४॥ परिहलं. यह चार बोल मुहपत्ती खोलती बिरीयां कहणां ॥ ॥ कामराग ॥ १॥ स्नेहराग ॥२॥ दृष्टिराग ॥३॥ परिहरु ॥ यह सात बोल प्रथम कहीजें ॥ . ॥ सुगुरु ॥१॥ सुदेव ॥॥ सुधर्म ॥३॥ श्रादरं ॥ कुगुरु ॥१॥ कुदेव ॥२॥ कुधर्म ॥३॥ परिहरं ॥ ज्ञान ॥१॥ दर्शन ॥२॥ चारित्र ॥ ३॥ आदरं ॥ यह नव पमिखेहणमावे हाथे करीयें ॥ ॥ज्ञानविराधना ॥१॥ दर्शनविराधना ॥२॥ चारित्र For Private And Personal Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विराधना ॥३॥ परिहरं ॥ मनोगुप्ति का विच ॥२॥ कायगुप्ति ॥ ३ ॥ श्रादरं ॥ मनोदंग ॥१॥ वचनदंग ॥२॥ कायदंग ॥ ३॥ परिहरु ॥ यह नव पमिलेहण जिमणे हाथ करणी ॥ यह पच्चीश बोल मुहपत्तीके जानने ॥ ॥ अब अंगकी पच्चीश पमिलेहण दिखते हैं ॥६॥ कृष्णवेश्या ॥१॥ नीललेश्या ॥२॥ कापोतलेश्या ॥३॥ ए तीन निसामे मस्तकें परिहरं ॥ शधिगारव ॥१॥ रसगारव ॥३॥शातागारव ॥३॥ ए तीन मुखे परिहरु॥ ॥ मायाशय ॥१॥ नियाणशस्य ॥ ३ ॥ मिहादसणशट्य ॥ ३॥ए तीन हीये परिहरु । ॥ क्रोध ॥१॥ मान ॥२॥ए दोय जिमणे खंले परिहरु॥ ॥ माया ॥१॥ लोन ॥॥ ए दोय मावे ॥ खंने परिहरु॥ ॥ हास्य ॥१॥रति ॥२॥ अरति ॥ ३ ॥ ए तीन माबे हाथे परिहरूं ॥ ॥जय ॥१॥शोक ॥२॥ गंवा ॥ ३॥ ए तीन जिमण हाथे परिहरु ॥ ॥ पृथ्वीकाय ॥१॥ अप्पकाय ॥२॥ तेजकाय ॥३॥ ए तीन माबे पगे परिहरं ॥ ॥वायुकाय ॥ १ ॥ वनस्पतिकाय ॥॥ त्रस काय ॥३॥ ए तीन जिमणे पगे परिहरं ॥ इति पमिलेहणा संपूर्णा ॥६॥ .. ॥ पी3 खमा होय के श्वामि खमासमणका पाठ कहे के For Private And Personal Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ४ ) इलाकारेण संदिस्सह जगवन् ॥ सामायिक संदिस्सावुं ? गुरु कहे संदिस्सावेह || पीढ़ें छं कहकें फेर खमासमण देके इन्वा० सं० ॥ ज० ॥ सामायिक ठानं ? गुरु कड़े गए | १ ॥ पी इ कही खमासमा देइ थोको झुकी तीन नवकार गुणी, इछाकारेण संदिस्सद जगवन् पसाउ करी सामायिक दंरुक उच्चरावोजी ॥ गुरु कहे उच्चरावेमो ॥ पीठें करेमि जंते सामाज्यं इत्यादि सामायिक सूत्र तीने वार उच्चरे ॥ ॥ श्र सामायिकनुं पञ्चरकाण ॥ ॥ करेमि जंते सामाइयं, सावऊं जोगं पञ्चरकामि ॥ जावनियमं पशुवासामि ॥ 5विहं तिविदेणं मणेणं वायाए काएणं, न करेमि, न कारवेमि, तस्स जंते पमिकमामि निंदामि रिहामि अप्पा बोसिरामि ॥ इति ॥ ७ ॥ ॥ पीठें खमासमादे के इलाकारेण संदिस्सह जगवन् इरियावहियं परिकमामि ॥ गुरु कहे परिक्कमेह, पी इ कही ॥ इलामि पकिमि इरियावहियाए इत्यादि पाठ कहे सोलि - खते हैं ॥ १ टिप्पणी-व्यवहार जाष्य चतुर्थोदेशके १ व्यवहार जाप्य टीकामें तीनवेर करेमि जंते उच्चरणा साधुके पाठ में कहा है साधुके अनुयायि श्रावक होयसो जीती नवेर उच्चरे २ विधि प्रपामे ३ तथा जिनपति सूरिकृत समाचारी में ४ इत्यादि बहुत विधिवाद के शास्त्रो में तीन वेर करेमि जंते उच्चरणा कहा है For Private And Personal Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ५ ) ॥ [ इरियावहियं ॥ || इछाकारेण संदिस्सह जगवन् ॥ इरियावहियं परिक्कमामि ॥ इ, इछामि परिक्कमिनं ॥ १ ॥ इरियावहियाए विराहणाए ॥ २ ॥ गमला गमणे ॥ ३ ॥ पाणक्कम बीयकमणे हरियकमये ॥ जैसा उत्तिंग पग दग मट्टी मकमसंताणा संकमणे ॥ ४ ॥ जे मे जीवा विराहिया ॥ ५ ॥ एगिंदिया बेदिया तेईदिया चरिंदिया पंचिंदिया ॥ ६ ॥ जिया वत्तिया लेसिया संघाइया संघट्टिया परियाविया ॥ किलामिया उद्दविया गार्ड घाणं, संकामिया जीविया ववरोविया, तस्स मिष्ठामि डुकरं ॥ ॥ ८ ॥ इति ॥ ॥ अथ तस्स उत्तरी ॥ ॥ तस्स उत्तरी करणेणं ॥ पायश्चित्त करणेणं ॥ विसोही करणं ॥ विसली करणेणं ॥ पावाणं कम्माएं || पिग्घायणET || वामि काउस्सगं ॥ ए ॥ ॥ अथ अन्न ऊससिएणं ॥ ॥ अन्न ऊससिएणं, नीससिएएं, खासिएणं, बीएएंजंजाइए, उड्डणं, वाय निसग्गेणं, जमलिए, पित्तमुचाए ॥१॥ सुमेहिं अंगसंचालेहिं ॥ सुडुमेहिं खेलसंचालेहिं सुदुमेहिं टिप्पणी- श्रावश्यक चूर्णि १ आवश्यक बृहत्वृत्तिः २ याव श्यक लघुवृत्तिः ३ नवपद प्रकरण ४ योगशास्त्र ५ विधिप्रपा ६ श्रावदिनकृत्य 9 श्रावकधर्म प्रकरण ८ पंचाशक वृत्तिः ए इत्यादि अनेक ग्रन्थ मे सामायकर्मे पेहेले करेमि जंते पिछे इरियावहि करना कहा है. For Private And Personal Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ६ ) दिहिसंचालेहिं ॥ २ ॥ एवमाइएहिं श्रागारेहिं ॥ जग्गो अविराहि ॥ डु में काउस्सग्गो || ३ || जाव अरिहंताणं, जगवंताणं, नमुक्कारेणं, न पारेमि ॥ ४ ॥ तावकार्य, गणेणं मोपेणं जाणं, अप्पाणं वोसिरामि ॥ ९ ॥ इति ॥ १० ॥ इहां चार नवकार अथवा एक लोगस्सको काउस्सग्ग करे. पीठें णमो अरिहंताणं कदे के काउस्सग्ग पारकें मुखसें प्रगट लोगस्स कहे, सो लिखते हैं | ॥ अथ लोगस्स || || लोगस्स गरे || धम्म तियरे जिणे ॥ अरिहंते कित्तस्सं ॥ चठवीसंपि केवली ॥ १ ॥ उसन मजि च वंदे || संजय मणिंदणं च सुमई च ॥ पचमप्पहं सुपासं ॥ जिणं च चंदष्पहं वंदे || २ || सुविहिं च पुष्पदंतं ॥ सील सिजस वासुपु च ॥ विमलमतं च जिणं ॥ धम्मं संतिंच वंदामि ॥ ३ ॥ कुंथुं खरं च मलिं ॥ वंदे मुणिसुवयं नमि जि च ॥ वंदामि रिनेमिं ॥ पासं तह वयमाणं च ॥ ४ ॥ एवं म अनि ॥ विदुय रय मला पहीए जरमरणा ॥ चतवीसंपि जिवरा || तियरा मे पसीयंतु ॥ ५ ॥ कित्तिय वंदिय महिया || जेए लोगस्स उत्तमा सिद्धग्ग ॥ श्ररु बोदिवानंसमाहिवर मुत्तमं दिंतु ॥ ६ ॥ चंदेसु निम्मलयरा ॥ श्रइचेसु हियं पयासयरा ॥ सागरवर गंजीरा ॥ सिद्धा सिद्धिं नम दिसंतु ॥ ७ ॥ इति ॥ ११ ॥ ॥ पी खमासमण देई इला० संदि० भगवन् बेसो संदि - सावं ? गुरु कहे संदिस्सावेह || पी इ कह के वली खमा For Private And Personal Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ७ ) सम देकर | इला० ॥ संदि० ॥ जगवन् बेसबो वाचं ? गुरु कहे गए || फेर कहकें खमासमण देकर ॥ ० ॥ संदि० ज० ॥ सजाय संदिस्सावुं ? गुरु कहे संदिस्सावेह || पीठें लं कहके वली खमासमण देकर इला० संदि० जग० ॥ सद्याय करूं ? गुरुक करेह ॥ फेर खमासमण दे के खने होकर व नवकार कहकर सद्याय करे तथा जो शीतकालादि होवे तो खमासमण देकें इला० संदि० ज० ॥ पांगरणी संदिस्सावं ? गुरु कहे संदिस्सावेह || पीछें इलं कह कर खमा - समय देकर छा० संदि० ज० ॥ पांगरणो परिग्गहुं ? गुरु कहे पग्गिएह || पीठें लं कही वस्त्र ग्रहण करे तथा सामाकिवंत अथवा पोसासहित श्रावक वांदे तो “वंदामो” ऐसो कहे . और जो कोई दूसरो वांदे तो. सद्याय करेह. एसोक हे ॥ इतिप्राजातिक सामायिक विधि ॥ १ ॥ ॥ अथ राई प्रतिक्रमण विधि प्रारंभः ॥ प्रथम एक खमासमण दे के इला० संदि० ज० द करूं ? गुरु कहे करेह || पी कही जयत सामि इत्यादि कहे, सोहि लिखते हैं ॥ ॥ चैत्यवं ॥ अथ सकलतीर्थंकरनमस्कारो लिख्यते ॥ ॥ जय सामिय जय सामिय, रिसह सत्तुंजि ॥ उति पटु नेमि जिए, जयन वीर सच्चरि मंकण ॥ १ ॥ जरामुविय, मधुरिपास दुह दुरिय खंगण || अवर विदेहिज तिलयरा, चिह्नं दिसि विदिसि जं केवि ॥ तीच्या गयसंप बंडु जिए सबेवि ॥ २ ॥ For Private And Personal Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (1) ॥ कम्ममिहिं कम्मचूमिहिं, पढमसंघयणि ॥ उक्कोसन सत्तरिसय, जिणवराण विरहंत बप्लश् । नवकोमिहिं केवलिण, कोमि सहस्स नव साहु संपर ॥ संपर जिणवर वीस मुणि बिहुँ कोमिहिं वरनाण ॥ समणह कोमीसहस्सअ, श्रुणिका निच्चविहाणि ॥ १॥ सत्ताणवश्सहस्सा, लरका बप्पन्न अकोमी ॥ चनसय गयासीया, तिसक्के चेइए वंदे ॥२॥ वंदे नव कोमि सयं, पणवीस कोमि लरक तेवन्ना ॥ अभावीस सहस्सा, चनसय असिया पमिमा ॥३॥ १२ ॥ १३ ॥ ॥श्रथ जंकिंचि ॥ जं किंचि नाम ति ॥ सग्गे पायाले माणुसे खोए ॥ जाई जिणबिंबाई ॥ ताई सवाई वंदामि ॥ १॥ इति ॥१४॥ ॥अथ नमुराणं वा शक्रस्तव ॥ नमुबुणं अरिहंताएं, लगवंताएं ॥१॥ आगराणं, ति. थराणं, सयंसंबुझाएं ॥२॥ पुरिसुत्तमाणं, पुरिससीहाणं, पुरिसवरपुमरीआणं, पुरिसवरगंधहबीणं ॥ ३ ॥ लोगुत्तमाएं, खोगनाहाणं, लोगहियाणं, लोगपश्वाणं, लोगपजोअगराएं ॥४॥ अजयदयाणं, चरकुदयाणं ॥ मग्गदयाणं, सरणदयाणं बोहिदयाणं ॥ ५॥ धम्मदयाणं, धम्मदेसियाणं ॥ धम्मनायगाणं, धम्मसारहीणं, धम्मवरचानरंतचक्कवट्टीणं ॥ ६ ॥ अप्पमिहयवरनाणदंसाणधराणं, विअट्टरमाणं ॥७॥ जिणाणं जावयाणं, तिन्नाणं तारयाणं, बुखाणं बोहयाणं, मुत्ताणं मोत्रगाणं ॥७॥ सवन्नृणं सवदरिसिणं, सिवमयलमरुअमर्यंत मरकय मवाबाह मपुणरावित्ति ॥ सिद्धिगश्नाम धेयं गणं संपत्ताणं, For Private And Personal Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (ए) नमो जिणाणं जिअनयाणं ॥ ए॥ जे अईया सिझा ॥ जेश नविस्संति णागए काले॥ संपश् अ वट्टमाणा॥ सवे तिविहेण वंदामि ॥ १५॥ ॥अथ जावंति चेश्माई ॥ ॥ जावंति चेआई॥ जक्के अ अहे अतिरित्र लोएन ॥ सवाई ताई वंदे ॥ इह संतो तच संताई ॥१॥ इति ॥ १६ ॥ श्वामि खमा० ॥ ॥अथ जावंत केवि साहू ॥ ॥ जगवन जावंत केवि साहू ॥ जरहेरवय महाविदेहे अ॥ सोसिंतेसिं पण ॥ तिविहेण तिदमविरयाणं ॥१॥इति॥१७॥ ॥अथ परमेष्ठिनमस्कारः॥ ॥ नमोऽहत्सिघाचार्योपाध्यायसर्वसाधुन्यः ॥ १७ ॥अथ उपसर्गहरंस्तवनं ॥ ॥ जवसग्गहरं पास ॥ पासं वंदामि कम्मघण मुक्कं ॥ विसहरविसनिन्नासं ॥ मंगलकल्लाणावासं ॥१॥ विसहरफुलिंगमंतं ॥ कंठे धारेश् जो सया मणुढे ॥ तस्स गहरोगमारी ॥ कुछ जरा जंति उवसामं ॥२॥ चिन पुरे मंतो ॥ तुज्क पणामो वि बहुफलो होइ ॥ नरतिरिएसुवि जीवा ॥ पावंति न पुरक दोहग्गं ॥ ३ ॥ तुह सम्मत्ते बधे ॥ चिंतामणि कप्पपायवलहिए ॥ पावंति अविग्घेणं ॥ जीवा अयरामरं गणं ॥५॥श्य संथुळे महायस ॥ जत्तिजरनिष्लेरण हिअएण ॥ ता देव दिज बोहिं ॥ जवे नवे पास जिणचंद ॥५॥इति ॥१५॥ For Private And Personal Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१०) ॥ अथ जय वीराय ॥ ॥ जय वीयराय जगगुरु ॥ होउ ममं तुह पन्नाव जयवं॥ नवनिवे मग्गाणुसारिया इक फलसिद्धी॥ लोगविरुषच्चाउँ॥ गुरुजणपूया परत्थकरणं च ॥ सुहगुरुजोगो तबयण सेवणा आनवमखमा ॥ २० ॥ ॥ इत्यादि जय वीयराय पर्यंत चैत्यवंदन करे ॥ पी खमासमण दे के श्ला० ॥सालण॥ कुसुमिण मुसुमिण राई पायचित्त विसोहणकाउस्सग्ग करूं ? गुरु कहे करेह. पी3 श्वं कह कर कुसुमि ण सुमिण राई पायलितविसोहण करेमि काजस्सग्गं ॥ अन्न ऊससिएणं ॥ इत्यादिपाठ कहेके सोले नवकार अथवा चार लोगस्सका चंदेसु निम्मलयरा पर्यंत चिंतनकर के काउस्सग्ग करे ॥ पी एमो अरिहंताणं कहकर काउस्सग्ग पारी मुखसें एक लोगस्सका पाठ प्रगट कहें. जो रात्रिमें मूल गुण संबंधि मोटको दूषण लागो होवे तो कालस्सग्गमाहे ॥ सागरवरगंजीरा पर्यंतचिंतवे ॥ इति संप्रदाय ॥ ॥अब पमिक्कमणा गयवेका अवसर हुवा ॥ जब खमासमाण देश श्री श्राचार्यजी मिश्र कहि के वांदीयें ॥१॥ खमासमण दे श्रीनपाध्यायजी मिश्र कहि के वांदी ॥२॥खमासमण देश जंगम युगप्रधान वर्तमान नट्टारक श्रीधर्माचार्यजीका नाम लेके मिश्रकही वांदीयें ॥३॥खमासमण देश के सर्व साधुजीकुं मिश्रकही वांदीयें॥४॥इसतरे चार खमासमणसें पमिकमणा गवी गोमालीय बैठ के मस्तक नमायकर For Private And Personal Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (११) दोर्नु हाथे मुहपत्ती मुहमे देकर ॥ सबस्सवि राश्य ।। इत्यादि पाठ कहे. परंतु श्वाकारेण संदिस्सह श्वं इस माफक न कहे. ॥अथ सबस्सवि ॥ .. ॥ सबस्स वि देवसिय सुचिंतिम सुनासिय मुञ्चिन्धि चाकारेण संदिस्सह लगवन् श्वं ॥ तस्स मिहामि उक्कम ॥ इति ॥ २१ ॥ सवेरको देवसिके ठिकाने राश्यं पाठ कहे ॥ . ॥पी नमुबुणं कह के खमा होय के ॥ करेमि ते सामाइयं सावऊ जोगं पच्चरकामि ॥ इत्यादिक पाठ कहे ॥ पीने वामि गमि कानस्सग्गं जो मे राळ ॥ यह पाठ कहे, सो लिखते हैं। ॥अथ श्वामि गमि ॥ ॥ श्यामि गमि काउस्सग्गं ॥ जो मे देवसिढ अश्यारो कई ॥ काळ वाळ माणसि ॥ नस्सुत्तो उम्मग्गो अकप्पो ॥ अकरणिजो ॥ उज्का विचिंति अणायारो ॥ अणिजिअबो ॥ असावगपाजग्गो ॥ नाणे तह दंसणे चरित्ताचरित्ते ॥ सूए सामाइए ॥ तिहं गुत्तीर्ण ॥ चनहं कसा याणं ॥ पंचहृमणुबयाणं ॥ तिहं गुणवयाणं ॥ चनहं सिरकावयाणं ॥ वारसविहस्स सावगधम्मस्स ॥ जं खंमिश्र जं विराहिथं ॥ तस्स मिलामि कम ॥ इति ॥ इहां देवसिय के ठिकाने राज्य कहना ॥ इति ॥ २॥ ॥पीने तस्सुत्तरी ॥ अन्न ऊससिएणं कह कर चारित्र. शुद्धि निमित्त चार नवकार अथवा एक लोगस्सका काजस्सग्ग करी पारिकें दर्शन शुद्धि निमित्त प्रगट लोगस्स कही । For Private And Personal Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१३) सबलोए अरिहंत आणं ॥ करेमि काउस्सग्गं वंदण वत्तिआए ॥ इत्यादि कहना, सो लिखते हे ॥ ॥अथ वंदणवत्तिाए । ॥ वंदणवत्तिाए, पूअणवत्तिाए ॥ सक्कार वत्तिश्राए, सम्माणवत्तिाए ॥ बोहिलान वत्तिाए ॥ निरुवसग्गवत्तिआए ॥ १॥ सम्झाए मेहाए धिए ॥ धारणाए अणुप्पेहाए । वठमाणीए गमि कालस्सग्गं ॥॥इति ॥१३॥ ॥पीजे अन्न कही चारनवकार अथवाएक लोगस्सका कालस्सग्ग करके पारके ज्ञानाचार शुद्धि निमित्त पुरकरवरदी० ॥ सुयस्स जगवर्ड करेमि कालस्सग्गं ॥ इत्यादि पाठ कहे, सो लिखते हे ॥ ॥अथ पुरकरवरदी॥ ।। पुरकरवरदीवढे धायसंमे अजंबुदीवे अ॥जरहे रवय विदेहे, धम्मागरे नमंसामि ॥१॥ तमतिमिरपमलविसएस्स सुरगणनरिंदमहिस्स ॥ सीमाधरस्स वंदे, पप्फोमित्र मोहजालस्स ॥२॥ जाईजरामरणसोगपणासणस, कल्याणपुरकलविसालसुहावहस्स ॥ को देवदाणवनरिंदगणच्चिस्स धम्मस्स सार मुवलप्त करे पमायं ॥३॥ सिधे जो पय एमो जिणमए नंदी सया संजमे ॥ देवं-नाग-सुवन्न-किन्नर-गणस्सअनावच्चिए ॥ लोगो जब पनि जगमिणं, तेलुकमचासुरं ॥ धम्मो वढन सास विजय, धम्मुत्तरं वडत ॥ ॥४॥इति ॥ २५॥ सुअस्स लगवर्ड करेमि कामस्सगं वंदएवत्तियाए ॥ ए पाठ संपूर्ण कह कर अन्नबुससिएणं कह For Private And Personal Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १३ ) के आठ नवकारका कालस्सग्गकरे काउस्सग्गके मांहे आजुणा चार प्रहर चिंतवे. सो आगे लिखेगें. पीछे सिधाएंबुघाणका पाठ कहे, सो लिखते हे ॥ ॥अथ सिधाणं बुखाणं ॥ ॥ सिघाणं वुक्षाणं, पारगयाणं परंपरगयाणं ॥ लोअग्गमुवगयाणं, नमो सया सबसिखाणं ॥ १॥ जो देवाणवि देवो, जं देबा पंजली नमसंति ॥ तं देवदेवमहिरं, सिरसा वंदे महावीरं ॥२॥ कोवि नमुक्कारो, जिणवरवसहस्स वघमाणस्स ।। संसारसागरा, तारेश् नरं व नारिं वा ॥ ३ ॥ उर्जित सेलसिहरे, दिरका नाणं निसीहिया जस्स ॥ तं धम्मचकवादि, अरिघ्नेमिं नमसामि ॥४॥ चत्तारि अझ दस दो, य बंदिया जिणवरा चवीस ॥ परमनिन्थिन, सिधा सिधिं मम दिसंतु ॥ ५॥ इति ॥ २॥ ॥अथ वेावच्चगराणं ॥ ॥ वेत्रावच्चगराणं संतिगराणं ॥ सम्मदिसिमा हिगराणं ॥ करेमि काउस्सगं ॥ श्रन्न शहा कहनानहि ॥ इति ॥ २३ ॥ ॥पीने संमासा प्रमाऊन पूर्वक बेठ के मुहपत्ती पमिलेहे. पीछे वांदणा दे. तिनका विधि कहते हैं। ॥अवग्रहके बाहिर उन्ना हुआ आधा नीचा नमकर श्वामि • खमासमणो वंदिलं जावणिजाए निसीहिआए अणुजाणह मे मिजग्गहं. इतनो पार कहकर नूमि प्रमार्जन करता हुआ निसीहि कह के योमा श्रवग्रहमें प्रवेश कर के संमासा प्रमाजैन कर के उक्कमा बेठ के माबे हाथमें मुहपत्ति लेके माबे For Private And Personal Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १४ ) कानसें लेकें जिमा कान पर्यंत निल्लाम पूंजी, मुहपत्ती आर्गे रखकें तिसके मध्य जागमें गुरुचरणोंकी कल्पना कर के || अहो कार्य इत्यादि श्रावर्त्तकर के श्रोमा नीचा नमकर मस्त कमे अंजलि कर के गुरु सम्मुख दृष्टि स्थापनकर कें ॥ खमपिको ने किलामो ॥ इत्यादि पाठ कछे पीछे फेर ॥ जन्त्ता ने इत्यादि आवर्त कर के खफा होके पीछे पगसें भूमि पूंजता वग्रह वाहिर निकलकें स्वस्थान पर आवे. वहां ॥ यावस्सिया || इत्यादि पाठ सर्व कहे, सो लिखते है | ॥ सुगुरुवदा ॥ ॥ इामि खमासमणो वंदिरं, जावणिकाए निसी हिआए ॥ जाह मे मिलग्गदं निसीहि ॥ अहो कार्य काय संफासं, खमणिको ने किलामो ॥ अप्प किलंताएं बहु सुनेने, दिवसो बकतो, जत्ता ने, जवणि च ने, खामेमि खमासमणो ॥ देवसि वकम्मं श्रावस्सिाए परिकमामि खमासमणां ॥ देवसिया, सायाए । तित्तीसन्नयराए जं किंचि मिलाए, मणडुक्कमाए वयदुक्कमाए, कायडुक्कमाए कोहाए, मापाए, मायाए, लोजाए, सबका लियाए, सबमिठोवयाराए, सबधम्माइकमा ए ॥ आसायलाए जो मेरो कर्ज, तस्स खमासमणो परिकमामि || निंदामि गरिहामि पाएं वोसिरामि ॥ १ ॥ डुजी वारके वांदामे आवस्सिए ए पद न कर्हेना, - अनेराश्यें राइ वश्कता, तथा चनमासीयें चलमासी वइतो परकीयें परको कंतो, संववरीयें संवारी व कंतो || एसीतरे पाठ कदेना ॥ इति ॥ २६ ॥ For Private And Personal Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ अथ देवसियं आलोठं ॥ ॥श्वाकारेण संदिस्सह जगवन् देवसियं आलो श्वं ॥ आलोएमि. जो मे० ॥ इति ॥ २७ ॥ इहां देवसियके ठिकाने राश्यं कहेना ॥ ॥पीछे रात्रि संबंधि अतिचार गुरु समद श्राखोये, सो कहते हैं। ॥अथ आलोयण लिख्यते ॥ ॥श्राजुणा चार प्रहर दिवसमें जे में जीव विराध्या होय ॥ सात लाख पृथिवीकाय ॥ सात लाख अप्पकाय ॥ सात लाख तेनकाय, सात लाख वाकाय ॥ दश लाख प्रत्येक वनस्पतिकाय ॥ चनदे लाख साधारण वनस्पति काय ॥ दोय लाख बेइजिय ॥ दोय लाख तेइजिय ॥ दोय लाख चौरिंत्रिय ॥ चार साख देवता ॥ चार लाख नारकी ॥ चार लाख तिर्यंच पंचेंजिय ॥ चनदे लाख मनुष्य एवं चार गतिके चौराशी लाख जीवयोनिमें, माहारे जीवे जे कोइ जीव हण्यो होय, हणाव्यो होय, हणतां प्रते जलो जाण्यो होय, ते सके दु मने वचने कायायें करी तस्स मिलामि मुक्कम ॥ इति ॥ २७ ॥ . ॥ अथ अढारे पापस्थानक आलोजं ॥ ॥प्राणातिपात ॥१॥ मृषावाद ॥३॥ अदत्तादान ॥३॥ मैथुन ॥ ४॥ परिग्रह ॥ ५ ॥ क्रोध ॥६॥ मान ॥ ७ ॥ माया ॥ ॥ लोल ॥ ए॥ राग ॥ क्षेष ॥ ११ ॥ कलह ॥१२॥ अन्याख्यान ॥ १३ ॥ पैशुन्य ॥ १४ ॥ रति अरति ॥ १५॥ परपरिवाद ॥ १६ ॥ मायामृषावाद ॥ १७॥ मिथ्यात्वशस्य For Private And Personal Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ १८ ॥ ए अढारे पापस्थानक सेव्यां होय, सेवराव्यां होय, सेवतां प्रते लला जाण्यां होय, ते सवे हुँ मन, वचन, कायये करी तस्स मिलामि मुक्कम ॥ श्ए॥ ॥ ज्ञान, दर्शन, चारित्र, पाटी पोश्री, उवणी, कवली, नवकरवाली, देव गुरु धर्मकी आशातना करी होय॥ पन्नरे कर्मादानोकी आसेवना करी होय ॥राजकथा, देशकथा, स्त्रीकथा, जक्तकथा करी होय. और जो कोइ पाप पर निंदा की, होय, कराव्यु होय, करतां अनुमोद्यं होय सो सर्व मने वचने, कायाये करके, दिवस अतिचार आलोयण करके पमिकमपामें आलोचं ॥ तस्स मिलामि मुक्कम ॥ इति आलोयणं ॥ इहां प्रजातके पमिकमणामें दिवसके ठिकाने रात्रिका पाठ कहना ॥ इति ॥ ३० ॥ ॥ पीछे सबस्सवि राश्य ॥ इत्यादि पाठ कहे. तिहां श्याका ॥ए पद कहनेसें आलोया हुआ अतिचारका प्रायश्चित्त मांगे ॥ गुरु कहे पमिकमह ॥ पीछे चं तस्स मिठामि चक्कर कहके संमासा प्रमाडोंन करके आसन पर बेठके जिमणा गोमा ऊंचा रखकें मावा गोमा नीचे करके ऐसें कहे कि नगवन् ! सूत्र जणुं ? तब गुरु कहे जणेह ॥ पीने श्वं कहि के तीन नवकार उर तीन वार करेमि ते ॥जण के स्वामि पमिक्कमिर्च जो मे राळ इत्यादि कहकर ॥ तं निंदे तं च गरिहामि पर्यंत वंदित्तु सूत्र बेठके कहे ॥ पीने खमा होकें अनुचिमि धाराहणाए इत्यादि संपूर्ण कहे, सो लिखते हे ॥ For Private And Personal Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१७) ॥अथ श्रावक प्रतिक्रमण सूत्रं ॥ . वंदित्तु सबसिधे, धम्मायरिए अ सबसाहू च ॥ श्वामि पमिक्कमिळं, सावगधम्माश्शारस्स ॥ १ ॥ जो मे वयाश्रो , नाणे तह दंसणे चरित्ते अ॥ सुहुमो अ वायरो वा, तं निंदे तं च गरिहामि॥२॥ मुविहे परिग्गहंमि,सावले बहुविहे अ आरं॥ कारावणे श्र करणे पमिक्कमे देवसियं सर्व ॥३॥जं बधमिदिएहिं चनहिं कसाएहि अप्पसबेहिं ॥रागेण व दोसेण व, तं निंदे तं च गरिहामि ॥५॥ श्रागमणे निग्गमणे, गणे चंकमणे अणाजोगे ॥ अनिउंगे अनिलंगे, पमिक्कमे ॥ ५॥ संका कंख विगिचा, पसंस तह संथवो कुलिंगीसु ॥ सम्मत्तस्सारे, पमिकमे ॥६॥ कायसमारंले, पयणे थ पयावणे अ जे दोसा ॥ अत्तम य परता, उत्नया चेव तं निंदे ॥ ७ ॥ पंचएहमणुबयाणं, गुणवयाणं च तिएहमश्यारे ॥ सिरका णं च चलएहं, पमिक्कमे ॥ ॥ पढमे अणुवयंमि, शूलगपाणाइवायविरळ ॥ आयरिश्रमप्पसले,श्व पमायप्पसंगणं ॥ए वह वंध विचए, अश्नारे लत्तपाणवुनेए ॥ पढमवयस्स इशारे, पमिकमे ॥ १० ॥ वीए अणुवयंमि, परिथूलगअलिअवयणविरई ॥ आयरिश्रमप्पस श्व पमायप्पसंगणं ॥११॥ सहसा रहस्स दारे, मोसुवएसे अ कूमलेहेत्र ॥ बीयवयस्स श्रे, पमिक्कमे ॥ १२ ॥ तइए अणुवयंमि, शूलगपरदवहरणविरई ॥ श्रायरिश्रमप्पसले, श्च पमायप्पसंगणं ॥ १३ ॥ तेना १ स्वस्थानात् यत्परस्थानं, प्रमादस्य वशाद् गतं । तत्रैव क्रम) जूयः प्रतिक्रमणमुच्यते ॥ भाव.२ For Private And Personal Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १ ) रुष्पगे, तपकिरुवे विरुद्ध गम श्र ॥ कूरुतुल कूरुमाणे, परिक्कमे० ॥ १४ ॥ चत्रे अणुवयंमि, निचं परदारगमण वि रई ॥ श्रयरि मप्पसत्रे, शत्रु पमायप्पसंगें ॥ १५ ॥ अपरिग्गहिश्रा इत्तर, अपंग विवाह ति अणुरागे ॥ चवयस आरे, पक्किमे० ॥ १६ ॥ इतो अब पंचमंमि, safter aaja ॥ परिमाण परिवेए, 5 पमायप्प संगेणं ॥ १७ ॥ धन्न खित्तव, रुप्पसुवन्ने कुवि परिमाणे ॥ डुपए चढप्पयंमिय, परिक्कमे० ॥ १० ॥ गमणस्स य परिमाणे, दिसासु उहुँ छ तिरियं च ॥ वुड्डि सइअंतरा, पढमंमि गुण निंदे ॥ १७ ॥ ममि मंसंमिश्र, पुष्फे फले गंध मधे ॥ उवजोगपरिजोगे वीयंमि गुणबए निंदे ॥ २० ॥ सच्चित् पविचे पोल डुप्पोलिश्रं च श्राहारे ॥ तुनोसदिनरकण्या, परिक्कमे० ॥ २१ ॥ इंगाली व सामी, जामी फोमी सुवए कम्मं ॥ वाणिज चेव - दंत लरकरसकेस विस विसयं ॥ २२ ॥ एवं खु जंत पिसणं, कम्मं निलंबणं च दवदा ॥ सरदहतलाव सोस, असईपोसं च वाि ॥ २३ ॥ सग्गि मुसल जंतग, तmकहेमंतमूल जेसो || दिन्ने दवाविए वा, परिक्कमे ॥ २४ ॥ न्हाववन्नग विलेवणे सद्दरूवरसगंधे ॥ ववासआजरणे, परिक्कमे० ॥ २५ ॥ कंदप्पे कुक्कुइए, मोहरि श्रहिगरण जोगाइरिते || दकमि अाए तइयंमि गुणवए निंदे ॥ २६ ॥ तिवि पहाणे, अवधाणे तदा सविदू ॥ सामा वितकर, पढमे सिरकावए निंदे ॥ २७ ॥ श्रपवणे पेसवणे, सद्दे रूवे पुग्गलरकेवे ॥ देसावगा सियंमि, बीए ० For Private And Personal Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १९ ) सिरकावए निंदे ॥ २८ ॥ संथारुच्चारविही- पमाय तह चेव जोपाजोए ॥ पोसह विहिविवरीए, तइए सिरकावए निंदे ॥ २५ ॥ सच्चित्ते निरिकवणे, पिहिणे ववएस मरे चैव ॥ कालाइकमदाणे, चत्रे सिरकावए निंदे ॥ ३० ॥ सुहिए हिए छा, जा मे असंजसु श्रणुकंपा ॥ रागेण व दोसे व तं निंदे तं च गरिहामि ॥ ३१ ॥ सासु संविजागो, न कर्ज तवचरणकर जुत्तेसु ॥ संते फासूदाणे, तं निंदे तं च गरिहामि ॥ ३२ ॥ इह लोए परलोए, जीविका मरणे असंसपगे || पंचविहो यारो, मा म हुआ मरते ॥ ३३ ॥ arry कास, पक्किमे वाइस्स वायाए ॥ मासा माणerre, area वयाचारस्स ॥ ३४ ॥ वंदणवय सिरकागारवेसु सन्नाकसायदमेसु ॥ गुत्तीसु श्रा समिईसु श्र, जो अइआरो 'तं निंदे ॥ ३५ ॥ सम्मदिदी जीवो, जइ विहु पाव समायर किंचि ॥ श्रप्पोसि होड़ बंधो, जेण न निद्वंघसं कु || ३६ || तंपि डु सपरिकमणं, सम्परिश्रावं सउत्तरगुणं च ॥ खिष्पं जवसामेश, वाहिब सुसिरिकन विको ॥ ३७ ॥ जहा विसं कुछगयं, मंतमूलविसारया ॥ विका दांति मंतेहि, तो तं हवइ निसिं ॥ ३८ ॥ एवं विदं कम्मं, रागदोससमiि | आलोयंतो छ निंदंतो, खिष्यं दणइ सुसावर्ड ॥ ३ए ॥ कयपावोवि मणुस्सो, आलोय निंदियगुरु सगासे ॥ होइ अइरेगलहु हरि रुब जारवहो ॥ ४० ॥ श्रवस्सए एएए, सावर्ड जवि बहुर होइ ॥ पुरकाणमंत कि " १ तयं. For Private And Personal Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (20) रि, काही चिरेण काले ॥ ४१ ॥ लोणा बहुविहा, न य संजरिया परिक्कमणकाले || मूलगुणउत्तरगुणे, तं निंदे तं च गरिहामि ॥ ४२ ॥ तस्स धम्मस्स केवल पन्नत्तस्स || अनुहिम राहणार विरप्रेमि विराहणाए ॥ तिविदेश परितो, वंदामि जिले चनधीसं ॥ ४३ ॥ जावंति चे श्राई० ॥ ४४ ॥ जावंत केवि साहू० ॥ ४५ ॥ चिरसंचियपावपणासपीए, जवसय सदस्समहणीए ॥ चडवीसजिए विणिग्गयक हाईं, बोलंतु मे दिहा ॥ ४६ ॥ मम मंगलमरिहंता, सिधा साहू धम्मो ॥ सम्मद्दिधी देवा, दिंतु समाहिं च बोहिं च ॥ ४७ ॥ परिसिद्धाणं करणे, किच्चाणमकरणे परिक्रमणं ॥ सहा तहा, विवरीयपरूवणाए का ॥ ४८ ॥ खामेमि सबजी वे स जीवा खमंतु मे ॥ मित्ती मे सबएसु, वेरं मज्ज न के‍ ॥ ४९ ॥ एवमहं आलोइला, निंदिका गरहि सम्मं ॥ तिविहेण परिक्कतो, वंदामि जिसे चवीसं ॥ २० ॥ इति ॥ ३१ ॥ इहां प्रजात के पकिमण में देवसिके ठिकाने राज्यं कहना ॥ पीछे दो वांदणा देकर अवग्रहमाहि रह्यो अकोज कहे ॥ ॥ इलाका० ॥ सं० ॥ ज० ॥ अष्नुहिमि प्रिंतर ॥ राइयं खामे ? गुरु कहे खामेह खामेमि राज्यं कहके संकासा प्रमार्जन पूर्वक गोमालीये बेठके, वे वांह परिलेहि ॥ मुहपत्ती वामहासुं मुखें देई, दक्षिण हाथ गुरु सामो करी ॥ नीचो नम्यो थको जं किंचि अप्पत्तियं ॥ इत्यादि संपूर्ण कहे ॥ १ ट्टिपणी - तस्स धम्मस्स केवली पन्नत्तस्स इस पदकुं मनमें विचारणा मुखसे उच्चारण नहि करणा इति संप्रदाय. For Private And Personal Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२१) ॥ अथ अप्नुछि॥ ॥श्वाकारेण संदिस्सह जगवन् अनुच्चिमि अप्रिंतर देवसियं खामेलं ॥ श्वं खामेमि देवसियं जं किंचि अप्पत्तियं ॥ परप्पत्तियं नत्ते पाणे विणए वेत्रावच्चे बालावे संसावे उच्चासणे ॥ समासणे अंतरजासाए उवरिलासाए ॥जं किंचि मजाविणयपरिहीणं सुदुमं वा वायरं वा ॥ तुने जाणह अहं न जाणामि ॥ तस्स मिलामि उक्क ॥ इति ॥३॥ ॥ इहां गुरु पण मिलामि उक्कम कहे. पी. बे वांदणा देई नूमि प्रमार्जन करता हुआ पाछे पगे अवग्रह बाहिर आयकें पायरिय उवज्काए इत्यादि तीन गाथा कहे, सो लिखते हैं। ॥अथ श्रआयरिश उवज्काए सूत्र ॥ श्रायरिश्र उवन्काए, सीसे साहम्मीए कुल गणे अ॥ जे मे कया कसाया, सवे तिविहेण खामेमि ॥१॥ सबस्स समणसंघस्स, नगव अंजलिं करिश्र सीसे ॥ सवं खमावश्त्ता, खमामि सबस्स अहयंपि ॥२॥ सबस्स जीवरासिस्स, नाव: धम्मो-निहिश-निअचित्तो॥ सर्व खमावश्त्ता, खमामि सबस्स श्रयंपि ॥३॥ इति ॥ ३३ ॥ . पी करेमि ते इलामि गमि काउस्सग्गं तस्सुत्तरि० ॥ श्रीमहावीर स्वामी उमासी तप चिंतवणा निमित्तं करेमि काउ. स्सग्गं अन्न ॥ कह के काउस्सग्गमें श्रीवीरकृत उम्मासी तप चितवन करे ॥ तप चिंतवना न आवेतो लोगस्सका अथवा चोवीश नवकारका काउस्सग्ग करे, काउस्सग्ग पारि For Private And Personal Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१२) प्रगट लोगस्स कहे। मुहपत्ती पमिलेही बे वांदणा देई सकल तीर्थनाम लेइ नमस्कार करे, सोलिखे हैं। ॥अथ सकलतीर्थ नमस्कार । ॥ स्रग्धरा वृत्तम् ॥ ॥ सन्नक्त्या देवलोके रविशशिजवने व्यतराणां निकाये, नक्षत्राणां निवासे ग्रहगणपटले तारकाणां विमाने ॥ पाताले पन्नगें स्फुटमणि किरणे ध्वस्तसांजांधकारे, श्रीमतीर्थकराणां प्रतिदिवसमहं तत्र चैत्यानि वंदे ॥ १॥ वैतान्ये मेरुभंगे रुचकगिरिवरे कुंमले हस्तिदंते, वरकारे कूटनंदीश्वरकनकगिरी नैषधे नीलवंते ॥चित्रे शैले विचित्रे यमकगिरिवरे चक्रवाले हिमाजौ ॥ श्रीम० ॥॥श्रीशैले विंध्यभंगे विमल गिरिवरे ह्यर्बुदे पावके वा,सम्मेते तारके वा कुलगिरिशिखरेऽष्टापदे स्वर्णशैले ॥ सह्यात्रौ चौर्जेयंते विपुलगिरिवरे गुर्जरे रोहणाऔ॥श्रीम ॥३॥ श्राघाटे भेदपाटे क्षितितटमुकुटे चित्रकूटे त्रिकूटे, लाटे नाटे च धाटे विटपिघनतटे हेमकूटे विराटेकर्णाटे हेमकँटे विकटतरकटे चक्रकूटे च नोटे ॥ श्री ॥४॥श्रीमाले मालवे वा मसयिनि निषधे मेखले पिछले वा, नेपाले नाहले वा कुवलय तितके सिंहले केरले वा ॥ माहाले कोशले वा विगलितसलिले जंगले वाढमाले ॥श्रीम० ॥५॥ अंगे वंगे कलिंगे सुगतजनपदे सत्प्रयागे तिलंगे, गौमे चौमे मुरमे वरतरविके जजियाणे च . १ चैत्रे १ चित्रे ४ क चौजयंते ख बैजयंते ५ क विपुलगिरिवरे ख विमलगिरि. ६ क अघाटे ख अषाढे ग आषामे ७ क हेमकूटे ख देवकूटे. For Private And Personal Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २३ ) ० पौंड्रे ॥ मा पुलिंडे विमकवलये कान्यकुब्जे सुराष्ट्रे ॥ श्री० ॥ ६ ॥ चंद्रायां चंद्रमुख्यां गजपुरमथुरा पत्तने चोकयिन्यां, कौशांव्यां कोशलायां कनकपुरवरे देवगिय व काश्याम् ॥ रासक्ये राजगेहे दशपुरनगरे नद्दिले ताम्रलिप्त्यां ॥ श्री० ॥ ७ ॥ स्वर्गे मर्त्यैऽतरिक्षे गिरिशिखर हृदे स्वर्णदीनीर तीरे, शैलाग्रे नागलोके जलनिधिपुलिने जूरुहाणां निकुंजे ॥ ग्रामेऽरण्ये वने वा स्थलजलविषमे दुर्गमध्ये त्रिसंध्यं ॥ श्रीम ॥ ८ ॥ ""श्रीमन्मेरौ कुलात्रौ रुचकनगवरे शाहमलौ जंबुवृक्षे, चौजन्ये चैत्यनंदे रतिकररुचके कौंरुले मानुषांके || इकारे जिनात्रौ च दधिमुखगिरौ व्यंतरे स्वर्गलोके, ज्योतिलोंके जवंति त्रिभुवनवलये यानि चैत्यालयानि " ॥ ए ॥ इवं श्री जैन चैत्यस्तवनमनुदिनं ये पठति प्रवीणाः, प्रोद्यकल्याणहेतुं कलिमलहरणं भक्तिनाजस्त्रिसंध्यम् ॥ तेषां श्रीतीर्थयात्राफल मतुलमलं जायते मानवानां कार्याणां सिद्धिरुच्चैः प्रमुदितमनसां चित्तमानंदकारि ॥ १० ॥ इति चैत्यवंदनं संपूर्णम् ॥ इति ॥ ३४ ॥ " पीछे गुरुमुखे पञ्चरका करकें ॥ इलामो अणुस कहिकें गुरु एक गाथाकी स्तुति कहे. || पीछे णमो खमासमा नमोऽईत्सिद्धा० ॥ कहकर 'पर समय तिमिरतरणिं' ए तीन गाथा कहें, सो लिखते हैं ॥ १ क चंद्रमुख्याम् ख चंद्रावत्यां २ नवमी गाथा उक्तार्थ अने प्रक्षेप क. For Private And Personal Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (४) ॥ अथ परसमय तिमिरतरणिं ।। ॥ परसमयतिमिरतरणिं, जवसागर वारितरण वरतरणिं ॥ रागपरागसमीरं वंदे देवं महावीरम् ॥१॥ निरुघसंसारविहारकोरि, पुरन्त नावारिंगणानिकामं ॥ निरन्तरं केवलिसत्तमा वो, जवावहं मोहलरं हरंतु ॥२॥ संदेहकारि कुनयागमरूढगूढ संमोहपंकहरणामलवारिपूरम् ॥ संसारसागरसमुत्तरणोरुनावं, वीरागमं परमसिधिकरं नमामि ॥ ३ ॥ परिमल जरलोजालीढलोलालिमाला, वरकमलनिवासे हारनीहारहासे ।। अविरललवकारागारविचित्तिकारं, कुरुकमलकरे मे मङ्गलं देवि सारम् ॥४॥ इति ॥३५॥ अथवा संसारदावानी तीन गाथा कहे, सो लिखते हैं। ॥अथ संसारदावानीस्तुति ॥ ॥'संसारदावानलदाहनीरं, संमोहधूलीहरणे समीरम् ॥ मायारसादारणसारसीरं, नमामि वीरं, गिरिसारधीरम् ॥१॥ नावावनामसुरदानवमानवेन, चूलाविलोलकमलावलिमालितानि ॥ संपूरितालिनतलोकसमीहितानि, कामं नमामि जिनराज पदानि तानि ॥२॥ बोधागाधं सुपदपदवीनीरपूरानिरामं, जीवाहिंसाविरललहरीसंगमागाहदेहम् ॥ चूलावेलं गुरुगममणीसंकुलं दूरपारं, सारं वीरा गमजलनिधि सादरं साधु सेवे ॥ ३ ॥ श्रामूलालोलधूलीबहुलपरिमलालीढलोलातिमाला, फंकारारावसारामलदलकमलागारजूमीनिवासे ॥ गया १ साधवियां श्राविका संसारदावानी ३ गाथा कहै नमोऽर्हत् सिद्धान कहे. For Private And Personal Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१५) संसारसारे वरकमखकरे तारहाराजिरामे, वाणसिदोहो नवविरहवरं देहि मे देवि सारम् ॥ ४॥ इति ॥ ३६॥ ॥इत्यादि तीन गाथा जणी, शक्रस्तव कहे. पीछे खमा होकर अरिहंतचेश्याएं करेमि काउस्सग्गं ॥ वंदणवत्तिश्राएअन्नच ॥ इत्यादि पाठ कहकें ॥ ॥काउस्सग्गमांहे एक नवकार चिंतवी ॥ एक श्रावक प्रथम काजस्सग्ग पारी नमोऽहत्सिधा कही ॥ एक गाथा स्तुतिकी कहे, सो लिखते हैं. ॥ अश्वसेन नरेसर वामादेवी नंद ॥ नव कर तनु निरुपम, नीलवरण सुखकंद ॥ अहि लंग्न सेवित, पनमावश्धरणिंद ॥ प्रह ऊगी प्रण, नित प्रति पास जिणंद ॥१॥ए गाथा एक जण कहे । मुसरे सब कामस्सग्गमाहे रह्या हुआ सुणे ॥ पीछे एमो अरिहंताणं कहिके कानस्सग्ग पारे ॥ सतरे आगे पण जाणणा ॥ पीने लोगस्स कहे ॥ सबलोए अरिहंत चेइ आणं करेमि काउस्सग्गं वंदण वत्ति० ॥ अन्नन ॥ इत्यादि कहिकें । एक नवकारका काउस्सग्ग करी पारिकें जी स्तुति कहे, सो लिखते हैं ॥ ॥ कुलगिरिवेयडश, कणयाचल अभिराम ॥ मानुषोत्तर नंदी, रुचक कुंमल सुखाम ।। नुवणेसर व्यंतर, जोइस विमापीय धाम वर्ते ते जिणवर, पूरो मुल मन काम ॥२॥ ___॥ पीछे पुस्करवरदीव कहके सुयस्स लगव. वंदण अन्नब्लू० ॥ कही ॥ एक नवकारका कानस्सग्ग करी पारिकें ॥ त्रीजी स्तुति कहे, सो लिखते हैं. For Private And Personal Use Only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिहां अंगग्यारे, बारे उपांग उबेद ॥ दस पयन्ना दाख्या, मूल सूत्र चलनेद ॥ जिन आगम षटपव्य, सप्तपदारथ जुत्त। सांजलि सईहतां, तुटे करम तुरत्त ॥ ३ ॥ ॥पीछे सिखाएं बुखाणं ॥ कहके वेयावच्चगराणं० ॥ ॥ अन्ननु कही ॥ एक नवकारका काउस्सग्ग करी पारिज नमोऽर्हसिघा० कहके चोथी स्तुति कहे, सो लिखते हैं ॥ पउमावई देवी, पार्श्वयक्ष परत ॥ सङ संघना संकट दूर करेवा दक्ष ॥ समरो जिनलक्ति, सूरि कहे इकचित्त ॥ सुख सुजस समापे, पुत्र फलन बहु वित्त ॥४॥ इति ॥ ३७॥ ॥ पीछे नीचा बैठकें णमोनु कहकें ॥ तीन खमासमणे पूर्वोक्त रीतें॥श्राचार्य,उपाध्याय, सर्वसाधु मिश्रकही वांदे ॥२॥ ॥ इतना विधि कियां पीनें स्थिरता दुवे तोखमासमण तीन बखत देई ॥ इलाकारेण संदिस्सह नगवन् ॥ चैत्यवंदन करूं यह पाठ कह कर चैत्य वंदन करे. सो लिखते हैं ॥ ॥अथ श्री वीसविहरमानजीको चैत्यवंदन ॥ ॥ सीमंधर १ युगमंधर २ बाडु ३ सुबाहु ५ जाण सुजात ५ स्वयंप्रनु६सातमा, शपनानन ७ मन आण, ॥१॥ अनंतवीर्यने । सूर प्रनु ए विमल १० वज्रधर ११ कहियै, चंजानन १५ बंजबाहुजी १३ जुजंग १५ नेमप्रज्जु १५ लहियै,॥२॥ईश्वर १६श्री वयरसेनजी १७ महाजन १७ जिनदेव, देवजस १५ अजित १ विधिप्रपा १ सामाचारीशतक १ श्रावक विधिप्रकाश ३ विगेरेमे अढाऊोसु कहणा कह्या नही जो कहते हैं सो विधि नहीं है ॥ किंतु गड्डरीया प्रवाह है॥ १ टीप्पणी २-उत्तर दिशा सामु श्रीमंधरजीका चैत्यवंदन करे. For Private And Personal Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वीर्यजी २० सुरपति सारेसेव, ॥३॥ पंचविदेहे बिचरतां ए वीस जिनेसर जाण, कृपाचंद त्रिहुंकालमें नमतां क्रोम कल्याण,॥॥ इति वीस विहरमान चैत्य वंदनं सं०॥ ॥अथ चैत्यवंदन ॥ - ॥ जय जय त्रिनुवन श्रादिनाथ, पंचमगति गामी ॥ जय जय करुणा शांत दांत, नवि जन हितकामी ॥ जय जय इंद नरिंद बंद, सेवित सिर नामी ॥ जय जय अतिशयानंतवंत, अंतर्गति जामी॥१॥ पूरव विदेह विराजता ए, श्रीसीमंधर स्वाम ॥ त्रिकरणशुद्ध त्रिहु कालमें, नितप्रति करूं प्रणाम ॥२॥ जं किंचि नाम तिथं० ॥ नमोबूणं जावंति चेड्याळ जावंत केवि साहू ॥ और ॥ णमोऽहसिघाचार्योपाध्याय सर्वसाधुल्यः॥ तक कहिकें सीमंधरजीका स्तवन कहे, सो लिखते हैं। ॥अथ सीमंधरजिनस्तवनम् ॥ ३७ ॥ जगजीवन जग वालहो ॥ ए देशी॥ श्रीसीमंधर साहिबा, वीनतमी अवधार लालरे परम पुरुष परमेसरू, श्रातम परम आधार लाल रे ॥ श्री ॥१॥ केवल शान दिवाकरु, नांगे सादि अनंत लाल रे ॥ नासक लोकालोक के, झायक शेय अनंत लाल रे ॥ श्री० ॥२॥ इंन चंच चकीसरू, सुर नर रहे कर जोम लाल रे ॥ पदपंकज सेवे सदा, अणहूंता इक कोम लाल रे ॥ श्री० ॥ ३ ॥ चरण कमबपिंजर वसे, मुज मन हंस नित मेव लाल रे ॥ चरण शरण मोहि श्राशरो, जव जव देवाधिदेव लाल रे ॥श्री० ॥४॥ अधम उचारण गे तुम्हें, दूरहरो जवारक लाल रे ॥ कहे For Private And Personal Use Only Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२०) जिनहर्ष मया करी, देजो अविचल सुरक लाल रे ॥ श्री० ॥ ॥५॥ इति ॥ ॥अथ वितीय सीमंधरजिनस्तवप्रारंजः ॥३ए ॥ पूर्व विदेह पुखलावती जयो जगपतीरे श्रीसीमंधरस्वाम प्रहसमनितन, रे॥१॥ जगत्रयत्नावप्रकाशता नविप्रतिबोधतारे नपगारी अरिहंत ॥ प्रहः ॥॥ धन्यनयरी धन्यतेनरा धन्य ते धरारे विचरे जिहां जिनराज ॥ प्रद० ॥३॥ धन्य दिवस धन्य ते घमी देखसुं आंखमीरे नक्तिवठस जगवंत ॥ प्रह० ॥४॥ महिर निजर अवधारजो पतितउधारजोरे जिनहर्ष घणे ससनेह प्रहसमनित नमुरे ॥ इति ॥ श्री सीमंधरजीको स्तवन संपूर्ण ॥ ॥पी. जयवीयराय वंदणवत्तियाए ॥ अन्नबू कहकें। एक नवकारका काउस्सग्ग करे ॥ पारिके नमोऽर्ह सिचा कही ॥ एक थुनी गाथा कहे, सो लिखते हैं॥ ॥ महीममणंपुषसोवामदेहं, जणाणंदणं केवलणाणगेहं ॥ महाएंदलची बहुबुधिराय, सुसेवामि सीमंधरं तिवरायं ॥१॥ ॥ ४० ॥ ३ ॥ श्महीज थिरता हुवे तो, श्रीसिघाचलजीका चैत्यवंदन करे, सो लिखते हैं ॥ ॥अथ श्रीसिगिरीचैत्यवंदन ॥ ॥ सिघो-विजायचकी-नमि-विनमि-मुणी घुमरियोमुपिंदो, वाली पन्न-संबो जरह सुक मुणी सेलगो पंथगोवा, रामो कोमी पंचत्राव नरवई नार पंकुपुत्ता । मुत्ताएवं श्रणेगे विमलगिरिमहं सिबमेयं नमामि ॥१॥ For Private And Personal Use Only Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ए) ॥ सिघाचल से, सदा सहुतीरथ सिरदार, सोरठ देश सोहामणो तिहां ए गिरिवर सार ॥१॥ तीन जुवन विच एहवो तीरथ कोइ न होय, सीमंधरवयणेकरी शेजमहात्म जोय ॥२॥ श्रीयुगादि जिनराजजी समवसखा इणगम, तेहथी ए तीरथ वमो अविचल सुखनो धाम ॥३॥ काती पूनम दशक्रोमसुं ए भावम वारिखिल जाण सिद्धि वधू रंगे वस्या कृपाचंद मन आण ॥ ॥ इति ॥ ॥अथ श्रीपुंमरीकजीनो चैत्यवंदन ॥ ॥ श्रीशषनजिनेश्वररायना पहिला गणधर देव, पुंमरीक नामें सदा सुरनर सारे सेव ॥ १॥ चैत्री दिन शिवपुर बह्या पांच क्रोम परिवार, पुंमरीक तेहथी अयो प्रगट नाम सुखकार ॥॥ आ अवसरपणी कालमाए प्रथम सिख अनिराम, कृपाचंद गिरिराजने प्रतिदिन करे प्रणाम ॥ ३ ॥ इति । ॥अथ श्रीसिघाचलजीनु चैत्यवंदन ॥ ४१ ॥जय जय नाजि नरिंद नंद, सिघाचल मंझण ॥जय जय प्रथम जिणंद चंद, जव मुःख विहंडण ॥ जय जय साधु सुरिंद विंद, वंदिय परमेसर ॥जय जय जगदानंद कंद,श्रीरिषन जिणेसर ॥१॥ अमृतसम जिन धर्मनो ए, दायक जगमें जाण ॥ तुझ पद पंकज प्रीतिधर, निशि दिन नमत कट्याण ॥२॥जं किंचि नाम तिबं० ॥ एमोबुणं ॥ जावंति चेश्याइं० ॥ जावंत केवि साहू ॥ मोऽहसिनाचार्योपाध्याय सर्व साधुन्यः ॥ तक कहिके श्रीसिघाचखजीका स्तवन कहे, सो लिखते हैं। For Private And Personal Use Only Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ अथ पुमरीकगणधरजीस्तवनं । श्री पुंगरीक गणधर नमुं, पुंगरगिरि सिणगार खाल रे ॥ पांचकोम मुनि परिवखा, कीधो अणसण सार, लाल रे ॥ पुंग ॥१॥ आदीसर जिन उपदिसे, ए तीरथ परसाद, लाल रे ॥ शिवकमला तुमे पामशो, मेटी सद् विखवाद लाल रे ॥ पुंम ।। ॥२॥तीरथ पतीमां हूं अबु, प्रथमतीरथ श्म जाण, लासरे।। प्रथम सिह सिघाचले, तुमे श्रास्यो महिराण, लालरे ॥ पुंग ॥३॥ प्रनुनी प्राणा श्रादरी संलेखना चितलाय, लालरे ॥ चैत्रीदिन शिवपुर सह्या, घातीकर्म खपाय, साखरे ॥ पुंम ॥ ॥४॥यात्रा विधीसु कीजिए, जिनजी दियो उपदेश, लालरे॥ कृपाचंद गिरिराजनी, चाहे सेवा हमेश, सासरे ॥ पुंम ॥ ५॥ श्ती श्री पुंगरीक गणधरजी स्तवनं ॥ ॥अथ श्रीसिघाचलस्तवनम् ॥ सिघाचल गिरि नेव्या रे ॥ धन्य नाग्य हमारा विमलाचलगिरि० ॥ एह गिरिवरनो महिमा मोटो, कहेतां न श्रावे पारा ॥रायण रूख समोसस्या स्वामी, पूर्व नवाणू वारा रे ॥ध ॥१॥ मूलनायक श्रीश्रादिजिनेश्वर, चोमुख प्रतिमा चारा ॥ अष्ट अव्यसें पूजो लावें, समकित मूल आधारारे ॥ध ॥२॥ दूर देशान्तरथी हूं शहां आयो, श्रवण सुणी गुण तोरा ॥ पतितउधारण बिरुद तुमारो, एह तीरथ जग सारारे ॥ ध० ॥३॥नाव नक्तिसें प्रनु गुण गावे अपना जन्म सुधारा ॥ जात्रा करि जवि जन शुल नावे, नरक तिर्यंच गति वारारे ॥धः॥४॥ संवत अढार तयांसी मास आषाढे, वदि For Private And Personal Use Only Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३१) बाउम जोमवारा ॥ प्रचुके चरण परताप संघमें, हमारतन प्रनु प्यारारे ॥ध० ॥ ५ ॥ इति ॥ ॥अथ श्रीसिघाचलस्तवनं लिख्यते ॥ ॥ सिरि सिघाचल गिरिवर राया परमातम पद संपद पाया, श्री अनजिनेसर जिनराया प्रनु मया करी, दिल रंजन दिदारकि मुजने दीजिये ॥ १॥ जे समता सुख सुधा आपे, जमता युत कुमतिलता कापे, वलि बोध बीजने थिर थापे ॥ प्रनु०॥ ॥२॥ पर पुद्गलममता दूरगमे, चेतनता निजघरमांहिं रमे, तिहां जनम मरण सहू दुःख विरमे ॥ प्रनु० ॥३॥ जेहथी लवपरणति चितनवसे अध्यातम अनुन्नव गुण विकसे तिहां सहज समाधि दशा उबसे ॥ प्रनु ॥॥ए अध्यातम वीनति मधुरी ॥ वाचक-गणि-क्षमा कल्याण करी ॥ ते सफल करो मुज हेत धरि ॥ प्रनु० ॥ ५॥ इति सिघाचलस्तवनं संपूर्णम् ॥ ४२ ॥ पीने जयवीयराय० ॥ वंदणवत्तियाए ॥ अन्न३० ॥ कहके एक नवकारका काउस्सग्ग करे ॥ पारिकं नमोऽहसिधा ॥ कहके स्तुति कहे सो लिखते हैं । ॥ शत्रुजगिरि नमियें षनदेव पुमरीक ॥ शुन तपनो महिमा, सुणि गुरु मुख निरनीक ॥ शुष मन उपवासें, विधिशुं चैत्यवंदनीक ॥ करिये जिन आगल, टासी वचन अलीक ॥ १॥ इति ॥ ४३ ॥४॥पीने फुरसद होवे तो पमिलेहण करे, सो लिखते हैं। For Private And Personal Use Only Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३५) ॥अथ पमिलेहण विधि ॥ ५ ॥ ॥ खमासमण देई श्वाकारेण संदिस्सह जगवन् ॥ पमिलेहए संदिस्साउं? गुरु कहे. संदिस्सावेह ॥बीजे खमासमणे॥श्चाका संपला पमिलेहण करूं ? गुरु कहे, करेह ॥ पीने श्वं कही मुहपत्ती पमिलेहे ॥ इमहीज दोय खमासमणे अंगपमिलेहण संदिस्सा ॥अंगपमिलेहण करूं कहके धोतियुं कणदोरो पमिलेहके खमासमण देई श्वाकारे ॥ सं० ॥ जगवन् ! पसात करी पमिलेहण पमिलेहावो जी. एम कही ॥थापनाचार्य पमिलेहके रके, अने जो गुरुवादिक थापनाचार्य पमिलेहे, तो पण खमासमण देई आग्यामाँगे, पीने खमासमण देई ॥ श्वास ॥ सं० ॥ ज० ॥ मुहपत्ती पमिलेहुं ? गुरु कहे पमिलेहेह ॥पीने छ कही ॥ मुहपत्ती पमिलेही ॥ दोय खमासमणे ॥श्वाका ॥ सं॥न ॥ जेहिपमिलेहण संदिस्साचं ॥ उही पमिलेहण करुं ॥ एम कही कंबल वस्त्रादि पमिलेहे ॥ पीने पौषधशाला प्रमाजी, काजो विधिशुं परमवी खमासमण देई इरियावही पमिकमे ॥ ए मूलविधि जाणवो ॥ इतनी स्थिरता न होवे, तोजी दृष्टिपमिलेहण तो अवश्य करणी ॥ अवनी प्रायः एसेही करते दिखते हैं। अब सामायिक पारणेका विधि कहते हैं ॥ ६॥ ॥पीने सामायिक पारे ॥ एक खमासमण देई ॥ मुहपत्ति पमिलेहे ॥ फिर खमासमण देई ॥ श्वा० ॥ सं० ॥ ॥ सामायिक पारुं ॥ गुरू कहे 'पुणोवि कायबो, पीने यथाशक्ति कही वली खमासमण देई कहे. श्वाका० ॥ सं० ॥ ॥ For Private And Personal Use Only Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३३) सामायिक पारेमि ॥ गुरु कहे आयारो न मोत्तवो ॥ पीने तहत्ति कही, अर्थ नमि ऊनो श्रको, तीन नवकार गुणी नीचो गोमालीये बेसी मस्तक नमावी ॥ जयवं दसमलदो॥ इत्यादिगाथा कहे, सो लिखते हैं ॥ ॥अथ जयवं दसमलदो ॥५४ ॥जयवं दसमजद्दो, सुदंसणो धूलिजद्द वयरोय ॥ सफलीकयगिहचाया, साहू एवं विहा हुँती ॥१॥ साहूण वंदणेणं, नास पावं असंकिया नावा ॥ फासु अदाणे निकार, अनिग्गहो नाण माईणं ॥२॥उनमन्बो मूढमणो, कित्तिय मित्तंपि संजर जीवो ॥ जं च न संजरामि अहं, मिठामि मुक्कम तस्स ॥३॥ जं जं मणेण चिंतियं, असुहं वायाश् नासियं किंचि ॥ असुहं काएण कयं, मिनामि उक्क तस्स ॥४॥ सामाश्य पोसह संध्यिस्स जीवस्स जाइ जो कालो। सो सफलो बोधवो, सेसो संसार फलहेज ॥ ५॥ सामायिक विधे लीधुं विधे कीg, विधि करतां अविधि आशातना लागी होय, दश मनका, दश वचनका, बारह कायाका वत्तीस मुषणमांहि जो कोश् उषण सागो होय, सो सदु मन कर, वचन कर, कायायें करी मिळामि मुक्कम ॥ इति सामायिक पोसह पारवानी गाथा ॥ ॥ ॥ अथवा पहिला सामायिक पारी कें, पीछे पमिलेहण करे.. शहां यथायोग्य अवसरे गुरुकुं सुहरा पूरे ॥ दूसरा खमासमण देवे, श्रीजिनपतिसूरिजीकी समाचारीमें एसें कयो हे ॥ इति सामायिक पारण विधि ॥ श्राव०३ For Private And Personal Use Only Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३४ ) ॥ अथ संध्याकाल सामायिक विधिर्लिख्यते ॥ ७ || पिछले पोरें धर्मशाला प्रमार्जी वस्त्रादिक पहिलेहे. जो वेरो यो दुवे, तो दृष्टिप मिलेहण करे | पीछे गुरु आर्गे श्रथवा थापनाचार्यजी आगें वी भूमि प्रमार्जी असण वाम पासे मूकी खमासमण देई कहे || इलाका० ॥ सं ॥ ज० ॥ समायिक मुहपत्ती पहिलेढुं ? गुरु कहे पहिलेदेह. कही ॥ फिर खमासम देई मुहपत्ती पहिले हे || पीछे खमासमण देई ॥ शलाका० ॥ सं० ॥ ज० ॥ सामायिक संदिस्सा ? गुरु कहे संदिस्सावेह || फिर खमासमण देई इलाका० ॥ सं० ॥ ज० ॥ सामायिक वाढं ? गुरु कहे, गएद इवं कही फिर खमासमण देई || अवनत श्रई तीन नवकार गुणी कहे. इवाकारेण सं० गवन् ! पसा करी सामायिक दंरुक उच्चरावोजी ॥ गुरु कहे उच्चरावेमो || पीछे करेमि नंते सामाइयं ॥ इत्यादि सामायिक सूत्र गुरु वचन अनुभाषण करतो थको तीन वार उच्चरी खमासम देई || इलाका० ॥ सं० ॥ ० ॥ इरियावहियं परिकमामि ? गुरु कहे परिक्कमेह || पीछे इवं कही ॥ इवामि परिकमितं ॥ इरियावहियाए इत्यादि पाठसे इरियावहियं पकिमी || एक लोगस्सका काउस्सग्ग करी, णमो अरिहंताणं कही, कारसग्ग पारी मुखें प्रगट लोगस्स कही, नीचे बैठके मुहपत्ती पहिले हि वांदा देई कहे. इछाकार भगवन् ! पसाउ करी पञ्चरकाण करावोजी. पीछे गुरु दिवस चरिम पच्चरकाण करावे ॥ गुरु जावें थापनाचार्य समदें अथवा स्वमुखे वा aha साधर्मी मुखें पच्चरके ने जो तिविहार उपवास की धो For Private And Personal Use Only Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३५) हुवे, तो मुहपत्ती पमिलेहि पच्चरकाण करे ॥ वांदणा न देवे, अने जो चनविहार उपवास दुवे, तो पच्चरकाण करवू ने नहीं॥ ते माटें मुहपत्ती नहिं पमिलेहे ॥ ए विस्तार विधि हे ॥ पीने एक खमासमण देई इलाका ॥ सं० ॥ ॥ सद्याय संदिस्साउं? गुरु कहे, संदिस्सावेह. पीने श्वं कही वली खमासमणदेई ॥ इबा० ॥ सं० ॥ न ॥ सजाय करूं ? गुरु कहे करेह ॥ पीने श्वं कही । खमासमण देई ॥ ननो थको मधुर स्वरें श्राव नवकारनी सजाय करे ॥ पीने खमासमण देई॥श्वा० ॥ सं० ॥नम्॥ बेसणुं संदिस्सा ? गुरु० संदिस्सावेह ॥ फिर खमासमण देई बा ॥ सं० ॥ ॥ वेसणुं गउं ? गुरु कहे, छाएह ॥ पीने खं कही जो शीत कालादि हुवे तो खमासमण दे॥श्चा०॥संगालः॥पांगरणुं संदिस्साउं?गुरु कहे, संदिस्सावेह ॥ फिर खमासमण देई ।। श्वा ॥ सं० ॥ ज० ॥ पांगरj पमिग्गहूं ? गुरु कहे पमिग्गएह ॥ पीने श्वं कही शुल ध्यान करे ॥ इति संध्यासामायिक विधिः ॥ ॥अथ देवसि पमिकमण विधिलिख्यते ॥ प्रथम त्रण खमासमण देई ॥ श्वा ॥ सं० ॥ न ॥ चैत्यवंदन करुं ? गुरु कहे करेह. पीछे चं कही ॥ जय तिढुअण कहे ॥ जिसमें परकी तथा चनमासी तथा संवबरीके रोज तीस गाथा कहेनी ॥ और दिनोमें तो पांच गाथा पहेलेकी, और दोय गाथा पिगमीकी, एवं सात गाथा कहेनेकी प्रवृत्ति देखमें आवे हैं. अब जयतिहुश्रण लिखते हैं॥ For Private And Personal Use Only Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३६ ) ॥ श्रथ जयति लिख्यते ॥ ४९ ॥ ॥ जय तिदु वरकप्परुरक जय जिए धन्नं तरि, जय ति कलाएकोस रिअक्करि केसरि ॥ तिदुपजण अविलंघिया जुवणत्तय सामिश्र, कुणसुसुहाई जिस पास यंजय पुरचि ॥ १ ॥ तइ समरंत लहंति कत्ति वर पुत्तकसत्तई, धम सुवन्न हिरम पुस जनुंजइ रई ॥ पिरकहि मुरक असंखसुरक तुह पास पसाइए, इय तिदुखण वरकप्परुरकसुरकर कुए मह जिए || २ || जरजकर परिजुन कसणहुछसुकुछिए, चरकुरकीए खएखुप नर सलि सूलिए ॥ तुह जिए सरणरसायण लढु हुंति पुण्सव, जय धमंतरि पास महवि तु रोगहरो भव ॥ ३ ॥ विकाजोइस मंततंत सिङ्घि पयत्ति, व विह सिद्धि सिकाइ तुह नामिए ॥ तु नामि पवित्त वि जण होइ पवित्तन, तं तद्दृऋण कलाकोस तु पास निरुत्तन ॥ ४ ॥ खुद्द पवत्त मंत-तंतजंता विसुत्तर, चरथिरगरलगदुग्गखग्गरिज वग्ग विगंज || shares as निवार दय करि, रिाई दर स पासदेन पुरिअक्करिकेसरि ॥ ५ ॥ तुह आणा थंने जीमदयुद्धुर सुरवर, ररकस - जरक - फणिंद विंद चोरानलजलहर || जलथलचारिरन्दखुद्द पसु जोइणि जो, श्य तिहुण विसंधिया जय पास सुसामिका ॥ ६ ॥ पि दिल जत्तिन्नर. निप्जर, रोमंचं चित्राचारुकाय किसरनर सुरवर ॥ जसु सेवा कमकमलजुल परकालिया कलिमलु, सो जुवपत्तयसामि पास मह मद्दन रिजबलु ॥ ७ ॥ जय जोश्र For Private And Personal Use Only Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३७) मणक रसलसल नय पंजरकुंजर, तिहणजणाणंदचंद नुवणत्तयदिणयर जय मश्मेणि वारिवाह जय जंतुपियामह, अंजणयथि पासनाह नाहत्तण कुण मह ॥ ७ ॥ बहु विहवएणुअवएणुसुएणुवमित उपमिहि, मुरकधम्म काम काम नर नियनियसहि ॥ जं जमायश् बहुदरिसणच बहुनामपसिझन, सो जोश मणकमलनसल सुह पास पवघउ ॥ ५ ॥ जय विघ्नल रणपिरदसण घरहरियसरीरय, तरलियनयणविसएणुसुण्णुगग्गर गिर करुण्य । तई सहसत्ति सरंति इंति नरनासिब गुरुदर मह विजवि सऊसइ पास जय पंजरकुंजर ॥ १० ॥ पई पास विविअसंतनित्तपत्तंतपवित्तिय, वाहपवाह पबूढरूढ मुहदाह सुपुलिय ॥ ममश्मएणुसजम पुसअप्पाणंसुरनर, श्य तिहुअणणंद चंद जय पास जिणेसर ॥ ११ ॥ तुह कहाणमहेसु घंटटंकारवपिक्षिय, वश्विरमहमहवनत्तिसुरवर गंजुलिय॥ हल्लुप्फलिश पवत्तयंति जवणेवि महूसव, इय तिहुणाणंदचंद जय पास सुहुनव ॥ १२ ॥ निम्मलकेवल किरणनियरविदुरिब तमपहयर, दंसिय सयलपयवसच विचरि अ पहानर ॥ कलिकलुसिथ जण घूअलोयलोयणह अगोयर, तिमिरई निरुहर पास नाह नुवणत्तय दिणयर ॥ १३ ॥ तुह समरण जलवरिससित्तमाणवमा मेणि, अवरावरसुदुमडबोहकंदलदलरेणि ॥ जायइ फलनरत्तरिय हरिय मुहदाह अणोवम, श्य मश्मेणि वारिवाह दिस पास मई मम ॥ १५॥ कय अविकलकबाणवलि उलूरियउहवणु, दाविअसग्गपवग्गमग्ग सुग्गगम वार[, ॥ जय जंतुह जणएणतुलजंजणियहियावहु, For Private And Personal Use Only Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३० ) रम्म - धम्म सो जयज पास जय जंतु पिश्रमहु ॥ १५॥ नुवणारस निवास दरिका परद रिसणदेवय, जोइणिपूएखित्त वाल खुद्दा सुर पसुवय ॥ तुह उत्त सुन सु श्रविसंबुलु चिहि, श्य तिदु वासिंद पास पावाइ पणासहिं ॥ १६ ॥ फणिफणफारफुरंतरयण कररंजिश्रनयल, फलिणी कंदलदल तमाल निलुप्पल सामल || कमासुर उवसग्गवग्ग संसग्ग छागंजिला, जय पश्च्चरक जिस पास थंजणयपुरठि ॥ १७ ॥ महमणतरलपमाणनेय वायावि विसंकुल, नियतपुरवि श्रविण्यसहाव आलस विहलंघल || तुह माह पपमाणदेव कारुण पवित्त, इय म मा अवहीर पास पालिहि विलवंत ॥ १८ ॥ किं किं कपिल ऐय कलु किं किं व न जंपित, किं व न चिनि कि देव दीपयमविलंबित कासु न किय निप्पलला म्हेहिं हत्ताहि, तदवि न पत्त ताण किंपि परं पदु परिचतहिँ ॥ १७ ॥ तुहुं सामिल तुडुं मायवप्प तुडुं मित्त पियंकरु, तुडुं गइ तुडुं मइतुंहिज ताणतुहुं गुरु खेमंकरु | हजं दुह जर जारिका बराज राजल निष्नग्गड लीएन तुह कमकमलसरण जिएपालहिं चंगल ॥ २० ॥ परं किवि कय नीरोय लोय किवि पावियसुहस्य, किवि मईमंत महंत किवि केवि साहियसिवपय ॥ किवि गंजिरिजवग्ग केवि जसधबलि मूल, मई वहीर हि के पास सरागयवबल || २१ || पच्चुवयार निरीह नाह निष्पयो, तुर्दु जिए पास परोवयार करु णिक्कपरायण ॥ सतु मित्तसमचित्तवित्ति नय निंदिश्रसममण, माछावहीर जुग्गवि मई पास निरंजण || २२ || हवं बहुविह For Private And Personal Use Only Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३७ ) हृतत्तगत्त तुडुं हनासापरु, हजं सुयाह करुपिकता तुडुं निरु करुणाकरु | ह जिए पास असा मिसालु तुदु तिहुँचसामिश्र, जं वही रहि मई ऊंखत इय पास न सोहिया ॥ २३ ॥ जुग्गा जुग्गविजाग नाह नहुजोयहि तुह सम, जवणुवयार सुहावनाव करुणारससत्तम ॥ समविसमह किंषण नियइ जुविदादसमंतन, इय 5हबंधव पासनाह म पाल श्रुत ॥ २४ ॥ न य दीह दीण य मुएवि विकिवि जुग्गय, जं जोश्यजवयारु करहि उवयारसमुजय || दीपददीनिदीजेा तुह नाहिए चत्तल, तो जुग्गल अहमेव पास पाल हि मई चंग ॥ २५ ॥ अह अविजुग्गयविसेस किवि महि दीपद, जं पास विजवयारु करइ तुह नाह समग्गह ॥ सुचि किल कल्लाजेण जिण तुम्ह पसीयह, किं तंचेव देव माम वही रह || २६ ॥ तुह पण न होइ विहल जिए जाए उ किं पुए, हजं पुरिकल निरुसत्तचत्तक्कदु उस्सुयमणं ॥ तं मन निमिसेस एष एव विजाइ लग्न‍, सच्चं जं मुकियवसेण किं जंबरु पच्चइ ॥ २७ ॥ ति सा मिश्र पासनाह मई छप्पयासिन, किन जं नियरूवसरिसु न मुण्ड बहु जंपिच ॥ पुण जिजगतुहसमोविदरिकपदयास न ज‍ व गट सि हिज अहह किं दोइसहयासच ॥ २८ ॥ जर तुहरूविष किए विपे पाइण वेलं विज, तबजाएं जिएपास तुम्हहवं अंगी करि ॥ इयमदवि जं न होइ सा तुह हावण, तद नियकित्तिय जुइ श्रवहीर || २ए ॥ एव महारिह जन्त देव श्यन्हवणमहूसन, जं ऋण लिय गुणगहण तुम्ह For Private And Personal Use Only Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (४०) मुणिजण अणिसिघन ॥श्य मई पसिय सुपासनाहथंजणयपुरथि, श्य मुणिवर सिरि अजयदेव विणवा आणिंदिर ॥ ३० ॥ इति श्रीस्तंजनकतीर्थराजश्रीपार्श्वनाथस्तवनम् ॥ - पीने जय महायस कहे, सो लिखते हैं। ॥अथ जय महायस प्रारंजः ॥४६ ॥ जय महायस जय महायस, जय महानाग जय चिंतिय सुह फलय ॥ जय समन परमजाणय, जय जय गुरु गरिम गुरु ॥ जय उहत्त-सत्ताण ताणय, अंजणयध्यिपासजिण ॥ नवियह नीम जवत्थु, जयअवणिंताएंतगुण ॥ तुज्क त्तिसंऊ नमोत्थु ॥१॥ इति ॥ ॥पीने शक्रस्तव कहकें खमा होकर अरिहंत चेझ्याणं करेमि काउस्सगं वंदणवत्तिश्राए ॥ अन्नत्थू ॥ इत्यादि पाठ कहकें कास्सग्गमांहे एक नवकार चिंतवी एक श्रावक काउस्सग्ग पारी नमोऽर्हसिघा० ॥ कहीएक गाथा स्तुति कहे, सो लिखते हैं। ॥अथ महावीरजिनस्तुति प्रारंजः ॥५७ ॥ मूरति मन मोहन, कंचन कोमल काय ॥ सिधारण नंदन, त्रिशलादेवी सुमाय ॥ मृगनायक लंबन, सातहाथ तनु मान ॥ दिनदिन सुख दायक, स्वामी श्रीवर्धमान ॥१॥ ॥ए स्तुति एक श्रावक कहे. अरु दूसरे श्रावक सब काउस्सग्गमें रहे थके सुने. पीने णमो अरिहंताणं कहके काउस्सग्ग पारे.इसीतरें आगे पण स्तुतिकी चारोंगाथामें जान लेनां. - ॥पीने लोगस्स कहकर सबलोए अरिहंत चेश्याएं० वंद For Private And Personal Use Only Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (४१) गवत्ति ॥ अन्ननु०॥ कहिके एक नवकारका काउस्सग्ग करे. पारिके उक्त स्तुतिकी छूसरी गाथा कहे, सो लिखते हैं । ॥सुर नरवर किन्नर, वंदित पद अरविंद ॥ कामितजर पूरण, अभिनव सुरतर कंद ॥ नवियणने तारे, प्रवहण सम निशिदीस ॥ चोवीशे जिनवर, प्रणमुं विशवावीस ॥१॥ यह दूसरी गाथा कहिके काजस्सग्ग पारे. पीछे पुरकरवरदी० वंदण वत्तिश्राए० अन्नत्थू कहिके एक नवकारका काउस्सग्ग करकें, पारिके उक्त स्तुतिकी तीसरी गाथा कहे, सो लिखते हैं। ॥ अरथे करि आगम, जाख्या श्रीनगवंत ॥ गणधरते गूंथ्या, गुणनिधि ज्ञान अनंत ॥ सुरगुरु पण महिमा, कहि न शके एकंत ।। समरु सुखसायर, मन शुझ सूत्र सिशांत ॥ ३ ॥ यह गाथा कहिकें सिघाण बुखाणं० ॥ वेयावच्चगराणं अन्नत्थू ॥ कही कालस्सग्ग करके पारी उक्त स्तुतिकी चोथी गाथा कहे, सो लिखते हैं । ॥ सिहायिकादेवी, वारे विधन विशेष ॥ सहु संकट चूरे, पूरे आश अशेष ॥ अहोनिश कर जोमी, सेवे सुर नर ईद ॥ जंपे गुण गण श्म श्रीजिनलाल सूरिंद ॥४॥ इति महावीरजिनस्तुतिः॥ यह चोथी स्तुति कहिके वेठकें नमोत्थूणं कहे. पीछे एक खमासमण देईके श्रीआचार्यमिश्रदूसरा खमासमण दीये. पीने श्रीउपाध्यायजी मिश्र तीसरा खमासमण देकर श्री वर्तमान आचार्यजीका नाम लेके मिश्र चोथे खमासमण में सर्व साधुजी मिश्र इसीतरें कहकर गोमा लीयें बैठके मस्तक नमावी For Private And Personal Use Only Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१२) सबस्सवि देवसिया इत्यादि कहकर तस्समिठामि उक्कम कहे, परंतु 'श्वाकारेण संदिस्सह छ' ए पद न कहे ।। ॥ पीने खमे होकर करेमिलते सामाश्यं ॥ श्वामि गमि काउस्सग्गं जो मे देवसि ॥ तस्सुत्तरि० ॥ अन्ननु०॥इत्यादि कहिके,काजस्सग्ग मांहे आजूना चल प्रहरमें। इत्यादि पाठ चिंतवीं, आठ नवकारका काउस्सग्ग करे. अथवा 'एमो अरिहंताणं' कही काउस्सग्ग पारिकें प्रगट लोगस्स कहे ॥ - पीने संमासा प्रमार्जन पूर्वक बैठकें मुहपत्ती पमिलेहि के वांदणा देवे. पीछे अवग्रहमांहिज उनो थको श्वा० ॥ २० ॥ ज०॥ देवसियं आलोचं, एसा कहे तब गुरु कहे बालोएह. पीने श्वं बालोएमि ॥ यह पाठ कहके अतिचार आलो. पी सबस्स वि देवसिय इत्यादिथी मामीने श्वाकारेण संदिस्सह पर्यंत कहे, तब गुरु पमिक्कमह. यह पाठ कहे ॥ ॥पीछे श्वं तस्स मिहामि मुक कहिकें संमासा प्रमार्जि प्रमार्जित जूमिये आसन पर बैठकें जगवन् ! सूत्र जणुं ? एसा कहे. तवगुरु कहे जणेह. पीछे श्वं कही तीन नवकार गणी, तीन करेमि नंते लणीने श्वामि पमिक्कमिडं जोमे देव सिट इत्यादि कही एक श्रावक वंदित्तु कहे. दूसरा सब सुने. पीने रकमा होकर अनुन्निमि आराहणाए इत्यादि संपूर्ण पाठ कही, दो वांदणा देवे, अरु अवग्रह माहिँज खमा दुआ श्वा० ॥ सं० ॥ न० ॥ अनुनिमि अग्नितर देवसियं खामेलं ? गुरु कहे, खामेह ॥ श्वं खामेमि देवसियं कहके गोमालीयें बेठकें वाम हाथे For Private And Personal Use Only Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ४३ ) मुहपत्ती मुखें धरकें दक्षिण हाथ गुरु सन्मुख करके सर्व पाठ कहे. पीछे विधिती दो वांदणा देकर चायरिय उवज्जाए इत्यादि त्रण गाथा कहकें करेमि जंते सामाइयं इवामि गमि Transi इत्यादि कही चारित्र शुद्धि निमित्तें काउस्सग्ग करे ० ० तस्स उ० अन्न || कहकें आठ नवकार अथवा दो लोगस्सका काउस्सग्ग करी पारिके पीछे दर्शनशुद्धि निमित्तें प्रगट लोगस्स कही सबलोए अरिहंत चेश्याएं० ॥ वंदावति० ॥ अन्नक्षू [० ॥ कहकें एक लोगस्सका काजस्सग्ग करी पारिके ज्ञान शुद्धि निमित्तें पुरकरवरदीवड्ढे कहिकें सुयस्स जगव० ॥ वंदवति० ॥ न्नन्नू ॥ कहकें एक लोगस्सका काजस्सग्ग करे. पीछे पारिके सिद्धाणं बुद्धाणं० कहकें वेयाबच्चगराएं न कहे पीछे सुदेवया करेमि काउस्सगं अन्न० ॥ कही एक नवकारनो कास्सग्ग करे. पीछे गुरुका योग न होवे तो एक श्रावक का पारिकें नमोईत्सिद्धा० कहिकें श्रुत देवताकी स्तुति कहे. गुरु दुवे तो, गुरु कहे. और दूजा सर्व स्तुति सुकें काउस्सग्ग पारे. अब श्रुतदेवताकी स्तुति कहे, सो लिखते हैं || || श्रुतदेवताकी स्तुति ॥ ४८ सुवर्णशालिनी देयात्, द्वादशांगी जिनोद्भवा ॥ श्रुतदेवी सदा मह्यमशेषश्रुतसंपदम् ॥ १ ॥ पीछे खित्तदेवयाए, करेमि कासगं० ॥ अन्न० ॥ कहकें, एक नवकार चिंतवी पूर्वनी परें क्षेत्र देवता की स्तुति कहे, सो लिखते हैं ।॥ For Private And Personal Use Only Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (४४) ॥ अथ देत्रदेवताकी स्तुति ॥ ४ए ॥ यासां क्षेत्रगताः संति, साधवः श्रावकादयः ॥ जिनाज्ञा साधयंतस्ता, रदंतु क्षेत्रदेवताः ॥ १ ॥ इति ॥ ॥पीजे खमा दुवा एक नवकार कही, संमासा प्रमार्जि नकमो बेवके मुहपत्ती पमिलेही विधिशुं दो वांदणां दे पच्चरकाण नहि लिया होय तो पच्चरकाण करे पीने स्वामो अणुसहि ॥ कही बेठे. गुरु एक स्तुति कह्यां पीने श्रावक समस्त मस्तकमें अंजलि करिके णमो खमासमणाणं ।। णमोऽहत्सिहा कही ॥णमोऽस्तु वर्षमानाय इत्यादि तीन स्तुति कहे. श्राविका णमो खमासमणाणं कही संसारदावाकी स्तुति ३ कहे. ॥अथ नमोऽस्तु वर्षमानाय ॥ ॥ नमोऽस्तु वर्धमानाय, स्पर्षमानाय कर्मणा ॥ तऊयावासमोझाय, परोदाय कुतीर्घिनाम् ॥ १॥ येषां विकचारविंदराज्या, ज्यायः क्रमकमलावलिं दधत्या ॥ सदृशैरिति संगतं प्रशस्य, कथितं संतु शिवाय ते जिनेन्त्राः॥२॥ कषायतापाबितजंतु निर्वृति, करोति यो जैनमुखांबुदोजतः ॥ स शुक्र मासोनववृष्टिसन्निनो, ददातु तुष्टिं मयि विस्तरो गिराम् ॥३॥ श्वसितसुरनिगंधा लीढङ्गीकुरङ्गं मुखशशिनमजस्रं बिज्रती या बिनर्ति ॥ विकचकमलमुच्चैः साऽस्त्वचिंत्यप्रजावा, सकलसुखविधात्री प्राणनाजां श्रुताङ्गी ॥ ४ ॥ इति ॥ ॥ यह तीन गाथा कहकें पी- णमोत्थूर्ण कहकें एक श्रावक खमासमण देई कहे श्वाका० ॥ सं॥ ज० ॥ स्तवन जणुं ? दूसरा खमासमण देई कहे ॥ श्वा० ॥ सं० ॥ ज० ॥ स्तवन For Private And Personal Use Only Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (४५) जणुं स्तवन सांगलुं ? गुरु कहे लणेह सांजलेह. पी. श्रासन पर बेठकें नमोऽहसिधा कहके बमो स्तवन कहे,सो लिखते हैं। ॥अथ श्री चिंतामणि पार्श्वजिनस्तवनम् ॥ ५० ॥जविका श्रीजिनबिंव जुहारो, आतम परम आधारो रे ॥ ॥ श्री० ॥ ॥ जिनप्रतिमा जिन सारखी जाणो, न करो शंका कां॥आगम वाणीने अनुसार, राखो प्रीति सवाई रे॥ ॥ श्री० ॥१॥ जे जिनबिंब स्वरूप न जाणे, ते कहिये किम जाणे ॥ नूला तेह अज्ञाने नरिया, नहिं तिहां तत्व पिगणे रे ॥ ज० ॥ श्री० ॥२॥ अंबम श्रावक श्रेणिकराजा, रावण प्रमुख अनेक ॥ विविधपरें जिन नगति करता, पाम्या धर्म विवेक रे ॥ न० ॥ श्री० ॥ ३ ॥ जिन प्रतिमा बहु जगतें जोता, होय निश्चय उपगार ॥ परमारथ गुण प्रगटे पूरण, जो जो आपकुमार रे ॥ ज० ॥ श्री० ॥ ४॥ जिनप्रतिमा आकारें जलचर, बे बहु जलधि मकार ॥ ते देखी बहुता मत्स्यादिक, पाम्या विरतिप्रकार रे ॥जम् ॥ श्री० ॥ ५ ॥ पांचमे अंगे जिन प्रतिमानो, प्रगटपणे अधिकार ॥ सूरियान सुर जिनवर पूजा रायपसेणी मकार रे ॥ ज० ॥श्री० ॥६॥ दशमे अंगे अहिंसा दाखी, जिन पूजा जिन राज एहवा आगम अरथ मरोमी, करिये केम अकाज रे ॥ ॥ श्री. ॥७॥ समकितधारी सतीय प्रौपदी, जिन पूज्या मन रंगे ॥ जो जो एहनो अरथ विचारी, के ज्ञाता अंगें रे ॥ ज०॥ १ ११ गाथासे स्तवनकी कम गाथा होवे तो ॐ वरकनक गाथा ? कहना इति संपदाय. For Private And Personal Use Only Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ४६ ) श्री० ॥ ८ ॥ विजयसुरें जिम जिनवर पूजा, कीधी चित्त थिर राखी ॥ व्यजाव बिहूं दें कीनी, जीवाजिगम हो साखी रे ॥ ज० ॥ श्री० ॥ ए ॥ इत्यादिक बहु आगम साखें, कोई शंका मत करजो ॥ जिनप्रतिमा देखी नित नवलो, प्रेम घणो चित्त धरजो रे ॥ ज० ॥ श्री० ॥ १० ॥ चिंतामणि प्रनु पास पसायें, सरधा होजो सवाई ॥ श्रीजिनवान सुगुरु उपदेश, श्री जिनचंद्र सवाईरे ॥ ज० ॥ श्री० ॥ ११ ॥ इति श्री चिंतामणि पार्श्व जिनस्तवनम् || ॥ पीछे तीन खमासम आचार्य, उपाध्याय, सर्व साधु वांदी, फेर खमासमणे || इलाका० ॥ सं ॥ ज० ॥ देवसि प्रायवित्त विशुद्धिनिमित्तं काजस्सग्ग करूं ? गुरु कहे, करेह. पीछें कह देवसि प्रायवित्त विशुद्धि निमित्तं करेमि का स्सगं अन्नतु ० ० ॥ कहै शोले नवकार अथवा चार लोगस्सका कारसग्ग करे, पारीके लोगस्स कडे. || पीठें खमासम देकर इछाका० ॥ सं० ॥ ज० ॥ समस्त खुदो दवाव करेमि काउस्सग्गं ॥ अन्नत्थू० ॥ इत्यादि कही. शोल नवकार अथवा चार लोगस्सका काजस्सग्ग करे, पारिके ॥ प्रगट लोगस्स कहे. पीछें खमासमण देईकें ॥ इवा० ॥ सं० ॥ जगवन् चैत्यवंदन करूं || एसा कह कर यंत्रणा पार्श्वनाथजीका चैत्यवंदन करे, सो लिखते हैं ॥ ॥ अथ श्री यंजणा पार्श्वनाथजी का चैत्यवंदन ॥ ५१ || श्री सेठी तटिनीत पुरवरे श्रीस्तंभने स्वर्गिरौ, श्री पूज्याजयदेवसूरिविबुधाधीशैः समारोपितः ॥ संसिक्तः स्तुति निर्जलैः For Private And Personal Use Only Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (७) शिवफलः स्फूर्जत्फणापक्षवः, पार्थः कटपतरुःस मे प्रथयतां नित्यं मनोवांछितम् ॥ १॥ श्राधि व्याधिहरो देवो, जीरावलीशिरो मणिः॥पार्श्वनाथो जगन्नायो, नित्यनायो नृणां श्रिये॥॥इति ॥ पी. नमोबुणं सेलेके जयवीयराय सुधी कहे ॥ पीने खमासमण पूर्वक मस्तक नमावी सिरि अंजणयध्यि पास सामिणो' इत्यादि दोय गाथा कहे, सो लिखते हैं. ॥अथ श्रीयंत्रणयध्यिपाससामिणो ॥ ५२ ॥ श्रीधनयज्यिपाससामिणो सेस तिवसामीणं ॥ तिक समुन्नय कारणं, सुरासुराणं च सवेसि ॥१॥ एसमहं सरणचं, कामस्सग्गं करेमि सत्तीए ॥ जत्तीए गुण सुध्यिस्स, संघस्स समुन्नय निमित्तं ॥ २॥ इति । ॥ श्रीयंत्रणापार्श्वनाथजी आराधवा निमित्तं करेमि कानरसग्गं ॥ पी- खमे होके बंदण व० ॥ अन्नत्थू० ॥ कही चार लोगस्सका काउस्सग्ग करिके पीने पारी प्रगट लोगस्स कही कें॥ श्री खरतरगच सिणगारहारजंगम युगप्रधान नट्टारक दादाजी श्रीजिनदत्त सूरिजी चारित्र चूमामणीजी आराधवा निमित्तं करेमि कानस्सगं ॥ अन्नत्थू० कहिकें, एक लोगस्सका कानस्सग्ग करे, पीछे प्रगट लोगस्स कहकें॥ ॥ श्रीखरतरगल सिणगारहार जंगमयुग प्रधान लट्ठारक दादाजी श्रीजिनकुशलसूरिजी चारित्र चूमामणीजी आराधया निमित्तं करेमि कालस्सग्गं ॥ अन्नत्थू० कहिके एक लोगस्सका काउस्सग्ग करे पीछे प्रगट लोगस्स कहि बैठ के मावो गोमो For Private And Personal Use Only Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (10) उंचो करिके खमासमण देकें, श्वा ॥ सं०॥ ॥ चैत्यवंदन करुं जी. एसें कहि के चैत्यवंदन करे. ॥अथ चउक्कसाय ॥ ५३ चनक्कसाय पमिमलुटलूरण, उऊय-मयण-वाण मुसुमूरण ॥ सरसपियंगुवन्नु गयगामिज, जयन पास नुवणत्तयसामि य॥१॥ जसु तणु कति कमप्पसिणिघल, सोहर फणमणिकिरणालि. घन ॥नं नव जलहरतमिल्लयलंचिय, सो जिणु पासु पयन वंनिय ॥२॥ ॥ अर्हन्तो नगवंत इंजमहिताः सिझाश्च सिद्धिस्थिता, आचार्या जिनशासनोन्नतिकरा पूज्या उपाध्यायकाः॥ श्रीसिशांतसुपातका मुनिवरा रत्नत्रयाराधकाः, पंचैते परमेष्ठिनः प्रतिदिनं कुर्वतु वो मंगलम् ॥ १॥ ॥पीछे नमुत्थूणंसें लेके जयवीयराय पर्यंत कहके परकी, चलमासी और संवबरीके रोज तो बकी शांति सुणे, परंतु और दिनोमें गेटी शांति सुणे, सो लिखते हैं. ॥अथ लघुशांतिस्तवः ॥ ५४ ॥ शांति शांतिनिशांतं, शांतं शांताशिवं नमस्कृत्य ॥ स्तोतुः शांतिनिमित्तं, मंत्रपदैः शांतये स्तौमि ॥१॥मिति निश्चितवचसे, नमो नमो जगवतेऽहते पूजाम् ॥ शांतिजिनाय जयवते यशस्विने स्वामिने दमिनाम् ॥ ३ ॥ सकलातिशेषकमहा, संपत्तिसमन्विताय शस्याय ॥ त्रैलोक्यपूजिताय च, नमो नमः शांतिदेवाय ॥ ३ ॥ सर्वामरसुसमूह, स्वामिकसंपूजिताय निजिताय॥जुवनजनपालनोद्यत-तमाय सततं नमस्तस्मै ॥४॥ For Private And Personal Use Only Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (ए) सर्वरितौघनाशनकराय सर्वाशिवप्रशमनाय ॥ दृष्टग्रहजूतपिशाच, शाकिनीनां प्रमथनाय ॥ ५॥ यस्येति नाममंत्र, प्रधानवाक्योपयोगकृततोषा ॥ विजया कुरुते जनहित, मिति च नुता नमत तं शांतिम् ॥ ६ ॥ जवतु नमस्ते जगवति, विजये सुजये परापरैरजिते ॥ अपराजिते जगत्यां, जयतीति जयावहे जवति ॥ ७ ॥ सर्वस्यापि च संघस्य, लफ कल्याणमंगलप्रददे ॥ साधूनां च सदा शिव, सुतुष्टिपुष्टिप्रदे जीयाः॥७॥ नव्यानां कृत सिद्धे, निवृतिविर्वाणजननि ! सत्त्वानाम् ॥ अजय प्रदाननिरते, नमोस्तु स्वस्तिप्रदे तुन्यम् ॥ ए॥ नक्तानां जन्तूनां, शुनावहे नित्यमुद्यते देवि! ॥ सम्यग्दृष्टीनां धृति, रतिमतिबुद्धिप्रदानाय ॥ १० ॥ जिनशासननिरताना, शांतिनतानां च जगति जनतानाम् ॥ श्रीसंपत्कीर्तियशो, वद्धिनि ! जय देवि विजयस्व ॥११॥ सलिलानल विषविषधर, पुष्ट-ग्रह-राजरोगरणनयतः ॥ राक्षसरिपुगणमारी, चौरेतिश्वापदादिन्यः ॥१२॥ अथ रक्ष रक्ष सुशिवं, कुरु कुरु शांतिं च कुरु कुरु सदेति ॥ तुष्टिं कुरु कुरु पुष्टिं, कुरु कुरु स्वस्ति च कुरु कुरु त्वं ॥ १३ ॥ जगवति गुणवति शिवशांति, तुष्टि पुष्टि स्वस्तीह कुरु कुरु जनानाम्॥मिति नमो नमो हाँ, झी झः यःक्षाही फुट फुट स्वाहा ॥ १४ ॥ एवं यन्नामादर, पुरस्सरं संस्तुता जया देवी ॥ कुरुते शांतिं नमतां, नमो नमः शांतये तस्मै ॥ १५॥ इति पूर्वसूरि दर्शित, मंत्रपदविदलितःस्तवः शांतेः॥ सलिलादिनयविनाशी, शांत्यादिकरश्च जक्तिमताम् ॥ १६ ॥ यश्चैनं पठति सदा, शृणोति जावयति वा यथायोग्यम् ।। स श्राव.. For Private And Personal Use Only Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (५०) हि शांतिपदं यायात् , सूरिः श्रीमानदेवश्च ॥ १७ ॥ उपसर्गाः क्षयं यांति, विद्यते विघ्नववयः॥ मनः प्रसन्नतामेति, पूज्यमाने जिनेश्वरे ॥ १० ॥ सर्वमंगलमांगट्यं, सर्वकट्याणकारणम् ॥ प्रधानं सर्वधर्माणां, जैनं जयति शासनम् ॥ १० ॥ इति ॥ ॥पीने चीराकका अथवा बीजलीका चांदणा पमा होय तो इरियावहि ॥ तस्सुत्तरी. अन्न कहिके, एक लोगस्सका काउस्सग्ग करे, पीठे प्रगट लोगस्स कही पूर्वकी परें सामायिक पारे. एक स्तवन दादाजीको कहे देवसी पनिकमणा विधिः संपूर्णः॥ ॥अथ श्रीनुवन देवताकी श्रु॥ ॥ चतुर्वर्णाय संघाय, देवी नुवनवासिनी, निहत्य सुरितान्येषा, करोतु सुखमदयम् ॥१॥ ॥ श्राथुइ मकान वदले तो कहे ॥ अन्यथा नहि कहे. ॥अथ श्री वरकनक पाठ प्रारंजः॥ वरकणय संखविहुम, मरगय घणसन्निहं विगय मोहं, सत्तरिसयंजिणाणं, सवामरपूश्यं वंदे स्वाहा ॥१॥ . जवणवई वाणमंतर, जोइसवासी विमाणवासीय, जे केवि मुख्देवा, ते सवे जवसमंतु मे स्वाहा ॥ ॥ इति ॥ ॥अथ वीशस्थानकस्तुतिर्लिख्यते ॥ . ॥श्रादीसर अलवेसरजगपतिनविमनसायर चंदा जी ॥ सेजमगण मुख विहंमण श्रनुत ज्योतिसोहंदा जी ॥ सुखसंपति कारण जगतारण सेवे सुरनर इंदा जी ॥ करुणाकर जिन For Private And Personal Use Only Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (५१) वर उपगारी कामित सुरतरु कंदाजी ॥१॥ अरिहंतसिषप्रवचन श्राचारजस्थविरपाठकमन श्राणोजी ॥ साधुनाण दंसणदसमो-पद विनयचारित्र वखाणो जी ॥ ब्रह्मक्रिया तप गोयम जिनपद समाधिपूर्वश्रुतजाणो जी ॥ श्रुतनक्ति तीरथ प्रनावन वीसथानक पहिचानो जी॥२॥ श्रीमुखवीर जिनेसर जाखे ए पद सेवो प्राणी जी ॥ तीर्थकरपद एहथी लहियै जिन श्रागमनी वाणी जी ॥ ज्ञाता अंगे गणधरदेवे विवरीने घणीबाणी जी ॥ ए आराधनथी सिव लहियै निरुपमसुखनिसानीजी ॥३॥ तीन काल पांचेशकस्तव देव वंदन विधि कीजे जी ॥ काउसग्गपरदक्षिणा गुणनो विधिसुं जिनपूजीजे जी॥ खमासमण विहुं टंकपमिकमणो स्तवना नित्य सुणीजे जी॥ कृपाचंग सुयदेवि पसाये मन वंछित फल सीजे जी ॥४॥ इति ॥ वीसथानक स्तुति ॥१॥ ॥अथ श्री बीजनी स्तुति ॥ ॥ मनसुख वंदो लावेनवियण श्रीसीमंधर राया जी ॥ पांचसैं धनुष प्रमाण विराजित कंचनवरणी कायाजी ॥ श्रेयांशनरपति सत्यकि नंदन वृषल लंडन सुखदायाजी ॥ विजय जली पुखलाव विचरे सेवे सुरनर पाया जी॥१॥ काल अतीत जे जिनवर हूवा होस्ये जेह अनंता जी ॥ संप्रतिकाले पंचविदेहे वरतेबीस विख्याता जी॥ अतिशयवंत अनंत गुणाकर जगबंधव जगत्राता जी॥ध्यायकध्येय स्वरूप जे ध्यावे पावे शिव सुख साताजी ॥२॥अरथे श्री अरिहंत प्रकाशी सूत्रे गणधर श्राणी जी॥ मोहमिथ्यात्व तिमिरजरनाशन For Private And Personal Use Only Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (५५) अनि नव सूर समाणी जी॥ नवोदधि तरणी मोक्ष नीसरणी नयनिक्षेप सोहाणी जी ॥ ए जिन वाणी अमिय समाणी आराधो नविप्राणी जी ॥३॥ शासनदेवी सुरनर सेवि श्रीपंचांगुलिमाई जी ॥ विघन विमारणी संपत्ति कारण। सेवक जन सुखदाई जी॥ त्रिनुवनमोहनी अंतरजामनी जगजसज्योतिसवाईजी सानिधकारी संघने होयज्यो श्रीजिनहर्ष सहाईजी ॥४॥ इति ॥ बीज स्तुतिः॥२॥ ॥अथ ज्ञानपंचमी स्तुति ॥ ॥ पंच अनंत महंत गुणाकर पंचमि गति दातार । उत्तम पंचमि तप विधि दायक ग्यायक नाव अपार ॥ श्रीपंचानन लांजन लांछित वांबित दान सुदद । श्रीवर्धमान जिणंदसु वंदो आणंदो जविपत् ॥१॥ पूरण पंचमहाश्रवरोधक बोधक जव्य उदार ॥ पंच अणुव्रत पंच महाव्रत विधि विस्तारक सार ॥ जे पंचेंजिय दमि सिव पुहता, ते सगला जिनराय ॥ पंचमी तप धर नवियण ऊपर सुधिर करो सुपसाय ॥२॥ पंचाचार धुरंधर युगवर पंचम गणधर वांण ॥ पंच ज्ञान वि चार विराजित नाजित मद पंच वाण ॥ पंचम काल तिमिरजरमांहे दीपक सम सोनंत ॥ पंचमी तप फल मूल प्रकाशक ध्यावो जिनसिधांत ॥ ३॥ पंच परम पुरुषोत्तम सेवा कारक जे नरनार ॥ वलि निरमल पंचमी तप धारक तेह लणी सुविचार ॥ श्रीसियायिका देवी अह निस आपो सुरक श्रमंद ॥ श्रीजिनलाल सुरिंद पसायै कहै जिनचंद मुणिंद ॥४॥इति श्रीज्ञानपंचमि स्तुतिः ॥३॥ For Private And Personal Use Only Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (५३) ॥ अथ श्रीअष्टमीनी शुश्॥ . ॥ चनवी से जिनवर, प्राणमुं हुं नितमेव ॥ श्राम दिन करियें, चंजाप्रजुजीनी सेव ॥ मूरति मन मोहे, जाणे पूनिम चंद ॥ दीगं मुख जाये, पामे परमानंद ॥१॥ मिल चोसठ इंज, पूजे प्रजुजीना पाय ॥ इंशाणी श्रपञ्चर, कर जोमी गुण गाय ॥ नंदीसर दीपे, मिल सुरवरनी कोम ॥ अचाही महोबव, करतां होमा होम ॥२॥ सेर्बुजा सिखरें, जाणी खान अपार ॥ चौमासे रहिया, गणधर मुनि परिवार ॥ नवियणनें तारे, देश धरम उपदेश ॥ दूध साकरथी पिण, वाणी अधिक विशेष ॥ ३ ॥ पोषो पडिक्कमणो करिये व्रत पचरकाण ॥आवम तप करतां, आठ करमनी हाण ॥ आठ मंगल थायें, दिन ५ कोम कल्याण ॥ जिनसुखसूरि कहै श्म शासनसुरीय सुजाण ॥ ॥४॥ इति अष्टमी स्तुतिः॥४॥ ॥अथ श्रीग्यारस स्तुति ॥ ॥ अरनाथ जिनेसर दीक्षा नमीजिन ज्ञान ॥ श्रीमति जनम व्रत केवलज्ञान प्रधान ॥ ग्यारस मिगसर सुदि उत्तम अवधार ।। ए पंच कट्याणक समरीजै जयकार ॥१॥ ग्यारे अनुपम एक अधिक गुण धार ॥ ग्यारे बारे प्रतिमा देशक धार ॥ ग्यारे उगणा दोय अधिक जिनराय ॥ मन सूधे सेव्यां सब संकट मिटजाय ॥२॥ जिहां वरस श्यारै कीजे व्रत उपवास ॥ वलि गुणनो गुणियै विधिसेती सुविलास ॥ जिनागमवाणी जाणी जगत प्रधान ॥ एक चित्त आराधो साधो सिद्ध विधान ॥३॥ सुर असुर नुवणवण सम्यग्दर For Private And Personal Use Only Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (५४) सनवंत ॥ जिनचं सुसेवक वेयावच्च करत ॥ श्रीसंघ सकलने आराधक बहु जाण ॥ जिन शासनदेवी देव करो कट्याण ॥ शति ॥ ग्यारस स्तुति ॥४॥ ॥अथ परकीचौदश स्तुति ॥ प्रथम तीर्थकर आदिजिनेश्वर जाकी कीजे सेव, गबचौ रासी जेहने थाप्या जाकी करणी एह ॥ तेहने पाखी चौदस कीजे बीजे अंग कहाय, पाखी सूत्र प्रथम तुम देखो जिम जिम संशय जाय ॥१॥ चवीसे जिन पूजा कीजे मानो जिनकी बाण, कल्पसूत्रनी पाखी चौदस जोवो चतुर सुजान ।। ण पर गम गम तुम देखो चौदस पाखी होय, जूला कांश नमो तुम प्राणी साचो जिनधर्म जोय ॥२॥ चवदसरे दिन पाखी कीजे सूत्रे केरी साख, जविक जीव श्क थाराधो टीका चूर्णी नाष्य ॥श्रावस्यकसूत्र इण पर बोले चनदसरे दिन पाखी, चउद-पुरवधर श्न पर बोले ते निश्चय मन राखी ॥३॥श्रुतदेवी श्क मन बाराधो मन वांछित फल होय, जे जे आशासूधी पाले ज्यानो विघन हरेय । सेवक इणपर करे वीनती सूधो समकित पाय, खरतरगच मंमण कुमति विहंमण माणिक्यसूरि गुरूराय ॥४॥इति ॥ ॥अथ पर्युषणापर्वस्य स्तुतिः प्रारंजः॥ । ॥ वीरजिनेसर जग अलवेसर, राजग्रही समोसरियाजी ॥ पर्वपजुषण ऋण परिजाखे, चनविहसंघ परिवरियाजी॥ भाषाढचनमासाथी पच्चाश, दिननी संख्या जाणोंजी॥ संवचरि पमिकमणों करीने, श्रातम निजघराणोंजी ॥१॥ दोयराता For Private And Personal Use Only Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ए५ ) दोय धोला जिनपति, दोय काला दोय नीलाजी || लांबनवरण प्रमाण सूशोजित, सोले जिनवर पीलाजी | सत्तरवेदी पूजा करीने, चैत्यप्रवामी कीजेजी ॥ पर्वपजुषण पूरवपुन्ये, पाम्या ला जाणीजे जी ॥ २ ॥ कल्पसूत्र निजघर पधरावी, रात्रिजागो तिहां कीजेजी ॥ वरघोको सजिसंघमलीने, सद्गुरुनें आणी दीजेजी ॥ नव- इग्यारह-तेरह - वायणा, निसुणी दुर्गति वारोजी ॥ पूजा प्रजावना सद्गुरु भक्ति, करिनें जन्म सुधारोजी ॥ ३ ॥ साहमी वल करियें जावे, वारंवार उजमंताजी ॥ केई शीयल-तप-संयम पाले, जाव अधिक जलसंताजी ॥ दिवस पर्युषण सेवो, जिम सेवे सूर इन्दाजी ॥ सुयदेवी सुपाये जाखे, जिन कृपाचन्द्रसूरीन्दाजी ॥४॥ इति पदम् ॥ इति पदम् जावा नयाग नरिंद विंद | सबिंद संपु पयार विंदं । वंदे जसो निकिय चारु चंदं । कल्लाए कंदं पढमं जिणंदं ॥ १ ॥ चित्तेगदारं रिजदप्पदारं । क्खंगिवारं समसुक्ख कारं । तित्थेसरा दिंतु सया निवारं । अपार संसार समुद्रपारं ॥ २ ॥ अन्ना सत्तु खलणे सुवप्पं । संजुत्ति संदिलिय कोहदपं । संसेमि सित महो णं । निवाणमग्गेवरजाकप्पं ॥ ३ ॥ हंसा हिरूढा वर दाणधन्ना । वाईसिरिया गुणोऽवि वन्ना । निचंsपि श्रम्ह हवन पसन्ना । कुंदिंडु गोखीरतुसार वन्ना ॥ ४ ॥ ॥ अथ चतुर्दशी स्तुति ॥ ॥ अविरल कमल गवल मुक्ताफल कुवलय कनक जासुरं ॥ परिमल बहुत कमलदल कोमल पदतखलुलितनरेश्वरं त्रिभुवन For Private And Personal Use Only Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (५६) जवन सुदीप्रदीपक मणिकलिका विमल केवलं ॥ नवनव युगलजलधि परमित जिनवरनिकरं नमाम्यहं ॥१॥ व्यंतर नगर रुचिक वैमानिक कुलगिरि कुंमसकुंमले ॥ तारक मेरुजलधि नंदीसर गिरि गजदंतसु मंझले ॥ वक्षस्कार नवन वन जोचर कुरुवैतान्य कुंजिगा ॥ त्रिजगति जयति विदितशाश्वतजिननतिततिरिहमोहपारगा ॥२॥ श्रुतरलैक जलधि मधु मधुरिम रसन्नर गुरु सरोवरं ॥ परमततिमिरकिरणहरणोबुर दिन कर किरण सहोदरं ॥ गमनयहेतुलंगगंजीरिमगणधरदेव गीष्पदं ॥ जिनवर वचन मवनिमवतात् शुचिदिशतु नतेषु संपदं ॥३॥ श्रीमधीर चमर तीर्थाधिप मुखकमलाधिवासिनी ॥ पार्वण चंड विशद वदनोज्वल राज मराल गामिनी ॥ प्रदिशतु सकल देव देवी गण परिकलिता सतामियं ॥ बिच कलधवल कुवलकल मूर्तिः श्रुतदेवी श्रुतोच्चयं ॥५॥इति चतुर्दशीस्तुति ॥२॥ ॥राग रेखता ॥ ॥ श्रये प्रनास पाटण में, चंप्रनुकादरस पाया ॥ बरस जगणीस गुणसके, चरणकज देख सुख पाया ॥ आ० ॥१॥ माधवदि दूजके दिवस, फरस कर कीन सुचि काया ॥ गये सब पाप अब मेरे, हरखसे प्रनुका गुण गाया ॥ श्राप ॥२॥संजवजिनराज मन मोहै, पारसबवि स्यामवरण बाया ॥सांति प्रनुसांतिमुज दीजे, परम शिवमसि प्रनु पाया|श्रा ॥३॥ चरम प्रत्तु वीरजी राजै, आदि जिनराज मन जाया ॥ अजितजिन देख मन हरखे, नेम कीसीस ग्रही गया ॥श्रा॥५॥ जगतमें देव सब निरखे, मेरे दिल कोइ नही जाया ॥ प्रबल For Private And Personal Use Only Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 19 ) ये पुन्य ब मेरे, जगत गुरु देव मन ध्याया ॥ श्र० ॥ ५ ॥ मृत समयुक्ति शासन की तहत कर चित्त व्हाया ॥ मुके है स शिवपुरकी, कृपायुतचंद्र जलसाया ॥ श्र० ॥ ६ ॥ इति ॥ पदम् ॥ १ ॥ ॥ राग तमाखू ॥ ॥ जीवन मारा तेवीसमा जिएचंद, वामा नंदन जेव्यारे, साहिबा झांरा जाव शुं रे ह्मांरा राज जीव० अश्वसेन कुल चंद, पाप करम सन मेय्यारे ॥ साहि० ॥ श्रनादिनारे ॥ ह्मां ॥ १ ॥ जी० ॥ मूरती मोहन वेल, नील वरण तनु बाजेरे ॥ सा० ॥ सोहामणीरे ॥ ह्मां० ॥ जी० ॥ मुख बबि अगम अपार, पूनिम निशि जिमराजै रे ॥ सा० ॥ रजनी करू रे ॥ ह्मां० ॥ २ ॥ जी० ॥ नयन मीरसरेल, कामण गारा प्यारा रे ॥ सा० ॥ ॥ मन हरू रे ॥ जी० ॥ ह्मा० ॥ जाल विशाल रशाल, अष्टमी शशि सुख कारारे ॥ सा० ॥ जव्य चकोरने रे ॥ ह्मा० ॥ ३ ॥ जी० ॥ चिंतामणी प्रभु पास, लोडवपुर में वीराजै रे ॥ सा० ॥ सुख करु रे || ह्मा० ॥ सहसफणा महाराज, दरसण वांबित काजै रे ॥ सा० ॥ दुःख हरु रे ॥ ह्मा० ॥ ४ ॥ जी० ॥ संघमिड्यो वहु थाट, हेजै घणे गह गाटे रे ॥ सा० ॥ हरख शुं रे ॥ ह्मा० ॥ जी० ॥ अष्ट दिवस उबरंग, रथयात्रा बहुरंगे रे ॥ सा० ॥ उमंग शुं रे ॥ ह्मा० ॥ ए ॥ जी० ॥ दीगे तुम दीदार, हिव प्रभु मुजने तारो रे ॥ सा० ॥ हित धरी रे ॥ ह्मा० || जी० ॥ तुम सम वरन देव, दीगे नही सुखकारो रे ॥ सा० ॥ जगतमां रे ॥ ह्मा० ||६|| जी० ॥ तुम पद पंकज सेव, For Private And Personal Use Only Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (५८) जव जव मुजने मितज्यो रे ॥सा॥ शुहं कर रे ॥मागाजी॥ एहीज सुणी अरदास वांरित पूरणकर ज्योरे रे ॥सा॥हा॥ कृपा करी रे ।। झा ॥७॥ इति पदम् २ देशी धूमररी ॥२॥ आदि जिनंद नित पूजीय एतो विमलाचल गिरिरायो हे माय ॥ नाजिराय कुल चंदलो, एतो मरुदेवी कूखै जायो है माय ॥ आ॥१॥ नगरी बीनीता नो धणी, एतो आदीश्वर सुखकारी हे माय ॥ अष्टापदै मुगते गया, एतो नविजन काज सुधारीहे माय ॥ भात ॥॥ प्रजु दरिसण जलधार सै, एतो जविसारंग उलसावै ए माय ॥ दरसणविन किरिया सदु, एतो सिव साधन नवि श्रावे हे माय ॥ श्रा० ॥३॥ सजी सिणगार मनोहरू, एतो गौरिमंगल गावे है ॥श्रा०॥ अव्य नाव जिनराजनी, एतो पूजा करी सुख पावै है माय॥ श्राधा वसुदिन उन्नव रंगसुं, एतो दिन दिन संघ सवायो है माय|पंचम अंग पूरण करी, एतो कृपाचंद गुणगायो है ॥माय ॥ ॥॥इति पदमाश ॥क दिन पुंमरीक गणधरं रै लाल ॥ - ॥ए-देशी॥ . ॥ वीर जिनेसर सांजलोरे ॥ लालम् सेवकनी अरदास सुखकारी रे ॥ तारकविरुदसुहामणो रे खाल सुणी आयो तुम पास उपकारी रे० वीर ॥१॥ साहिब सुनिजर कीजियेरे ॥ ला० ॥ मुजपर गरीब निवाज ॥ ॥ मन मोहन महिमा निलोरे ॥सा ॥ तुमसेवा सुखकाज ॥ उ० ॥वी ॥२॥ काल अनादि बगै जम्योरे ॥ ला ॥ जव अटवी विषम अगाध ॥ सु०॥ क्रोधादिक स्वापद जिहांरे ॥ लाम् ॥ प्रति For Private And Personal Use Only Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( एए) प्राणिने दे बाध ॥ ० ॥ वी० ॥ ३ ॥ इंद्रिय विषय कंटक तिहारे ॥ लाख० ॥ दूर्द्धर साल समान ॥ सु० ॥ चजग‍ मारग चालतारे || ला || मोह करे हैरान ॥ ज० ॥ वी० ॥ ४ ॥ काल आमी के पड्योरे ॥ ला० ॥ बलताके निसदीस || सु० ॥ ए पदी उद्धरो रे || ला० ॥ तुम मोटा जगदीश ॥ उ० ॥ वी० ॥ ५ ॥ न सर जले जावसुं रे ॥ सा० ॥ नेट्या श्री भगवंत ॥ ० ॥ तेवीसम जिन सुख करूरे ॥ सा० ॥ महिमा वंत महंत || उ० ॥ वी० ॥ ६ ॥ बावन देहरी मां दीपतारे | ० ॥ मनोहर श्री जिनराज ॥ सु० ॥ अद्भुत दीगे देहरो रे ॥ ला० ॥ मांनु नवीन रच्यो आज । उ० ॥ वी० ॥ ७ ॥ दंरु कलश शोहे सदारे ॥ जा० ॥ धजा पताका लहकंत ॥ सु० ॥ मांजतां एहनीरे ॥ ला० ॥ जवि मनमां हरखंत ॥ ज० ॥ वी० ॥ ८ ॥ पूरब पुन्यश्री पामीयोरे ॥ ला० ॥ अनुपम जिन मुखचंद्र ॥ सु० ॥ कल मंरुन श्री जगधणीरे ॥ ला० ॥ वंदे नित कृपाचंद्र ॥ ० ॥ वी || || इति नप्रेसर मंकन महावीर स्तवनम् |४| ॥ राग काय मन ठुमरी ॥ O श्री गिरिराज आज निहाले, कामित पूरए वांवित दाइ ॥ पूरणपुन्य उदयजयो सजनी, उजालगिरिकी यात्रा पाइ श्री० ॥ १ ॥ नानिको नंदन जगत दिवाकर, इस तीरथपर श्राये चलाइ || पूरब निवाणूं श्री जगदीश्वर, रायणतल निज पगला वाइ श्री० ॥ २ ॥ महिमावंत महंत विराजै, श्री शत्रुंजय नेटो जाइ ॥ श्रीमुखवीर जिनेसर जाखै, सोहमपतिमन अधिक सुदाइ श्री० ॥ ३ ॥ सूरिधनेसर महिमा वरणी, पंचम गणधर For Private And Personal Use Only Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ६० ) सम्मति लाइ ॥ प्रच्य जावविधि पूजन करिये, अष्टसिद्धि नवनिशि धर आई श्री० ॥ ४ ॥ नंद-वाण - निधि - चंद्र - संवर चैत्री पूनम यात्रा पाइ ॥ फूलचंद संघ सहित जिनजेटे, कृपा, चंद्र गिरि सिवसुखदाइ श्री० ॥ ५ ॥ इति पदम् ॥ ५ ॥ ॥ बीसथानक चैत्यवंदन ॥ श्री तिनं कांति सिद्ध निज गुण रामी ॥ प्रवचन आचारज स्थविर नवज्याया हितकामी ॥ साधुनाए दंसण नवम विनय चारित्र बखाणो ॥ ब्रह्म क्रिया तप गोयम जिन वेयावच्च जाणो ॥ १ ॥ समाधि पूरब ज्ञान ग्रहे श्रुत जति नित सार ॥ तीर्थ प्रजावन बीसमो निरुपम सुख दातार ॥ प्रथम चरम जगदीश सकल सेवी सही संपदा || इक दो नए पद जपी वावीस जिनवर पद मुदा ॥ २ ॥ ए विंशतिथानक कह्याए ज्ञाता ये जिनचंद ए सेवनथी जवि लहै त्रिभुवनपति कृपाचंद ॥ ३ ॥ इति पदम् ॥ १ ॥ || देशी की चाल ॥ ॥ सदगुरु पूजन जावस्यां ॥ ह्येतो कुशल सुरिंदगुणगास्यां हे माय स० ॥ श्रीफल नेटचढावस्यां, होतो चरणांरी पुजरचास्यां हे माय ॥ स० ॥ १॥ मारुदेशमे शोजता, एतो नगर विका राजे हे माय ॥ गाम गढाले दीपता, ज्यांरी महीयल महिमावा हे माय ॥ स० ॥ २ ॥ समय संकट चूरता, एतो कुशल करण अवतारी हे माय ॥ सुखदायक श्रीसंघने, एतो खरतरग अधिकारी हे माय ॥ ० ॥३॥ दूर देशांतरथी घणा, एतो हिल मिलयात्री खावे हे माय ॥ लुलु २ सीस नमावता, एतो संतसुजस For Private And Personal Use Only Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मिल गावे हे माय॥स॥॥ सकसिणगार मनोहरु, एतो उमम पाय ठमकावे हे माय ॥सातनमन प्राण लोनावती, एतो गौरी मंगल गावे हे माय ॥ स०॥ विवड्यां साजनमेलवै, एतो अनमी पाय नमावे हे माय॥ मनरा मनोरथ पूरवे, एतो ॥ परघल लखमी ट्यावे हे माय ॥ सः ॥६॥ विषमी वेला वाटमें, एतो समाँ सानिधश्रावे हे मायाजूखां जोजन मेलवे, एतो तिसियानीर मिलावे हे माय ॥ स० ॥ ७॥ यात्री आवे नितनवा, एतो थान आगल थिर थाट हे माय, सीरणीयां नित सांमठी, एतो गावे गुणगहगाटे हे माय ॥ स ॥७॥कुशलसूरिद गुरु आगले, एतो नवि मिल लावना नावे हे माय । चंदफते मुनि नित नमें, एतो परमानंद सुख पावे हे माय ॥ स० ॥ ए॥ इति सं॥ ॥ अथ पांच शक्रस्तव देव वन्दन विधि दि॥ प्रथम चैत्यवन्दन करे नमोबुणं सवे तिविहेण वन्दामि तक कहै, पीने इरियावही कहके, चार नवकारको काउसग्ग करके लोगस्स कहै, फिर चैत्यवन्दन करके 'नमोत्थुणं' कहै, पी अरिहंत चेश्याणं वन्दन वत्तियाए अन्नत्थू कहके एक नवकारको काउस्सग्ग करे, एक थुश्की गाथा कहके लोगस्स० वन्दन कही दूजी शुई कहै फिर पुरकरवरदी वंदण वत्तिः कह तीजी शुई कहै, फिर सिधाएं बुझाएंअन्नत्थु कही एक नवकारको काउस्सग्ग करी चौथी थूई कहै, पी बेठके तीसरी वेर 'नमोत्थुणं' कहै पीनै खमा होके इसतरे बंदणवत्तियाए प्रमुख संपूर्ण पूर्वकी तरेसें थुई कहके फेर बेउके चौथी बेर नमोत्थुणं नमोऽहत् सिधा तक कहके बमो स्तवन श्रावे सो कहे For Private And Personal Use Only Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (६३) पीने जय वीयराय कहके फिर पांचमी वेर नमोत्थुणं सबे तिविहेण तक कहै, इति पांच शक्रस्तव देववन्दन विधि ॥ ॥कर्मतणी कथनी रे कहने जश् कहुं॥ ए देशी ॥ वीरजिनेसर अलवेसर प्रनु सजिलो, सुनिजर धरि सेवकनी ए अरदासजो, वालेसर विन केहने करीये वीनती, श्म जाणीने श्राव्यो तुमारी पासजोवी॥१॥ काल अनादि रफड्यो हूं संसारमा, नवजवनमतां मुख सह्या अपारजो । वीतराग तमे तारक जाणों तातजी,तोपण वीतकवात कहुँ निरधारजो ॥ वी० ॥२॥ काल अनंत रहियो सूक्ष्मनिगोदमां, व्यवहारेतर राशी दोय कहंत जो ॥ श्वासोश्वासमां अधिका सतरेलवकर्या । श्म करता नवि पाम्यो जवनों अंतजो ॥ वी० ॥३॥ काल लब्धी पामीने परित्तपणों लह्यो, पृथिव्यादिक व्यवहारमा आव्यो तेण जो । कर्म उदयथी फरि पमियो निगोदमां, पुजलपरियह असंख्य रह्यो उहणजो ॥ वी० ॥४॥ व्यवहारकराशि कहवाणों हुं तिहां, एजाणू तुज आगमश्री जगतातजो, एकेंजियमां वसतांकाल घणों गयो, तेहनी केटली कई तुम आगल वातजो॥ वी० ॥५॥ विकलेंजियनां नव संख्याता मैं कीया, मुःखतणो नही आवे कहता पारजो, पंचेंनि तिर्यच पणों लहिने प्रत्नो, जलथल खचरना जव कर्या पुःख कारजो॥ वीर ॥ ६॥ शीततापनयनूखतृषा सही घणी, क्रूर कर्म करी उपनो नरक मजारजो, बेदन जेदन तामन तर्जनादिक सह्या, पर्माधादि कृत कष्ट असारजो ॥ वी० ॥ ७॥ नरक थकी निकलीने तीर्यच वलि थयो, अकाम निर्जरा करतां बहुती For Private And Personal Use Only Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (६३) वारजो, देव गतिमां उपजी सुख लंपट थयो, तेथी सुकृत कीनो नही लगारजो ॥ वी० ॥ ॥ कर्म संयोगे एभिमां ऊपनो, श्म नव ज्रमण करंता अनंता वेसजो, जजतां क्रमथी मनुष्य पणो मै पामियों, त्यां पण न लह्यो धर्म तणों लव सेशजो ॥ वी० ॥ए ॥ श्म जव नाटक करतां काल बहु गयो, पुन्य संयोगे पाम्यो प्रनु दीदारजो, स्वामी शासन लागो मुछ्नें मीठमो, हिव प्रनु करुणा करी मुज करो निस्तारजो॥ वी० ॥ ॥१०॥ तुम सरीषा साहिबनी सेवा मैं सही, हिव प्रनु मुजनें जाणों सेवक खासजो, तुम गुण जाणु एटली सूनिजर कीजीये, कृपाचन्छ प्रन्नु पूरो मनमेनी श्रासजो ॥ वी० ॥११॥गुर्जर देशे पानसरे प्रतु लेटिया, वरष उगणीसे उगणोत्तरे शुल दीसजो; मौन ग्यारस मन मोहन प्रनुजी मिट्या, आनंद दायक जयकारी जगदीशजो ॥ वी० ॥ १२॥ इति पदम् ॥ ॥अथ दादाजी स्तवन ॥ ॥ सदगुरु करुणा निधान राखोलाज मेरी ॥ स० ॥ टेर ॥ जै जै जिनकुशख सूरि, समरत हाजर हजूर, महकत जिम जस कपूर, महिमाजगतेरी ॥ स०॥१॥ जापर तुमहो दयाल, जिनमें करदो निहाल, संकटको चूरदेवो दोलतकी ढेरी ॥ स० ॥२॥ तुमहो सुरतरु समान, बंछित फल देवो दान ॥ सेवककों दीनजाण, मेटो जवफेरी ॥सासरण आये की राखो साज, वंचित. सब पूरो काज, हरखचंद सरण आए, महिमा सुन तेरी ॥४॥ इति पुनः॥ ॥कुशल गुरु देखकें दरशन, मेरा दिल होतहे परशन ॥ For Private And Personal Use Only Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (६४) जगतमें आपसमो नहि कोई ॥ में देखा नेन नर जोई ॥१॥ बिरुद जूममले गाजे । फरसतां पापसहु लाजे । पूजतां संपदा पावे ॥ अचिंती सनि घर आवे ॥२॥ एके मुखे गुण कई केता ॥ मुळे हीये ग्यान नहि एता ॥ लालचंदकी अरज सुण लीजे ॥ चरणकी नक्ति मोहि दीजै ॥ ३ ॥ राजैथुन गेरठोर, ऐसो देव नहि और, दादो दादो नामसें. जगत्र जश गायो है। आपणही नाव आय, पुजै लरक लोकपाय प्यास नकों रन्नमां हे, पाणी थान पायो है ॥४॥ वाट घाट शत्रुदाट हाट पुरपट्ट. णमे देवगेहनेहसुं कुशल वरतायो है।धरमशीह ध्यान धरै सेवकां कुशल करै साचो श्रीजिन कुशलसूरि नामयुं कहायो है ॥५॥ ॥अथ चैत्री पूनम शुश् ॥ ॥ शेजुंजय गिरि नमिये रुपनदेव घुमरीक ॥ शुन तपनी महिमा, सुणि गुरु मुख निरनीक ॥ शुध मन उपवासे वधिसुं चैत्यवंदनीक करियै जिन आगल, टाली वचन अलीक ॥१॥ शक स्तवनादिक प्रथम तिलक दशवीस, अदत गिणती से, चढता तिम चालीस ॥ पंचासनी पूजा लाखे श्म जगदीस, तेहीज नित प्रणमुं स्वामी जिन चवीस ॥२॥ सुदि पहनी पूनम चैत्रमास शुजवार, विधिसेती लहिये आगमसाख विचार,श्म सोलवरस लग धरियै ज्ञान उदार, करतां नरनारी पामें नवनो पार ॥ ३॥ सोवन तनु चरणे नयणे तिम अरिविंद, चक्केसरि देविय सेविय नरसुर वृंद, कामित सुखदायक पूरय मन आणंद॥ जंपे गणनायक श्रीजिनलाल सूरिंद ॥॥इति श्री चैत्रीपूनम शू॥ ॥इति राई देवसी पमिकमण विधिः संपूर्णः ॥ For Private And Personal Use Only Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ६५ ) तिहां प्रथम चउदे नियम संभारे, सो इसतरें पञ्चरकाण करे || उग्गए सूरे नमुक्कारसहियं मुठसहियं पच्चरकाइ चउविर्हपि आहारं असणं पाणं खाइमं साइमं अन्नत्थणाभोगेणं सहस्सागारेणं महत्तरागारेणं सव्वसमाहिबत्तियागारेणं विगइओ पच्चरकाइ अन्नत्थणाभोगेणं सहस्सागारेणं लेवालेवेणं गिहत्थसंसिद्वेणं उरिकत्तविवेगेणं पञ्चमरिकएणं पारिट्ठावणियागारेणं महत्तरागारेणं सव्वसमाहिबत्तियागारेणं देसावगासियं भोगपरिभोगं वा पच्चरकाइ अन्नत्थणाभोगेणं सहस्सागारेणं महत्तरागारेणं सव्वसमाहिवत्तियागारेणं वो सिरइ || इति नवकारसी पचरकाण ॥ १ ॥ तथा जो श्रावक नियम संभारे नहिं, सो विगइका ओर देसावगासिकका आगार न पच्चरके, निकेवल नवकारसी आदिक पच्चरकाण करे. सो लिखते हैं उग्गए सूरे नमुकारसहियं पच्चरका || चउव्विपि आहारं असणं पाणं खाइमं साइमं अन्न० ॥ सह० वोसिरामि ॥ इति नवकारसी पचरकाण || १ || आगार ॥ २ ॥ पोरसिं मुठसिं पच्चरकामि, उग्गएसूरे चउव्विपि आहारं असणं पाणं खाइमं साइमं अन्नत्थ० || सहस्सा० ॥ पच्छन्नकालेणं दिसामोहेणं || साहुवणेणं सव्व ० विगइओ पच्चरका मि. इत्यादि पूर्व्वकी परें कहणां ॥ इति पोरसी पच्चरकाण || २ || आगार ॥ ६ ॥ इस माफक साढ पोरसीका पच्चरकाण जाणना, इतना विशेष ५ श्रा० नि० For Private And Personal Use Only Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (६६) है, पोरसिं पञ्चरकाइके ठिकाने इहां साड्डपोरसिं पच्चरकाइ कहणां ॥ इति साड्डपोरसिपच्चरकाण ॥ आगार ॥६॥ सूरे उग्गए पुरिमÉ अवटुं वा पञ्चरकाइ, चउविहंपि आहारं असणं पाणं खाइमं साइमं अन्न ॥ सह० ॥ पच्छ० ॥ दिसामो० ॥ साहु० ॥ मह० ॥ सब० ॥ विगइओ पञ्चरकाइ इत्यादि पूर्ववत् ॥ इति पुरिमड्डपच्चरकाण ॥३॥ आ०॥७॥ पोरसिं साड्डपोरसिं वा पञ्चरकाइ, उग्गए सूरे चउविहंपि आहारं असणं पाणं खाइमं साइमं अन्न० सह० पच्छ० दिसा० साहु० सव्व० एकासणं बिआसणं वा पञ्चरकाइ. दुविहं तिविहंपि आहारं असणं खाइमं साइमं अन्न सह० सागारिआगारेणं आउट्टणपसारेणं गुरुअप्भुट्टाणेणं पारि० मह० सव्व० देसावगासियं० इत्यादि पूर्ववत् ॥ ४ ॥ इति एकासण विआसणा पचरकाण ॥ आगार ॥८॥ पोरसिं साड्डपोरसिं वा पच्चरकाइ. उग्गए सूरे चउन्विहंपि आहारं असणं पाणं खाइमं साइमं अन० सह० पछन्नका० दिसा० साहु० सव्व० एकासणं एगट्ठाणं पञ्चरकाइ. दुविहं तिविहं चउविहंपि आहारं असणं खाइमं साइमं अन्न० सह. सागारिआगारेणं गुरुअमुट्ठाणेणं पारिहाव० मह० सब० देसाव० इत्यादि पूर्ववत् ॥ ५॥ इति एकलठाणा पच्चरकाण आगार ॥ ७॥ पोरसिं साड्डपोरसिं वा पञ्चरकाइ. उग्गए सरे चउव्विहंपि आहारं असणं पाणं खाइमं सा० अन्न सह० पछ० दिसामो० साहु० For Private And Personal Use Only Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (६७) सव्व० आयंबिलं पच्चरकाइ. अन्नत्थ० सह० लेवालेवेणं गिहत्थसंसिडेण उरिकत्तविवेगेणं पारिट्ठा० मह० सव्व० एकासणं पचरकाइ. तिविहंपि आहारं असणं खाइमं साइमं अन्न० सह. सागारिआगारेणं आउट्टणपसारेणं गुरुअमुट्ठाणेणं पारिट्टा० मह० सव्व० वोसिरह ॥६॥ इति आंबिल पञ्चरकाण ॥ आगार ॥ ८॥ पोरसिं साड्डपोरसि वा पञ्चरकाइ. उग्गए सूरे चउविहंपि आहारं असणं पाणं खाइमं साइमं अन्नत्थ० सह० पच्छ० दिसा० साहु सब्ब० निविगइयं पचरकामि. अन्न० सह० लेवालेवेणं गिहत्थसंसिडेणं उरिकत्तविवेगेणं पड्डुच्चमरिकएणं पारि० मह० सव्व. एकासणं पञ्चरकाइ. तिविहंपि आहारं असणं खाइमं साइमं अन्न० सह सागा० आउट्ट गुरु० पा० मह० सञ्च० देसावगासियं भोगपरिभोगं पचरकामि. अन्न सह० मह० सव्व० बोसिरामि ॥ ७ ॥ इति नीवी पञ्चरकाण ॥ आगार ॥ ९ ॥ सूरे उग्गए अष्भत्तटुं पच्चरकामि. चउन्विहंपि आहारं असणं पाणं खाइमं साइमं अन्न० सह० पारिद्वावणियागारेणं मह० सव्व० देसावगासियं भोगपरिभोगं पञ्चरकामि. अन्न० सह० म० सब वोसिरामि ॥ ८॥ इति चउबिहार उपवास पञ्चरकाण ॥९॥ सूरे उग्गए अमत्त पञ्चरकामि. तिविहंपि आहारं असणं खाइमं साइमं अन० सह० पारि० मह० स० पाणहार पोरसिं साड्ड पोरसिं पुरिमढे अवड्ड वा पञ्चरकाइ अण्ण० सह० पच्छण्ण० दिसा० साहु सब देसावगासियं भोगपरिभोगं पञ्चरकामि, अ० स० म० सब० वोसिरामि ॥ इति तिविहार उपवास पच्चरकाण ॥ For Private And Personal Use Only Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (६८) पोरसिं साड्डपोरसिं पुरिम8 अवटुं वा पच्चरकामि. उग्गए सूरे चउविहंपि आहारं असणं पाणं खाइमं साइमं अन्न० सह० पच्छ० दिसा० साहु० सव्व० एकासणं एगहाणं दत्तियं पञ्चरकामि. तिविहं चउविहंपि आहारं असणं पाणं खाइमं साइमं अण्ण० सह० सागा. आउ० गुरु० पारि० मह० सय विगइओ पञ्चरकामि. इत्यादिपूर्ववत्. देसावगासियं इत्यादि पूर्ववत् ॥ ९॥ इति दत्तिपच्चरकाण ॥ ८॥ दिवसचरिमं पञ्चरकाइ. चउविहंपि आहारं असणं पाणं खाइमं साइमं अन्न सह० मह० सव्व० वोसिरइ ॥ इति दिवसचरिम पचरकाण ॥१०॥ दिवसचरिमं पञ्चरकामि दुविहंपि आहारं असणं खाइमं अण्ण सह० मह० सव० वोसिरामि. देसावगासियं पूर्ववत् ॥ इति दिवसचरिम दुविहार पञ्चरकाण ॥ १० ॥ पाणहार दिवसचरिमं पञ्चरकामि अन्न सह० मह० सब वोसिरामि ॥ इति पाणहार पच्चरकाण ॥ १०॥ भवचरिमं पच्चरकाइ तिविहंपि चउविहंपि आहारं असणं पाणं खाइमं साइमं अन्न० सह० मह० सब० वोसिरह ।। आगार ॥४॥ भवचरिम दो आगारकामी होय ।। इति भवचरिम पञ्चरकाण ॥ __ तथा इमहिज गंडिसहियं मुट्टिसहियं अंगुट्ठसहियं प्रमुख अभिग्रह पचरकाणकेभी ए चार आगार. अण्ण सह० मह० सब० वोसिरइ ॥ पांचमो चोलपट्टागारेणं सो साधुकों होय ॥ इति अभिग्रह पञ्च० ॥ अहण्णं भंते तुम्हाणं समीचे देसावगासियं पच्चरकामि दवओ खित्तओ कालओ भावओ दवओणं देसावगासियं खित्तओणं इत्थ For Private And Personal Use Only Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (६९) वा अण्णत्थवा कालओणं मुंहुत्तधारणापरिमाणे जावनियमं पञ्चरकामि भावओणं जावगहेणं न गहिज्जामि छलेणं न छलिज्जामि अण्णेण केणवि रोगायंकेण वा एसो परिणामो न पडिवडइ ता अभिग्गह अण्णत्थणाभोगेणं सहस्सागारेणं महत्तरागारेणं सबसमाहिवत्तियागारेणं वोसिरइ ॥ इति देसावगासी पञ्चरकाण ॥ तथा साधु पच्चरकाण करे. तब देसावगासी नही पचखे अरु तिविहार उपवासमें आंविलमें नीवी में एकासण प्रमुखमें पाणस्सका छ आगार पचरके सो दिखावे हैं, पाणस्स लेवाडेण वा अलेवाडेण वा अच्छेण वा बहुलेण वा ससित्शेण वा असित्थेण वा बोसिरह ॥ दोचेव नमुकारो, आगारा छच हुंति पोरसिए ॥ सत्तेवय पुरिमड्डे, एगासणंमि अटेव ॥ २॥ सत्तेगट्टाणस्सउ, अटेवय आयंबिलंमि आगारा ॥ पंचेवयभत्तहे, छप्पाणे चरिम चत्तारि ॥२॥ पंच चउरो अभिग्गहे, निवीए अट्ट नवय आगारा ॥ अप्पावरणे पंचउ, हवंति सेसेसु चत्तारि ॥३॥ इति आगार सं०॥ ॥ अथ सप्त स्मरणानि प्रारभ्यते तत्र प्रथमं ॥ अजिअं जिअसवभयं, संतिं च पसंतसत्वगयपावं ॥ जय गुरु संति गुणकरे, दोवि जिणवरे पणिवयामि ॥१॥ गाहा ॥ ववगयमंगुलभावे, तेहं विउलतवनिम्मलसहावे ॥ निरुवममहप्प भावे, थोसामि सुदिहसष्भावे ॥२॥ गाहा ॥ सव्वदुरकप्पसंतीणं, सव्वयावप्पसंतिणं ॥ सयाअजियसंतीणं नमो अजियसंतिणं, ॥३॥ सिलोगो ॥ अजियजिण सुहप्पवत्तणं, तव पुरिसुत्तम नामकित्तणं ॥ तह य धिइ मइ प्पवत्तणं, तवय जिणुत्तम संतिकिवणं For Private And Personal Use Only Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (७०) ॥४ ॥ मागहिआ ॥ किरिआविहिसंचिअ कम्मकिलेसविमुस्क्रयरं, अजिअं निचिअंच गुणेहिं महामुणि सिद्धिगयं ॥ अजिअस्स य संति महामुणिणोवि अ संतिकरं, सययं मम निव्वुइ कारणयंच नमसणियं ॥ ५ ॥ आलिंगणियं ॥ पुरिसा जइ दुरकवारणं, जइअ विमग्गह सुरककारणं ॥ अजिअं संति च भावओ, अभयकरे सरणं पवजहा ॥६॥ मागहिआ ॥ अरइरइतिमिरविरहिअमुवरयजरमरणं, सुरअसुरगरुलभुयगवई पययपणिवइ ॥ अजिअमहमविअ सुनयनयनिउणमभयकर, सरणमुवसरिअ भुवि दिविजमहिलं सययमुवणमे ॥ ७॥ संगययं ॥ तं च जिणुत्तममुत्तमनित्तमसत्तधरं, अञ्जवमद्दवखंतिविमुत्तिसमाहिनिहिं ॥ संतिअरं पणमामि दमुत्तम तित्थयरं, संति मुणी मम संति समाहिवरं दिसउ ॥८॥ सोवाणयं ॥ सावस्थिपुवपत्थिवं च वरहत्थि मत्थयपसत्थवित्थिनसंथि थिरसरिच्छवच्छं मयगललीलायमाण वरगंधहत्थि पत्थाणपत्थियं संथवारिहं हथिहत्थबाहुं धंतकणगरुअगनिरुवहयपिंजरं पवरलरकणोवचित्र सोमचारुरूवं सुइसुहमणाभिरामपरमरमणिजबरदेवदुंदुहिनिनायमहुरयरसुहगिरं ॥९॥ वेड्डओ ॥ अजिअं जिआरिगणं, जिअसवभयं भवो हरिठं ॥ पणमामि अहं पयओ, पावं पसमेउ मे भयवं ॥ १० ॥रासालुद्धओ। कुरुजणवयहत्थिणाउरनरीसरो पढमं तओ महाचकवटिभोए महप्पभावो जो बाहत्तरिपुरवरसहस्सवरनगरणिगमजणवयवई बत्तीसारायवरसहस्साणुआयमग्गो चउदसवररयणनवमहानिहि चउसहिसहस्सपवरज्जुबईणसुंदरवई चुलसीहयगयरहसयसहस्ससामी छण्णवइगामकोडिसामी आसिजोभारहंमि भयवं For Private And Personal Use Only Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ७१ ) ॥ ११ ॥ वेदओ ॥ तं संतिं संतियरं, संतिनं सवभया || संति थुणामि जिणं, संतिं विउ मे ॥ १२ ॥ रासादिअयं ॥ इरकागुविदेहनरीसर, नरवसहा मुणिवसहा || नव सारय ससि सकलाणण, विगतमा विहुअरया || अजियउत्तम तेअगुणेहिं महामुणि, अमियबला विउलकुला || पणमामि ते भवभयमूरण, जगसरणा मम सरणं ॥ १३ ॥ चित्तलेहा ॥ देवदाणविंदचंदसूरवंदहट्ठतु वजिहपरम, लट्ठवर्धतरुप्प पट्टसेअसुद्ध निधवल || दंतपंति संतिसत्तिकित्तिमुत्ति जुत्तिगुत्तिपवर, दित्ततेअविंदधे असवलोअभावि अप्पभावणे अपइसमे समाहिं || १४ || नारायओ || विमलससिकलाइरेअसोमं, वितिमिरसूरकलाइरेअ तेअं || तियसवइगणाइरेअरूवं, धरणिधरप्पवराइरेअसारं || १५ || कुसुमलया | सत्ते अ सया अजिअं, सारीरे अ बले अजिअं ॥ तवसंजमेअ अजिअं, एस थुणामि जिणमजिअं ।। १६ ।। भुअंगपरि रिंगिअं || सोमगुणेहिं पावइ न तं नवसरयससी, अगुणेहिं पावs नतं नवसरयरवी || रूवगुणेहिं पावइ नतं तिअसगवई, सारगुणेहिं पावह न तं धरणिधरवई ॥ १७ ॥ खिजिअयं ॥ तित्थवर पवत्तयं तमरयर हिअं, धीरजण थुअचिअं चुअकलिकलुस || संतिसुहष्पवत्तयं तिगरण पयओ, संति महं महामुणि सरण मुव मे || १८ || ललिअयं || विणओणय सिरिरह अंजलि, रिसिगणसंअं थिमि || विबुहाहिव घणवर नरवर, थुअ महि अचिअं बहुसो || अरुग्गयसरयदिवायर, समहिअ सप्पभं तवसा ॥ गयणंगणविवरणसमुइअ, चारण वंदिअं सिरसा ।। १९ ।। किसलयमाला ॥ असुरगरुल परिवंदिअं, किन्नरोरग णमंसिअं || देव कोडिसयसंथुअं, समण संघपरिवंदिअं || २० || सुमुहं | अभयं अणहं अरयं अरुयं ॥ For Private And Personal Use Only Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (७२) अजिअं अजिअं पयओ पणमे ॥ २१॥ विज्जुविलसि ॥ आगयावरविमाणदिवकणगरहतुरयपहकरसएहिं हुलिअं ॥ ससंभमो अरण रकुभिअलुलिअचलकुंडलं गयतिरीडसोहंतमउलिमाला ॥ २२ ॥ वेढओ ॥ जं सुरसंघा सासुरसंघा वेरविउत्ता भत्तिसु जुत्ता, आयर भूसिअ संभमपिडिअ सुहसुविह्मिअसबबलोघा ॥ उत्तमकंचण रयणपरूविज भासुरभूसणभासुरिअंगा, गायसमोणयभत्तिवसागय पंजलिपेसियसीसपणामा ॥ २३ ॥ रयणमाला ॥ वंदिऊण थोऊण तो जिणं, तिगुणमेव य पुणोपयाहिणं ॥ पणमिऊणय जिणं सुरासुरा. पमुइआ सभवणाइतो गया ॥ २४ ॥ खित्तयं ॥ तं महामुणिमहपि पंजलि, रागदोसभयमोहवजिअं ॥ देवदाणव नरिंदवंदिअं, संतिमुत्तममहातवं नमे ॥ २५ ॥ खित्तयं ॥ अंबरंतरविआरणिआर्हि, ललिअहंसबहुगामिणिआहि ॥ पीणसोणित्थण सालणिआहिं, सकलकमलदललोअणिआहि ॥ २६ ॥ दीवयं ॥ पीणनिरंतरथणभरविणमियगायलयाहि, मणिकंचणपसिढिलमेहल सोहिअ सोणितडाहिं ॥ वरखिंखिणिनेउरसतिलयवलय विभूसणियाहि, रहकरचउरमणोहर सुंदरदंसणियाहिं ॥२७॥ चित्तरकरा ॥ देवसुंदरीहिं पायवंदिआहिं वंदिआय जस्स ते सुविकमाकमा अप्पणो निडालएहिं मंडणोड्डणप्पगारएहि केहि केहिं वि अवंगतिलयपत्तलेहनामएहिं चिल्लएहिं संगयं गयाहिं भत्तिसन्निविट्ठवंदणागयाहिं हुंति ते वंदिआ पुणो पुणो ॥ २८ ॥ नारायओ ॥ तमहं जिणचंद, अजिअं जिअमोहं ।। धुअसवकिलेसं पयओ पणमामि ॥ २९ ॥ नंदिअयं ।। थुअ वंदिअस्सा रिसिंगणदेवगणेहिं, तो देववहूहिं पयओ पणमिअस्सा ॥ जस्स जगुत्तमसासणयस्सा, भत्तिवसागयपिंडिअआहिं ॥ देव For Private And Personal Use Only Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (७३) वरच्छरसाबहुआहि, सुरवररइगुणपंडिअआहि ॥ ३० ॥ भासुरयं । वंससद्दतंतिताल मेलिए तिउरकराभिरामसदृमीसएकएअ, सुइसमाणणेअसुद्ध सजगीअपायजालघंटिआहिं ॥ वलयमेहलाकलावनेउराभिराम सद्दमीसए कएअ देवनट्टिआहि ॥ हावभावविष्भमप्पगारएहि नचिऊण अंगहारएहिं बंदिआय जस्स ते सुविकमाकमा ।। तयं तिलोयसबसत्तसंतिकारयं पसंतसवपावदोसमेसहं नमामि संतिमुत्तमं जिणं ॥ ३१ ॥ नारायओ ॥ छत्तचामरपडागजूब जवमंडिआ झयवरमगरतुरयसिरिवच्छसुलंछणा ॥ दीवसमुद्द मंदिरदिसागयसोहिआ, सत्थिअवसहसीहसिरिवच्छसुलंछणा ॥३२॥ ललिअयं ॥ सहावलट्ठा समप्पइहा, अदोसदुद्दा गुणेहि जिहा ।। पसायसिहा तवेण पुट्ठा, सिरीहिं इट्टा रिसीहिं जुट्टा ॥ ३३ ।। वा णवासिआ ॥ ते तवेण धुअसबपावया, सबलोअहिअ मूलपावया ।। संथुआ अजिअ संति पावया, हुंतु मे सिबसुहाणदायया ॥ ३४ ॥ अपरांतिया ॥ एवं तवबलविउलं, थुझं मए अजिअ संति जिण जुयलं ॥ ववगयकम्मरयमलं, गई गयं सासयां विमलां ॥ ३५ ॥ गाहा ॥ तं बहुगुणप्पसायं मुरकसुहेण परमेण अविसायं ॥ नासेउ मे विसायं, कुणउ अ परिसाविअ पसायं ॥३६॥ गाहा ॥ तं मोएउ अनंदि, पावेउअ नंदिसेणमभिनंदि ॥ परिसाविअ सुहनंदि, मम य दिसउ संजमेनंदि ।। ३७ ॥ गाहा । परिका चाउम्मासिय, संवच्छरिए राइए अ दिअहेअ ( अवस्स भणिअबो)। सोअबो सहिं, उवसग्ग निवारणो एसो ॥ ३८ ॥ जो पढइ जो अनिसुणइ, उभओ कालंपिअजिअसंतिथुरं ॥ न हु हुँति तस्स रोगा, पुवुप्पन्ना विनासंति ॥ ३९ ॥ जइ इच्छह परम पयं, अहवाकित्ति सुवित्थडां । एवं तवला, हुतु मे सिाहिब मूलप For Private And Personal Use Only Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ७४ ) भुवणे ॥ ता तेलकुद्धरणे, जिणवयणे आयरं कुणह ॥ ४० ॥ गाहा ॥ इति श्रीवृहद जितशांतिस्तवनं प्रथमस्मरणम् ॥ १ ॥ उल्लासिक्कमनरकनिग्गयपहादंडच्छलेणंगिणं, बंदारूण दिसंत इव पयर्ड निवाणमरगावलिं ॥ कुंदिंदूज्जल दंतकंति मिसओ जीहंत नाणंकुरु, केरे दोविदुइज्ज सोलस जिणे थोसामि खेमंकरे ॥ १ ॥ चरम जलहिनीरं जोमिणिजंजलीहिं, खयसमयसमीरं जो जणिजागईए || सहलनह लंबा लंघए जो पएहिं, अजिअ महव संतिं सो समत्थो स्थुणेउं ॥ २ ॥ तहविहु बहुमाणुल्लासभत्तिष्भरेण, गुणकणमिव कित्ती हामि चिंतामणिव || अलमहव अचिंताणंतसामत्थओसिं, फलहर लहु सर्व वंछिअं णिच्छि मे || ३ || सयलजयहिआणं नाममित्तेण झाणं, fasse दुट्ठा निदोषद्वथट्टं || नमिरसुर किराडू ग्गिट्ठपायारविंदे, समय मजिअ संती ते जिणिदेभिवंदे || ४ || पसरह वरकित्ती वढ्ढए देहदित्ती, विलसह भुवि मित्ती जायए सुप्पवित्ती || फुरइ परमतित्ती होइ संसारछित्ती, जिणजुअपयभत्ती हीअचिंतोरुसत्ती ॥ ५ ॥ ललियपयपयारं भूरिदिवंगहारं, फुडगणरसभावो दारसिंगारसारं ॥ अणमिसरमणीज्जहंसणच्छे अभीया, इव पुणमणिबंधा कासि नहोवयारं ॥ ६ ॥ थुणह अजिअसंती ते कया सेससंती, कणयरयपसंगा छञ्जए जाणिमुत्ती || सरभस परिरंभारंभ निवाणलच्छी, घण थणघुसिणिक्कु पंपिंगtara ॥ ७ ॥ बहुविनयभंगं वत्थुणिचं अणिचं, सदसदणभिलप्पा लप्पमेगं अगं ॥ इय कुनयविरुद्धं सुप्पसिद्धं तु जेसिं, वयणमवयणिअं ते जिणे संभरामि ॥ ८ ॥ पसरइ तिअलोए ताव मोहंधयारं, भमइ जय मसण्णं ताव मिच्छत्त छण्णं ।। फुरइ फुडफलंताणतणाणं सुपूरो, पयडमजिअसंती झाणसूरो न जाव For Private And Personal Use Only Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ७५ ) ॥९॥ अरिकरिहरितिण्णु ण्हंबु चोराहिवाही, समरडमरमारीरुद्द खुद्दोवसग्गा ॥ पलयमजिअसंती कित्तणे झत्ति जंती, निविडतरत मोहा भरकरालंखिअ व ॥१०॥ निचिअदुरिअदारुदित्तझाणग्गिजाला, परिगय मिव गोरं, चिंतिअं झाणरूवं ॥कणय निहसरेहा कंतिचोरं करिजा, चरथिर मिह लच्छि गाढसंथंभिअब ॥११॥ अडविनिवडिआणं पत्थिवुत्तासिआणं, जलहि लहरि हीरं ताण गुत्ति ट्ठियाणं ॥ जलिअ जलणजाला लिंगिआणं च झाणं, जणयइ लहु संति संतिनाहा जिआणं ॥ १२ ॥ हरि करि परिकिण्णं पक्क पाइकपुण्णं, सयलपुहविरजं छड्डिअं आणसजं ॥ तणमिव पडिलग्गं जेजिणामुत्तिमग्गं, चरण मणुपवण्णा इंतु ते मे पसण्णा ॥ १३॥ छणससिवयणाहि फुल्लनित्तुप्पलाहिं, थणभरनमिरीहिं मुहिगिजोदरीहिं ।। ललिअभुअलयाहिं पीणसोणिस्थलीहिं, सयसुररमणीहिं वंदिआ जेसि पाया ॥ १४ ॥ अरिस किडिभकुट्ट गंठि कासाइसार, खयजर वण लूआ साससोसोदराणि ॥ नहमुंहदसणच्छी कुच्छिकण्णाइरोगे, मह जिणजुअपाया सुप्पसाया हरंतु ॥ १५ ॥ इय गुरुदुहतासे पक्खिए चाउमासे, जिणवर दुगथुत्तं वच्छरे वा पवित्तं ॥ पढइ सुणइ सिज्झा एह झाएइचित्ते, कुणह मुंणह विग्धं जेण घाएह सिग्धं ॥ १६ ॥ इय विजयाजियसत्तुपुत्त सिरिअजिअ जिणेसर, तह अइराविससेण तणइ पंचम चकीसर ॥ तित्थंकर सोलसम संति जिणवल्ल ह संथुअ, कुरु मंगल मम हरसुदुरिअमखिलंपि धुणंतह ॥ १७ ॥ इति श्रीलघुअजितशांतिस्तवनं द्वितीयं सरणम् ॥ २॥ नमिऊण पणय सुरगण, चूडामणिकिरणरंजिअं मुणिणो ॥ चलणजुअलं महाभय, पणासणं संथवं वुच्छं ॥ १ ॥ सडियकरचरण For Private And Personal Use Only Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (७६) नहमुह. निबुड्ड नासा विवन्न लावना ॥ कुट्ठमहारोगानल, फुलिंग निद्दड्ड सवंगा ॥२॥ ते तुह चलणा राहण, सलिलंजलिसेयबुड्डिय च्छाया ॥ वणदवदड्डा गिरिपायवव, पत्तापुणो लच्छि ॥३॥ दुवायखुभियजलनिहि, उष्भडकल्लोलभीसणारावे ॥ संभंतभयविसंठुल, निजामयमुंकवावारे ॥४॥ अविदलिअ जाणवत्ता, खणेण पावंति इच्छिों कूलं ॥ पासजिणचलणजुअलं, निचं चिअ जे नमंति नरा ॥ ५॥ खरपवणुद्धअवणदव जालावलिमिलियसयलदुमगहणे ॥ डझंतमुद्धमिय बहु, भीसणरवभीसणंमि वणे ॥६॥ जगगुरुणो कमजुअलं, निवाविअसयलतिहुअणाभो ॥ जे संभरंति मणुआ, न कुणइ जलणो भयं तेसिं ॥ ७॥ विलसंतभोगभीसण, फुरिआरुणनयणतरलजीहालं ॥ उग्गभुअंगं नवजलय, सत्थहं भीसणायारं ॥ ८ मन्नंत कीडसरिसं, दूरपरिच्छूढ विसमविसवेगा । तुह नामरकरफुडसिद्ध, मंतगुरुआनरा लोए ॥ ९ ॥ अडवीसु भिल्लतकर, पुलिंदसर्लसदभीमासु ॥ भयविहुर (हल) बुनकायर, उल्लूरिअ पहिअ सत्थासु ॥१०॥ अविलुत्तविहवसारा, तुहनाह पणाममत्तवावारा ॥ ववगयविग्घा सिग्धं, पत्ता हियइच्छियंठाणं ॥११॥ पजलिआनलनयणं, दूरवियारियमुहं महाकायं ।। नहकुलिसघायविध लिअ, गइंदकुंभत्थलाभो ॥ १२ ॥ पणय ससंभमपत्थिव, नहमणिमाणिक पडिअ पडिमस्स ॥ तुह वयण पहरणधरा, सीहं कुद्धपि न गणंति ॥ १३ ॥ ससिधवलदंतमुसलं, दीहकरुल्लालवदिउच्छाहं ॥ महुपिंगनयणजुअलं, ससलिलनवजलहरारावं ॥ १४॥ भीमं महागइंदं, अचासन्नपि ते नवि गणंति ॥ जे तुमचलणजुअलं मुंणिवइ तुंगं समल्लीणा ॥ १५॥ समरम्मि तिकखग्गा, भिग्धाय पविद्ध For Private And Personal Use Only Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (७७) उद्धुकबंधे || कुंत विणिमिन्नकरिकलह, मुक्कसिकार पउरंमि ॥ १६ ॥ निजिय दप्पुद्धररिउ, नरिंदनिवहा भडा जसं धवलें ॥ पार्वति पावपसमिण, पासजिण तुहष्पभावेण || १७ || रोगजलजलणविसहर, चोरारिमइंदगयरणभयाई || पासजिणनाम संकित्तणेण, पसमंति सवाई ।। १८ ।। एवं महाभयहरं, पासजिणिंदस्स संथवमुआरं ॥ भवियजणानंदयरं, कल्लाण परंपरनिहाणं ॥ १९ ॥ रायभय जरक रकस, कुसुमिण दुस्सउण रिरकपीडासु ॥ संझासु दोसु पंथे, उवसग्गे तहय रयणी || २० || जो पढइ जो अ निसुणइ, ताणं करणो य माणतुंगस्स || पासो पावं पसमिउ, सयलभुवणचि अ चलणो ॥ २१ ॥ इति श्रीपार्श्वजिनस्तवनं तृतीयस्मरणं संपूर्णम् ॥ ३ ॥ तं जयउ जए तित्थं, जमित्थ तित्थाहिषेण वीरेण ॥ सम्मं पविचिअंभवसत्त संताणमुहजणयं ॥ १ ॥ नासिअ सयल किलेसा, निहय कुलेसा पत्थ सुहलेसा || सिरिवद्धमाणतित्थस्स, मंगलं दिंतु ते अरिहा || २ || निड्डुकम्म बीआ, बीआपरमिडिणो गुणसमिद्धा ॥ सिद्धा तिजय पसिद्धा, हणंतु दुत्थाणि तित्थस्स || ३ || आयार मायरंता, पंचपयारं सया पयासंता || आयरिआ तह तित्थं, निहय कुतित्थं पयासंतु ॥ ४ ॥ सम्मसुअ वायगावायगाय, सिअवायवायगावाए || पवयणपडिणीय कए, वर्णितु सबस्स संघस्स ॥ ५ ॥ निवाणसाहणुज्जुअ, साहूणं जणिअ सबसाहजा || तित्थप्पभावगा ते, हवंतु परमिद्विणो जहणो || ६ || जेणाणुगयं नाणं, निवाणफलं च चरणमविवs || तित्थस्स दंसणं तं मंगलमवणेउ सिद्धियरं ॥ ७ ॥ निच्छउमो सुअधम्मो, समग्ग भगि वग्ग कयसम्मो ॥ गुअस्स संघ, मंगलं सम्ममिह दिसउ || ८ || रम्मो चरित For Private And Personal Use Only Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (७८) धम्मो, संपाविस भवसत्त सिवसम्मो ॥ नीसेस किलेसहरो, हवउ सया सयलसंघस्स ॥ ९॥ गुणगण गुरुणो गुरुणो, सिवसुह मइणो कुणंतु तित्थस्स ॥ सिरिवद्धमाण पहुपयडिअस्स कुसलं समग्गस्स ॥१०॥ जियपडिवरकाजरका गोमुह मायंग गयमुह पमुरका ॥ सिरि बंभ संति सहिआ, कय नयररका सिवं दितु ॥११॥ अंबा पडिहयडिंबा, सिद्धा सिद्धाइआ पवयणस्स ।। चक्केसरि वइरुट्टा, संति सुरा दिसउ सुरकाणि ॥ १२ ॥ सोलस विजा देवीओ, दितु संघस्स मंगलं विउलं ॥ अच्छुत्ता सहिआओ, विस्सुअ सुयदेवयाउ समं ॥ १३ ॥ जिण सासण कयरका, जरका चउवीस सासण सुरावि ।। सुहभावा संतावं, तित्थस्स सया पणासंतु ॥ १४ ॥ जिणपवयणमि निरया, विरहा कुपहाउ सबहासवे ॥ वेयावच्चगराविअ, तित्थस्स हवंतु संतिकरा ॥ १५ ॥ जिणसमय सुद्धसमग्ग, विहिअभवाण जणिअसाहज्जा ॥ गीयरई गीयजसो, सपरिवारो सुहं दिसउ ॥१६॥ गिहगुत्तखित्तजलथल, वणपवयवासि देवदेवीओ ॥ जिणसासणहिआणं, दुहाणि सवाणि निहणंतु ॥ १७ ॥ दसदिसिवालासस्कित्तवालया, नवग्गहा सनरकत्ता ॥ जोइणि राहुग्गहकालपास, कुलिअद्ध पहरेहिं ॥ १८ ॥ सहकाल कंटएहिं सविडिवच्छेहि कालवेलाहिं ॥ सवे सव्वत्थ सुहं, दिसंतु सबस्स संघस्स ॥१९॥ भवणवइवाणमंतर, जोइसवेमाणिआ य जे देवा ॥ धरणिंदसकसहिआ, दलंतु दुरिआइ तित्थस्स ॥२०॥चकं जस्स जलंतं, गच्छइ पुरओ पणासिअ तमोहं ॥ तं तित्थस्स भगवओ, नमो नमो वद्धमाणस्स ॥२१॥ सो जयउ जिणो वीरो, जस्सजवि सासणं जए जयइ ॥ सिद्धिपह सासणं कुपह, नासणं सब भय महणं ॥ २२ ॥ सिरि उसभसेण पमुहा, हयभय For Private And Personal Use Only Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (७९) निवहा दिसंतु तित्थस्स ॥ सवजिणाणं गणहारिणो, णहं वंच्छिअं सर्व्वं || २३ || सिरि वद्धमाणतित्थाहिवेण, तित्थं समप्पिअं जस्स ॥ सम्मं सुहम्म सामी, दिसउ सुहं सयलसंघस्स ॥ २४ ॥ पयइए भद्दिआ जे, भद्दाण दिसंतु सयल संघस्स ॥ इयर सुरा विहु सम्मं, जिणगणहर कहिय कारिस्स ।। २५ ।। इय जो पढड़ तिसंझं, दुस्सज्यं तस्स नत्थि किंपि जए | जिणदत्ताणाएडिओ, सुनिडिअो सुही होई ॥ २६ ॥ इति श्री गणधर देवस्तुतिनामकं चतुर्थस्मरणं ॥ ४ ॥ || मयरहिअं गुणगणरयण, सायरं सायरं पणमिऊणं ॥ सुगुरुजण पारतंतं, उवहिव थुणामि तं चैव ॥ १ ॥ निम्महिय मोहजोहा, निय विरोहा पणट्टसंदेहा ॥ पणयंगिवग्ग दाविअ, सुहसंदोहा सुगु हा || २ || पत्तसुजहत सोहा, समत्तपरतित्थजणिय संखोहा || पडिभग्गमोहजोहा, दंसिअ सुमहत्थ सत्थोहा || ३ || परिहरिअ सत्थवाहा, हय दुदाहा सिवंच तरुसाहा || संपाविअ सुहलाहा, खीरोदहिणुव अग्गाहा || ४ || सुगुणजणजणिअपुज्जा, सज्जो निरुवज गहि पवजा || सिवसुहसाहणसज्जा, भवगिरिगुरु चूरणे वज्जा ॥५॥ अअसुहम्मप्पमुहा, गुणगण निवहा सुरिंद विहिय महा ॥ ताण तिसंझ नामं नामं न पणासह जियाणं || ६ || पडिवजिअ जिणदेवो, देवायरिओ दुरंत भवहारि || सिरिनेमिचंदसूरि, उज्जोयणसूरिणो सुगुरु || ७ || सिरिवद्धमाणसूरि, पयडीकय सूरिमंतमाहप्पो || पडिहयकसायपसरो, सरयससंकुध सुहजणओ ॥ ८ ॥ सुहसीलचोरचपरण, पच्चलो निचलो जिणमयंमि || जुगपवर सुद्धसिद्धंत, जाणओ पणय सगुणजो || ९ || पुरओ दुल्लह महिवल्लहस्स, अणहिलवाडए पयर्ड || मुकाविआरिऊणं, सीहेणव दवलिंगि गया ॥ १० ॥ दसम - For Private And Personal Use Only Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (८०) च्छेरय निसिविप्फुरंत, सच्छंद सूरिमयतिमिरं ॥ सूरेणव सूरिजि सरेण, हयमहिअदोसेण ॥ ११ ॥ सुकइत्तपत्तकित्ती, पयडिअगुत्ती पसंतसुहमुत्ती ॥ पहयपरवाइदित्ती, जिणचंदजईसरो मंती ॥ १२ ॥ पयडिअ नवंग सुतत्थ, रयणुकोसो पणासिअ पओसो ॥ भवभीष भविअ जणमण, कयसंतोसो विगयदोसो ॥ १३ ॥ जुगपवरागम सार, प्परूवणा करणबंधुरोधणि ॥ सिरिअभयदेवसूरी, मुणिपवरो परमपसमधरो ॥ १४ ॥ कयसावयसंतासो, हरिवसारंगभग्ग संदेहो ॥ गयसमयदप्पदलणो, आसाइअपवरकवरसो ॥ १५ ॥ भीमभवकाणणम्मिअ, दंसिअ गुरुवयणरयणसंदेहो ॥ नीसेससत्त गुरुओ, सूरीजिणवल्लहो जयइ ॥१६॥ उवरहिअ सञ्चरणो, चउरणुओगप्पहाण सञ्चरणो ॥ असम मयरायमहणो, उड्डाहो सहइ जस्स करो ॥ १७ ॥ दंसिअ निम्मल निचल, दंतगणो गणिअ सावओत्थ भओ ॥ गुरुगिरिगुरुओ सरहिव, मूरिजिणवल्लहो होत्था ॥ १८ ॥ जुगपवरागम पीऊसपाणि, पीणियमणाकया भवा ॥ जेण जिणवल्लहेणं, गुरुणा तं सवहा वंदे ॥१९॥ विप्फुरिअपवरपवयण, सिरोमणी बूढदुबहखमोया ॥ जो सेसाणं सेसुब, सहइ सत्ताण ताणकरो ॥२०॥ सच्चरिआण महीणं, सुगुरूणं पारतंत मुंबहइ ॥ जयइजिणदत्तसूरी, सिरिनिलओ पणय मुणितिलओ ॥२१॥ इति श्रीगुरुपारतंत्र्यनामक पंचमस्मरणम् ॥५॥ ॥ सिग्घमवहरउ विग्धं, जिणवीराणाणुगामिसंघस्स ॥ सिरि पासजिणो थंभण, पुरडिओ निहिआनिहो ॥१॥ गोयमसुहम्म पमुहा, गणवइणो विहिअ भवसत्तसुहा ॥ सिरिवद्धमाणजिणतित्थ, सुत्थयंते कुणंतु सया ॥२॥ सक्काइणो सुराजे, जिणवेयावञ्चका. For Private And Personal Use Only Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | 'जान (८१) रिणो संति ॥ अवहरिअ विग्धसंघा, हवंतु ते संघसंतिकरा: ३॥ सिरियंभणयटिअपाससामि, पयपउमपणयपाणीणं ॥ निदलिअ दुरिअ विंदो, धरणिंदो हरउ दुरिआई ॥४॥ गोमुहपमुरक जरका, पडिहयपडिवरकपरकलरका ते ।। कयसुगुणसंघररका, हवंतु संपत्तसिवसुरका ॥५॥ अप्पडिचकापमुहा, जिणसासणदेवयाउ जिणपणिआ । सिद्धाइआसमेया, हवंतु संघस्स विग्धहरा ॥६॥ सक्काएसासचउरपुरहिओ, बद्धमाणजिणभत्तो॥ सिरिबंभसंति जरको, ररकउ संघ पयत्तेण ॥ ७ ॥ खित्तगिहगुत्तसंताण, देसदेवाहि देवया ताओ ॥ निव्वुइपुरपहियाणं, भवाण कुणंतु सुरकाणि ॥ ८॥ चक्केसरि चकधरा, विहिपहरिउच्छिण्णकंधरा धणि ॥ सिवसरणिलग्ग संघस्स, सव्वहा हरउ विग्याणि ॥ ९॥ तित्थवइ वद्धमाणो, जिणेसरो संगओ सुसंघेण ॥ जिणचंदो भयदेवो, रकउ जिणवल्लहो पहुमं ॥ १० ॥ सोजयउ बद्धमाणो, जिणेसरो सरुव हयतिमिरो ॥ जिणचंदा भयदेवा, पहुणो जिणवल्लहा जेय ॥ ११॥ गुरुजिणवल्लहपाए, भयदेव पहुत्तदायगे वंदे ॥ जिणचंद जिणेसरवद्धमाण तिस्थस्स बुड्डिकए ॥ १२ ॥ जिणदत्ताणं सम्मं, मन्नंति कुणंति जेय कारंति ॥ मणसा वयसा वउसा, जयंतु साहम्मिआ तेवि ॥ १३ ॥ जिणदत्तगुणे नाणाइणो, सया जे धरंति धारिंति ॥ दंसिअसियवायपए, नमामि साहम्मिआ तेवि ॥ १४ ॥ इति षष्ठं सरणम् ॥६॥ ॥ उवसग्गहरं पासं, पासं वंदामि कम्मघणमुकं ॥ विसहरविसनिण्णासं, मंगलकल्लाण आवासं ॥१॥ इत्यादि ॥ भवेभवेपासजिणचंद पर्यंत संपूर्ण कहना ॥ ५॥ इति श्रीपार्श्वजिनस्तवनं सप्तमस्मरणम् ॥ ७॥ इति सप्तस्मरणं समाप्तम् ॥ ६ श्रा० नि. For Private And Personal Use Only Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ८२) ॥ भक्तामरप्रणतमौलिमणिप्रभाणा, मुद्योतकं दलितपापतमोवितानम् ॥ सम्यक् प्रणम्य जिनपादयुगं युगादावालंबनं भवजले पततां जनानाम् ॥१॥ यः संस्तुतः सकलवाङ्मयतत्त्वबोधादुद्भूतबुद्धिपटुभिः सुरलोकनाथैः ॥ स्तोत्रैर्जगत्रितयचित्तहरैरुदारैः, स्तोष्ये किलाहमपि तं प्रथमं जिनेन्द्रम् ॥२॥ युग्मं । बुद्ध्याविनापि विबुधार्चितपादपीठ, स्तोतुं समुद्यतमतिर्विगतत्रपोऽहम् ॥ बालं विहाय जलसंस्थितमिदुबिंबमन्यः क इच्छति जनः सहसा ग्रहीतुम् ॥ ३ ॥ वक्तुं गुणान् गुणसमुद्र शशांककांतान्, कस्ते क्षम: सुरगुरुप्रतिमोऽपि बुद्ध्या ॥ कल्पांतकालपवनोद्धतनक्रचक्रं, को वा तरीतुमलमंबुनिधिं भुजाभ्याम् ॥ ४ ॥ सोऽहं तथापि तव भक्तिवशान्मुनीश, कर्तुं स्तवं विगतशक्तिरपि प्रवृत्तः ॥ प्रीत्यात्मवीर्यमविचार्य मृगो मृगेंद्र, नाभ्येति किं निजशिशोः परिपालनार्थम् ॥५॥ अल्पश्रुतं श्रुतवतां परिहासधाम, सद्भक्तिरेव मुखरीकुरुते बलान्माम् ॥ यत्कोकिलः किल मधौ मधुरं विरौति, तच्चारुचाम्र (चूत ) कलिकानिकरैकहेतुः ॥६॥ वत्संस्तवेन भवसंततिसंनिबद्धं, पापं क्षणात्क्षयमुपैति शरीरभाजाम् ॥ आक्रांतलोकमलिनीलमशेषमाशु, सूर्याशुभिनमिव शावरमंधकारम् ॥ ७ ॥ मत्वेति नाथ तव संस्तवनं मयेदमारभ्यते तनुधियापि तव प्रभावात् ॥ चेतो हरिष्यति सतां नलिनीदलेषु, मुक्ताफलद्युतिमुपैति ननूदबिंदुः॥८॥आस्तां तव स्तवनमस्तसमस्तदोषं, त्वत्संकथापि जगतां दुरितानि हति ॥ दूरे सहस्त्रकिरणः कुरुते प्रभैव, पद्माकरेषु जलजानि विकाशभांजि ॥९॥ नात्यद्भुतं भुवनभूषण भूतनाथ, भूतैर्गुणैर्भुवि भवंतमभिष्टुवंतः ॥ For Private And Personal Use Only Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ८३ ) तुल्या भवंति भवतो ननु ते न किं वा, भूत्याश्रितं य इह नात्मसमं करोति ॥ १० ॥ दृष्ट्वा भवंतमनिमेषविलोकनीयं, नान्यत्र तोषमुपयाति जनस्य चक्षुः ॥ पीत्वा पयः शशिकरद्युति दुग्धसिंधोः, क्षारं जलं जलनिधेरशितुं क इच्छेत् ॥ ११ ॥ यैः शांतंरागरुचिभिः परमाणुभिस्त्वं, निर्मापितस्त्रिभुवनैकललामभूत || तावंत एव खलु तेऽप्यणवः पृथिव्यां यत्ते समानमपरं नहि रूपमस्ति ॥ १२ ॥ व क ते सुरनरोरगनेत्रहारि, निःशेषनिर्जितजगत्रितयोपमानम् || बिंबं कलंकमलिनं क निशाकरस्य, यद्वासरे भवति पांडुपलाशकल्पम् ॥ १३ ॥ संपूर्णमंडलशशांककलाकलाप, शुभ्रा गुणास्त्रिभुवनं तव लंघयंति । ये संश्रिता त्रिजगदीश्वर नाथमेकं, कस्तान्निवारयति संचरतो यथेष्टम् ॥ १४ ॥ चित्रं किमत्र यदि ते त्रिदशांगनाभिनतं मनागपि मनो न विकारमार्गम् ॥ कल्पांतकालमरुता चलिताचलेन, किं मंदराद्रिशिखरं चलितं कदाचित् ॥ १५ ॥ निर्धूमवर्त्तिरपवर्जिततैलपूरः, कृत्स्नं जगत्रयमिदं प्रकटीकरोषि || गम्यो न जातु मरुतां चलिताचलानां, दीपोऽपरस्त्वमसि नाथ जगत्प्रकाशः ॥ १६ ॥ नास्तं कदाचिदुपयासि न राहुगम्यः, स्पष्टीकरोषि सहसा युगपज्जगंति || नांभोधरोदरनिरुद्ध महाप्रभावः, सूर्यातिशायिमहिमासि मुनींद्र ! लोके ॥ १७ ॥ नित्योदयं दलितमोहमहांधकारं गम्यं न राहुवदनस्य न वारिदानाम् ॥ विभ्राजते तव मुखाब्जमनल्पकांति, विद्योतयज्ञ्जगदपूर्व शशांकबिंबम् ॥ १८ ॥ किं शर्वरीषु शशिनाहि विवखता वा, युष्मन्मुखेदुदलितेषु तमस्सु नाथ ॥ निष्पन्नशाविनशालिनि जीवलोके, कार्य कियञ्जल For Private And Personal Use Only Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ८४ ) 2 धरैर्जलभारनत्रैः ॥ १९ ॥ ज्ञानं यथा त्वयि विभाति कृतावकाश, नैवं तथा हरिहरादिषु नायकेषु || तेजः स्फुरन्मणिषु याति यथा महत्त्वं नैवं तु काचशकले किरणाकुलेsपि ॥ २० ॥ मन्ये वरं हरिहरादय एव दृष्टा, दृष्टेषु येषु हृदयं त्वयि तोषमेति ॥ किं वीक्षितेन भवता भुवि येन नान्यः कश्चिन्मनो हरति नाथ भवांतरेपि ।। २१ ।। स्त्रीणां शतानि शतशो जनयति पुत्रान्, नान्या सुखदुपमं जननी प्रसूता || सर्वा दिशो दधति भानि सहस्रररिंम, प्राच्येव दिग्जनयति स्फुरदंशुजालम् ॥ २२ ॥ त्वामामनंति मुनयः परमं पुमांसमादित्यवर्णममलं तमसः परस्तात् ॥ नामेव सम्यगुपलभ्य जयंति मृत्युं नान्यः शिवः शिवपदस्य मुनींद्र पंथाः ॥ २३ ॥ त्वामव्ययं विभुमर्चित्यम संख्यमाद्यं ब्रह्माणमीश्वरमनंतमनंगकेतुम् || योगीश्वरं विदितयोगमनेकमेकं, ज्ञानस्वरूपममलं वदति संतः ॥ २४ ॥ बुद्धस्त्वमेव विबुधार्चितबुद्धिबोधात् त्वं शंकरोऽसि भुवनत्रयशंकरत्वात् ॥ धातासि धीर शिवमार्गविधेर्विधानात् व्यक्तं त्वमेव भगवन् पुरुषोत्तमोऽसि ।। २५ ।। तुभ्यं नमस्त्रिभुवनार्त्तिहराय नाथ, तुभ्यं नमः क्षितितलामलभूषणाय ॥ तुभ्यं नमस्त्रिजगतः परमेश्वराय, तुभ्यं नमो जिन भोदधिशोषणा ।। २६ ।। को विस्मयोऽत्र यदि नाम गुणैरशेषै, स्त्वं संश्रितो निरवकाशतया मुनीश || दोषैरुपात्त विविधाश्रयजातगर्वैः, स्वप्नांतरेऽपि न कदाचिद पीक्षितोऽसि ।। २७ ।। उच्चैरशोकतरुसंश्रितमुन्मयूखमाभाति रूपममलं भवतो नितांतम् ॥ स्पष्टोल्लसत्किरणमस्ततमो वितानं बिंबं रवेरिव पयोधरपार्श्ववर्त्ति " , For Private And Personal Use Only Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ २८ ॥ सिंहासने मणिमयूखशिखा विचित्रे, विभ्राजते तव वपुः कनकावदातम् ॥ त्रिंबं वियद्विलसदंशुलतावितानं, तुंगोदयाद्रिशिरसीव सहस्ररश्मेः ॥ २९ ॥ कुंदावदातचलचामरचारुशोभ विभ्राजते तब वपुः कलधौतकांतम् ॥ उद्यच्छशांकशुचिनिझरवा. रिधार, मुच्चैस्तदं सुरगिरेरिव शातकौंभम् ॥३०॥ छत्रत्रयं तव विभाति शशांककांत, मुच्चैःस्थितं स्थगितभानुकरप्रतापम् ॥ मुक्ताफलप्रकरजालविवृद्धशोभ, प्रख्यापयत्रिजगतः परमेश्वरत्वम् ॥ ३१॥ उनिद्रहेमनवपंकजपुंजकांति, पर्युल्लसन्नखमयूखशिखाभिरामौ ॥ पादौ पदानि तव यत्र जिनेंद्र धत्तः, पमानि तत्र विबुधाः परिकल्पयंति ॥ ३२ ॥ इत्थं यथा तब विभूतिरभूजिनेंद्र, धर्मोपदेशनविधौ न तथा परस ॥ यादृक् प्रभा दिनकृतः प्रहतांधकारा, तादृकुतो ग्रहगणस्य विकाशिनोऽपि ॥ ३३ ॥श्योतन्मदाविलविलोलकपोलमूल, मत्तभ्रमभ्रमरनादविवृद्धकोपम् ॥ ऐरावताभमिभमुद्धतमापतंतं, दृष्ट्वा भयं भवति नो भवदाश्रितानाम् ॥ ३४ ॥ मिन्नेभकुंभगलदुज्वलशोणिताक्त, मुक्ताफलप्रकरभूषितभूमिभागः ॥ बद्धक्रमः क्रमगतं हरिणाधिपोऽपि, नाकामति क्रमयुगाचलसंश्रितं ते ॥ ३५ ॥ कल्पांतकालपवनोद्धतवद्भिकल्पं, दावानलं ज्वलितमुज्वलमुत्स्फुलिंगम् ॥ विश्वं जिघत्सुमिव संमुखमापतंतं, त्वन्नामकीर्तनजलं शमयत्यशेषम् ॥ ३६ ॥ रक्तक्षणं समदकोकिलकंठनीलं, क्रोधोद्धतं फणिनमुत्फणमापतंतम् ॥ आक्रामति क्रमयुगेन निरस्तशंक, स्त्वन्नामनागदमनी हृदि यस्य पुंसः ॥ ३७॥ वल्गत्तुरंगगजगर्जितभीमनाद, माजौ बलं बलवतामपि भूपतीनाम् ॥ For Private And Personal Use Only Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ८६ ) उद्यदिवाकरमयूखशिखापविद्धं, त्वत्कीर्तनात्तम इवाशु मिदामुपैति ॥ ३८॥ कुंताग्रभिन्नगजशोणितवारिवाह, वेगावतारतरणातुरयोधमीमे ॥ युद्धे जयं विजितदुर्जयजेयपक्षा, स्त्वत्पादपंकजवनायिणो लभते ॥ ३९ ॥ अंभोनिधौ क्षुभितभीषणनकचक्र, पाठीनपीठभयदोल्वणवाडवामौ ॥ रंगत्तरंगशिखरस्थितयानपात्रास्वासं विहाय भवतः सरणाद्रजंति ॥ ४०॥ उद्भूतभीषणजलोद. रभारभुमाः, शोच्यां दशामुपगताच्युतजीविताशाः ॥ त्वत्पादपकजरजोमृतदिग्धदेहा, मां भवंति मकरध्वजतुल्यरूपाः ॥४१॥ आपादकंठमूरुशृंखलवेष्टितांगा, गाढं बृहनिगडकोटिनिघृष्टजंघाः ॥ त्वन्नाममंत्रमनिशं मनुजाः सरंतः, सद्यः स्वयं विगतबंधभया भवंति ॥ ४२ ॥ मत्तद्विद्रमृगराजदवानलाहि, संग्रामवारिधिमहोदरबंधनोत्थम् । तसाशु नाशमुपयाति भयं भियेव, यस्तावकं स्तवमिमं मतिमानधीते ॥४३॥ स्तोत्रस्रजं तब जिनेंद्र गुणैर्निबद्धां, भक्त्या मया रुचिरवर्णविचित्रपुष्पाम् ॥ धत्ते जनो य इह कंठगतामजस्रं, तं मानतुंगमवशा समुपैति लक्ष्मीः ॥४४॥ इति भक्तामरस्तोत्रं संपूर्णम् ॥ ॥भो भो भव्याः शृणुत वचनं प्रस्तुतं सर्वमेतत् , ये यात्रायां त्रिभुवनगुरोराहतां भक्तिभाजः ॥ तेषां शांतिर्भवतु भवतामझ्दादिप्रभावा, दारोग्यश्रीधृतिमतिकरी क्लेशविध्वंसहेतुः ॥१॥ भो भो भव्यलोका इह हि भरतैरावतविदेहसंभवानां, समस्ततीर्थकृतां जन्मन्यासनप्रकंपानन्तरमवधिना विज्ञाय सौधर्माधिपतिः सुघोपाघंटाचालनानन्तरं सकलसुरासुरेंद्रैः सह समागत्य सविनयमह For Private And Personal Use Only Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (८७) ब्रट्टारकं गृहीत्वा, गत्वा कनकाद्रिशृंगे, विहितजन्माभिषेकः, शान्तिमुद्घोषयति, ततोऽहंकृतानुकारमिति कृत्वा, महाजनो येन गतस्स पंथाः ॥ इति भव्यजनैः सह समागत्य, स्नात्रपीठे स्नात्रं विधाय, शान्तिमुद्घोषयामि ॥ तत्पूजायात्रास्त्रात्रादिमहोत्सवानन्तरं ॥ इति कृत्वा कर्ण दत्वा निशम्यतां स्वाहा ॥ ॐ पुण्याह २, प्रीयंतां २, भगवन्तोर्हन्तः, सर्वज्ञा सर्वदर्शिनः ॥ त्रैलोक्यनाथाः, त्रैलोक्यमहिताः, त्रैलोक्यपूज्याः, त्रैलोक्येश्वराः, त्रैलोक्योद्योतकराः, ॐ श्रीकेवलज्ञानी १, निर्वाणी २, सागर ३, महायश ४, विमल ५, सर्वानुभूति ६,श्रीधर ७, दत्त ८, दामोदर ९, सुतेजा १०, स्वामी ११, मुनिसुव्रत १२, सुमति १३, शिवगति १४, अस्ताग १५, नमीश्वर १६, अनिल १७, यशोधर १८, कृतार्थ १९, जिनेश्वर २०, शुद्धमति २१, शिवकर २२, स्यन्दन २३, संप्रति २४, एते अतीतचतुर्विंशति तीर्थंकराः ॥ॐ श्रीऋषभ १, अजित २, संभव ३, अभिनंदन ४, सुमति ५, पद्मप्रभ ६, सुपार्श्व ७, चंद्रप्रभ ८, सुविधि ९, शीतल १०, श्रेयांस ११, वासुपूज्य १२, विमल १३, अनन्त १४, धर्म १५, शान्ति १६, कुंथु १७, अर १८, मल्लि १९, मुनिसुव्रत २०, नमि २१, नेमि २२, पार्श्व २३, वर्द्धमान २४, एते वर्तमानजिनाः ॥ ॥ ॐ श्रीपद्मनाभ १, सुरदेव २, सुपार्थ ३, स्वयंप्रभ ४, सर्वानुभूति ५, देवश्रुत ६, उदय ७, पेढाल ८, पोहिल ९, शतकीर्ति १०, सुव्रत ११, अमम १२, निष्कषाय १३, निष्पुलाक For Private And Personal Use Only Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ८८ ) १४, निर्मम १५, चित्रगुप्त १६, समाधि १७, संवर १८, यशो - धर १९, विजय २०, मल्लि २१, देव २२, अनन्तवीर्य २३, भद्रंकर २४. एते भावितीर्थंकरा : जिना : ॥ शान्ताः शान्तिकरा भवंतु, मुनयो मुनिप्रवरा रिपुविजयदुर्भिक्षकान्तारेषु दुर्गमार्गेषु रक्षंतु वो नित्यं ॥ ॐ श्रीनाभि १, जितशत्रु २, जितारि ३, संवर ४, मेघ ५, घर ६, प्रतिष्ठ ७, महसेननरेश्वर ८, सुग्रीव ९, दृढरथ १०, विष्णु ११, वसुपूज्य १२, कृतवर्म १३, सिंहसेन १४, भानु १५, विश्वसेन १६, सूर १७, सुदर्शन १८, कुंभ १९, सुमित्र २०, विजय २१, समुद्रविजय २२, अश्वसेन २३, सिद्धार्थ ॥ २४ ॥ इति वर्त्तमान चतुर्विंशतिजिनजनकाः || ॐ श्रीमरुदेवा १, विजया २, सेना ३, सिद्धार्था ४, सुमंगला ५, सुसीमा ६, पृथिवीमाता ७, लक्ष्मणा ८, रामा ९, नंदा १०, विष्णु ११, जया १२, श्यामा १३, सुयशा १४, सुत्रता १५, अचिरा १६, श्री १७, देवी १८, प्रभावती १९, पद्मावती २०, वप्रा २१, शिवा २२, वामा २३, त्रिशला २४ ॥ इति वर्त्तमानजिनजनन्यः ॥ ॐ गोमुख १, महायक्ष २, त्रिमुख ३, यक्षनायक ४, तुंबुरु ५, कुसुम ६, मातंग ७, विजय ८, अजित ९, ब्रह्मा १०, यक्षराज ११, कुमार १२ षण्मुख १३, पाताल १४, किन्नर १५, गरुड १६, गंधर्व १७, यक्षराज १८, कुबेर १९, वरुण २०, भृकुटि २१, गोमेध २२, पार्श्व २३, ब्रह्मशांति २४ ॥ इति वर्त्तमानजिनयक्षाः ॥ For Private And Personal Use Only Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ८९ ) ॥ ॐ चक्रेश्वरी १, अजितवला २, दुरितारि ३, काली ४, महाकाली ५, श्यामा ६, शांता ७, भृकुटि ८, सुतारका ९, अशोका १०, मानवी ११, चंडा १२, विदिता १३, अंकुशा १४, कंद १५, निर्वाणी १६, वला १७, धारिणी १८, धरणप्रिया १९, नरदत्ता २०, गांधारी २१, अंबिका २२, पद्मावती २३, सिद्धायिका २४, एता वर्त्तमानचतुर्विंशतितीर्थंकरशासनदेव्यः ॥ ॐ ह्रीं श्री धृति, कीर्ति, कांति, बुद्धि, लक्ष्मी, मेधा, विद्या, साधन, प्रवेश निवेशनेषु, सुगृहीतनामानो जयंति ते जिनेंद्राः ॥ ॐ रोहिणी १, प्रज्ञप्ति २, वज्रशृंखला ३, वज्रांकुशा ४, चक्रेश्वरी ५, पुरुषदत्ता ६, काली ७, महाकाली ८, गौरी ९, गांधारी १०, सर्वास्त्रमहाज्वा - ला ११, मानवी १२, वैरोट्या १३, अच्छुप्ता १४, मानसी १५, महामानसी १६, एताः षोडश विद्यादेव्यो रक्षंतु मे खाहा ॥ ॐ आचार्योपाध्यायप्रभृति चातुर्वर्ण्यस्य श्री श्रमण संघस्य शांतिर्भवतु, ॐ तुष्टिभवतु पुष्टिर्भवतु ॥ ॐ ग्रहाचंद्रसूर्यांगारकबुधबृहस्पतिशुक्रशनैश्चराहु केतुसहिताः सलोकपालाः सोमयमवरुणकुबेरवासवादित्यस्कदविनायका ये चान्येऽपि ग्रामनगरक्षेत्र देवतादयस्ते सर्वे प्रीयंतां ॥ २ ॥ अक्षीणकोशकोष्ठागारा नरपतयश्च भवंतु स्वाहा ॐ पुत्रमित्रभ्रातृकलत्रसुत्दृत्स्वजनसंबंधिबंधुवर्गसहिताः नित्यं चामोदप्रमोदकारिणो भवंतु ॥ असिंव भूमंडले आयतननिवासिनां साधुसाध्वीश्रावक श्राविकाणां, रोगोपसर्गव्याधिदुःखदौर्मनस्योपशमनाय शान्तिर्भवतु ॐ तुष्टिपुष्टिऋद्धिवृद्धिमाङ्गल्योत्सवाः भवंतु ॥ सदाप्रादुर्भूतानि दुरितानि पापानि शाम्यंतु शत्रवः पराङ्मुखा भवंतु For Private And Personal Use Only Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (९०) स्वाहा ।। श्रीमते शान्तिनाथाय, नमः शान्तिविधायिने । त्रैलोक्यस्यामराधीश, मुकुटाभ्यर्चितांघ्रये ॥१॥ शान्तिः शान्तिकरः श्रीमान् , शान्ति दिशतु मे गुरुः ॥ शान्तिरेव सदा तेषां, येषां शांतिगृहे गृहे ॥२॥ ॐ उन्मृष्टरिष्टदुष्टग्रहगतिदुःस्वप्नदुर्निमित्तादि ॥ संपादितहितसंपत् , नामग्रहणं जयति शांते ॥ ३ ॥ श्रीसंघपौरजनपद, राजाधिपराजसंनिवेशानाम् ॥ गोष्ठिपुरमुख्यानां, व्याहरणैाहरेच्छांतिम् ॥ ४ ॥ श्रीश्रमणसंघस्य शांतिर्भवतु, श्रीपौरलोकस्य शांतिर्भवतु श्रीजनपदानां शांतिर्भवतु, श्रीराजाधिपानां शांतिर्भवतु, श्रीराजसंनिवेशानां शांतिर्भवतु, श्रीगोष्ठिकानां शांतिर्भवतु, ॐ स्वाहा ॥ २ ॥ ॐ ही श्री पार्श्वनाथाय स्वाहा ।। एषा शांतिः प्रतिष्ठायात्रास्नात्रावसानेषु, शांतिकलशं गृहीत्वा कुंकुमचंदनकर्पूरागरुधूपवासकुसुमांजलिसमेतः, मात्रपीठे श्रीसंघसमेतः शुचिः शुचिर्वपुः पुष्पवस्त्रश्चंदनाभरणालंकृतः, चंदनतिलकं विधाय पुष्पमालां कंठे कृत्वा, शांतिमुद्घोषयित्वा शांतिपानीयं मस्तके दातव्यमिति ॥ नृत्यंति नृत्यं मणिपुष्पवर्ष, सृजति गायति च मंगलानि ॥ स्तोत्राणि गोत्राणि पठंति मंत्रान् , कल्याणभाजो हि जिनाभिषेके ॥ १ ॥ अहं तित्थयरमाया, शिवादेवी तुह्म नयरनिवासिनी ॥ अह्म शिवं तुझ शिवं असुहोवसमं शिवं भवतु खाहा ॥२॥ शिवमस्तु सर्वजगतः, परहितनिरता भवंतु भूतगणाः ।। दोषाः प्रयांतु नाशं, सर्वत्र सुखी भवंतु लोकाः ॥३॥ उपसर्गाः क्षयं यांति छिद्यते विनवल्लयः ॥ मनः प्रसन्नतामेति, पूज्यमाने जिनेश्वरे ॥ ४ ॥ इति श्रीवृद्धशांतिः समाप्ता ॥ For Private And Personal Use Only Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ९१ ) ॥ ॐ ही श्री अहँ अर्हद्भ्यो नमोनमः, ॐ ही श्री अहं सिद्धेभ्यो नमोनमः ॥ ॐ ह्री श्री अहं आचार्येभ्यो नमोनमः ॥ ॐ ह्री श्री अर्ह उपाध्यायेभ्यो नमोनमः ॐ ही श्री अर्ह श्रीगौतमस्वामिप्रमुखसर्वसाधुभ्यो नमोनमः ॥१॥ एष पंच नमस्कारः, सर्वपापक्षयंकरः ॥ मंगलानां च सर्वेषां, प्रथमं भवति मंगलं ॥२॥ ॐ ह्री श्री जयेविजये, अहं परमात्मने नमः ॥ कमलप्रभसूरींद्रो, भाषते जिनपंजरम् ॥३॥ एकभक्तोपवासेन, त्रिकालं यः पठेदिदं ॥ मनोभिलषितं सर्व, फलं स लभते ध्रुवं ॥ ४॥ भूशय्या ब्रह्मचर्येण, क्रोधलोभविवर्जितः ॥ देवताग्रे पवित्रात्मा, षण्मासैर्लभते फलं ॥५॥ अर्हतं स्थापयेन्मूर्ध्नि, सिद्धं चक्षुर्ललाटके ॥ आचार्य श्रोत्रयोर्मध्ये, उपाध्यायं तु घ्राणके ॥६॥ साधुवृन्दं मुखस्याग्रे, मनः शुद्धं विधाय च ॥ सूर्यचंद्रनिरोधेन, सुधीः सर्वार्थसिद्धये ॥७॥ दक्षिणे मदनद्वेषी, वामपार्श्वे स्थितो जिनः।। अंगसंधिषु सर्वज्ञः, परमेष्ठी शिवंकरः ॥ ८॥ पूर्वाशां श्रीजिनो रक्षे, दाग्नेयीं विजितेंद्रियः ॥ दक्षिणाशां परं ब्रह्म, नैर्ऋतिं च त्रिकालवित् ॥ ९॥ पश्चिमाशां जगन्नाथो, वायवीं परमेश्वरः॥ उत्तरां तीर्थकृत् सर्वा, नींशानी च निरंजनः ॥१०॥ पातालं भगवानह, नाकाशं पुरुषोत्तमः ॥ रोहिणीप्रमुखा देव्यो रक्षंतु सकलं कुलं ॥ ११ ॥ ऋषभो मस्तकं रक्षे, दजितोपि विलोचने ॥ संभवः कर्णयुगलं, नासिकां चाभिनंदनः ॥ १२॥ ओष्ठौ श्रीसुमती रक्षेत्, दंतान्पद्मप्रभो विभुः ॥ जिह्वां सुपार्श्वदेवोयं, तालु चंद्रप्रभो विभुः ॥ १३ ॥ कंठं श्रीसुविधी रक्षेत्, हृदयं श्रीसुशीतलः ॥ For Private And Personal Use Only Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ९२ ) श्रेयांसो बाहुयुगलं, वासुपूज्यः करद्वयं ॥ १४ ॥ अंगुलीविमलो रक्षे, दनंतोऽसौ स्तनावपि ॥ सुधर्मोप्युदरास्थीनि, श्रीशांति - भिमंडलं ॥ १५ ॥ श्रीकुंथुर्गुह्यकं रक्षे, दरो रोमकटीतटं ॥ मल्लिरूरूपृष्ठिवंशं, जंघे च मुनिसुव्रतः ॥१६॥ पादांगुलीनमी रक्षेत्, श्रीनेमिश्चरणद्वयं ॥ श्रीपार्श्वनाथः सर्वांगं, वर्द्धमानश्चिदात्मकं ॥१७॥ पृथिवी जलतेजस्क, वाय्वाकाशमयं जगत् ॥ रक्षेदशेषपापेभ्यो, वीतरागो निरंजनः ॥ १८ ॥ राजद्वारे श्मशाने वा, संग्रामे शत्रुसंकटे ॥ व्याघ्रचौराग्निसर्यादि, भूतप्रेत. भयाश्रिते ॥ १९ ॥ अकालमरणे प्राप्ते, दारिद्रयापत्समाश्रिते ॥ अपुत्रत्वे महादोषे, मूर्खत्वे रोगपीडीते ॥२०॥ डाकिनी शाकिनीग्रस्ते, महाग्रहगणार्दिते ॥ नद्युत्तारेऽध्ववैषम्ये, व्यसने चापदि स्मरेत् ॥ २१॥ प्रातरेव समुत्थाय, यः सरेजिनपंजरं ॥ तस्य किंचिद्भयं नास्ति, लभते सुखसंपदं ॥ २२ ॥ जिनपंजरनामेदं, यः सरंत्यनुवासरं ॥ कमलप्रभराजेंद्र श्रियं स लभते नरः ॥२३॥प्रातः समुत्थाय पठेत् कृतज्ञो, यः स्तोत्रमेतजिनपंजराख्यं ।। आसादयेत्सः कमलप्रभाख्या, लक्ष्मी मनोवांछितपूरणाय ॥ २४ ॥ श्रीरुद्रपल्लीयवरेण्यगच्छे, देवप्रभाचार्य्यपदाजहंसः ॥ वादीद्रचूडामणिरेप जैनो, जीयाद् गुरुः श्रीकमलप्रभाख्यः ॥२५॥ इति श्रीजिनपंजरस्तोत्रं संपूर्णम् ॥ ॥ चोपाई ॥श्रावक तुं ऊठे परभात, च्यारघडीले पाछली रात ॥ मनमां समरे श्रीनवकार, जिम पामे भवसायरपार ॥१॥ कवण देवने कवण गुरुधर्म, कवण अमारु छ कुलकर्म, कवण अमारो छे For Private And Personal Use Only Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ९३ ) व्यवसाय, एबुं चिंतवजे मनमाय ॥२॥ सामायिक लेजे मन शुद्ध, धर्मनी हैडे धरजे बुद्ध ॥ पडिकमणुं करे रयणी तणुं, पातक आलोये आपणुं, ॥ ३॥ कायाशक्ते करे पच्चरकाण, सूधि पाले जिनवर आण ॥ भणजे गुणजे स्तवन सज्झाय, जिणहूंती निस्तारो थाय ॥ ४ ॥ चीतारे नित्य चउदे नीम, पाले दया जीवतां सीम ॥ देहरे जाइ जुहारे देव, द्रव्यभावथी करजे सेव ॥५॥ पोसालें गुरुवंदन जाय, सुणो वखाण सदा चित्तलाय ॥ निर्दूषण सूजतो आहार, साधुने देजे सुविचार ॥ ६॥ साहम्मिवत्सल करजे घणां, सगपण महोटा साहमीतणां ॥ दुःखीया हीणा दीनां देखि, करजे तास दया सुविशेष ।। ७॥ घर अनुसार देजे दान, महोटाशुं म करे अभिमान ॥ गुरुने मुखे लेजे आंखडी, धर्म न मूकीश एके घडी ॥८॥ वारु शुद्ध करे व्यापार, ओछा अधिकानो परिहार ॥ म भरिश केनी कूडी साख, कूडा जनशुं कथन म भाख ॥९॥ अनंतकाय कहीये बत्रीश, अभक्ष्य वावीशे विश्वावीश ॥ ते भक्षण नवि कीजें किमे, काचां कवला फल मत जिमे ॥ १० ॥ रात्रिभोजनना बहु दोष, जाणीने करजे संतोष ॥ साजी साबू लोहने गुली, मधु धावडी मत वेचो वली ॥ ११ ॥ वली म करावे रंगण पास, दूषण घणां कह्यां छे तास ॥ पाणी गलजे वे बे वार, अणगल पीतां दोष अपार ॥ १२ ॥ जीवाणीनां करजे यतन्न, पातक छंडी करजे पुण्य ॥ छाणां इंधण चूले जोय, वावरजे जिम पाप न होय ॥ १३ ॥ घृतनी परें वावरजे नीर, अणगल नीरमधोइश चीर ॥ ब्रह्मवत मधु पालजे, अतिचार For Private And Personal Use Only Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ९४ ) सघला टालजे ॥१४ ॥ कह्यां पनरे कर्मादान, पाप तणी परहरजे खाण ॥ किशु म लेजे अनरथ दंड, मिथ्या मेल म भरजे पिंड ॥ १५ ॥ समकित शुद्ध हैडे राखजे, बोल विचारीने भाखजे ।। पांच तिथि म करो आरंभ, पालो शीयल तजो मन दंड ॥ १६ ॥ तेलतक्रघृतदूधने दहि, ऊघाडा मतमेलो सही ॥ उत्तमठामें खरचो वित्त, परउपगार करो शुद्धचित्त ।। १७ ॥ दिवसचरिमकरजे चोविहार, चारे आहार तणो परिहार ॥ दिवस तणां आलोए पाप, जिम भांजे सघला संताप ॥ १८ ॥ संध्यायें आवश्यक साचवे, जिनवरचरणशरणभव भवें ॥ चारेशरणकरी दृढहोय; सागारीअणसणले सोय ॥ १९ ॥ करे मनोरथमनएहवा, तीरथशत्रुजे जायवा ॥ समेतशिखर आबू गिरनार, भेटीश हुँ धन धन अवतार ॥ २० ॥ श्रावकनी करणी छे एह, एहथी थाये भवनो छेह ॥ आठे कर्म पडे पातलां, पापतणां छूटे आमला ॥२१॥ वारु लहियें अमर विमान, अनुक्रमें पामे शिवपुरधाम ॥ कहे जिनहर्ष घणे ससनेह, करणी दुःखहरणीछे एह ॥ २२ ॥ इतिश्रीश्रावकनी करणी सं०॥ ॥ अथ सेजुजरास ॥ ॥ श्रीरिसहेसरपायनमी ॥ आणी मन आनंद ॥ रासभ' रलियामणो ॥ सेजुजैनो सुखकंद ॥१॥ संवतच्यार सतोतरै । हुवा धनेसरसूर ॥ तिणसेनंजमहातमकियो ॥ शिलादित्य हजूर ॥२॥ वीरजिणंदसमोसर्या ॥ सेजऊपरजेम ॥ इन्द्रादिक आ For Private And Personal Use Only Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (९५) गलिकह्यो । सेजैमाहातमएम ॥ ३॥ सेर्जेज तीरथ सारिषो ॥ नहीछे तीरथ कोय, स्वर्गमृत्यु पातालमै ॥ तीरथसगलाजोय ॥४॥ नामै नवनिधि संपजै ॥ दीठां दुरितपुलाय ॥ भेटतां भवभयटलै ॥ सेवंतां सुख थाय ॥५॥ जंबूनामैदीपए, दक्षिणभरत मझार ॥ सोरठ देस सुहामणो ॥ तिहां छै तीरथसार ॥६॥ ढाल पहिली: रामगिरि ॥ सेजोने श्रीपुंडरीक ॥ सिद्धक्षेत्रकहुं तहतीक ॥ विमलाचलने करूं परणाम ॥ ए सेजैना इकवीसनांम ॥१॥ सुरगिरिने महागिरि पुन्यरास ॥ श्रीपदपर्वत इंद्रप्रकास । महातीरथ पूरवे सुखकाम ए० ॥२॥ सासतोपर्वतने दृढशक्ति ॥ मुक्तिनिलो तिणकीजैभक्ति ॥ पुष्पदंत महापदम सुठाम ॥ ए० ॥ ३॥ पृथ्वीपीठ सुभद्र कैलाश ॥ पातालमूल अकर्मकतास । सर्वकाम कीजै गुणग्राम ॥ ए० ॥ ४ ॥ श्रीसेजुजैनाइकवीसनाम ॥ जपैजे वेठाअपणैठांम ॥ सेजुजैजाबानो फललहै ॥ महावीर भगवंत इमकहै ॥ ५॥ दुहा ॥ सेजुजो पहिलैअरै असीजोयणपरमाण ॥ पिठुलो मूल ऊंच पण ॥ छवीसजोयण जाण ॥१॥ सित्तरजोयण जाणवो ॥ बीजै अविशाल ॥ वीसजोयण ऊंचो कह्यो ॥ मुजवंदणा त्रिकाल ॥२॥ साठजोयणतीजै अरै ॥ पिहलो तीरथराय ॥ सोलजोयण ऊंचो सही ॥ ध्यान धरूं चितलाय ॥ ३ ॥ पचासजोयण पिहुलपण ॥ चोथै अरै मझार ।। ऊंचो दस जोयण अचल । नितप्रणमें नरनार ॥ ४ ॥ वारजोयण पंचम अरै ॥ मूलतणै विस्तार ।। दोजोयण ऊंचो अछै ॥ सेजो तीरथ सार ॥५॥ सातहाथ छठे औरै ॥ पिडुलो परवतएह ॥ For Private And Personal Use Only Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ९६ ) ऊंचो होस् सधनुष || सासतो तीरथ एह ॥ ६ ॥ ढाल || जिनवरखं मेरोमनलीणो एदेशी || केवलज्ञानी प्रमुखतीर्थकर || अनंत सीधाइणठामरे | अनंतवली सीझसे इण्ठामै || तिण करू नित परणामरे ॥ १ ॥ सेजैसाधु अनंतासीधा || सीझसीवलीय अनंतरे ॥ जिणसेज तीरथ नही भेट्यो | ते गरभावासकहंतरे || सेनुंज • || २ || फागुण सुदि आठमने दिवसे || ऋषभदेव सुखकाररे ॥ रायणरूख समोसर्या स्वामी || पूरवनिनां बाररे ॥ से० ॥ ३ ॥ भरतपुत्र चैत्री पूनमदिन || इणसेलुंज गिरिआयरे || पांचकोडीं पुंडरीकसीधा || तिण पुंडरीक कहायरे || से० ॥ ४ ॥ नमि विनमि राजा विद्याधर || बेबेकोडी संघातरे || फागुणसुदि दशमी दिन सीधा || तिणप्रण परभातरे || से० ।। ५ ।। चैत्रमासवदि चउदसने दिन || नमिपुत्री चौसट्ठिरे || अणसणकरि सेर्भुजैगिरि ऊपर ॥ ए सहुसीधा एकट्ठिरे ॥ से० ।। ६ ।। पोतरा प्रथम तीर्थकर केरा ॥ द्रावडने वारिखिल्लारे ॥ कातीसुदि पूनम दिनसीधा ॥ दस कोडिसुं मुनिशिल्लरे ॥ से० ॥ ७ ॥ पांचे पांडव इणगिरिसीधा || नवनारद रिषिरायरे ॥ संव प्रद्युम्न गयाइहां मुगतै ॥ आठे करम खपायरे || से० || ८ || नेमिविना तेवीसतीर्थकर || समोसर्या गिरिशृंगरे || अजित शांति तीर्थंकरवेऊं ॥ रह्या चोमासोरंगरे || से० ॥ ९ ॥ सहससाधु परिवार संघातै ॥ थावच्चा aarat | पांचसे साधु सेलगमुनिवर || सेनुजै सिवसुख लाधरे || से० || १० || असंख्याता मुनि सेनुंजैसीधा | भरतेसरनें पाढरे || राम अनें भरतादिक सीधा || मुक्तितणी एवाटरे ॥ से० ॥ For Private And Personal Use Only Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (९७) ॥ ११ ॥ जालिमयालीनेउवयाली ॥ प्रमुखसाधुनीकोडिरे ॥ साधुअनंता से@जैसीधा, प्रणमुंबेकरजोडिरे ॥ से० ॥१२॥ ढाल चोपाईनी ॥ सेचुंजैना कहुं सोलउद्धार ॥ ते सुणिज्यो सहुको सुविचार ॥ सुणतां आणंद अंगनमाय ॥ जनमजनमना पातिकजाय ॥१॥ रिषभदेव अयोध्यापुरी ॥ समवसर्यास्वामी हितकरी ॥ भरतगयो बंदणनै काज ॥ ये उपदेश दियोजिनराज ॥२॥ जगमाहै मोंटा अरिहंतदेव ॥ चौसठइंद्रकरै जसुसेव ॥ तेहथी मोटो संघकहाय ॥ जेहनें प्रणमें जिनवरराय ॥३॥ तेहथी मोटो संघवीकयो ॥ भरतसुणीनेंमनगहगह्यो ॥ भरत कहै ते किमपामियै ॥ प्रभु कहै सेव॒जै जात्राकियै ॥४॥ भरत कहै संघवीपदमुझ ॥ थेआपो हुंअंगजतुझ ॥ इंद्राण्या अक्षतवास ॥ प्रभुआपै संघवीपदतास ॥५॥ इंद्रे तिणवेला ततकाल ॥ भरत सुभद्रा विहुँनैमाल ॥ पहिरावी घरसंप्रेडिया ॥ सखरसोनाना रथआपिया ॥ ६ ॥ ऋषभदेवनी प्रतिमावली ॥ रत्नतणी दीधी मनरली ॥ भरतै गणधरघरतेडिया ॥ सांतिक पोष्टिक सहु तिहां किया ॥ ७ ॥ कंकोत्री मुंकी सहुदेस ॥ भरत तेडायो संघ असेस ॥ आयो संघ अयोध्यापुरी ॥ प्रथमथकी रथजात्राकरी ॥ ८॥ संघभगतिकीधी अतिघणी ॥ संघ चलायो सेजभणी ॥ गणधर बाहूबलिकेवली ॥ मुनिवरकोडि साथेलियावली ॥९॥ चक्रवर्तिनी सगली रिद्धि ॥ भरतें साथे लीधीसिद्धि ॥ हयगयरथपायकपरिवार ॥ तेतो कहतां नावैपार ॥१०॥ भरतेसरसंघवी कहवाय ॥ मारगचैत्य उधरतो ७ श्रा० नि. For Private And Personal Use Only Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (९८) जाय ॥ संघ आयो सेबूंजे पास ॥ सहनीपूगी मननी आस ॥११॥ नयणे निरख्यो सेजुजराय ॥ मणि माणक मोत्यांसुं वधाय ॥ तिण ठामै रही महोछवकियो ॥ भरते आणंदपुरवासियो ॥१२॥ संघसेजै ऊपरचढ्यो ॥ फरसंता पातिक झडपड्यो । केवल ज्ञानी पगलां तिहां ॥ प्रणम्यारायण रूखछै जिहां ॥ १३ ॥ केवलज्ञानी सनात्र निमित्त ॥ ईशानेंद्र आणी सुपवित्त ॥ नदी से सोहामणी ॥ भरतें दीठी कौतुकभणी ॥ १४ ॥ गणधरदेवतणे उपदेश ॥ इंट्रैवलिदीधो आदेस ॥ श्रीआदिनाथतणो देहरो॥ भरतकरायो गिरिसेहरो ॥ १५॥ सोनानो प्रासाद उत्तंग ॥ रतन तणी प्रतिमा मनरंग ॥ भरतै श्रीआदीसरतणी ॥ प्रतिमा थापी सोहामणी ॥ १६ ॥ मरुदेवानी प्रतिमाभली ॥ माहीपूनिम थापीरली ॥ ब्राह्मी सुंदरी प्रमुखप्रासाद ॥ भरतै थाप्या नवलैनाद ॥ १७ ॥ इम अनेक प्रतिमाप्रासाद ॥ भरतकराया गुरुसुप्रसाद ॥ भरत तणो पहिलो उद्धार ॥ सगलोही जाणै संसार ॥ १८ ॥ ढाल सिंधूडो (आसाउरी)॥ भरत तणे पाटै आठमे ॥ दंडवीरज थयो रायोजी । भरततणीपरै संघकीयो । सेर्बुजसंघवी कहायोजी ॥१॥ सेठेजै उद्धार सांभलो ॥ सोलमोटा श्रीकारोजी ॥ असंख्यात वीजावली ॥ तेह न कहुं अधिकारोजी ॥ से० ॥२॥ चैत्यकरायो रूपातणो॥ सोनानो बिंबसारोजी॥ मूलगोबिंवभंडारीयो॥पच्छिमदिशि तिणवारोजी ॥ से० ॥३॥ सेव॒जैनी जात्रा करी ॥ सफलकियो अवतारोजी॥दंडवीरज राजातणो॥ए वीजो उद्धारोजी ॥ से०॥४॥ सोसागरोपमा वितिक्रम्या ॥ दंडवीरजथी जिवारोजी ॥ ईशानें For Private And Personal Use Only Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ९९ ) द्रकरावीयो ॥ एतीजो उद्धारोजी ॥ से० ॥५॥ चोथादेव लोकनो धणी ॥ माहेंद्र नाम उदारोजी ॥ तिण सेबुजैनो करावीयो ॥ एचोथो उद्धारोजी ॥ से० ॥६॥ पांचमादेवलोकनो धणी ॥ ब्रौंद्र समकितधारोजी ॥ तिणसेजुजैनो करावीयो । ए पांचमो उद्धारोजी ॥ से० ॥ ७ ॥ भुवनपती इंद्रनोकीयो॥ ए छठो उद्धारोजी ॥ चक्रवर्तिसगरतणोकीयो । ए सातमो उद्धारोजी ॥ से० ॥ ८॥ अभिनंदन पासै सुण्यो । सेर्बुजैनो अधिकारोजी ॥ व्यंतरइंद्र करावीयो ॥ ए आठमोउद्धारोजी ॥ से० ॥९॥ चंद्रप्रभु स्वामिनो पोतरो ॥ चंद्रशेखर नाममल्हारोजी ॥ चंद्रजसरायकरावीयो॥ ए नवमो उद्धारोजी ॥ से० ॥१०॥ शांतिनाथनी सुणीदेशना ॥ शांतिनाथ सुत सुविचारोजी ॥ चक्रधरराय करावीयो । ए दशमो उद्धारोजी ॥ से० ॥ ११॥ दशरथसुत जग दीपतो ॥ मुनिसुव्रत स्वामी वारोजी ॥ श्रीरामचंद्र करावीयो ॥ ए इग्यारमो उद्धारोजी ॥ से० ॥ १२ ॥ पांडव कहै अम्हे पापीया ॥ किम छूटां मोरी मायो जी ॥ कहै कुंती सेनूंजतणी । यात्रा कीयां पाप जायोजी ॥ से० ॥ १३ ॥ पांचे पांडव संघ करी । सेज भेट्यो अपारोजी । काष्टचैत्य बिंबलेपना । ए बारमो उद्धारोजी ॥ से० ॥ १४ ॥ मम्माणीपाषाणनी । प्रतिमा सुंदरसरूपोजी । श्रीसेव॒जैनो संघकरी । थापी सकलसरूपोजी ॥ से० ॥१५॥ अट्ठोत्तरसो वरसां गयां । विक्रमनृपथी जिवारोजी । पोरवाड जावड करावीयो । एतेरमो उद्धारोजी । से० ॥ १६ ॥ संवत बार तिडोत्तरै । श्रीमाली सुविचारोजी । वाहडदे मुहतै करावीयो । ए For Private And Personal Use Only Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१००) चवदमो उद्धारोजी ॥ से० ॥ १७ ॥ संवत तेरै इकोत्तरै ॥ देसल हर अधिकारोजी ॥ समरै साह करावीयो । ए पनरमो उद्धारोजी ॥ से० ॥ १८ ॥ संवतपनर सत्यासीयै ॥ वैसाखवदि सुभवारो जी ॥ करमेंडोसी करावीयो॥ए सोलमो उद्धारोजी । से० ॥१९॥ संप्रति कालै सोलमो॥ एवरतै छै उद्धारोजी॥ नित नित कीजे वंदना ॥पामीजै भवपारोजी ॥ से०॥ २० ॥ दुहा ॥ वलि सेज महातम कहुं ॥ सांभलो जिम छै तेम ॥ सूरि धनेसर इम कहै ।। महावीर कह्यो एम ॥१॥ जेहवो तेहवो दरसणी ॥ सेव॒जे पूजनीक । भगवंतनो वेसवांदतां ॥ लाभ हुवै तहतीक ॥ २ ॥ श्रीसेजेजा ऊपरै ॥ चैत्य करावै जेह ॥ दल परमाण समोलहै ॥ पल्योपम सुखतेह ॥३॥ सेज ऊपर देहरो॥ नवो नीपावैकोय ॥ जीर्णोद्धार करावतां ॥ आठ गुणों फल होय ॥ ४ ॥ सिरऊपरि गागर धरी ॥ स्नात्र करावै नारि ॥ चक्रवर्तिनी स्त्री थई ।। सिवसुख पामें सार ॥५॥ काती पूनिम सेर्बुजे ।। चढिनैं करै उपवास ।। नारकी सौसागर समो॥करै करमनो नास ॥ ६॥ काति परब मोटो कह्यो । जिहां सीधा दशकोड । ब्रह्म स्त्री बालक हत्या ।। पापथी नाखै छोड ॥ ७॥ सहसलाख श्रावग भणी ॥ भोजन पुन्य विशेष ॥ सेज साधु पडिलाभतां । अधिको तेहथी देख ॥ ८ ॥ ढाल ॥५॥ (धन २ अयवंतीसुकुमालनें एहनी) देशी ॥ सेजै गयां पाप छुटी यै ॥ लीजै आलोयण एमोजी ॥ तप जप कीजै तिहां रही। तीर्थकर कह्यो तेमोजी ॥१॥ से० ॥ जिण सोनानी चोरी करी ॥ ए आलोयणतासोजी ॥ चैत्रीदिन सेचुंज चढी । एक करै उपवासोजी For Private And Personal Use Only Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १०१ ) ॥ २ ॥ से० ॥ वस्तु तणी चोरी करी || सात आंबिल सुध थायोजी ॥ कातीसातदिन तपकीयां ॥ रतन हरण पाप जायो जी ॥ ३ ॥ से० ॥ कांसी पीतल तांबा रजतनी ॥ चोरी कीधी जेणोजी ॥ सात दिवस पुरमढ करें | तो छुटै गिरि एणोजी ॥ ४ ॥ से० ॥ मोती प्रवाला मूंगीया || जिण चोर्या नरनारोजी || आंविल करि पूजा करैं । त्रिणटंक सुद्ध आचारोजी ॥ ५ ॥ से० ॥ धान पाणी रसचोरीया ।। जे भेटै सिद्धक्षेत्रोजी ॥ सेज तलहटी साधुनें । पडिला मैं सुध चित्तोजी ॥६॥ से० ॥ वस्त्राभरण जिणें हर्या ।। ते छुटै इण मेलोजी || आदिनाथनी पूजा करै ॥ ग्रह उठी बहु वेलोजी ॥ ७ ॥ से० ॥ देवगुरुनो धनजे हरै ॥ ते सुद्ध थायें एमोजी || अधिको द्रव्य खरचै तिहां ॥। पात्र पोषे बहु प्रेमोजी || ८ || से० ॥ गाय भैंस घोडा मही ॥ गजनो चोरणहारोजी ॥ द्वै ते वस्तु तीरथै । अरिहंत ध्यान प्रकारोजी || ९ || से० || पुस्तक देहरा पारका || तिहां लिखे अपणो नामोजी ॥ छुटै छम्मासी तप कीयां ॥ सामायक तिणठामोजी ॥ १० ॥ कुंवारी परिवाजका सधव अथव गुरुनारोजी ॥ व्रतभांजे तिणनें को || छम्मासी तप सारोजी ॥ ११ ॥ से० ॥ गौ विप्र स्त्री बालक रिषि || एहनो घातक जेहोजी || प्रतिमा आगै आलोक्तां ॥ छुटै तप करि तेहोजी ॥ १२ ॥ से० ॥ (ढाल ६ कुंमरभलै आवीयौ ए ) ॥ एहनी ॥ संप्रतिकालै सोलमोए || ए बरतै छै उद्धार ॥ सेगुंज यात्रा करूंए | सफल करूं अवतार ॥ १ ॥ से० ॥ छहरी पालतां चालीयैए | सेडुंज केरी वाट || से० ॥ पालीताणे पोहचीये ए ॥ संघ मिल्यो बहुथाट ॥ २ ॥ से० ॥ ललित सरोवर पेषीयैए । For Private And Personal Use Only Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १०२ ) वलि सत्तानी वाव || से० ॥ तिहां विसरामो लीजियैए || वडने चौतरै आय || ३ || से० ॥ पालीताणे पाजडीए ॥ चढीयै उठि परभात || से० ॥ सेश्रुंज नदीय सोहामणीए । दुर थकी देखत ॥ ४ ॥ से० ॥ चढियै हिंगुलाजने हडैए | कलिकुंडनमीयै पास || से० ॥ वारी मांहे पैसीयैए | आणी अंग उल्लास ॥ ५ ॥ से० ॥ मरुदेवी ड्रंक मनोहरूए ॥ गजचढी मरुदेवी माय || से० ॥ शांतिनाथ जिनसोलमाए || प्रणमी जै तसुपाय || से० || ६ || वंसपोर वाडै परगडोर || सोमजी साह मल्हार || से० ॥ रूपजी संघ वी करावीयो ए ॥ चौमुख मूल उद्धार || से० ॥ ७ ॥ चौमुख प्रतिमा चरचीयैए || भमतीमांहि भला बिंब || पांचे पांडव पुजियैए । अदभुतआदि प्रलंब || से० ॥ ८ ॥ खरतर वसही खांतिसु ए ॥ बिंब जुहा अनेक || से० || नेमिनाथ चवरी नमुंए || टालूं अलग उद्वेग || से० ॥ ९ ॥ धरम दुवार माहेंनी सरुएं ॥ कुगति करूं अतिदुर || से० || आ आदिनाथ देहरैए ॥ करमकरूं चकचूर || से० १० ॥ मूलनायक प्रणमुदाए ॥ आदिनाथ भगवंत || से० ॥ देव जुहारुं देहरेए || भमतीमांहि भमंत॥ से० ॥ ११ ॥ सेजे ऊपर कीजीयेए || पांचे ठाम सनात्र || से० || कलश अठोत्तरसो करिए || निरमल नीरसुगात्र से० ॥ १२ ॥ प्रथम आदीसर आगलेए | पुण्डरीक गणधार से० ॥ रायण तलप गला नए || शांतिनाथ सुखकार || से० ॥ १३ ॥ रायण तल पगला नमुंए || चौमुख प्रतिमाच्यार ॥ से० ॥ बीजी भूमि बिंबावलीए । पुंडरीक गणधार || से० || १४ || सूरजकुंड निहालीयैए || अतिभली उल For Private And Personal Use Only Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १०३ ) काझोल || से० ॥ चेलणातलाई सिद्ध सिलाए ॥ अंग फरसुं उलोल || से ।। १५ ।। आदिपुर पाजैऊतरुंए || सिद्धवडलं विसरांम ॥ से० ॥ चैत्य प्रवाड इणपरि करीए || सीधा वंछित काम ॥ से० ॥ ॥ १६ ॥ जात्रा करी सेज तणीए || सफल कीयो अवतार || से० ॥ कुसल खेमसुं आवीयोए ॥ संघ सह परिवार ॥ से० ॥ ॥ १७ ॥ सेज रास सोहामणोए । सांभलज्यो सहुकोइ || से० ॥ घर बैठां भणे भावसुं ॥ तमु जात्र फल होइ ॥ १८ ॥ संवत सोल बयांसीयैए || सावण वदि सुखकार || से० ॥ रास भण्यो सेजतणोए || नगर नागोर मझार || से० || १९|| गिरुवो गच्छ खरतरतणोए || श्रीजिनचंदसूरीस || से० ॥ प्रथम शिष्य श्री पूजनाए । सकलचंद सुजगीस ॥ २० ॥ तास सीस जग जाणीयैए ॥ समयसुंदरउवझाय || से० ॥ रास रच्यो तिण रूवडोए सुणतां आनंद था | से० ॥ २१ ॥ इति श्री सेनुंजरास संपूर्णम् ॥ ॥ अथ गौतम स्वामीनो रास लिख्यते ॥ || वीर जिणेसरचरणकमलकमलाकयवासो, पणमवि पभणिसुं साम साल गोयमगुरुरासो || मणतणुवयण एकंत करवि निसुणहु भो भविया, जिम निवसे तुमदेहगेहगुणगण गह गहिया ॥ १ ॥ जंबूदीव सिरिभरह खित्तखोणीतलमंडण, मगह दे स से णियनरेस रिउदलबलखंडण || धणवरगुवर गाम नाम जिहां गुणगणसज्जा, विप्प बसे वसुभूइ तत्थ तसु पुहवीभञ्जा ॥ २ ॥ ताण पुत सिरिइंदभूइ भूयवलयपसिद्धो, चवदह विजा विविहरूव नारी For Private And Personal Use Only Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १०४ ) रस बुद्धो || विनय विवेक विचार सार गुणगणह मनोहर, सात हात सुप्रमाणदेह रूवहि रंभावर || ३ || नयणवयण कर चरण जणवि पंकजजलपाडिय, तेजहिं तारा चंद्र सूर आकास भमाडिय || रूहि मयण अनंगकरवि मेल्यो निरधाडिय, धीरममेरु गंभीर सिंधु चंगम चयचाडिय ॥ ४ ॥ पेखवि निरुवम रूवजास जण जंपे किंचिय, एकाकी किलमीत इत्थ गुण मेल्या संचिय ॥ अहवा निच्चयपुवजम्मजिणवर इण अंचिय, रंभा पउमा गवरी गंग रतिहां विधि वंचिय ॥ ५ ॥ नय बुध नयगुर कवि ण कोय जसु आगल रहियो, पंचसयां गुणपात्र छात्र हीडें परवरियो । कर निरंतर यज्ञ करम मिथ्यामति मोहिय, अणचलहोसे चरमनाण दंसह विसोहिय ॥ ६ ॥ वस्तु ॥ जंबूदीव जंबूदीव भरह वासंमि, खोणीतलमंडण, मगहदेस सेणियन रेसर, वरगुवरगाम तिहां, विप्पवसे वसुमुह, सुंदर तसु पुहवि भजा, सयलगुणगणरूवनिहाण, ताणपुत्त विज्जानिलो, गोयम अतिहि सुजाण ॥ ७ ॥ भास ॥ चरम जिणेसर केवलनाणी, चोविहसंघपट्टा जाणी || पावा पुर सामी संपत्तो, चउविह देव निकायहिँ जुत्तो ॥ ८ ॥ देवहि समवसरण तिहां कीजें, जिण दीठे मिथ्यामत छीजे | त्रिभुवनगुरु सिंहासन वेठा, तत्खिण मोह दिगंत पट्ठा ॥ ९ ॥ क्रोध मान माया मदपूरा, जाये नाठा जिम दिनचोरा || देव दुंदुभि आगासें वाजी, धरम नरेसर आव्यो गाजी ॥ १० ॥ कुसुमवृष्टि विरचै तिहां देवा, चउसठ इंद्रज मांगे सेवा || चामर छत्र शिरोवरि सोहे, रुवहि. जिनवर जगसहु मोहे ॥ ११ ॥ उपसमरसभरवरवरसंता, जोजन - For Private And Personal Use Only Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १०५ ) वाणि चखाण करंता || जाणवि वर्द्धमानजिणपाया, सुर नर किन्नर आवह राया ॥ १२ ॥ कंत समोहिय जलहलकंता, गयणविमाणहि रणरणकंता || पेखवि इंदभूइ मनचिंते, सुरआवे अम यज्ञहुते ॥ १३ ॥ तीरतरंडकजिम ते वहिता, समवसरण पुहता गहगहिता ॥ तो अभिमानें गोयम जंपे, इण अवसर कोपे तणु कंपे ॥ १४ ॥ मूढालोक अजाण्युं बोले, सुर जाणंता इम कांड डोले || मो आगल कोइ जाण भणीजें, मेरुअवर किमओपमा दीजें ॥ १५ ॥ वस्तु ॥ वीर जिणवर वीर जिणवर नाण संपन्न पावापुरसुरमहिय, पत्तनाहसंसारतारण ।। तिहिं देवइ निम्महिय, समवसरण बहु सुरक कारण || जिणवरजगउज्जोयकरे, तेजहि कर दिनकार सिंहासण सामी ठव्यो, हुओतो जयजयकार ॥ १६ ॥ भासउ ॥ तो चढियो घणमाण गजे, इंदभूय भूयदेव तो । हुंकारो कर संच - रिह, कवणसु जिणवर देव तो ।। जोजन भूमि समवसरण, पेखवि प्रथमारंभ तो ।। दहदिशि देखई विबुधवधू, आवंती सुररंभ तो ॥ १७ ॥ मणिमय तोरणदंड ध्वज, कोसीसे नवघाट तो ॥ वयरविवर्जितजंतुगण, प्रातिहारिज आठ तो || सुर नर किन्नर असुरवर, इंद्र इद्राणी राय तो ॥ चित्तः चमकिय चिंतव ए, सेवंतां प्रभुपाय तो ॥ १८ ॥ सहस किरण सामी वीरजिण, पेखिअ रूप विसाल तो, एह असंभव संभव ए, साचो ए इंद्र जाल तो ॥ तो बोलावइ त्रिजग गुरु, इंद्रभ्रूइ नामेण तो ॥ श्रीमुख संसा सामि सवे, फेडे वेदप तो ।। १९ ।। मान मेल मद ठेल करे, भगतहिं नाम्यो सीस तो ॥ पंच सयांसुं व्रत लियो ए, गोयम पहिलो सीस तो ॥ बंध For Private And Personal Use Only Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१०६ ) व संजम सुणवि करे, अगनिभूइ आवेय तो॥ नाम लेई आभास करे, ते पण प्रतिबोधेय तो ॥ २० ॥ इण अनुक्रम गणहररयण, थाप्या वीर इग्यार तो॥तो उपदेसे भुवनगुरु, संयमसुं व्रत वार तो॥ विहुं उपवासें पारणो ए, आपण विहरंततो ॥ गोयमसंयमजग सयल, जयजयकार करंततो ॥ २१ ॥ ॥ वस्तु ।। इंद्रभूइ इंद्रभूइ चढियो बहुमान, हुंकारो करि कंपतो, समवसरण पहुतो तुरंततो॥ जे जे संसा सामि सवे, चरमनाह फेडे फुरंततो ॥ बोधवीज सज्जायमनें, गोयम भवहि विरत्त ॥ दिरकलेई सिरकासही, गणहरपयसंपत्त ॥ २२ ॥ भासउ ॥ आज हुओ सुविहाण, आज पचेलिमां पुण्य भरो ॥ दीठा गोयमसामि, जो नियनयणे अमियझरो ॥ समवसरण मझार, जे जे संसा ऊपजे ए ॥ ते ते पर उपगार, कारण पूछे मुनिपवरो ॥ २३ ॥ जिहां २ दीजें दीख, तीहां र केवल ऊपजे ए ॥ आप कनें अणहंत, गोयम दीजें दान इम || गुरु ऊपर गुरु भक्ति, सामी गोयम ऊपनिय ॥ अणचल केवल नाग, रागज राखे रंग भरे ॥२४॥ जो अष्टापद सेल, वंदै चढ चउवीस जिण ॥ आतम लब्धि बसेण, चरम सरीरी सोयज मुनि ॥ इय देसणा निसुणेह, गोयम गणधर संचरिय, तापस पनरसएण जोमुनिदीठो आवतो ए ॥ २५ ॥ तपसोसियनिय अंग, अम्हां सगति न ऊपजे ए॥ किम चढसे दृढकाय, गज जिम दीसे गाजतो ए॥ गिरुओ ए अभिमान, तापस जो मन चिंतवे ए॥तो मुनि चढियो वेग आलंबवि दिनकर किरण ॥ २६ ॥ कंचन मणि निप्पन्न, दंडकलसध्वज वडसहिय ॥ पेखवी परमाणंद, जिणहरभरतेसरमहिय ॥ निय For Private And Personal Use Only Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१०७) निय काय प्रमाण, चिहुं दिसि संठिय जिणहर विध ॥ पणमवि मन उल्लास, गोयमगणहर तिहां वसिय ॥ २७॥ वयरसामीनो जीव, तिर्यकजुंभकदेव तिहां ॥ प्रतिबोध्यापुंडरीक कंडरीक अध्ययन भणी ॥ वलता गोयमसामि, सवितापस प्रतिबोध करे ॥ लेई आपण साथ, चाले जिम जूथाधिपति ।। २८ ॥ खीरखांड घृत आण, अमिय वूठ अंगूठठवे, गोयम एकण पात्र, करावे पारणो सवे ॥ पंचसयां शुभ भाव, उजलभरियो खीरमिसे ॥ साचा गुरुसंयोग, कवल ते केवल रूप हुअ ॥ २९ ॥ पंचसया जिणनाह, समवसरण प्राकारत्रय ॥ पेखवि केवल नाण, उप्पन्नो उज्जोय करे॥ जाणवि जण पीयूष, गाजंती घनमेघजिम ॥ जिनवाणी निसुणेवि, नाणी हुया पंचसया ॥ ३० ॥ वस्तु ॥ इण अनुक्रम इण अनुक्रम नाण संपन्न पन्नरेसें परिवरिय, हरियदुरिय जिणनाह वंदइ, जाणवी जगगुरु वयण, तिहिं नाण अप्पाण निंदइ, चरमजिनेसर इस भणे, गोयम मकरिस खेव, छेह जाय आपणसही, होस्यां तुल्ला वेव ॥ ३१ ॥ भास उ ॥ सामियो ए वीर जिणंद, पूनमचंद जिम उल्लसिय ॥ विहरियो ए भरहवासंमि, वरस बहुत्तर संवसिय ॥ ठवतो ए कणयपउमेण, पायकमल संचे सहिय ॥ आवियो ए नयणाणंद, नयरपावापुर सुरमहिय ॥ ३२ ।। पेखि यो ए गोयमसामि, देवसमा प्रतिबोध करे ॥ आपणो ए त्रिसलादेवि, नंदन पुहतो परमपए ॥ वलतो ए देव आकाश, पेखवि जाण्यो जिण समे ए॥ तो मुनि ए मनविखवाद, नादभेद जिम ऊपनो ए॥ ३३ ॥ इण समे ए सामिय देखि, आपकनासू टालियो For Private And Personal Use Only Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १०८ ) ए॥ जाण तो ए तिहुअण नाह, लोक विवहार न पालियो ए ।। अतिभलो ए कीलो सामि, जाण्यो केवल मांगसेए ॥ चिंतव्यो ए वालक जेम, अहवा केडें लागसे ए ॥ ३४ ॥ हूं किम ए वीरजिणंद, भगतहिं भोले भोलव्यो ए ॥ आपणो ए ऊंचलो नेह, नाहन संपे साचव्योए ॥ साचोए ए वीतराग, नेह न हेजे लालीयोए ।। तिणसमे ए गोयमचित्त, राग वैरागे वालियो ए ।। ३५ ।। आवतो ए जो उल्लाह, रहितो रागें साहियो ए || केवल ए नाण उप्पन्न, गोयम सहिज उमाहियो ए ॥ तिहुअण ए जयजयकार, केवलमहिमा सुर करे ए ॥ गणधरु ए करय वखाण, भविया भव जिम निस्तरे ए ॥ ३६ ॥ वस्तु || पढम गणहर पढम गणहर वरस पच्चास, गिहवासें संवासिय तीस वरस संजम विभूसिय, सिरि केवलनाणपुण, बार वरस तिहुअण नमसिय, राजगृही नयरी ठव्यो, बाणवह वरसाउ, सामी गोयम गुणनिलो, होसे सिवपुरठाउ || ३७ ॥ भासउ । जिम सहकारें कोयल टहुके, जिम कुसुमावन परिमल महके, जिमचंदन सोगंधनिधि || जिम गंगाजल लहिर्या लहके, जिम कणयाचलते जे झलके, तिम गोयम सोभागनिधि ॥ ३८ ॥ जिम मानसरोवर निवसे हंसा, जिमसुरतरुवर कणयवतंसा, जिम महुयर राजीववनें ॥ जमरयणायर रयणें विलसे, जिम अंबर तारागण विकसे, तिमगोयम गुरु केल घने ।। ३९ ।। पूनमनिसि जिमससियर सोहे, सुरतरु महिमा जिम जगमोहे पूरवदिसि जिम सहसकरो || पंचानन जिम गिरिवरराजे, नरवर घर जिममेंगल गाजे, तिम जिनशासन मुनिपवरो ॥ ४० ॥ जिमगुरुतरुवर सोहेशाखा, जिम For Private And Personal Use Only Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१०९) उत्तममुख मधुरी भाषा, जिम वनकेतकि महमहे ए ॥ जिमभूमीपति भुयवल चमके जिम जिनमंदिर घंटारणके, गोयमलबधे गहगह्यो ए ॥ ४१ ॥ चिंतामणि करचढीयो आज, सुरतरुसारे वंछिय काज, कामकुंभ सहुवशि हुआए ॥ कामगवी पूरे मनकामी, अष्टमहासिद्धि आवे धामी, सामी गोयम अणुसरी ए ॥४२॥ पणवरकर पहिलोपभणी जें, माया बीजो श्रवण सुणीनें ॥ श्रीमिति सोभा संभव ए ॥ देवांधुर अरिहंत नमीजें, विनयपहू उवझाय थुणीजें, इण मंत्र गोयम नमो ए ॥४३॥ परघर वसतां कांयकरीजें, देस देसांतर काय भमीजें कवण काज आयास करो ॥ प्रहऊठी गोयम समरीजें, काज समग्गल ततखिण सीझे नवनिधि विलसे तिहां घरे ॥४४॥ चवदयसय बारोत्तर वरसें, गोयम गणहर केवल दिवसें, कीयोकवित उपगारपरो ॥ आदहिं मंगल एपभणीजें परव महोछव पहिलो दीजें, रिद्धि वृद्धि कल्याण करो ॥ ४५ ॥ धन माता जिण उयरें धरियों धन्य पिता जिण कुल अवतरियो, धन्य सुगुरु जिण दीरिक योए ॥ विनयवंत विद्या भंडार, तसु गुण पुहवी न लप्भइ पार, बड जिन साखा विस्तरो ए ॥ गोयमस्वामीनो रास भणीजें चउविह संघरलियायतकीजें, रिद्धिवृद्धि कल्याण करो ॥ ४६ ॥ कुंकुमचंदन छडो दिवरावो, माणकमोतीना चोक पूरावो, रयणसिंहासण बसणो ए॥ तिहां बैठि गुरु देशनादेसी भविक जीवनाकाज सरेसी, नितनित मंगल उदयकरो ॥ ४७ ॥ इति श्रीगौतमखामीनो रास संपूर्ण ॥ For Private And Personal Use Only Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (११०) ॥ रागप्रभाती जे करे, प्रह ऊगमते सूर ॥ भूख्यां भोजन संपजे, कुरला करे कपूर ॥१॥ अंगूठे अमृत बसे, लब्धि तणा भंडार ।। जे गुरुगोतमसमरियें, मनबंछित दातार ॥ २॥ पुंडरीक गोय मपमुहा, गणधर गुणसंपन्न ॥ ग्रह उठीनें प्रणमतां चवदेसे बावन्न ॥३॥ खंतिखमं गुणकलियं, सुविणियं सवलद्धिसंपणं ॥ वीरस्स पढमसीसं, गोयमसामी नमसामि ॥ ४ ॥ सर्वारिष्टप्रणाशाय, सर्वाभीष्टार्थदायीने ॥ सर्वलब्धिनिधानाय, गौतमस्वामिने नमः ॥५॥ इति ॥ ॥ अथ सूतक विचारलि०॥ ॥ पुत्र जन्महोनेसें दिन १० दस सूतक ॥ पुत्रीजन्म होनेसें दिन ११ सूतक मृत्यु होणेसें दिन १२ बारह सूतक, ओरजिस स्त्रीके पुत्र होय, उस स्त्रीके एक मासको सूतक ॥ पुत्र होते मरण पामे तो दिन १ एक सूतक ॥ परदेशें मृत्यु होय तो दिन १ एक सूतक ।। गाय, भैंस, घोडी, सांढ, घरमांहे वियावे तो दिन १ एक सूतक। मरण हूवां कलेवर घर बाहिर लइ जाये जहांतक सूतक ॥ दास दासी अपनी नेश्रायें रहते पुत्र पौत्रादिकका जन्म मरणहोवे तो दिन ३ तीन सूतक ॥ ओर जितना महिनाको गर्भ गिरे तितनेदिन सूतक । अब जिनके मरणका सूतक होवे ये १२ बार दिन देवपूजा न करे, ओर जन्मके सूतकमें घरका १० दसदिन देवपूजा न करे। ओर अन्य घरका तीन दिन देवपूजा न करे, ओर जो मृतकको छुवा होवे, सो २४ चोवीस प्रहर पडिकमण न करे ॥जो सदा का For Private And Personal Use Only Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१११) अखंड नियम होवे, तो समताभावरखकें संवरपणामें रहे. परतु० मुखसें नवकार मंत्रकामी उच्चारण करे नहिं. स्थापनाजीके हाथ लगावे नहिं ओरजो मृतककों छुवा न हो मात्र आठ प्रहर पडिक्कमण न करे ॥.किसीकु न छीवे तो दोय स्नानसें शुद्ध भैसके जब बच्चा होय, तब १५ पनर दिन पीछे दूध पीणो कल्पे. गायके बच्चा होय तो १० दश दिन पीछे दुध पीणो कल्पे. बकरीको दुध ८ आठ दिन पीछे पीणो कल्पे ॥ ॥१ ऋतुवती स्त्री, चार दिन भांडादिकको न छुवे. २ चार दिन प्रतिक्कमण न करे, ३ पांच दिन देवपूजा न करे. ४ रोगादिक कारणे तीन दिवस उपरांत कोइ स्त्रीको रक्त चलता दीसे, जिसका विशेषदोष नहिं ॥ शुद्ध विवेकसें पवित्र हो कर दिन ५ पांच पीछे स्थापना पुस्तक छुवे, जिनदर्शन करे, अग्रपूजा करे, परंतु अंगपूजा न करे, साधुकों पडि लामे. ऋतुवंती तपस्या करे, सो तो सफल होय. परंतु ऋतुदिनमें जिनपूजा प्रतिकमणादिक क्रिया सफल न होवे, ऐसा चर्चरी ग्रंथमें कहा है. जिसके घरमें जन्म मरणका सुतक होवे, उहां १०॥१२ वार दिन तक साधु आहार पाणी न वहोरे. सुतकवाले का घरका जलसें तथा अग्निसें १२ बार दिन तक देवपूजा न करे. निशीथसुत्रके शोलमा उदेशामें जन्म मरणके सूतकवालेका घर दुगंच्छनीक कहा हे. गायके मूत्रमें २४ चोवी प्रहर पीछे. भैसके मूत्रमे १६ सोल प्रहर पीछे गाडर. गधेडी. घोडीके मूत्रमें ८ आठ प्रहर पीछे. नर नारी के मूत्रमें अंतरमुहूर्त पीछे. संमूच्छिम जीव उपजे. इत्यादि सूतकका संक्षेप विचार इहां For Private And Personal Use Only Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ११२ ) लिखा है. विशेष विचार शास्त्रांतरसें जानना || इति सूतकविचारः संपूर्णम् ॥ || अब असज्झायकी विगतकहते है ॥ १ धुंअरी पडे. तासीम असज्झाय जाणवी. २ सर्वदिशामा राती छाया तथा अरण्यसंबंधी रज उडे . निरंतर पडे तो दिन ३ तीन उपरांत असज्झाय. ३ मेह बरसते बुदबुदाकारी होय, तो दिन ३ तीन उपरांत असज्झाय. ४ नाना छांटा निरंतर, दिन ७ सात उपरांत वर से अने न रहे तो असझाय होय. ५ मांसवृष्टि, शिलावृष्टि, केशवृष्टि, धूलिवृष्टि, जांलगें होय तां सीम असज्झाय. अने जो रुधिरवृष्टि होय तो अहोरात्र असज्झाय. ६ बुदबुदा रहित निरंतर वरसे, तो ५ पांच दिन उपरांत अराज्झाय होय. ७ चैत्र शुदि पांचममध्यानहूंती पडिवा लगें असज्झाय. तेरस, चौदस, पूनम सीम समी सांजे. अचित्त रज उड्डावणच्छं काउस्सग्ग करूं ? इच्छं. अचित्त रज्ज उड्डावणच्छं करेमि काउस्सगं. पछी लोगस्स चार नो काउस्सग्ग करवो. ८ आशोशुदि पांचनने दिने द्विप्रहरथी आरंभीने पडिवा लगे असज्झाय. ९ दश दिग्दाहें प्रहर १ एक असज्झाय. For Private And Personal Use Only Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ११३ ) १० अकालें गाजतां प्रहर २ वे शीम असज्झाय. ११ अकाले बीजउल्कापात होय तो प्रहर १ असज्झाय. १२ अजवालीये पक्षे समीसांझ, पडवो, वीज, त्रीज, इयांरी असज्झाय. परंतु दशवैकालिक गुणीजें. १३ अकाले मेघ वरसे. तो प्रहर १ एक अस० १४ भूमिकं प्रहर ८ आठ असज्झाय. १५ चंद्रग्रहणें प्रहर १२ बार. उत्कृष्टे, अने जघन्यें पर ८ आठ असज्झाय. १६ सूर्यग्रहणें उत्कृष्ट प्रहर १६ सोल, अने जघन्य प्रहर १२ बार असज्झाय. १७ आसाढ चउमासा पडिकमण ठायाहूती प्रहर १२ बार असज्झाय. १८ कार्त्तिक चउमासे पण प्रतिक्रम्या पीछे पडिवा लगें १२ पहर बार असज्झाय, १९ महोमा मल्लादिक युद्ध हुवे, तावत्काल अ० २० कलह युद्ध जां लगें हुवे. तां लगें असज्झाय. २१ उपाश्रय नजीक स्त्रीपुरुषने कलह हुवे त्यांपर्यंत असज्झाय. २२ फागण चउमा रजपडवा जां लगें रज उडे, अने उपशमे नहिं तां लगें असज्झाय. २३ दंडकोमार पडते जां लगी अनेरो न हुवे. तां लगी असज्झाय. २४ परचक्रादि भय उपजे, अने जां लगें उपशमे नहिं. तां लगे सूत्र भणं न सूजे || अयं परमार्थः ॥ ८ श्रा० नि० For Private And Personal Use Only Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (११४) २५ नगरमांहे प्रधान पुरुष विहडे. तो अहोरात्र असज्झाय. २६ उपाश्रयथी सात घरमाहे जो कोइ पुरुष विहडे. तो अहोरात्र असज्झाय. २७ सोहाथमाहि अनाथपुरुषमृतकपडयो होयतो तां अणउद्धरे एटले ज्यांपर्यंत मृतककू न उठावे. त्यां सीम असज्झाय. २८ तिर्यचना रुधिर पढवाथी हाथ ६० मांहेयहर ३ असज्झाय, २९ मनुष्यना रुधिर पडवाथी हाथ १०० सो मांहे अहोरात्र असज्झाय. ३० मनुष्यनां अस्थि, दांत, दाढ पडे हात [१०० ] सो माहे सूत्र पढवू सूजे नहिं. ३१ स्त्रीने ऋतु आवे थके दिन (३) त्रण अस० ३२ आर्द्रा नक्षत्र आव्या पीछे स्वाति नक्षत्रपर्यंत जो गाज, बीज, मेह वरसे, तो असज्झाय न होय, ३३ पुत्रने प्रसवे दिन ७ सात असज्झाय, अने दीकरीने प्रसवे दिन ८ असज्झाय. ३४ कालग्रहण विणकीये भणवो गुणवो नहिं. पहर १२ बार असल्झाय. ३५ वैशाखवदि १, श्रावणवदि १, कार्तिकवदि १, मागशिरवदि १. ए चार दिवसें सदैव असज्झाय अने सूत्रनी असज्झाय तो प्रहर १२ बार सूधी जाणवी. ॥अथ ॥ साधु ओर श्रावककों कोनसी वस्तु कितने प्रहर ओर दिन पीछे न खावणी सो लिखते हे. For Private And Personal Use Only Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ११५ ) वेस प्रहर २०, छाछ कांजीवडा प्रहर २४, > ॥ चावल प्रहर ४, राब प्रहर १२, प्रहर २४, दहि प्रहर १६, दूध प्रहर घोलवडा प्रहर ४, तल्यां वडा प्रहर ४, पूडी प्रहर ८, रोटी प्रहर ४, तथा ६, वाजरा ऊष्ण प्रहर १३, जवार ऊष्ण प्रहर १२, वाजरीकी खीचडी प्रहर ४, जवारकी खीचडी प्रहर ४, चावल की खीचडी प्रहर ४, सीयाले आटो दिन १०, उन्हाले आटो दिन ८, वरसाले आटो दिन ५, पकान सियाले दिन ३०, उन्हाले पकान दिन २० वरसाले पकान दिन ७ उन्हाले लूण फासु दिन ८ वरसाले लूण फासू दिन ३ सीयाले फासू लूण दिन ४ सीयाले फासू घी दिन ८ उन्हाले फासू घी दिन ५ वरसाले फासू घी दिन ३ तथा हमेसका सीयाले फासू पाणी प्रहर ४ उन्हाले फासू पाणी प्रहर ५ वरसाले फासू पाणी प्रहर ३ सर्व अनाजकी घुघरी पाणी भिजोड़ प्रहर ८ पाणीकी उसेहि घुवरी प्रहर १८ घी तेलकी तली घुधरी प्रहर २० तथा २४, वडी प्रहर ८ कढी प्रहर ४ सर्वदाल प्रहर ४ तथा ५ रायता प्रहर ८ घीकी तली प्रहर १५ एवं सर्व वस्तु ए कहे परिमाण उपरंत चलित रस होवे सो साधु तथा श्रावकको खाने योग्य रहे नहि || ॥ अथ दिन प्रति श्रावक चवदै नियमका प्रमाण करै (सो) बिचार लिखते ॥ ४ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सच्चित् १ । दब्ब २ | विगई ३ || पाणहि ४ | तंबोल ५ । वत्थ ६ | कुसुमे ७ || वाहण ८ । सयण ९ । विलेवण १० ॥ बंभ ११ । दिशि १२ । न्हाण १३ । भत्तेसु १४ ॥ ( अर्थः ) For Private And Personal Use Only Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रावक नित प्रति नियम संभाले । दिनमें जो वस्तु अपने अंग खातै लागै । उसीका प्रमाण रक्खै । उपरांत त्याग करै । तिहां प्रथम (सचित्त वस्तुको परिमाण करै) मट्टी सर्व जाति । पाणी सर्व जाति । जल-अग्नि-वायु । वनस्पतीका छेदन भेदन । तरकारी सर्व जाति । फल सर्व जाति । परवल । तोरी केला । इत्यादि सचित्तका परिमाण करै ॥ १॥ * ॥ ॥ दूसरा द्रव्य परिमाण ॥ तिहां धातु वस्तुकी शली । (तथा) अपणी आंगुली बिना । जो वस्तु मुखमै दीजै । सो सर्व द्रव्यकी गिणतीमें आवै । नामांतर । खादातर । स्वरूपांतर । परिणामांतरा । द्रव्यांतर होणेसें अलग द्रव्य होवै । ( यथा) गहुं एक द्रव्य । तिसकी पतली रोटी । फीणा रोटी । बेढ़वा रोटी । बाटी । यह सर्व द्रव्य जूदा कहियै । (इस प्रकारै) सर्व द्रव्य खांणमें आवै । भात दाला । रोटी । माडियो । पलेव । तरकारी सर्व जाति । पापड़ । खीचीया । लड्डु सर्व जाति । फिणीधेवर । खाजा । ( इत्यादि समस्त द्रव्य परिमाण करै) इहां उत्कृष्ट द्रव्यको नाम ले रक्खै । (तो) एकही द्रव्य कहीयै । ( जैसे) मेपैकी खीचड़ीका नाम लेके रक्खे । (सो) अनेक द्रव्य निष्पन्न है । (परंतु ) एक द्रव्य कहियै ॥ * ॥ इति द्रव्य प्रमाण दूसरा नियमः ॥२॥ * ॥ ॥तीसरा विगय परिमाणनियमः॥ (तहां ) दश विगयमें च्यार महा विगयका तो त्याग होता For Private And Personal Use Only Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (११७) है । (और ६ विगय) घृत १ । तेल २ । मीठा ३ । दुध ४ । दही ५। कड़ाह विगय ६ । धारणाप्रमाण रक्खै ॥ * ॥ ॥ अथ चौथा पादत्राणनियमः ॥ तहां । जूति । खड़ाऊ । मोजा । अपणा । इतना विराणा । ऐसे दिन प्रतें धारणा प्रमाण मोकला रक्खै ॥ * ॥ इति पाणही नियमः ॥ * ॥ ४ ॥ * ॥ ॥पांचमा तंबोल नियम मध्ये ॥ पान (तथा ) वीड़ा । सुपारी । लवंग । इलायची । छोटी, बड़ी । जायफल । जावंत्री प्रमुख सब स्वादिम वस्तु । किरयाणाप्रमुख सर्व जात धारणा प्रमाण रक्खै ॥ * ॥ इति तंबोलनियमः ॥ * ॥ छटा वस्त्र नियम मध्ये ॥ पोसाक १ । तथा ४ । छूटा वस्त्र ५। तथा ७ । मोकला रक्खै । पोसाक १ मध्ये । पधड़ी १। जामो १ । कमरबंधो १ । धोती १ । इक पट्टो उत्तरासण १। यह पांच वस्त्रकी एक पोसाक कहियै । ऐसें नहीं कर सकै । (तो) १० तथा ५० कपड़ा दिन मध्ये मोकला । पराया वस्त्र भूल चूकमें आवै (तो) जयणा ॥ * ॥ इति वस्त्रनियमः ॥ * ॥ ॥ अथ सातमा फुलनियमः॥ तिहां गुलाब । चंपेली । वेला । केवड़ा । केतकी । कुंद । मचकुंद । सेवती । हजारा । कमल । (इत्यादि) सर्व For Private And Personal Use Only Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ११८ ) फूलका धारणा प्रमाणें परिमाण करै ॥ * ॥ इति फूल - नियमः ॥ * ॥ ७ ॥ ॥ अथ आठमा वाहन नियमः ॥ तिहां रथ । गाड़ी । घुड़वहिल । खड़सल | कोच | पालकी । घोड़ा । हाथी । चोपाला | म्याना | ( इत्यादिक ) सर्व थल वाहनजाति || मोरपंखी । बतक । घुड़दौड़ । लचकार । मगर । पनसोई । पलवार । बजरा | ( इत्यादि ) सर्व नाव जाति | सर्व तिरता । फिरता चरता । यह तीन प्रकारके वाहन धारणाप्रमाणें राखै ॥ * ॥ इति वाहन नियम ॥ ८ ॥ * ॥ ॥ अथ नवमा शय्यानियमः ॥ तिहां पिलंग | खाट । तरवत । चौकी | पट्टा गदी । खुरसी । बनात | पट्टसूजनी | सेत्रुंजी | गलीचा | चांदणी सीतलपट्टी | सफ | चटाई | सर्वजाति । दरखतकी छroat | चमका | कांबला । मुखमल | कारचोपी | ( इत्यादि ) धारणाप्रमाणे शय्या प्रमाण करै ॥ * ॥ इति शय्यानियमः ॥ * ॥ ९ ॥ ॥ अथ दशमा विलेपननियमः ॥ तिहां । सरसोंका । राईका । आटैका । तेल | फुलेल | सर्वजातिका । केशर | चंदन | कपूर । कस्तुरी । रोली | ( इत्यादि ) शरीरसुखवास्ते । ( तथा ) रोगादि कारणें ओषधादिकका विलेपन फोड़ा ऊपर मलम प्रमुख | आंखिमें अंजन | ( इत्यादि ) अंगोपांगमें लगाना । ( सो विलेपन धारणाप्रमाणे करै ॥ * ॥ इति विलेपननियमः ॥ १० ॥ * ॥ For Private And Personal Use Only Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ११९ ) ॥ अथ ब्रह्मचर्यनियमः ॥ तिहां रात्रीकों (तथा) दिनको । सुई डोके द्रष्टांत भोगादिaar प्रमाण करै । स्वमकी- मन-वचनकी । जयणा ॥ * ॥ इति ब्रह्मचर्यनियम ॥ ११ ॥ * ॥ ॥ अथ दिशानियमः ॥ तिहां । पूरब १ । पश्चिम २ । उत्तर ३ । दक्षिण ४ । अभिकूण ५ । नैरुतकूण ६ | वायव्यकूण ७ । ईशानकूण ८ । अधोदिशि ९ । ऊर्ध्वदिशि १० । यह दश दिशाको अपने जानेका प्रमाण करै । चिठी लिखणी । आदमी भेजना | देशांतरकी चिठी वाचणी । तिसकी जयणा ॥ * ॥ इति दिशानियमः ॥ * ॥ १२ ॥ ॥ अथ तेरमास्नाननियमः ॥ तिहां । आज दिन मध्ये स्नान २ । तथा ४ | वेर मोकला । परंतु पाणीका तोल रक्खै । तथा घड़ा प्रमुखका प्रमाण रक्खै । स्नान एक मध्ये इतनो पाणी खरच करूं । अधिक नही ढोलं ॥ * ॥ इति स्नाननियमः ॥ * ॥ १३ ॥ * ॥ ॥ अथ चौदमा भातनियमः ॥ दिनमध्ये भात सेर २ तथा ४ दो बेर ( तथा ) च्यार वेर पृथ्वीकाय महीका प्रमाण करे १ अप्पकाय पलीडा कूत्रातलावका प्रमाण करे २ तेउकाय चूला भट्टी दीया वगेरेका प्रमाण करे ३ वायुकाय पंखाका प्रमाण करे ४ वनस्पतिकाय हरिखाणिका पीणेका प्रमाण करे ५ त्रसकाय के संघकी जयणा ६ असी चक्कुकतरणी १ मसी स्याही लेखण २ कसी कुद्दालार हलवगेरेको प्रमाण करे तथा परिग्रहका प्रमाणकरे प्रभातका रखाहुवा सांमकुं रखे सो प्रभातकां चितारे वादविगइ देसावगासिकका पच्चक्खाणकरे । इति नियमचितारण विधि ॥ For Private And Personal Use Only Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १२० ) खाऊ । उपरांत दुबिहार । (तथा) चौविहार धारणाप्रमाणें रक्खै । (तथा) दिनमध्ये जल पीणैमें आवै तिसका प्रमाण रक्खै । तोलसें तथा मापसे ॥ * ॥ इति चौदह नियमभाषा ॥ १४ ॥ समाप्तम् ॥ * ॥ ॥ अथ स्तवनरागठुमरी० ॥ सुमति चरणकज देख आजमनमधुकरलीनोरे || सु०॥ आज० ॥ सुमतिचरणकज अहोनिशी विकसै, अपरकमलकमलावैरे, जिनचरणांबुजसे विभवियण, मकरंदगुण पीनोरे ॥ सुमति० ॥ १ ॥ सुमति सदा आतमने संगै, सहजानंदभवि विलसैरे, अनुभवअमृत पीवेचंगे, निजगुणमे भीनोरे ॥ सुमति० || २ || परमेसर प्रभुपरउपगारी, परमपुरुष मनुहारीरे, पांचमां जिनपति पडिमा सारी, दीठो देव नगीनोरे || सुमति० ॥ ३ ॥ मेघनृपतिकुल नभमणिसोहे, भविजनना मनमोहेरे, सत्यदेव विख्यातिपामी, जगमाजशलीनोरे || सुमति० ॥ ४ ॥ जगवच्छल जगनायक जगगुरू, सेवकजन प्रतिपालकरे, श्रीजिनकृपाचंदनूरिआज भले, दरसनकीनोरे || सुमति० ॥ ५ ॥ इति पदम् ॥ ॥ श्रीजिनदत्तसूरिजी उत्पत्ति स्तोत्र लि० ॥ सिरि सुयदेवि पसायकरे । गुरु श्रीजिनदत्तसूरि | बंदिसु वर तरगच्छरयण | सूरिजेम गुणपूरि ॥ १ ॥ संवत् इग्यारे बरसै । बत्तिसै जसु जम्म । वाछिगमंत्रिपिता जणणी । बाहडदेवी सुरम् || २ || इकतालै जिनवय गहिय । गुणहतरै जसुपाट । वहसाखांवदि छटि दिन । पइ प्रणमें सुरथाट || ३ || अंबडसावय For Private And Personal Use Only Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१२१) करलिहिय । सोवनअक्षरअंब । जुगप्रधानजगपडिया। सिरि पडिबिंब ॥ ४ ॥ जिण चउसठिजोगिण जणिय । खित्तपाल बावन्न । साइणि डाइणि विजुलिय । पुहविह नामनयन ॥५॥ सूरिमंत बलकर सहिय । साहिय जिम धरणिंद । साबय साविय लक्ख इग । पड़िवोहिय जिणबिंब ॥ ६॥ अरिकरि केसरि दुहृदल । चउविहदेव निकाय । आणनलोपै कोइजुगे । जसु प्रणमें नरराय ॥ ७ ॥ संबतबार इग्यारसमें । अजयमेर पुरठान । इग्यारसि आसाढ सुदि । सगपत्त सुहझांण ॥ ८॥ श्रीजिन बल्लहरिपए । श्रीजिनदत्तसुरींद । विनहरण मंगलकरण । करो पुन्य आनंद ॥ ९॥ इति श्रीजिनदत्तसूरि अष्टकं ॥ ॥श्री जिनकुशलसूरिजी उत्पत्ति स्तोत्रलि० ॥ रिसह जिनेसर सोजयो । मंगल केलि निवास । बासवबंदिव पय कमल । जगसहु पूरै आस ॥ १॥ (चौपइ) चंदकुलंवर पूनिम चंद । बंदो श्रीजिनकुशलमुणिंद । नाम मंत्र जसु महिम निवास । जो समरै तसु पूरै आस ॥२॥ मरुमंडन समियाणो गांम । धणकण कंचन अति अभिराम । जिहां बसै जिल्हागर मंत्र । जैतसिरी तसुधरणी कलत्र ॥ ३॥ जर तीसै जाम । सैतालै सिर संयम रम्म । पाटण सतहत्तरै जसुपाट । निव्यासियै तसुसुरगै वाट ॥ ४ ॥ मंडल सरगै पायाल । अचिरा चिर जुगइणकलि काल । गुरु प्रताप नविमान सोय । मै नविनयणे दीठोजोय ॥५॥ निरधन लहै धन धन्न सुवन्न । पुन्नहीण पांमें बहुपुन्न । असुखीपांमें सुख संतान । एक मना करतां गुरुध्यान ॥ ६ ॥ गुरु समरण For Private And Personal Use Only Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१२२) आपदसहुटलै । सयल सांतिसुख संपत्ति मिले । आधिव्याधी चिंतासंताप । ते छंडी नवि मंडै व्याप ॥७॥ पाप दोष नविलागैतिहां गुरुदरसण उत्कंठा जिहां । सेवतां सुरतरूनीछांहि । निश्चैदालिद्र मेटैवाहि ॥ ८ ॥ विसहर विसनर विसनरनाह । भूतप्रेतग्रह व्यंतर राह । गुरुनामें जेनकरै पीड़। भाजै भावठ भवभय भीड़।।९।। रोग सोग सविनासै दूर । अंधकार जिम ऊगैसूर । मूरखफीटी पंडित थाय । प्रभु पसाय दुख दुरीय पुलाय ॥ १०॥ दिन दिन जिन सासन उद्योत । तिहां अछै भव सायर पोत । सोसदगुरुमें भेट्यो आज । रलीयरंगसीधा सविकाज ॥ ११ ॥ (ढाल ) अज घर अंगण सुरतरू फलियो। चिंतामणि कर कमले मिलियो । उदयो परमाणंद घरे ॥ १२ ॥ आज दीहमें धन्ने गिणियौ । जुग पररागम जोमें थुणियौ । चंद्र गच्छ महिमानिलोए ॥१३॥ कांइ करो पृथविपतिसेवा । काइ मानवो देवीदेवा । चिंता आंणो कांइमने ॥१४॥ वार वारए कवित भणीजै । श्रीजिनकुशल सरि समरीजै । सरै काज आयास विणे ॥ १५ ॥ संवत चवद इक्यासी वरसै । मुलक वाहड मेरुपुर मन हरसै । अजिय जिणेसर वर भवणौ ॥ १६ ॥ कीयो कवित ए मंगल कारण । विधन हरण सहुपाप निवारण । कोइ मत संसो धरो मनें ॥ १७ ॥ जिम जिम सेवै सुरनर राया । श्रीजिन कुशल मुनीसर पाया । जयसागर उवझाय थुणे ॥ १८ ॥ इम जो सदगुरु गुण अभिनंदै । ऋद्धि समृद्धि सो चिर नंदै । मन बंछित फल मुझ हुवोए ॥ १९ ॥ दादाजी श्रीजिनकुशलसूरजी उत्पत्ति विचार गर्भित स्तवन संपूर्णम् ॥ For Private And Personal Use Only Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १२३ ) ॥ श्री दादाजीको स्तवन लि० ॥ बिल ऋद्धि समृद्धि मिली । शुभयोगे पुन्य दशा सफली । जिनकुशलसूरि गुरु अतुलवली । मन चंछित आप दादो रंगवलि ॥ १ ॥ मंगल लीलसमें विपुला । नव नवय महोच्छव राजयला । सुपायै गुरु चढ़ती कला | सुकलीणी पुत्रवती महिला ॥ २ ॥ सबही दिन थायै सबला । सदवास कपूर तणा कुरला । हयगय रथ पायक बहुला | कल्लोलकरै मंदिर कमला || ३ || बीझै चमर निसाण घुरै । नवैदरवारखड़ा पुहरै । जय जय कर जोड़ी उचरै । सांनिध्य गुरू सब काजसरै || ४ || सरसा भोजनपान सदा । दुख रोग दुकाल न होय कदा | अविचल ऊलट अंगमुदा । गुरुकूरम दृष्टी प्रसन्न सदा ॥ ५ ॥ घम घम मादल नाद घमें । बत्ती से नाटक रंगर | प्रगट्यो पुन्य प्रताप हमैं | सबला अरियण ते आयनमें ||६|| तनसुख मनसुख चीरतनें । पहिरै वेलाउल होयरनें । ध्यावो कुशल गुरू एक मनें । जृंभक सुर मंदिर भरै धनें ॥ ७ ॥ ततखिण घण खच्यो आवै । करि स्याम घटामेह वरसाबै । तिसीया तोय तुरत पावै । जलदाता त्रिजगसुजसगावै ॥ ८ ॥ लहिर्या जल कल्लोल करै । प्रवहण भवसायर मझिडरै || बूड़ता वाहन जे समरै । ते आपद निवै उवरै || ९ || खड़ खड़ खड़ग प्रहारव है । सोदामनि जिम समसेस है | कुशल कुशल गुरु नाम कहै । ते खेम कुशल रण मझ लहै ॥ १० ॥ धुंभसकल परचा पूरै । श्रीनागपुरै संकट चूरै | मंगलोर अधिकै नूरै । देरावर भटालै दूरै ॥११॥ वीरमपुरवाने सुधरै । खंभातपुर विक्रमनयरै । जिनचंदमूरि For Private And Personal Use Only Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१२४) पाटै पब । जसु कीरती महिमंडलपसरै ॥ १२ ॥ पूरब पश्चिम दक्षिण आगै। उत्तर गुरुदी सौभाजागै । दहदिशि जन सेवा मागै । श्रीखरतर गच्छनी महिमा जागै ॥ १३॥ पुर पट्टण जन पदठामै । गाईजै कुशल नयर गामै । पुजैजे नरहितकामै । ते चक्रवर्तीपदवी पांमै ॥१४॥ श्रीजिनकुशलसरि साखै । सेवकजननें सुखिया राखै । समाँ गुरु दरशनदाखै । श्रीसाधुकीरति पाठक भाखै ॥ १५ ॥ इति ॥ (अथ दादासाहिबको स्तवन) सदगुरू म्हारारे मोहनगारारे । वीनती सांभलो । सांभलीने गुरु करो सेवक प्रतिपाल । स० ॥ विरुद घणेरारे निसुण्या तुमतणा। तुमछो प्रभु आतमना रखवाल ॥ स० ॥१॥ जिन सासन जगमा जयो । सर्वजीवसुखकार । जंगमसुरतरू प्रगटीयो । सदगुरु तारन हार । तुमछो गुरूसब जनने सुख आल ॥ स० ॥२॥ पंचनदीपर साधिया । पांचपीर परधान । सोभाग्यो जिनधर्मने । सार्या वंछित काम, करो प्रभु वांछित पूरण दयाल ॥ स०॥३॥ जीतीचोसठ जोगनी, वसकीया बावनवीर । झबकाकरती वीजली । स्थंभित करी गुणधीर करजो प्रभु अमचीसार कृपाल ॥ स०४॥ प्रतिबोध्या नरनारीने, शासनशोभा बधार । चारित्र पाली निरमलो । स्वर्गलह्यो सुखकार । तुमें प्रभु संपदा पामी रसाल ॥ स०॥५॥ युग प्रधान जगपरगड़ो । अंबाअक्षरदीध जगगुरु चिंतामणि समो । मनवांछित फललीध । सहुनामनवांछितपूरो रसाल ॥ स० ॥६॥ इत्यादिक जश गुरुतणो । जाणे सयलजहान । For Private And Personal Use Only Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१२५) परचा जगमे परगड़ा । सेवेराव राजन । सेवानो फल तुरतलहे निहाल ॥ स०॥७॥ संघ उदय करो साहिबा । दयाकरी गुरुराज। अलिय विधन दूरै हरो । पूरो सहुजन काज । पूरीने प्रभु मेटो भवजंजाल ॥ स०॥८॥ ठामठाम गुरुसोभता. धुंभघणामहिराण । भावे सेवै भविजना । सदा सुरंगे वाण । तुमछो गुरुभक्ततणा रिच्छवाल ॥स० ॥९॥ सद्गुरु समजगको नहि । जीवनप्राण आधार । कमितपूरणसुरगवि । सुख कारण दिलधार । गुणनिधि अमचा परम कमाल ॥ स०॥ १० ॥ श्रीजिनदत्तसूरीशरू । मणियाला जिनचंद । कुशलकरण कुशलेसरू । प्रणमें जिनकृपाचंद । करजो प्रभु शासननी संभाल ॥ स० ॥ ११॥ इतिश्री दादासाहेब स्तवन संपूर्णम् ॥ ॥ अथ बीजनी थुइलिः॥ वासुपूज जिन अंतर जामी, मनविसरामी स्वामीजी ॥ भवि जन तारण शिवसुखकारण, निजगुणना प्रभु कामीजी ॥ बीज दिवस जिनवरशिवसुखकर, चंद्रविमानेपामीजी ॥ नगर बुहारिमा मनुहारि सेवो जिन सुख धामीजी ॥ १ ॥ वासुपुज्य पदम प्रभु राता, चंद्र सुविधि जिन धवलाजी ॥ मल्लि पास दोय नीलाजाणो, मुनि सुव्रत नेमी कालाजी ॥ आठद्विगुण जग नायक लायक, सोवन वरण सुहायाजी ॥ बीजदिवस नव नव चउद्विकजिन, बंदु अहनिशिपायाजी ॥२॥ दुविध धर्म जिनवर प्रकाश्यो, अर्थ अधिक सुख कारिजी ॥ सूत्रे करि गणधर गुरु भाख्यो, भवि जनना उपगारिजी ॥ दोय शिक्षा दोय नय For Private And Personal Use Only Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १२६ ) निक्षेपा, चउ भंगी मन आणोजी ॥ बीज आराधि संपदा साधि, परमारथ पहिचाणोजी || ३ || बीजदिवस उपवास करीजे, पड़िकमणादिक सारोजी ॥ ए तप सुर सरिखो जाणो, निरुपम सुख दातारोजी ॥ कुमार यक्ष तिम शासनदेवी चंडा सांनिध भूरिजी || शुभफलदायकसंघने होज्यो, श्रीजिनकृपाचंद्रसूरिजी 118 11 ॥ इति धूइ० ॥ ॥ अथ पंचमीनी थुइलिः ॥ नेमिजिनेसर जगपरमेसर, पंचमिगतिनादाताजी || श्रावण सुदिपंचमिदिन जनम्या, त्रिभुवनमें विख्याताजी || समुद्रविजय नंदन जग बंदन, सिवा देवीमाताजी ॥ सहस बरस प्रभु आयुषपाली, पाम्या सिवसुखसाताजी ॥ १ ॥ काति वदि संभव केवल पाम्यो, मिगसर सुबुधि जायाजी ॥ चैत्र चंद्र जन्म अजित संभव, अनंत सुदि सिवपायाजी | वैशाखवदि कुंथु जिन दीख्या, पंचमि जगत सुहायाजी || धर्म धवलजेठ पंचमि सीधा, सुरनर मिल जशगायाजी ॥ २ ॥ पंचमी तपविधि भाखे जिनवर, अर्थ अधिक सुखकारीजी ॥ सूत्रे गणधर गुरु शुभ दाखे आगम मांहि सारीजी ॥ नंदिविधिकरी देवबांदीने, काउसरग मनधारीजी ॥ इकावन ज्ञानना भेदनमीने, श्रुत ज्ञान सेवो इक तारीजी ॥ ३ ॥ पडिकमणो दोय टंक करीने, ज्ञान आराधो प्राणीजी ॥ मगसरादि पटमासमांउचरो, आगममांहि गवाणीजी || जिनआणाधारक सुखकारक, खरतरगण श्रुतखाणीजी ॥ श्री जिनकृपाचंद्रसूरिपभणे, शासनदेवी सुहाणीजी ॥ ४ ॥ For Private And Personal Use Only Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१२७) ॥ अथ अष्टमीनी थुइलि०॥ आठ प्राति हारज जसुसोहे, मोहे भवि जन चंदाजी ॥ चंद्र प्रभु आठम दिनसेवो, अनुभवरसनाकंदाजी ॥ आठ प्रमादतजीनेधारो, परमातम पद सारोजी ॥ द्वीप नंदीसर यात्रा करतां, अरिहंतध्यानप्रकारोजी ॥ १ ॥ रिषभ अजित सुमति सुव्रत नमि, सुपारस संभव आयाजी ॥ आदीश्वर दीक्षा अभिनंदन, नेमिपास शिव पायाजी ॥ भिन्न मास अष्टमी कल्याणक, तीन कालमां जाणोजी ॥ आठ जातिना कलश लइने, मात्र करे सुर राणोजी ॥ २॥ आठे प्रवचन माता पालो दोष सर्वने टालोजी ।। ज्ञानादिआठ आचार सेवीने, आतमतत्व निहालोजी ॥ वीर जिनेसर अर्थ प्रकासे, सूत्र रचै गणधारीजी ॥ आठम तप आराधि भविजन, आठ वरसअधिकारीजी ॥ ३ ॥ पर्वतिथीमे पोषध भाख्यो, सिद्धांतछे जसुसाखीजी ॥ पड़िकमणो तपजप आदरीय, देववंदनविधि राखीजी ॥ आठमंगल आराधतां पावै, सुख संपति गुणभूरिजी ॥ श्रुतदेवीसुपसायलहीने, श्रीजिनकृपाचंद्रसूरिजी ॥ ४ ॥ ॥ अथ इग्यारसनी थुइलि०॥ एकादसी आखि आदिदेवे । आराधिने भवि सिवशर्मलेवे ॥ धरो ध्यान श्रीजिनराजकेरो । टले अनादिकालनो कर्महेरो ॥१॥ मल्लि जन्म दीक्षा केवल पहाणं । अरनाथ चारित्र नमि परम नाणं ॥ दश खेत्रना कल्याणक एम जाणो । दोढसोने वलि त्रणसो पिछाणो ॥२॥ इग्यारे वरस तिम मासकीजै । आराधि For Private And Personal Use Only Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १२८ ) अंग इग्यारह सुजसलीजै ॥ मौनमनधारी शुभधर्मकारी । श्रुतज्ञाननी भक्ति करिये विचारी ॥ ३ ॥ आठपोहरी पोसह करि यथा शक्ते । तप जप करी उज्जमणो सुभक्ते ॥ इक चित्त घ्यावे सुयदेवि पसायें । श्रीजिनकृपाचंद्रसूरि सदा सुख थायें ॥ इति थुइ ॥ 11 8 11 ॥ अथ नवपदजीनी थुइलि० ॥ श्री सिद्धचक्र सुकर जाणो, ध्यान ए भविजन मनमा आगो, आतम तत्व पिछाणो, निरुपम सिव सुख कारण जाणो, आतमने निज घरमा आणो, अविचल संपदा खाणो || श्रीपालराजा नवपद साधे, सुरसुख पामी सेवि समाधे, अरिहंत पद आराधे, मनमोहन जिन गुण अगाधे, दायक लायक सिद्धि अबाधे, जग जश कीरति ला ॥ १ ॥ बारे गुण करि अरिहंत राजे, सिद्ध आठ गुण गणिवरछाजै, गुण छतीशविराजै ॥ पचीश गुण उवज्झायाराजै सत्तावीस मुनि महाराजे, सेवी गुणसुसमाजै ॥ दर्शन ज्ञान चरण तप कहिये, सिड़ सठ इकावन सितर लहिये, भेद पचास क्रम कहिये ॥ तेर सहस वलि गुणनो करिये, चउवीश जिनपति ध्यानज धरिये, इम भवसायर तरिये || २ || आसुमासनी सातमसेती, नव आंबिल करो सुखदेति, चैतरमास वहेति ॥ नव ओलि शुभभावे लेति, इक्यासि आंबिल सहु हेति, बोध बीजनी खेति || श्री श्रीपालने मयणाराणि, हरषभरि हियड़े हुलहाणि, नवपद ध्यान धराणि ॥ नवपदनी नित्य स्तवना जाणि, करो भविक जन शास्त्रप्रमाणी, आगम मांहि गवाणी || ३ || ऋण टंक पांच शक्रस्तवकीजै, दोय टंक आवश्यक लीजै, For Private And Personal Use Only Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १२९ ) काउसग्ग नितकीजै ॥ खमासमण शुद्धचितमां धारो, प्रदक्षिणा करि गुणसंभारो, जिमछूटे भवलारो ॥ देवीचक्रेसरि सांनिधकारि, विमलेसर पूरे आस हमारि, सिद्धचक्रविधिसारि, श्रीजिनकृपाचंद्रसूरिभाखे, जिनआणा मनमांहि राखे, भवि सिवसंपदा चाखे ॥ ४ ॥ ॥ इति नवपद थुइ ॥ ॥ अथ नवपद थुइलि० ॥ सिरिसिद्धचक्क सेवो भवियां, सुहसंपयपावो अविचलियां ॥ १ ॥ सिरिअरिहाइ नवपयझात्रो, चउवीसजिणवइ गुण गावो ॥ २ ॥ नवआंबिल नवओलीकरिये, गुणनोजैति काउसग्ग धरिये ॥ तीनटंकदेवबंदनकीजै, जिनकृपाचंद्रसूरि जशलीजै ॥ ४ ॥ इति० ॥ ३ ॥ ॥ अथ सांतीनाथनी थुइलि० ॥ सांतिजिनराया सर्वजीवसुरकदाया, अचिरादेमाया जास सोवनकाया, विश्वसेनराया जासगुणगणसोहाया, मृगलंछनपाया मोक्षमंदिरसिधाया ॥ १ ॥ पदम वासु विसाला रक्तवर्णे सुहाला, चंद्रप्रभु धवला सुविधिजिनसुरकसवला, मुनिसुव्रत सांगला नेमिजिनराजकाला, मल्लि पारस नीला, सोलजिनराजपीला ॥ २ ॥ जिनवरनीवाणी मीठीसाकरसमाणी, भविजनमनभाणी मोक्षनीछे निशाणी, नयगममनआणी सर्वभंगप्रमाणी, सेवो श्रुतखाणी जैनशास्त्रे वखाणी ॥ ३ ॥ शासनसुखदाइ गरुडराजासहाई, वांछित - फलदाइ देविनिर्वाणीमाई, जिनचरणसहाइ सर्वसंपत्कराई, कृपाचंद्रसूरिदाई संघ शांति वरताई ॥ ४ ॥ इति थुइ ॥ ९ श्रा० नि० For Private And Personal Use Only Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १३० ) ॥ अथ रोहणीनी थुइलि० ॥ वासुपूज्य जिनेसर बंदु मनधरिनेह, सुखसंपतिकारण आराधो गुणगेह, रोहणीतपकरतां पामें भवनो पार, सातवरस सत्तावीश जघन्यउत्कृष्टदिलधार ॥ १ ॥ अतीतअनागतवर्तमान त्रिहुकाल, सहुजिन वरप्रणमो आणिभावविसाल, जिन जन्म महोछब सुरपतिकरे सुविचार, इम चोविशजिनवर पूजोविविध प्रकार ॥ २ ॥ चंद्ररोहिणीदिवसे तपआदरिये सार, गुणनो प्रदक्षिणा खमासमणसुविचार, यथाशक्ति करिये चोविहार उपवास, चित्रसैन रोहिणीपरे पामे लीलविलास || ३ || पड़िकमणो दोयटक देववंदनत्रिहुंकाल, आठपोहरिपोषध काउसग्गसुविसाल, सुयदेविसांनिध रोगसोगसहुजाय, जिनकृपाचंद्रसूरि तपसेव्यां सुखाय ॥ ४ ॥ इति थुइ ॥ ॥ अथ दीवालिनी थुइलि० ॥ वीरजिनेसरभवणदिनेसर अतिशयगुणनादरियाजी, भव्यकमलप्रतिबोधता शोधता श्रमण संघपरिवरियाजी, हस्तिपालराजानी शभामां अंतिमचोमाशी आयाजी, कातिवदिअमावसरात्रे खातिसिद्धसिधायाजी ॥ १ ॥ कल्याणक श्रीरिषभादिकना पांच पांच मनआणोजी, वीरनो गर्भापहारछठो आगममांहि गवाणोजी, तीनकाल जिनपूजाकरिने दीवालीदिन जागोजी, च्यार आठ दश दोय वंदीने आतम निजवर आणोजी || २ || दीवालीदिन छट्टकरीने गुणना ऋण गुणिजेजी, सोलपहरलग पोषघठविने ध्यान प्रभुनो धरिजेजी, गौतमस्वामी केवलपायो पड़वाने पुन्यवंताजी, एका For Private And Personal Use Only Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Achar Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१३१) सणोकरि हरषहृदयधरि सतरे वरसउजमंताजी ॥ ३ ॥ दीवाली दिनअतिउछरंगे कल्पसुणो भविप्राणीजी, ठवणायरियनीपूजा करीने गौतमरासनीवाणीजी, ब्रह्मशान्तियक्षराज सिद्धायिका देवीसांनिधकारीजी, श्रीजिनकृपाचंद्रसरि सेवोदीवालिदिल धारिजी॥४॥ ॥ इति ॥ ॥ अथ पुनमनी थुइ ॥ श्रीसिद्धाचलतीरथसेवो, तीनजगतमांदुजोनएवो, एहथी शुभफललेवो ॥ श्रीआदीश्वरजिनवरराया, पुर्वनीवाणुं इणगिरिआया, इंद्रादिकमनभाया ॥ श्रीपुंडरीकप्रथमगणधारी, पांच कोड़मुनिवरपरिवारी, अणसणकर्यो हितकारी ॥ फागुण पूनिम संलेखनाजाणो, चैत्रीदिननिरुपमगुणखाणो, पाम्या पदनिरवाणो ॥१॥ चैत्रीदिन देववंदनकीजे, भावसहित प्रभु पूजा रचीजे, जिनगुणगाइ जशलीजै ॥ तिलककरो प्रभुने दशवीश, चढता वलि तीश चालीस, पंचाशनी पूजा जगीश ॥ पुष्पअक्षतफलनेवेद्य सारजिनवरपूजा विविधप्रकार, धूपदीपमनुहार ॥ कलशअठोत्तरशत, पूजाकरिये, चोवीशजिनवरध्यानजधरिये, जिम भवसागरतरिये ॥२॥ चैत्रीदिन शुभवारमां लीजै, गुरुमुखथी ए तपऊचरीजै, विधिसहितवहीजै ॥ सोलवरस लग तप आराधि, आतमगुणनिज संपदा साधी, पावे सहजसमाधी ॥ तपपूरणउझमणोधारो, करिने सासन सोभावधारो, जिमहोवेनिस्तारो ॥ काउसग्गप्रदक्षिणा करिये, गुणणोगुणी जिनगुणसांभरिये, आगमविधिअनुसरिये ॥३॥ दोयटंकपड़िकमणो कीजे, चैत्री सेजुंजययात्राकरीजै, For Private And Personal Use Only Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१३२) पुन्यभंडारभरिजै ॥ छहरीपाली जेनरमेटे, संघपतिथइ सहु दुख मेटे, भववनमे नवि लेटे ॥ वारहपूनिम पर्वकहीजै, चारित्रतिथीशास्त्रमांहि लहीजै, चक्रेसरीसांनिधकीजै ॥ श्रीजिनकृपाचंद्रसूरिराजै, खरतरगच्छ जिनआणाछाजै, सुखसंपदा सुसमाजै ॥ ४ ॥ इति पुनम थुइ० ॥ ॥ अथ बीजनु चैत्यवंदनं लिख्यते ॥१॥ द्विविध धर्म जिनवर कह्यो । साधुश्रावकनो जाण । शिक्षा दोय सेवो सदा । ग्रहणासेवन आण ॥ १॥ धर्म शुक्ल दुग ध्यान ने, ध्यावो चतुरसुजाण । आरौिद्र दोयपरिहरो । त्रिकरण शुचि महिरान ॥२॥ अभिनंदन जनम्या प्रभु । सुमति अर चविया । वासु पूज्य थया केवली । शीतल शिव सुख वरिया ॥३॥ सीमंधर युगमंधरा । वीसविहरमान होय । राग द्वेषनो त्याग करी । निश्चय व्यवहार जोय ॥४॥ बीजदिवस आराधिये ए । ज्ञानतिथीसुविहाण । सूरिकृपाचंद्रसेवतां । तपथीकोड' कल्याण ॥ ५॥ ॥ इतिबीजतिथीनो चैत्यवंदन संपूर्णम् ॥ ॥ अथ श्रीपंचमी चैत्यवंदनं ॥२॥ पांच ज्ञान प्रगटायवा । पंचमी तप सुप्रधान । आराधो भवि इकमने । प्रकटे ज्ञान निधान ॥ १॥ अवग्रहादिक जाणिये, मति अठाविश सार, चवदवीशभेद श्रुततणा । अवधि छ असंख्य प्रकार ॥२॥ मनःपर्यव दुगभेदछे । केवलसकलप्रकाश । लोकालोक स्वरूपनो । ज्ञायक ज्ञान एखास ॥३॥ साराधक ज्ञानने । भाख्यो श्री जगदीश | सासोवासमां कर्मनो । क्षयकरे For Private And Personal Use Only Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १३३ ) विशवावीश || ४ || लघु मध्यम उत्कृष्ट पंच । मास वरिस जावजीव । विधिपूर्वक आराधतां । पामे ज्ञानसदीव ॥ ५ ॥ दोयपरोक्ष प्रत्यक्षतीन । श्रुत उपगारी जाण । सूरिकृपाचन्द्र प्रणमतां । लहियें निर्मल नाण ॥ ६ ॥ इति पंचमी चैत्यवंदन संपूर्ण ॥ ॥ अथ अष्टमीनुं चैत्यवंदनं लिख्यते ॥ ३ ॥ आठमदिन आराधिये । प्रवचनमातासार | अष्टसिद्धि आपे सदा । कापे कुमतिकुठार || १ || आठमद निवारिने । अष्टकर्म करि अंत । श्रावणसुदिआठमदिने । पासजीलह्या भवअंत ॥ २ ॥ भादरवावदि आठमें । सुपासचव्याजगभाग । माघ सुदि जनम्या अजित, फागुन संभवचव्यां जाण ॥ ३ ॥ चैतर यदि आठम रिषभ । जन्म दीक्षावे जाण । वैसाखसित अष्टमी। अभिनंदन निर्वाण ॥ ४ ॥ एहिजतिथी जनम्या सुमति । जेठ बदि मुनि सुव्रत, आषाढसुदि आठम । नेमिजिनेसर निर्वृत ॥ ५ ॥ श्रावण वदि आठम दिने । नमिजनम्या जिन जाण । पोसह करो आठपहेरनो । जिमलहो गुणमणिखाण ॥ ६ ॥ अष्टमी इम आराधिये । त्रिकरणकरि इकठोर । कृपाचंद्रसूरि भवितणा । तूटे कर्म कठोर ॥ ७ ॥ इति अष्टमी चैत्यवंदनं || ॥ अथ एकादशीनुं चैत्यवंदनं लिख्यते ॥ ४ ॥ श्रीमल्ली त्रिभुवन धणी । जन्म दीक्षाने ज्ञान | कल्याणकएकादशी । मिगसर शुदि मनआण || १ || अर पारस दीक्षाग्रही । एकादशी दिन जाण । रिषभ अजित सुमति नमि, पाम्यो केवलनाण ॥ २ ॥ पद्मप्रभु सिवपुरलह्यो । एकादशी अतिरूडी । For Private And Personal Use Only Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१३४) इग्यारे अंग आराधवा । ए तिथी नहीं कूडी ॥३॥ इग्यारे गणधर थया । द्वादशअंगरचनार । जिनकृपाचंद्रसरि सेवतां । पामे भवनो पार ॥ ४ ॥ इति एकादशी चैत्यवंदनं ।। ॥ अथ १० शीतलजिन चैत्यवंदनं लिख्यते ॥५॥ शीतल जिनपतिजगतिलो, शांति सुधारससार । अंतर ताप वुझायवा । प्रभु दरसण जलधार ॥ १॥ सुग्रीव कुलनभ दिनमणि । नंदामात सुजात, तीनभवनतारनतरण, प्रभुजीछो विख्यात ॥२॥ अंतर वैरी नमायवा । नमि सेवो जगदीश । पारस फरसन तें हुवे । पावन विसवा वीश ॥३॥ उगणीसे तेहोतरे, बुहारी थाप्या ईस । प्रभुपदपंकजमां नमें ॥ कृपाचंद्रसूरीश ॥ ४ ॥ इति १० शीतल जिन चैत्यवंदनं ॥ ॥ अथ १२ वासुपूज्यजिन चैत्यवंदनं लिख्यते॥६॥ __बारम जिनवरवंदिये । वासुपूज्य जिनचन्द । रक्तवरणयुति सुंदरू, मोहे सुरनरइंद ॥ १॥ सित्तरधनुषनी देहडी । लाख बहुत्तर आय । त्रिकरण जोगे आराधतां । निजगुणनिर्मलथाय ॥२॥ देरासर भलो दीपतो ए ॥ बुहारी नगरमज्झार । सूरिकृपाचंद्र सेवतां । पामे जगजयकार ॥३॥ इति श्रीवासुपूज्य जिन चैत्यवंदन संपूर्ण ॥ ॥ अथ पर्युषण पर्वनो चैत्यवंदनं ॥७॥ - श्रीवीर जिनेसर भाखियो । पर्वोमांसिरदार। रत्नोमां चिंतामणि । गिरिमां शत्रुजयसार ॥ १ ॥ लोकिक लोकोत्तर बलि । पर्वघणा दिलधार । पजुषण सम को नहिं । बोल्या शास्त्रमझार For Private And Personal Use Only Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१३५) ॥ २ ॥ नंदीसर दीपेजई। उच्छव करे सुरराज । तिम श्रावक आराधतां । सारे वांछितकाज ॥३॥ आस्रव कषाय निवारिने । समायक करो शुद्ध । जिनपूजा परभावना । करिने तरो भव बुद्ध ॥ ४ ॥ कल्पसूत्रसुणो इकमना । संवच्छरी पडिकमिये । जिनकृपाचंद्रसूरि सेवतां । भवमा नवि भमिये ॥ ५॥ इति ॥ ॥ अथ नवपदजी चैत्यवंदनं लि०॥ ८॥ श्रीअरिहंतनाबारगुण, सिद्धनाआठकहाय ॥ छत्तीशगुण सूरितणा । पचवीसकह्या उवज्झाय ॥१॥ मुनिवरगुण सत्तावीसछै । दरशणसडसठजोय । ज्ञानइकावनभेदछ । चारित्र सित्तर होय ॥ २ ॥ तप पञ्चाशगुण जाणियै । नवपदनाश्रीकार ॥ एकंदर सहुध्याइये । त्रणसैच्छयालीश सार ॥३॥ आंबिलकरि आराधियै । नवओली सुजगीश । त्रिकरणयोगेध्यावतां । जिनकृपाचंद्रसूरीश ॥४॥ इति ॥ ॥ अथ रोहिणीतप चैत्यवंदनं ॥ ९॥ . वासुपूज्यजिनवरनमुं, बारमजिनसिरताज, रोहिणीतप आराधतां, सारे बांछितकाज, ॥१॥ चोविहारउपवासकार, पूजक पूजीदेव, दोयसहसगुणनो करी, त्रिकरणथिरकरोसेव ॥ २ ॥ सत्तावीशलोगसतणो, काउसग्ग दिलधार, खमासमणदेइभावथी, प्रदक्षिणासुविचार, ॥३॥ स्वस्तिककरि फलढोइयै, पूजाविविधप्रकार, जिनकृपाचंदररिसेवतां, पामे भवनोपार, ॥४॥ इति रोहणीतपनो चैत्यवंदनं सं०।) ॥अथ श्रीवीरजिन चैत्यवंदनं ॥१०॥ चोविसमजिनवर नमुं, महावीरजिनदेव, शांति सुधामय चं For Private And Personal Use Only Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१३६) दलो, सुरनर सारे सेव ॥ १ ॥ भद्रेसरमें दीपतो, देरासर मनुहार, वीरजिनेसर जगजयो, बावनदेहरी सार ॥२॥ त्रिसलानंदन जगधणीए, सुख संपति करतार, त्रिकरणयोगे प्रणमतां, कृपाचंद सुखकार ॥३॥ इति श्रीवीरजिन चैत्यवंदनं संपूर्णम् ॥ ॥अथ श्रीनेमिजिनचैत्यवंदनं ॥११॥ नेमिसरजिन जगधणी, रैवतगिरिसिणगार, यादवकुल नभ दिनमणि, भवियण ने सुखकार ॥१॥ तीन कल्याणक इहां थयां, दीक्षानाण निरवाण, भव्य मनोरथ पूरवा, चिंतामणी समजाण ॥२॥ शिवरमणी रंगे वर्या ए, बावीसमजिनचंद, कृपाचंद नितप्रति नमै, शिवसुखतरूनोकंद, ॥ ३ ॥ इति नेमिजिन चैत्यवं-दन संपूर्णम् ॥ ॥ अथ श्रीचतुर्विशति जिनलांछन चैत्यवंदनं ॥१२॥ रिषभ वृषभ गज अजितने, संभवघोडोजाण, अभिनंदनने वांदरो, कौंच सुमति मन आण ॥१॥ पद्म पद्म स्वस्तिक सुपार्थ, शशिचंद्रप्रभ लहिये, मकर सुविधि शीतलश्रीवत्स, श्रेयांसखडगी कहिये ॥२॥ वासुपुज्य महिषतणो, विमल वराह नो जाणो, अनंतश्येन वज्र धर्मने, शांति मृग पहिचानो ॥३॥ कुंथुनाथने, बोकडों, अर नंद्यावर्त होय, मल्लीघट सुव्रत काछवो, नमि निलोत्पल जोय ॥ ४ ॥ नेमि संख फणि पार्थने, वीर सिंह कहाय, कृपाचंद्र ध्वज युतनमुं, चउवीसे जिनराय ॥ ५॥ इति चतुविंशतिजिनलांछनचैत्यवंदनं संपूर्णम् ॥ ॥पूनिमचैत्यवंदनं ॥ १३॥ : श्रीजिनसासनजगजयो, पर्वसिरोमणिजाण, पूनिमपर्वमोटो कह्यो, For Private And Personal Use Only Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १३७ ) त्रिकरणशुचिमनआण || १ || श्रावणसुदिपूनिमचव्या, मुनिसुव्रतजगदीश, आसोजीपूनिमचव्या, नमित्रिहुंजगनाईश ॥ २ ॥ मिगसर पूनिम संभव, संयमलीधोसार, पौषी धर्मजिनेसरु, केवल ज्ञानउदार || ३ || चैत्री श्रीपद्मप्रभु, केवलज्ञानप्रधान, इम पुनिममांजाणी कल्याणक सुखखान || ४ || दशवीशत्रीश चालीशनी, पंचाश पूजासार, फलअक्षत नैवेद्यनी, पूजा विविध प्रकार ॥ ५ ॥ चैत्रीसेज सेविये, जात्राकरीमनरंग, तिमकार्तिकी आराधिने, करोसद्गुरुनोसंग ॥ ६ ॥ बारहपूनिम आराधियेए, श्रीयुगादिजिनदेव, जिनकृपाचंद्रसूरिसदा, सुरनरसारेसेव ॥ ७ ॥ ॥ इति पूनिम चैत्यवंदनसं० ॥ सोलमजिनवरसेविये, शांतिनाथसुखकार, अचिराउद रेऊपना, भाद्रववदिसातमसार ॥ १ ॥ जेठवदितेरसप्रभु, जनम्या जगतदयाळ, मारिनिवारणथीथयो, शांतिनाम सुरसाल ॥ २ ॥ चक्रिपदपाम्योप्रभु, चउदशसंजमलीध, पौषसुदिनवमीदिने, केवल सर्व प्रसीध || ३ || जनमदिवसप्रभुपामीयो, सिवसुख परमपवित्र, लाखवरसनो आउखो, सुणोश्रीसांतिचरित्र || ४ || मृगलांछन सेवितसदा, गरुडयक्षअभिराम, जिनकृपाचंद्रसूरि सेवतां, निर्वाणी पूरेकाम ॥ ५ ॥ इति सांतिनाथजी चैत्यवदनं ॥ १४ ॥ वामानंदनपासजी, अश्वसेनकुलचंद, नीलवरणशुचिदेहडी, सेवें सुरनरइंद ॥ १ ॥ चेतवदि चोथऊपना, माता कूखे स्याम, पोषदशमी जनम्याप्रभु, त्रिभुवनजन विसराम ॥ २ ॥ इग्यारस दीक्षाग्रही, कमठ हरावीईश, चैत्रकृष्णनीचोथने, केवल लह्यों जगीश ॥ ३ ॥ संघथापीने जगगुरु, विचर्यादेशविदेश, वाणा For Private And Personal Use Only Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१३८) रसी नगरी थया, चउकल्याण विशेष ॥ ४॥ आषाढसित आठमे, सिववधु झाल्यो हाथ, जिनकृपाचंदररिसदा, सेवोजगनानाथ ॥५॥ इति पारसनाथ चैत्यवंदन ॥ १५ ॥ - वीरजिनेसरजगधणी, त्रिशलानो जायो, आषाढशुदिषट्ठी प्रभु, देवानंदा उदरे आयो॥१॥ आश्विनवदि त्रयोदशी, हरणेगमेषी ईश, त्रिशलाउदरे संक्रम्या, चवदे स्वप्न लहीश ॥२॥ चैत्रशुक्लत्रयोदशी, जन्मथयोसुखकार, चौसठइंद्राव्या तिहां, स्नात्रकरे विधिसार ॥३॥ वर्धमान नाम थापीयो, वृद्धितणे अनुमान, मिगसरवदि दशमीलीयो, संजम सुखनी खान ॥ ४॥ वैशाख सुदि दशमीदिने, केवल पाम्योसार, पावापुरी मुगते गया, दीवालीसुखकार ॥५॥ इम कल्याणक प्रभुतणा, आराधे नरनार, जिनकृपाचंद्र मूरि कहे, पामे भवनो पार ॥६॥ इति श्रीमहावीर स्वामी चैत्यवंदनं ॥ १६ ॥ ॥अथ नव पद वृद्ध स्तवनं ॥ (दुहा ) अरिहंतादिकपदतणो । ध्यानधरि मनमांहि, सिद्ध चक्रगुणवरणवू; त्रिकरणधरिउच्छाहि ॥ १ ॥ राजग्रहीनयरी भली । समवसर्या गणधार ॥ सिद्धचक्रगुणवरणव्या, तेसुणजो अधिकार ॥ २॥ ( ढालपहली) जगजीवनजगबालहो ॥ एदेशी, श्रीगौतमगणेसरु । पभणे भविसुखकार लालरे । श्रेणिक पमुहा सांभले । उत्तमधर्मविचार ला० श्री० ॥ ३॥ दुर्लभ मानुष्यभव लही। सेवो श्रीजिनधर्म ला० दानादिकचउभेदथी। आराधिलहोशर्म ला० श्री० ॥ ४ ॥ भावविनाजे दानछे । For Private And Personal Use Only Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१३९) सिवसुखतेहथी न थाय ला० सीयल ते निष्फळलोकमां । भाव विना कहिवाय ला० श्री० ॥५॥ भाववीहूणो तपसहि । भव वित्थारणहेतु ला० दानादिकमावेमिल्या । भवसायरना सेतु ला. श्री० ॥६॥ भाव मनोविषयिकह्यो, सालंबनमनजाण ला. आलंबनबहुजातिना । नवपदमनमा आण ला० श्री० ॥७॥ अरिहंत सिद्ध आचारज । उवझाय साधुवखाण, लालरे दर्शन ज्ञान चारित्रवलि । तप ए नवपद जाण ला० श्री०॥८॥ ढाल दूसरी ॥ भरतरीनीदेशी ॥ नवपद ध्यावो भविजना। त्रिकरण करिइकतारजी ॥ गौतमस्वामी उपदिसै, श्रेणिकनरपतिसारजी॥न० ॥ ९॥ अढारदोष दूरे टल्या । केवलज्ञानप्रकाशजी ॥ देवदानवपति प्रणमता । प्रगट करे तत्व खासजी न०॥ १०॥ एहवा श्री अरिहंतने । ध्यावोचतुर सुजाणजी ॥ भाव सहित आराधतां । सिवसुखलहोमहिराणजी न० ॥११॥पनरभेद प्रसिद्ध छ । कर्म रहित सुखदायजी ॥ सिद्धअनंतचतुष्कता ध्यावो सिद्धलयलायजी न० ॥ १२ ॥ पंचाचारने पालता, परउपगार प्रधानजी ॥ शुद्ध सिद्धांत चखाणता आचारजश्रुतखानजी न० ॥१३॥ गणप्ति करता भला । सूत्रअर्थनोदानजी । शिष्यादिकने आपता । नमोउवज्झायसुजानजी ॥ १४ ॥ कर्मभूमिमां विचारता । रत्नत्रयनाधारजी ॥ सुमति गुपति मुनिपालता । निकषाया सुविचारजी न० ॥१५॥ जिन प्रणीत जोशास्त्रमा । तत्वसदहण स्वरूपजी, दरशन रयण प्रदीपने। धारोचितमां अनूपजी न० ॥१६॥ जीवादिकपदार्थनो । बोधखरूप विचारजी, विनयकरि सीखोसदा । नाणछे सर्व आधारजी न० ॥१७॥ अशुभक्रियानो त्याग छै । सुभ किरिया अप्रमा For Private And Personal Use Only Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १४० ) दी | उत्तम गुण निरुक्तथी | लहोचरणनो खादजी न० ॥ १८ ॥ सघन करमतमहरणकुं । भानुसमोतपजाणजी ॥ कषायरहित वारभेदछै । तपपदमनमांआणजी न० ॥ १९ ॥ ( ढाल ) तीजी ॥ कपूर हुवे अतिऊजलोजी एदेशी । एनवपदजिनधर्मनोजी, सारभूत कहिवाय, सिवसुखनोकारकसहीजी, आराधो गुरु सहाय, भविकजनसेवो जिनउपदेश, पभणे प्रथमगणेश, भ० ॥ ॥ २० ॥ ए नवपदथी नीपजैजी, सिद्धचक्रयंत्रराज, आराधिने सुखलोजी, जिम श्रीपालमाहाराज, भ० से० ॥ २१ ॥ तब पूछे मगधेसरूजी, कुणश्रीपालनरेश, किमआराधिसुखपामीयोजी, करुणाकरो गणेश भ० से० ॥ २२ ॥ गौतमस्वामि उपदिशेजी, निसुणो श्रोणिकराजान, चंपानगरीनोराजीयोजी, श्रीपालनामसुजाण भ० से० ॥ २३ ॥ उंबररोगेपीडीयोजी, परणि राजकुमारी, उज्जयणीमाजूहा रियाजी, रिषभेश्वर मनुहारी भ० से० ॥ २४ ॥ मुनिचंद्रगुरुउपदेशथीजी, आराध्यो सिद्धचक्र, रोगगयो वलिसुखलह्योजी, संपदापामी जिमशक भ० से० ॥ २५ ॥ नवपद ओली आंबिलतणीजी, नवराणीनेसाथ, उज्जमणो पूरण हुवांजी, करि खरच्यो घणो आथ भ० से० ॥ २६ ॥ नवपडिमा - देरासरुजी, नवजीरणउद्धार, पहिलोपदआराधियोजी, नवपूजा मनुहार भ० से० ॥ २७ ॥ इमनवपद विस्तारथीजी, पूंजी लह्यो सुखसार, आयुपूरण करि ध्यानथीजी, नवमे स्वर्ग अवतार भ० से० ॥ २८ ॥ इमश्रीपालनाभवथ कीजी, नवमेभव सहु सार, निरुपम शिव सुख पामशेजी, कहे गौतमगणधार भ० से० ॥ २९ ॥ श्रेणिक सुणि हरखित थयो जी, प्रभुजीना वांद्या For Private And Personal Use Only Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १४१ ) पाय | वीरजिनेसर इम भणे जी, सुणश्रेणिक नरराय भ० से० ॥ ३० ॥ एक एक पद आराधतांजी, केई पाम्या भव अंत, नव पद ते निज आतमाजी, ध्याता ध्येय लहंत, भ० से० ॥ ३१ ॥ तीर्थकर पद पामस्येजी, तुंइणभरतमझार, इम सांभलि नृप आनंदियोजी, निजघरपोतो सुखकार भ० से० ॥ ३२ ॥ कलश ॥ इम वीरजिनवरभुवन दिनयर नवपदमहिमावरणव्यो, सुरतवंदररहि चोमासो सिद्धचक्रगुणगणस्तव्यो, संवतउगणीसेपचोत्तर आश्विन शुदिसातमदिने, जिनकृपाचंद्रसूरिपभणे वर्तो मंगल प्रतिदिने ॥ ३३ ॥ इति नवपद वृद्ध स्तवनम् ॥ ॥ अथ दूजनो स्तवनम् ॥ ( दुहा ) वर्द्धमान जिनवंदिये, त्रिशलानंदनदेव, सिंहलंछन सेवितसदा, सुरपतिसारे सेव || १|| जन्मसमेथी जग गुरु, अतुलवलि वड वीर, तप उत्तम विधियुतको, जलनिधि जिम गंभीर ॥ २ ॥ ( ढाल पहली ॥ ) कृपानाथ मुझवीनती अवधार ॥ ए देशी || धर्म करो जिनराजनोजी, आणी उल्लटभाव, दोयभेदे आराधतांजी, पामोआत्मखभाव, भविकजनसेवो श्रीजिनवाणी, निजगुणमणिनी खाणी ॥ भ० ।। १ ।। तिथि आराधन फलतणोजी, शास्त्रमiहे अधिकार, बीजआराधो भविजनाजी, तपकिरिया विधिसार भ० || २ || दोयमासलघु दूजनेजी, जावजीव उत्कृष्ट, दोयवरस दोयमासनीजी, करो बीज शुभदृष्ट ॥ भ० ॥ ३ ॥ पडिकमणा दोय टंकनाजी, देववंदन निरधार, विधिसेतीफल नीपजेजी, पामेभवनोपार ॥ भ० ॥ ४ ॥ बीजदिवसनो सहु जुवेजी, चंद्रोदयसुप्रसिद्ध, वधतिकलातिमजाणजोजी, धर्मथी For Private And Personal Use Only Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१४२) वांछित सिद्ध ॥ भ० ॥ ५ ॥ दुविधधर्म जिनवरकडोजी, देशने सर्वविरत्त, धर्म शुकल दोयध्यानमांजी, होय सदा निरत्त ॥ भ० ॥६॥ अर्थ प्रकासे जिनवरूजी, सूत्ररचे गणधार, विहूं सेवे वाचंयमीजी, द्वादश अंग विचार, ॥ भ० ॥ ७॥ (ढाल दूसरी)॥ नमोरे नमो सेबूंजगिरिरे ॥ एदेशी ॥ बीजदिवसमां जानियेरे, कल्याणक सुविसालरे, श्रावण सुदि बीजे चव्यारे, सुमतिनाथ दयालरे, नमोरे नमो जिनचंद्रनेरे ॥१॥ माघमासनी ऊजलीरे, बीज दिवसमां जागरे, अभिनंद जनम्या प्रभुरे, त्रिहुं जगना महिराणरे ॥ नमो रे० ॥२॥ ए हीज तिथी वासुपूज्यजीरे, पाम्यो केवलनाणरे, फागुणसुदिबीजे जानियेरे, अरनाथचवन सुजाणरे ॥ नमोरे० ॥३॥ समेतसिखरपर सिववर्यारे, सीतल जिनवरनाणरे, चैतवदिवीजसुंदरुरे, अविचलसुखमनआणरे, ॥ नमो० ॥ ४॥ इम कल्याणक इनतिथीरे, काळ अनंते होयरे, अणंत कल्याणक जाणजो रे, एह आगमविधि जोयरे ॥ नमो० ॥ ५ ॥ तपपूरणहूवा थकारे, उज्जमणो सुविवेकरे, रत्नत्रयी आराधवारे, धन खरचो बहुछेकरे ॥ नमो० ॥ ६॥ सीमंधरादि जिनवरारे, विहरमानजिनवीसरे, मनमंदिरमांआवजोरे, जिनकृपाचंद्रसूरीसरे नमो० ॥७॥ इति बीजका स्तवन संपूर्णम् ॥ ॥अथ पंचमिका वृद्ध स्तवन लि०॥ दुहा ॥ सिद्धारथ कुल दिनमणि । त्रिसलादेवि सुजात ॥ वर्द्धमानजिनचंदकु । नमन करि परभात ॥१॥ गुरुदरियो भरियो गुणै, किण विधि तरियो जाय ॥ बलिहारि गुरुदेवनी, मोमनरह्यो लोभाय ॥२॥ जिन वाणी पीयूपरस, पानकरो निशिदीश ॥ For Private And Personal Use Only Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १४३ ) + पामो नाण सुहुंकरु । भाखै जगनाईश || ३ || ( ढाला ) कपूर हुवै अति ऊजलोजी ॥ ए देशी || ज्ञानआराधो भविजनाजी । आणि भक्तिअपार, पांचज्ञानप्रगटायवाजी । पंचमीसेवोउदाररे, प्राणि जिनवाणीमन आण, अनुपमसुखनीखाणरे ॥ प्रा० जिन० ॥ १ ॥ नाण बडो संसारमांजी, ज्ञानथी मुगति थाय, ज्ञानदीपक सम जाणियेजी, सर्व लोक प्रगटायरे ॥ प्रा० ॥ जिन० ॥ २ ॥ दिव्यज्ञानलोचनकह्योजी, लोकालोकदेखाय ॥ ज्ञानविनापशुसारिखोजी, जाणे नहीं नर कांयरे ॥ प्रा० ॥ जिन० ॥ ३ ॥ ज्ञान आराधकसर्वथीजी, किरिया देशविचार, भगवति सूत्रमां भाखियोजी, आठमें शतक मझाररे ॥ प्रा० ॥ जि० ॥ ४ ॥ अज्ञानी क्रोड वरसमांजी, तप करि निर्जरा जेह, ज्ञानी स्वासोखासमांजी, कर्मक्षय करे तेहरे ॥ प्रा० ॥ जि० ॥ ५ ॥ ज्ञानतणो अधिकार छे जी, नंदीसूत्र मझार, क्रिया सहित ज्ञान सुंदरूजी, मोक्षतणो दाताररे ॥ प्रा० ॥ जि० ॥ ६ ॥ जिमसोनो सुगंधथीजी, रत्नमुंदडी ये जाण, संख सोहे दूधे भर्योजी, तिमकिरयायुतनागरे ॥ प्रा० ॥ जि० ॥ ७ ॥ महानिसीथमां है कह्योजी, पंचमीविधिविस्तार, वीरजिनंदे दाखियोजी, सूत्रैश्रीगणधाररे । प्रा० । जि० |८| ( ढाल बीजी ) सखि आजअनोपमदीवालि || एदेशी ॥ ज्ञान आराधी संपदासाधी, निजगुणनो एउपगारी, सखि नाण सुहंकर गुणकारी ॥ ९ ॥ पंचमी तप विधियुत भवि करकै, नाणने सेवो इकतारी || स० ना० ॥ १० ॥ मगसर माह फागुण बैसाख, जेठ आषाढने दिलधारी ॥ स० ना० ॥ ११ ॥ एषदमासे विधियुत लीजे, शुभदिन गुरुमुखथी सारी ॥ स० ना० ॥ १२ ॥ देववंदनदेहरासर For Private And Personal Use Only Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१४४) करीने, पोथीपूजो सुविचारी ॥ स० ना०॥ १३ ॥ गीतारथगुरु चरणनमीने, नंदिविधिकरि हितकारी ॥ स० ना० ॥१४॥ गुरुमुखउपवासभावेकरीने, पडिक्कमिटालो अतिचारी ॥ स० ना० १५॥ शास्त्रमणोश्रीसद्गुरुपास, पंचमीदिनआरंभटारी । स० ना० ॥१६॥ पांचवरसपांचमासनेउत्कृष्ट, जावजीवकरे इकतारी ॥ स० ना० ॥ १७ ॥ पांचमासलघुपंचमीकीजै, स्तवनथुइकहे ब्रह्मचारी ॥ स० ॥ ना० ॥ १८ ॥ ढालतीजी ॥ पहलोअंग सुहामणोरे ॥ एदेशी ॥ ज्ञाननमोगुणभविजनारे, नाणप्रकाशकजाणरे सुगुणनर, पंचमीतपविधियुतकरीरेलाल, पामो अविचलनाणरे ॥ सु० ॥ ज्ञा० ॥ १९ ॥ दोयभेदे नाणजाणीयेरे । निश्चयने व्यवहाररे ॥ सु०॥ त्रणअनुयोगव्यवहारमारे ॥ ला०॥ द्रव्य निश्चय सुखकाररे ॥ सु०॥ ज्ञा० ॥ २० ॥ पांचज्ञानना भेदछे रे, इकावनसुविशेषरे ॥ सु० ॥ भिन्नभिन्न ते दाखव्यारे ॥ला०॥ तेह कहुं लवलेशरे ॥ सु० ज्ञा० ॥२१॥ मतिज्ञानना जाणियेरे, आठावीश प्रकाररे ॥ सु०॥ श्रुतनाचवदेनेवीशछेरे, अक्षरादिक सुविचाररे । सु० ॥ ज्ञा० २२ ॥ अवधि छ असंखभेदछेरे, मनपर्यवदुगजाणरे ॥ १० ॥ लोकालोक प्रकाशको रे ॥ला. केवल मनमें आणरे ॥ सु० ज्ञा० ॥ २३ ॥ तीनज्ञान प्रत्यक्षछैरे, देशसर्व सुजगीशरे ॥ सु० ॥ अवधिमनपर्यव बलिरे ॥ ला० ॥ देश प्रत्यक्ष कह्या ईशरे ॥ सु० ॥ ज्ञा० ॥ २४ ॥ केवल सर्व प्रत्यक्षनेरे, ध्यावो परमपवित्ररे । सु०॥ दोय परोक्ष पिछाणियेरे ॥ ला० मतिश्रुतभेदविचित्ररे ॥ सु० ॥ ज्ञा० ॥ २५ ॥ च्यार ज्ञान ठप्पाकटारे, श्रुत अनुयोग विचाररे ।। सु० उद्देशादिक For Private And Personal Use Only Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१४५) जाणियेरे, ला० अनुयोगद्वारमझाररे ॥ सु० ॥ ज्ञा० ॥ २६ ॥ उपगारि श्रुतनाणथीरे, जाणे आज त्रिकालरे ॥ सु० ॥ परबोधकश्रुत सैवियेरे लाल, सदगुरुचरणनिहालरे ॥ सु०॥ज्ञा० ॥२७॥ वायण प्रछना परावर्त्तना रे, अनुपेहा दिलधाररे ॥ सु० ॥ धर्मकथा कही कीजीयेरे ॥ ला० ॥ सझाय पांच प्रकाररे॥ सु० ॥ ज्ञा० ॥२८॥ अंग इग्यार बार उपांगछेरे, दश पयना नंदीशरे ॥ सु० ॥ छछेद चउमूल दिलधरोरे ला० ॥ अनुयोगदार पैतालीशरे ॥ सु०॥ ज्ञा० ॥ २९ ॥ ढाल चोथी ॥ गरवेनी ॥ स्वामीशरीरसोसाइ गयो ॥ एदेशी ॥ ज्ञानभजो भविप्राणीया, वंछितफलदातार, ज्ञानी दीपक समकह्यो, सूत्रै श्रीगणधार ॥ ज्ञान० ॥३०॥ सुरतरु सुरमणि सुरगवि, कल्पलताअनुकार, एहथीअधिकोजाणिये, महिमा अगमअपार ॥ ज्ञा० ॥ ३१॥ कालअनादिलगे भम्यो, मिथ्यामति भवमाय, सम्यग्रज्ञान प्रगटे यदा, भवमें न रहाय ॥ ज्ञा० ॥ ३२ ॥ समकितगुणप्रगटाबवा, त्रणकरणकरेजीव, समकितज्ञान एकणसमे, लहै सुखअतीव ॥ ज्ञा० ॥ ३३ ॥ देशविरतिपातदा, पल्यपहुत्तस्थितिजाय, संख्यातसागरगया चरणधर, ज्ञानादिकचितलाय ॥ ज्ञा० ॥ ३४ ॥ घातिकरमनो क्षयकरी, केवलज्ञानप्रकाश, भव्यकमलप्रतिबोधता, विचरे भगवंतखास ॥ ज्ञा० ॥ ३५॥ ज्ञानचरणदोयभेदछै, मुक्ति कारणजाण, तपसंजमबिहुँदाखिया, भावए मनमांआण ॥ ज्ञा० ॥ ३६ ॥ पंचमिआराधनाकरि, ज्ञानभगतिकरो सार, तपपूरणथयां कीजिये, उजमणो सुविचार, ॥ ज्ञा० ॥ ३७॥ पांच पांच ज्ञानादिना, उपगरण करो सार, धनखरचो बहुभावथी, लहो पुन्य १. श्रा०नि० For Private And Personal Use Only Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१४६) संभार ॥ ज्ञा० ॥३८॥ देवो दान सुपात्रने, साहमीवछलसार, भगतिकरो साहमीतणी, रात्रीजागोउदार ॥ ज्ञा० ॥ ३९ ॥ वरदत्तने गुणमंजरी, ज्ञानआराधिनेसुख, पामी अविचलपदलह्या, मेटीनेभवदुःख ॥ ज्ञा० ॥४०॥ कलश । संवत्उगणीसैपिचत्तर पोषवदिएकम भले, सुरतबंदरभविक सुखकरसीतलजिनसुपसाउले, श्रीवीरजिनवर पंचमितपविधिप्रकाश्यो सुभमणे, सुविहितपरंपरगच्छखरतर जिनकृपाचंद्रसरिभणे ।। ४१॥ ॥ इति पंचमी ४ ढालनो स्तवनम् ॥ ॥ अथ अष्टमी वृद्ध स्तवनं लिख्यते ॥ ॥ दुहा ॥ बर्द्धमान जिनवरनमुं । समरिसारदमाय । अष्टमी तप विधिवरणवू । आगमयुतसंप्रदाय ॥ १ ॥ आठम तिथी आराधवा । भाखें त्रिजगभाण ॥ विधिसेति तपकीजिये । पामेउत्तमनाण ॥२॥ ॥ ढाल पहली शंभवजिनवरवीनती एदेशी॥ आठम तप आराधिये । अष्टमीगति दातारोरे ॥ प्रवचनमाता आठने । पालो निसदिन सारोरे ॥ आठम० ॥१॥ अष्टसिद्धि कारक सदा । आठमतप उजमंतारे, सामायक पोसहकरि, पर्वतिथि सेवतारे ।। आ० ॥२॥ पर्वतिथीमा बंधाय छ । प्रायें परभव आयुरे । तिणकारणतिथीतपकरो । आगममांहि गवायु रे ॥ आ०॥३॥ बृहदावश्यकवृत्तिमा । हरिभद्रसुरिलोलेरे, तिमचूर्णिलघुवृत्तिमां, योगशास्त्रमे खोलेरे ॥ आ० ॥ ४ ॥ नवपद प्रकरणवृत्तिमा । दिनकृत्यदेवेंद्रसरिरे ॥ विधिप्रपा पंचाशक For Private And Personal Use Only Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १४७ ) चलि । इम अधिकार छे भूरिरे || आ || ५ || सामायक पहिलां को । पाछल हरियानो पाठ रे । जाणे पण माने नहिं । एह कर्मनो ठाठ रे || आ० || ६ || विधिथी सामायिककरो । जिमपामो भवपारोरे ॥ अविधिथी किरियाकरि । नवि छूटे भवनो लारोरे ॥ आ० ॥ ७ ॥ ॥ ढाल बीजी यतनी ॥ परवतिथिये पौषधकरिये । शुद्धआगमने अनुसरिये । वलि आठ कर्मने हरिये । सलूणा भावभले आराधी, एतो आराधि सिवसुख साधो । सलूणा आठमतिथी आराधो ॥ १ ॥ आठम दोय चउदस कहिये । अमावस पूनिम लहिये । एह छ तिथी चारित्र वहिये || स० ॥ भा० ॥ २ ॥ वली कल्याणकतिथी जाणो । पज्रषण मनमां आणो । इत्यादिकपर्वपिछाणो ॥ स० ॥ भा० ॥ ३ ॥ बीजेअंगे पांच अंगे । उपाशकदशा सुखसंगे । आवश्यकटीका उमंगे || स० ॥ भा० ॥ ४ ॥ इत्यादिक आगम साखे । परवतिथिये पौषभाखे । विधियुत करताफलचाखे ॥ स० ॥ भा० ॥ ५ ॥ जे नित्यपौषधने ताणे । आगम विधि ते नवि जाणे । हरिभद्र वचनपरमाणे || स० ॥ भा० ॥ ६ ॥ ॥ ढाल ३ जी जइने कहेजो मारा वालाजीरे ए देशी ॥ आठम परa तिथीकही । मारा वालाजीरे । आराधो गुण गेह | जगगुरु वंदिये । मारा वालाजीरे । एह तिथी कल्याणक घृणा । मारा वालाजीरे । त्रिहुं कालना गिणो तेह | जगगुरु वं० मारा वालाजीरे || १ || आचारांगमां भाखिया || मा० ॥ वा० ॥ भावनाअध्ययनसार ॥ ज० ॥ मा० ॥ ठाणांगठाणेपाचमे || मा० For Private And Personal Use Only Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १४८ ) ॥ वा० ॥ कल्पसूत्रमनुहार ॥ ज० || २ || आगम प्रकरणचरित्र - वणा || मा० ॥ वा० || एमाप्रकटपणे तूंजोय ॥ ज० ॥ वं० ॥ षट् कल्याणक वीरना || मा० || वा० || आगम मांहे होय ॥ ज० ॥ वं० ॥ ३ ॥ पजूसणकल्पे को || मा० वा० ॥ पचास दिवस प्रमाण । तेह नवि मानेमानथी । मा० ॥ वा० ॥ जिनआज्ञा सुखखाण || ज० वं० ॥ ४ ॥ इम अनेक कल्पना करि ॥ मा० ॥ वा० ॥ मनमांन्योमांनेकोय ॥ ज० ॥ चं ॥ तुजआगम मुज मनवस्यो || मा० ॥ वा० ॥ एहिजभव भव होय० ॥ ज० ॥ वं ॥ ५ ॥ विसंवादघणो पड्यो || मा० ॥ वा० ॥ केहनेकहियेजाय ॥ ज० वं० ॥ अतिशयज्ञानी तणो पड्यो || मा० ॥ वा० ॥ विरहते केम खमाय ॥ ज० ॥ वं० || ६ || दुःखमकालमा ऊपनो || मा० ॥ वा० ॥ दक्षिण भरत मझार ॥ ज० ॥ वं० ॥ प्रभुनोसरणो मे ग्रो ॥ मा० ॥ वा० ॥ प्रभुछोप्राणआधार ॥ ज० ॥ वं० ॥ ७ ॥ तारक तारो तातजी || मा० ॥ वा० ॥ हुंछु सेवकतुज्झ ॥ ज० ॥ वं० ॥ अपराधि घणा तारिया ॥ मा० ॥ वा० || केमविसारसोमुज्झ ॥ ज० ॥ वं० ॥ ८ ॥ कलस || श्रीवीर जिनवर भविकसुखकर मात त्रिशलानंदनो । मैथुएयो आगम भक्तिसंयुतदुरितकर्म निकंदनो । शुभवरस उगणीसेचमोत्तरभाद्रवसुदिआठमसमें जिन कृपाचंद्रसूरिस्तवनकीधो अनुभवज्ञानप्रकाश ॥ २४ ॥ इति अष्टमी वृद्धस्तवन संपूर्णम् ॥ ॥ अथ इग्यारसनो २ ढालनो स्तवन लि० ॥ ॥ दुहा ॥ खस्तिश्री मंगलकरण, हरणतापजिणचंद, वीरजिनेंददिनेंदसम, प्रणमुंधरिआनंद ॥ १ ॥ गौतम आदि गणधरा, For Private And Personal Use Only Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acha Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१४९) श्रुतकेवलिसुविहाण, त्रिकरणयोगेवंदता, पामेकोड कल्याण ॥२॥ एकादशी तिथीवर्णवं, शास्त्रतणे अनुसार, विधिपूर्वक आराधता, पामे भवनोपार ॥ ३॥ (ढाल पहली) पणिहारीनीदेशी ॥ नेमिजिनेसरउपदिशै, सुखकारीरेलोय, सांभले कृष्णराजान, वालाछो, द्वारिकानगरी समवसयों ॥ सु० ॥ रेवताचलउद्यान ॥ वा० ॥४॥ पर्वाराधनफल कह्यो ॥ सु०॥ सांभले परषदा बार ॥ वा० ॥ पर्युषण चउमासा भला ॥ सु० ॥ नवपद ओलीसार ॥ वा० ॥५॥ पंचमीबीजआठम कही । सु०॥ जिनकल्याणक जाण ॥ वा० ॥ एकादशी इमजाणियै ॥ सु०॥ पर्वाधिकमनआण ॥ वा०॥६॥ मिगसरसुदि एकादशी ॥ सु०॥ पर्वमांहि श्रीकार, ॥ वा० ॥ अरनाथदीक्षा ग्रही ॥ सु०॥ पाम्योभवनोपार ॥ वा० ॥७॥ मल्लिजन्मसंजमलियो । सु० ॥ पाम्योकेवलज्ञान ॥ वा०॥ नमिनाथने ऊपनो ॥ सु०॥ केवलनाण प्रधान ॥ वा० ॥८॥ पांचकल्याणक अतिभला ॥ सु० ॥ थया इणभरतमझार ॥ वा०॥ तिमहिजऐरवत खेत्रमा ॥ सु०॥ भाखेजगदाधार ॥ वा० ॥९॥ पांचभरत ऐरवतवलि ॥ सु०॥ पांचकल्याणकजाण ॥ वा० ॥ दशखेत्रना इम जाणियै ॥सु०॥ पचाशकल्याणक आण ॥वा० ॥ १० ॥ तीनकालगिणतांथका ॥ सु० ॥ दोढसैकल्याणकथाय ॥ वा० ॥ तिथीमाहिसिरोमणि ॥ सु० ॥ इग्यारससुखदाय ॥ वा० ॥११॥ अनंतकल्याणकइणपरे ॥ सु०॥ अनंत चोवीसी जोय ॥ वा० ॥ मौनकरीआराधिये ॥ सु० ॥ एहथी सिवसुखहोय ॥ वा० ॥१२॥ चोविहारउपवासथी ॥ सु० ॥ पौसहकरिनेसार ॥वा०॥ सुगुरुचरणसेबीकरी ॥ सु०॥ For Private And Personal Use Only Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१५०) काउसग्गदिलधार ॥ वा० ॥१३॥ मौनकरीमल्लिनाथजी ॥ सु०॥ एकदिवससुखकार ॥ वा० ॥ मौनप्रथा इणपरिथइ ॥ सु०॥ लह्योकेवलश्रीकार ॥ वा० ॥ १४ ॥ (ढाल बीजी) मातात्रिशला झुलावे पुत्रपालणे ॥ एदेशी सुखकर देवनिरंजननेमिजिनेंदइमउपदिसे ॥ ए आंकडी ॥ भविजन भावधरिने सांभलेश्रीजिनवाण, अमीरसवयणेश्रवणअंजलीभर पीवतां, एतो जायै भवभवनिर्मितकर्मनिवाण ॥ सु० ॥१५॥ भवियण अंगइग्यारआराधवातपविधिएकही, जेहथीपामे अनुपममहिमाअतुलअपार, वरसइग्यारनेमासएकादश तपकरो, संपूरण तप हुवाहोवेमंगलकार ॥ सु०॥ १६ ॥ भ० अंगइग्यारे लिखावे सुवरण अक्षरे, पुस्तक पूठा ठवणी नवकरवाली सार, कवली झिलमिलपाटीनेवलि पाटली, वीटणामखमलरेसम बरतणामनुहार ॥ सु०॥ १७ ॥ भ० डोरालेखण झावी वासकुंपावलि कोथली, बटवा मिजासणने चंदरवाअधिकार, पूठीया चोपडरुमालनानाभातिना, पाटापाटलाने त्रिगडो रचैसुखकार ॥ सु० ॥ १८ ॥ भ० केसरसूखडखसकुंचीने वाटकी, प्यालाने कलसाअंगलूहणादिलधार, चामर छत्रत्रयने आभूषण रत्नेजड्या, रचियै वासखेपादिपूजाविविधप्रकार ॥ सु० ॥ १९ ॥ भ० देवपूजा तिम गुरुपूजाविधिआदरो, करियै साहमीवछलधरियैभाव विसाल, रात्रिजागोकरि जिनगुणगावो प्रीतसुं अधिको धनखरचीने लहियेरंगरसाल ॥ सु० ॥२०॥ भ० इग्यारसनोतपसेवोभलेभावसुं, सुव्रतसेठे पौषधथी चितलाय, चौरअग्निना उपद्रवथीतेऊगर्यो, एतिथी सेव्यां सिवमारगमां सुखेजवाय ॥ सु० ॥ २१॥ कलश ॥ ईम नेमिजिनवरस्यामसुखकर सिवादेवीनंदनो, एकादशीतपफल For Private And Personal Use Only Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१५१) प्रकास्यो भविक जन आनंदनो, सर, नय, निधि, भू (१९७५) विक्रमवरसै पोषवदिएकादशी, जिनकृपाचंद्रसूरिपभण सुगुरु सेवो उल्लसी ॥ सु० ॥ २२ ॥ इति इग्यारशवृद्धस्तवनम् ॥ ॥रोहिणी तप स्तवनं ढाल पहेली ॥ वर्द्धमानजिनवरनमी, सुयदेवीसुपसाय । रोहिणीतप विधि वर्ण, शास्त्रथकी चितलाय, ॥१॥ कल्याणक ओली भली, पंचम्यादि तप जाण । इम बहुविधतपवर्णव्यो, 'तिम रोहिणी मन आण ॥२॥ हारे मारा ठामधर्मनासाढापचवीसदेशजो ॥ एदेशी ॥ हारे म्हारे जंबूद्वीपमांभरतक्षेत्रमनुहारजो, अंगदेशनगीनो सोहेअतिभलोरेलोय ॥ हां० ॥ चंपानामें सुंदरनवलीनयरीजो, वासुपूज्यनन्दन जगवन्दननृपतिलोरे लोय ॥ ३ ॥ हां०॥ मघवाराजा जगतदिवाजातत्थजो, कमलाराणी सीयलसुहाणीरायने रे लो ॥ हां० ॥ सुखभोगवतां पुन्य तणे परभावजो, आठपुत्र थयाराणी मनमां भायनेरे लो० ॥ ४ ॥ हां० ॥ तेउने ऊपर रोहणी नामे पुत्री जो, मात पिताने वाहली घणी ते ऊपनीरे लो० ॥ हां० ॥ चंद्रकलाजिम पुत्रीवधेसुहेण जो, पांचधाय करि पालतां योवनवयनीपनीरे लो० ॥५॥ हां० ॥ सुरकुंवरीसम देखी राजा पुत्रीजो, वरचिन्तामनपेठी रायनेतिणसमेंरे लो. ॥ हां० ॥ स्वयम्बरामण्डपमांड्यो पुहवीनाथ जो, देशदेशना भूपतितेड्या सुख समेरे लोय ॥ ६॥ हां० वीतसोकराजानो नन्दननाम जो, सोभागी गुणरागी कन्याये वोरे लो० हां० पूरवभवना पुन्यथी थयोविवाहजो, बहुलीसम्पदापामीकुंवरकारजसोरे लो० ॥७॥ हां०॥ रङ्गरलीथइ सहु पहोता निजठाम जो, चित्रसेनने राज्य For Private And Personal Use Only Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१५२) देइ संजम लीयोरे लो० ॥ हो० ॥ बीतसोकनीनन्दनपामी राज्य जो, रोहिणीराणी साथे सुख सम्पद पीयोरे लो० ॥८॥ हां. रोहिणीराणीने आठपुत्र चार पुत्री जो, पूरवभवनासम्बन्धथीआवीअवतर्या रे लो. हां० आठमापुत्रनो नामदियो लोकपालजो, खोलेमालइ रायराणी गोखे वर्यारे लो० ॥९॥ हां. क्रीडा करें दम्पति नानाप्रकार जो, तिणसमे एकनारीने दीठीरोवती रे लो० हां. दीनथइ सिरपीटे नानाविलाप जो, देखी ने अचरज पामी रोहिणीसतीरे लो० ॥ १० ॥ हां० राजानेकहे राणी नाटकजोरजो, एहवो तो मैं कदियन दीठो नाथजीरे लो०, हां. कहोनिमुझने नाटकनो स्वामी नाम जो, जिनकृपाचंद्रसरि एहनेसुकृत साथजीरे लो० ॥११॥ ॥ ढाल दुसरी देशी यतनी॥ तब राजा कहे सुण राणी, मदमाही घणी भराणी, ए पुत्रमरे गभराणी, रोवेछे नेत्रभराणी, सलूणी बोल विचारी बोलो एतो सहु जगने सम तोलो, सलूणी बो० ॥ १२ ॥ जबवीतेतब जो कीजै, इमकहीने राजाखीजे, खोलेथीहाथमांलीजे, लेइ कुंवरने नीचो नाखीजे सलूणी बो० ॥१३ ।। तबरोहिणीहसती बोले, बालक किम नीचे होले, राजामनमां दुःखडोले, रोवेअति चिन्ताछोले, ॥ सलूणी बो० ॥ १४ ॥ पडतो सुत सासण देवे, सुकोमल हाथे लेवे, सिंहासन ऊपर सेवे, नाटक करि लुंछना लेवे, सलूणी बो० ॥ १५॥ एअचरिज सहुजन निरखे, राजाराणी मनहरखे विसयलहि नरपति सरखे सुत पूरखपुण्यने परखे, For Private And Personal Use Only Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१५३) सलूणी बो० ॥ १६ ॥ राजा इण परि विचारे, कोई ज्ञानि गुरुपाउधारे, तो एह संदेहनिवारे, जिनकृपाचंद्रसरि सुखसारे, ॥ १७ ॥ ॥ ढाल तीजी रंगरसीयारंगरसवन्यो मनमोहनजी ए देशी ॥ इकदिनज्ञानिपधारिया, सुणोसुगुणाजी, वासुपूज्यस्वामीना अणगार, गच्छपतिआव्यारे सुणोसुगुणाजी, रूपकुंभ स्वर्णकुंभजी, सु० चउनाणीकरेउपगार, गच्छ० ॥ १८ ॥ राजादिक वंदनगया, सु० देसनादीधी उदार, ग० करजोडी राजा भणे, सु० रोहिणीनो अधिकार, ग. सु० ॥ १९ ॥ मुझमनअचरजअतिघणो सु० कृपाकरी कहो सुविचार गच्छ० सु० पूरवभवमुनिवरकह्यो, सु० तेहसुण्यो दिलधार, गच्छ० सु० ॥ २० ॥ जंबुद्वीपना भरतमा, सु० सिद्धपुरनगरकहवाय, ग० सु० पुहवीपालराजा तिहां सु० सिधमती राणी सुहाय, ग० सु० ॥ २१॥ इकदिन क्रीडाकारणे, सु० चन्द्रउद्यानमें जाय, ग० सु० क्रीडा करता पधारिया, सु० गुणसागर मुनि महाराय, ग० सु० ॥२२॥ मुनिनेबांदी राजाकहे, सु० राणी मुनिने देवो दान, ग० सु० विषयनी अन्तराय मानती, सु० कडवी तुंबी देइ कीधो हेरान, ग० सु० ॥ २३ ॥ कालधर्म पाम्यो मुनिवरु सु० राणीने काढीराय ॥ ग०॥ स०॥ सातमे दिन कोढ ऊपनो, मरी छठी नरकते जाय, ग० सु० ॥२४॥ नरकतीर्यचना भव कयों ॥ सु० ॥ इम काल अनन्तो जाण ग० सु०॥ श्रीजिनकृपाचंद्रसरि भणे ॥ सु० ॥ तुमे न करो पाप सुजाण, ॥ ग०॥ सु०॥ २५॥ For Private And Personal Use Only Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१५४) ॥ ढाल चोथी॥ जिम २ गिरिवरभेटियैरे तिम २ पाप पुलायसलूणा ॥ एदेशी।। ते राणी भवचक्रमारे, दुःखसह्याअनन्त, सलूणा तारापुरमाहे वसेरे, धनमित्रसेठमहन्त, ॥ स० ॥ २६ ॥ कर्मतणीगति जाणजोरे, कर्मकरो नहिंकोय, स० धनवतीकूखे ऊपनीरे, दुर्गधा नाम होय, स० ॥२७॥ एकवणिकना पुत्रनेरे, परणावी सुरसाल, ॥स० ॥ पतिसंयोगे ऊच्छलीरे दुर्गंधतातत्काल, स० ॥ २८ ॥ त्रासपामीतेहनोधणीरे, परदेशेंगयोनाश ॥ स०॥ ज्ञानिने पूछे पितारे, दुर्गंधानो त्रास, स० ॥ २९ ॥ ज्ञानि पूर्वभव कहेरे, प्रतिकार पूछे खास, स. गुरुकहे रोहिणी तप करोरे, सातवरस सातमास, स० ॥ ३० ॥ रोहिणीनक्षत्रने दिनेरे, चोविहारउपवास, स० ॥ अठपोहरीपोषधकरोरे, वासुपूज्य पूजो खास, स०॥ ३१ ॥ इमरोहिणी तपआदरीरे, सेवि विधियुत सार, स० ए ताहरी राणीथइरे, रोहिणीनामे नार, स० ॥ ३२ ॥ पूर्वभव रोहिणीतणोरे हरखितथया सुणि तेह, स० ॥ जिनकृपाचंद्रसरि सेवजोरे धर्मधरिससनेह, स० ॥ ३३ ॥ ॥ ढाल पांचमी॥ जइने कहजो म्हारा वालाजीरे ए देशी । राजा कहे मुनिराजने मारा वालाजीरे रोहिणीतप विधिसार, गुण निधि वंदिये, मा० तब मुनिवर तप विधि कहे, मा० चित्रसेनने रोहिणीनार, बिहुँ तपविधिसुणे, मा० ॥ ३४ ॥ चन्द्ररोहिणीदिनतपकरो, मा० बारमा जिनवर सेव, करिये भावसुं, मा० गुणनो करो गुरु For Private And Personal Use Only Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १५५) मुखसुणी, मा० पांचसक्रस्तवदेव, त्रिहुंकालबांदिये, मा० ॥ ३५ ॥ देवजुहारो देहरे, मा० प्रभु आगल वृक्ष अशोक, करिये भावशुं मा० नैवद्य नाना भांतिना, मा० प्रभु सन्मुखढोवे थोक, चढते भावशुं मा० ॥ ३६ ॥ केशरचंदनमृगमदा, मा० पूजो प्रभु ऊच्छरङ्ग नानाभांतशुं मा० आठमङ्गलप्रभुआगलै, मा० रचियें तन्दुलउज्जलचङ्ग, दुरितनिवारणो ॥ मा० ॥ ३७ ॥ पुस्तक पूजो भावशुं मा० साधु सेवा करो सार, भव सागरतरो, मा० देवोदान सुपात्रने, मा० साहमीवत्सल अधिकार, करे मन रंगशुं ॥ मा० ॥ ३८ ॥ उज्जवणो कीजै भलो, मा० ज्ञानादि उपगरण करे सार, नाना भांतिना, मा० सत्तावीससंख्याकही मा० अथवा शक्ति तणे अनुसार, धनखरचे घणो मा० ॥ ३९ ॥ ब्रह्मचर्य पालो मुदा मा० उत्सव विविध प्रकार, करिये उमङ्गसुं मा० शासन सोभवधारिने मा० रथ यात्रा सुखकार, चउविध संघ मिली मा० ॥ ४० ॥ इणपरे रोहिणी विधिकही मा० राजा राणी तीर्थंकर पास, विधिसुं तपग्रहे मा० श्रीजिनकृपाचंद्रसूरिभणे मा० भव भव धर्मसेवो भविखास, सर्वसुखसंपजै मा० ॥ ४१ ॥ ॥ ढाल छठी राग धन्यासरि ॥ रोहिणीतपसेविने राजादिक, उजवणोकियोभावै, वासुपूज्य - स्वामीने पासै, दीक्षाथी चित्तलावैरे, भवि भावधरिने सेवो, एतोसेविसिवसुखलेवोरे, भवि० ।। ४२ ।। चित्रसेनराय रोहिणीराणी, दीक्षालीधिगुणखाणी, आठेपुत्रे संजमलीनो, वरवा सिवपटराणीरे भवि० ॥ ४३ ॥ संजमसेवीने राजादिक, आतम तत्वनिहाली, For Private And Personal Use Only Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१५६) तप तपिने कर्म क्षयकीनो, दुद्धर अणसण पालीरे भवि०॥४४॥ केवलीथइने राजादिकसहु, सिद्धिवधूकरझाली, सादि अनंतस्थिति सुखपायो, वरती जगमे खुसालीरे ॥ भवि० ॥४५॥ मनमोहनमहिमानोआगर, मेंथुणियो सिवगामी, उगणीसे इठन्तरवरसे, वीरजन्म अभिरामीरे ॥ भवि० ॥४६॥ आदीसरजिनवर सुपसाय, झाबुवानगरे अधिकारी, श्रीजिनकृपाचंद्रसरि सेवो जिन शासन जयकारीरे भवि०॥४७॥ ॥ इति रोहिणी स्तवन छढालियो । (अथ पूर्णिमा बृहत्स्तवनम् ) (दोहा) स्वस्तिश्रीसुखसंपदा, कारण जिनवरदेव ॥ आदीश्वर अरिहंतजी, सारेसुरनरसेव ॥१॥ पूनिमतिथिआराधवा, तपकरियेसुविशेष ॥ बारेमास पूनिमतणो, चरित्र कहुं लवलेश ॥२॥ (ढाल १) जिम जिम गिरिवरदेखियेरे ॥ एदेशि० ॥ श्रीजिनधर्मसुहंकरोरे । आराधोगुणखांणसनेही । पूनिमपर्वमोटोकटोरे । मासबारे मन आंण ॥ स० ॥३॥ जिमजिमपर्व आराधियेरे । तिमतिमलहिये सुरक । स०॥ जिनशासनजगमें जयोरे, मेटे भव भव दुरक ॥ स० ॥४॥ श्रावणमासमें जाणियेरे ॥ वदितीज श्रेयांस निरवाण ॥ स० ॥ अनंतनाथ सातम चव्यारे । आठम नमि जन्म जाण ॥ स० ॥५॥ कुंथुनाथ नवमी चव्यारे । शुदि दूज सुमति एह । स० ॥ पांचम नेमि जनमियारे । छठ दीक्षाथीनेह ॥ स०॥६॥ आठम पासजी सिवलह्योरे । पूनिम सुव्रतचव्याईश ॥स०॥ उपवास करि आराधियेरे । कल्याणक सुजगीश ॥ स० ॥७॥ For Private And Personal Use Only Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १५७ ) ( इति श्रावण मास ० ) || भाद्रववदि सातमचव्यारे । सान्तिनाथ जगनाथ ॥ स० ॥ एहिज तिथि चंद्र प्रभुरे । झाल्यो सिवबधु हाथ || स० ॥ ८ ॥ श्रीसुपार्श्व आठमचव्यारे । सुविधि नवम शुद्धि जांण || स० ॥ मुक्तिमहिलमें विराजियारे । पर्युषण सुप्रमांण ॥ स० ॥ ९ ॥ ( इति भाद्रव मास ) | आसोजवदितेरस थयोरे । गर्भापहार (वीरनोवीजो ) कल्याण ॥ स० ॥ नेमिज्ञान अमाबसेरे । पूनिम नमिचव्या जाण ॥ स० ॥ १० ॥ ( इति आश्विन मास ० ) || कार्तिक वदि पांचम समेरे । संभवपांम्योनाण || स० ॥ पद्मप्रभु बारस जनमियारे । नेमिचव्या जग भाग स० ॥ ११ ॥ तेरस पद्म दिक्षा ग्रहीरे । वीर दरस ( अमावश ) निर्वाण ॥ स० ॥ सुविधी सुदितीजउपनोरे । केवल नांग सुख खांण || स० ॥ १२ ॥ पर्युषण ओली भलीरे । ज्ञान पंचमी पर्वजांण ॥ स० ॥ जिनकृपाचंद्रसूरिसदारे । पर्व सेवो गुणखांण ॥ स० ॥ १३ ॥ इति कार्तिक मास० ॥ ( ढाल २ ) आज आपे चालो सहियां सिद्धाचल गिरिजइयेरे || एदेशी ० || मिगसरवाद पंचमि सुविधिजनु । छठे दीक्षा लीनी । दशम वीर संजम एकादशी । पद्ममुक्तिगतिकीनोरे ॥ १४ ॥ सुनो सुगुणा जिनशासन सुंदर । पर्व्वघणा जयकारी । सुदि दशमी अरनाथजी जाया, पाम्या सिवसुखभारीरे ॥ सु० ॥ १५ ॥ इग्यारस अरनानी दीक्षा | मल्ली जन्म व्रतलीनो । केवल मल्ली नमि सुहंकर | पांमी जगतजसकीनोरे ॥ सु० ॥ १६ ॥ चवदश संभव जन्म लियो है । पूनिम दीक्षाधारी । पूनिम तिथि सेवीने भविजन || लहो सदा सुखसारीरे ॥ ० ॥ १७ ॥ इति मार्गशीर्ष मास० ॥ For Private And Personal Use Only Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१५८) पोष दशमि पार्श्व प्रभु जन्म्या । इग्यारस संजमलीधो । चंद्र जन्म बारसने दिवसे । तेरस व्रत मन कीधोरे ॥ सु० ॥ १८ ॥ चउदश शीतलज्ञानग्रह्योहे । सुदि छठविमल नाण पायो । नवमी सांति नाण सुखदाई । इग्यारस अजितनाणआयोरे ॥ सु० ॥ १९ ॥ अभिनंदन चवदश दिन सुंदर । केवलज्ञान कहाई । धर्म जिनेश्वर पोषी पूनिम । केवल लह्यो वरदाईरे । सु० ॥ २० ॥ इति पोष मास० ॥ छठ पद्मप्रभु चवनकल्याणक । वारस शीतल जन्म जांण । शीतल नाथनी द्वादशि दीक्षा । तेरस रिषभ निर्वाणरे ॥ सु० ॥ २१ ॥ अमावश श्रेयांस केवलपायो । सुदिबीज अभिनंदनजाया । वासुपूज्य नाण धर्म विमल जिन । तीज जनम कहवायारे ॥ सु० ॥ २२ ॥ चोथ विमल जिन संजमधारी । आठम अजित जन्मलीनो । नवमीदीक्षा अजित अभिनंदन । द्वादशि संजम लीनोरे ॥ सु० ॥ २३ ॥ त्रयोदशि धर्मजिन दीक्षा । माघ मासमें जाणो । श्रीजिनकृपाचंद्रसरिसेवो । परमारथ पहिचाणोरे ॥ सु० ॥ २४ ॥ इति माघ मास ॥ (ढाल० ॥३॥) यात्रीड़ा यात्रा नवाणुं करियेरे ॥ एदेशि० ॥ सुज्ञानी कल्याणक तप करियेरे । एतो करिये तो भवजलतरियै ॥ सु० ॥ टेर० ॥ बारे पूनिम पर्व बखाणोरे । कल्याणक तप मन आंणोरे । फागुन मास मांहें तुमे जाणो ॥ सुज्ञानीकल्याणक तप करियेरे ॥ २५ ॥ वदि छठ सुपार्श्वज्ञान पायोरे । सातम निर्वाण कहायोरे । सातम चंद्रज्ञानसुहायो ॥ सुज्ञानी कल्याणकतपकरियेरे ॥ २६ ॥ नवमी सुविधीचव्यानगीनोरे । एकादशिरिषभज्ञान लीनोरे । श्रेयांश बारस जन्म लीनो । सुज्ञानी कल्याणक तप करियेरे॥ २७ ॥ मुनि For Private And Personal Use Only Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१५९) सुव्रत नाण बलिहारीरे । श्रेयांस तेरस दीक्षाधारीरे । वासुपूज्य चउदश जन्मसारी । सुज्ञानी कल्याणक तप करियेरे ॥ २८ ॥ अमावस संजम लीजेरे । अरनाथ चव्या सुदि बीजेरे । मल्लि जिन चोथ लहीजे । सुज्ञानी कल्याणकतप करियेरे ॥ २९ ॥ आठम संभव चव्या सुविहांणरे । मल्लि बारसनिर्वाणरे । मुनिसुव्रत दीक्षा जांण । सुज्ञानी कल्याणकतपकरियेरे ॥ ३० ॥ फागुन चोमासा सेवोरे । भाव होली करि फल लेवोरे । हिव चैत्र मासमें बेवो । सुज्ञानी कल्याणकतपकरियेरे ॥ ३१ ॥ इति फागुण मास० ॥ वदि चोथपार्श्व चव्या नांणरे । पंचमि चंद्र चवन मन आणरे । आठम रिषभ जनम चरण जाण । सुज्ञानी कल्याणक तप करियेरे ॥ ३२ ॥ तीज धवल कुंथुनाथ नाणरे । अजितनाथ पंचमि निर्वाणरे । संभव अनंत सिवपुर ठाण । सुज्ञानी कल्याणक तप करियेरे ॥ ३३ ॥ सुमति नवम निर्वाण लहीजेरे, इग्यारस ज्ञान कहीजेरे । तेरस वीर जन्म ग्रहीजे । सुज्ञानी कल्याणक तप करियेरे ॥ ३४ ॥ चैत्री पद्मप्रभु ज्ञान मासे । अष्टापद ओली भासेरे । कृपाचंद्रसूरि सुविलासेरे । सुज्ञानी कल्याणक तप करियेरे ॥ ३५ ॥ इति चैत्र मास० ॥ (ढाल ४) विमलगिरि यात्रा नवाणुं करिये ॥ एदेशी० ॥ भविजन पूनिम पर्खने सेवो । सेवी शिवसुख लेवोरे ॥ भविजन ॥ टेर० ॥ वैशाखवदिपडिवाकुंथुसिव । दूज शीतल निर्वाण । पांचम कुंथु संजमलीनो । छठ शीतल चवन जाणरे ॥ भ० ॥ ३६ ॥ नमि दशमी शिवमंदिर पाम्यो । अनंत तेरस जन्म जांणो । चवदश चरण ज्ञान कुंथुजन्म्या । सुदिचोथ चतुर्थ (अभिनंदन) चवाणोरे ॥ ३७ ॥ धर्मच्यवन सातम For Private And Personal Use Only Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१६०) अभिनंदन-आठम शिवपुरराणो। सुमति जन्म नवमी दिन दीक्षा । वीरदसमी दिननाणोरे ॥ भ० ॥३८॥ वारस विमल च्यवन अजित जिन । तेरस संजम प्रमाणो ॥ इति वैशाख मास० जेठ वदी छठ श्रेयांस चविया । आठमसुत्रत जन्मकहाणोरे ॥ भ० ॥ ३९ ॥ नवमी दिन निर्वाण सुव्रतनो । तेरस सांती जन्म कहिये । एहिज दिन निर्वाण ए प्रभुनो । चवदश संजम ग्रहियेरे ॥ भ० ॥४०॥ सुदि पंचमि धर्म शिवसुख लहियो । नवमी वासु पूज्य चविया । सुपार्श्व बारस दिन जन्म्या । तेरस संजम ठवियारे ॥ भविजन ॥४१॥ इति जेठ मास० ॥ आषाढवदि चोथ रिषभ चविया । विमल सातम निर्वाण । नमि दीक्षा नवमी दिन लीधी । अनुपम सुखनी खांणरे ॥ भ० ॥ ४२ ॥ वर्धमान सुदि छठ च्यवन शुचि । नेमि आठम शिव वरिया । चवदस वासु पूज्य शिवपायो । सुखसंपतिनादरियारे ॥ भ० ॥४३ ॥ इति आषाढ मास०॥ बारे मास कल्याणक प्रभुना । वरणव्या सास्त्र प्रमाण । बारे पूनिम पर्व बखांण्या । सेवो भविक सुख खांणरे ॥ भ० ॥ ४४ ॥ चैत्री दिन उपवास करिजे । पूजा विवध प्रकार । दश बीस तीस चालीस पचास । तिलककरेसुखकाररे ॥४५॥ भ० ॥ इमहिज फूल फलादिकढोवे । प्रभु आगे सुविशाल । देवबंदन पड़िक्कमणो गुणनो । करिलहे सुरकरसालरे ॥ भ० ॥४६॥ ओली दोयने तीन चोमासा । पर्युषण सुखकार । दीवाली नाण पंचमी जाणो । मौन इग्यारस दिलधाररे ॥ भ० ॥४७॥ पोषदसमी मेरू तेरस वली । आखातीज अधिकारी । चैत्री कार्तिक पर्व इत्यादिक । सेवो सदा सुखकारीरे ॥ भ० ॥४८॥ For Private And Personal Use Only Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१६१) (कलश.) संवउगणीसेइठंतर-अक्षयत्रितीया दिनभले । झाबुवानगरे स्तवनकीधो आदिजिनसुपसाउले । श्रीगच्छखरतरगुणपुरंदर जिनवरणानोरसी। श्रीजिनकृपाचंद्रमरिसेवो धर्ममनमें उल्लसी ॥४९॥ इति पूर्णिमां बृहत्स्तवनम् ॥ (अथ मांडवगढ़ना शांतिनाथजीनो स्तवनलि०) रागमाड़ सुणो शिवपुरस्वामी अंतरजामी सारो अमारोकाज ॥ आ० सोलमजिनअचिराजीके नंदा । विश्वसेननरराज । सुद्धस्वरूप धारक सुखकारक । तीनभुवन सिरताजरे ॥ (सु० ॥१॥) जनमसमय प्रभु मारिनिवारी । शांतिनाम सुखसाज । जगतजीव जीवन सुखकारण । प्रगटे गरिबनिवाजरे ॥ (सुणो० ॥२॥) महागोप महामाहण जगपति । निर्यामक जिनराज । भवअटवि सत्यवाह सुहंकर । प्रभुदरशण लह्यो आजरे ॥ (सुणो० ॥ ३ ॥) मांडवगढ़पति शांतिजिनेसर । श्रीसुपार्श्वमहाराज । उगणीस गुणयासीमेरु । तेरसदिन सुसमाजरे ॥ (सु॥४॥) मावभले प्रभु भेटियारे । इंदोरसंघके साज । जिनकृपाचंद्रसरिसदा । प्रभु सेवाथी शिवराजरे ॥ सुणो० ॥ ५॥ इति स्तवनम् ।। ११ श्रा० नि. For Private And Personal Use Only Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१६२) (अथ भोपावरना शांतिनाथजीनो स्तवन.) शांतिनाथ महाराज राज ले दरशण करस्पांजी। ॥ आ०॥ दरशण करस्यां वांछित लहेसां, तजस्यां अनादिमिथ्यात । रागद्वेषधन ग्रंथीमेदिने । तीनकरण विख्यातरे ॥ (झे दरशण ॥१॥) चउगइ रझड्यो कुमति कुगतिसंग । रह्यो अनंतो काल । हिव प्रभु मुद्रा पुन्ये पामी । सुनिजर करिने निहालरे ॥ (ो दरशण ॥२॥) भव्य अमव्यतणो मुज संशय । दूरकरो महाराज । शरणागतबच्छल हितकारक । विरुदधरावो राजरे ॥ (ो दरशण) (॥३॥) शांतिस्वरूप प्रकाशन भासन । जिनदरशण सुखकार। शुद्धस्वरूप निहालत चेतन । अनुभव प्रगटे साररे ॥ (ो दरशण ॥४॥) भोपावरमें शांतिजिनेसर । नवकरतनु विशाल । जिनकृपाचंद्र सूरि भेटे । भावभले सुरसालरे ॥ (ो दरशण करस्यांजी० ॥ ५॥) इति.॥ (अथ शांतिनाथजीनो स्तवन०) लि० ॥ शांतिजिनंद ने सेवोरे ॥ मनवा ॥ शांति ॥ से० ॥ मनवांछित फल लेबोरे ॥ मनवा ॥ ७० ॥ नयर हथनापुर दक्षिण भरते । विश्वसेनमहाराजा । अचिराराणी गुण मणीखाणी । वाजे जगजसवाजारे ॥ मनवा । शांति० जि० से० ॥१॥ सर्वारथ सिद्धथी चवीया खामी । मातु उदर अवतरिया । भाद्रयवदि सातम भरणीये । सहुजन कारज सरियारे । म०॥ शां० जि० से० ॥२॥ स्यणीये सुख सेजे. सूति । चऊदेसुहणा देखे । सुकुलीणी ततखीण जाग्रतथई । जनमकृतारथलेखेरे ॥ मनवा ॥ शां० जि० से. For Private And Personal Use Only Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir སྒྱུ བྷྱཱ ཙྪཱ ཙྪཱ བྷྱཱ བྷྱཱ བྷྱཱ ཙྪཱ ཡྻོ ཙྩ བྷཱུ བྷྱཱ བྷྱཱ ཀྐུ བྷྱཱ ཝཱ བྷྱཱ མོ (१६३) ॥३॥ जेठवदितेरस प्रभु जनम्यां । त्रिभुवनमें उद्योत । स्नात्रमहोत्सव मेरुशिखरपर । इंद्रकरे सुश्रोतरे ॥ मनवा ॥ शां० जि० से. ॥४॥ राजाघरमंगल जयकारि । पुत्रजनम उच्छरंग । गर्भमांहिं प्रभु मारिनिवारी । तिणशांतिनाम सुख संगरे ॥ मनवा ॥ शां० जि० से० ॥ ५॥ कुमरपणे पचवीस सहस । वरस वस्या सुखवास । मंडलीक चक्री पद पाली । एटला वरस सहुं खासरे ॥ मनवा शां० जि० से० ॥६॥ जेठवदि चउदश सुभवारे । संजम प्रभुजी लीनो । एक सहस राजा परिवारे । चोथो ज्ञान मनभीनोरे ॥ मनवा शां० जि० से० ॥७॥ कर्म शत्रुने जीपवाकारण । विचरे परमदयाल । पोषसुदि नवमी नंदिवृक्षतले । केवल पाम्यो रसाल रे ॥ मनवा ॥ शां० जि. से० ॥८॥ समवसरणमें चउ मुखजिनवर । देशना दे मनुहार । संघचतुरविधथापी जगत्गुरु । कीनो जगत उपकाररे ॥ मनवा शां० जि० से० ॥॥९॥ मृगलंच्छन विराजितप्रभुजी । गरुड यक्ष सेवा सारे। शासनसरिनिर्वाणी अनुपम । वांछितदे निरधाररे ॥ मनवा० ॥ शां जि० से० ॥ १० ॥ लाखवरस प्रभु आयुषपाली । समेतशिखर शिव परियारे । श्रीजिनकृपाचंद्रसूरि सेवी । निजगुणनिरमलकरियारे ॥ मनवा शां० ॥ जिनदनेसे० ॥ ११॥ इति ॥ (अथ नेमिनाथजीको स्तवन.) आज आनंद बहाररे प्रभु बेठे मगनमे ॥ एदेशी। नेमि जिनंद दयालरे । सेवो स्याम सलुणासेवोस्था० ॥ आ० ॥ समुद्र विजय For Private And Personal Use Only Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १६४ ) नंदनजगवंदन, सिवादेवीमात मलाररे || (सेवो स्याम सलुणा ० ॥ १ ॥ ) अपराजितअनुत्तरथी चविया । मातुउदर मझाररे ॥ (सेवो स्याम० || २ || ) कातिवदिवारसप्रभु उपना | चित्रा नक्षत्र शुभ वाररे || (सेवो० || ३ || ) चउदे स्वपना देखे राणी | तीर्थंकर सूचना || (सेवो स्याम ० ॥ ४ ॥ ) श्रावणशुदि पंचमी जिनजनम्या | त्रिभुवनमें सुखकाररे || (सेवो० ॥ ५ ॥ मेरु सिखर परजन्म महोत्सव । इंद्र करे अधिकाररे ॥ (सेवो० ॥ ६ ॥ समुद्रविजयराजाघरउच्छव । वरत्यो जयजयकाररे ॥ (सेवो० स्याम० ||७|| शुदिछठ विभु भये व्रतधारी । ब्रमचारि सुविचाररे || (सेवो० ॥ ८ ॥ ) सोरिपुर में जन्म भयो है । द्वारिका संजमसाररे ॥ (सेवो स्याम ० ॥ ९ ॥ ) गिरनार गिरिके सहसावनमे । चोथो नाण दिलधाररे || (सेवो० ॥ १० ॥ ) पांचसुमतिधर तीन गुप्तिवर || विचरे प्रभु मनुहार || ( से० स्याम० ।। ११ ।। ) दुकर तपकरि कर्म शत्रुहणि । घातिकर्मक्षयकाररे ॥ ( से० ॥ १२ ॥ ) रेवतगिरि विचरंता आया । शुक्लध्यान ध्यानाररे || ( से० स्याम० ॥ १३ ॥ ) आसोजनी अमावस दिवसे । केवल ज्ञान श्रीकाररे से ० ॥ १४ ॥ ) समवसरणमे चोमुख प्रभुजी । देशना देवे सुखसाररे || (सेवो० ॥ १५ ॥ चउविह धर्म प्रकासे जगगुरु । संघ थाप्यो सुरसालरे || सेवो स्याम० | १६ || अठारसहससाधुनी संपदा । श्रमणी चालीस हजाररे ॥ सेवो० १७ ।। एक लाख गुणत्तर सहस । श्रावक समकित धाररे । सेवो स्याम० १८ ॥ तीनलाखअठार हजार | श्रावणीसुविचाररे (सेवो० ॥ १९ ॥ ) सहसवरस प्रभु आयु पाली । मुक्ति वधु भरताररे ॥ सेवो स्याम० ॥ २० ॥ रथनेमी For Private And Personal Use Only Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir राजिमति बेउं । मोक्ष गया निरधाररे सेवो० ॥ २१ ॥ पांचसें छत्तीस मुनिवर साथे । सादि अनंत स्थितिकाररे ॥ सेवो स्याम० २२ आषाढ शुदि आठमने दिवसे । सिद्धि सौध मझाररे । सेवो० ॥२३॥ गोमुख यक्ष वांछित पूरे । अंबिका करे सुखसाररे ॥ सेवो स्याम० ॥ २४ ॥ श्रीजिनकृपाचंद्रसरिसेवो । तीरथ जयजयकाररे ॥ सेवो स्थाम० ॥ २५ ॥ इति० ॥ (अथ नेमिनाथजीनी थुइ लि०॥) नेमि जिनंदा पूनिम चंदा । सम मुख सोभता । सिवादे जाया । सहुमनभाया। इंद्रादिक सेवता, सोरिपुरमें । त्रिभुवन सुखमें । प्रभु परमारथी । संघमें साता । जगना त्राता । धर्मनासारथी ॥१॥ रिषभ जिनेसर । भुवन दिनेसर । अष्टापद सिववर्या । वीरपावापुरी। पूज्य चंपापूरी । निजकारज को । गिरनारगिरिपर । नेमिजिनवर । सिववधुकर ग्रह्यो । वीसजिनेसर । समेत सिखरपर । सिव. मंदिरलह्यो ॥२॥ जिनवर वाणि । अमिय समाणि । मिठो जिमसेलड़ी । अधिकसुहाणि । भविमनभाणि । अमृतरसवेलड़ी। जिनगुणगाति । समरसमाति । सुरवधुगावति । अनुभवसंगे । आत्मउमंगे। जिनगुण ध्यावति ॥३॥ अंबिकादेवी सुजसलहेवी । सुतदोयलालती । शासनदेवी । सुरनरसेवी । संघरखवालती । गोमेधयक्ष । सांनिध दक्ष । संघने कीजिये। जिनकृपाचंद्रसेविसूरींद्र। जगमें जशलीजियै ॥४॥ इति. थुइ. For Private And Personal Use Only Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१६६) (अथ श्रीपार्श्वनाथजीनी थुइ.) पास जिनराया वामाजाया । नगरी वणारसी । अश्वसेनराजा जगमें ताजा। सबजन तारसी । वदि चोथदिवसे चैत्रजगीसे । प्रभुजी अवतर्या । दशमी पोष जग संतोष । सब कारज सर्या ॥१॥ प्रथम जिनेसर चारहजारे । पास मल्लि त्रयशत । वीर इकेला षट सतसाथे । वासुपूज्य ग्रहिनत । उगणीस जिनपति सहस संघाते संजमआदर्यो । कर्मखपावी केवलपामी । निजकारजकों ॥२॥ जिणपतिवाणी मीठी जाणी । खर्गे सुरवेलड़ी। साकर खंडे गुलनहि मंडे । पीलेरस सेलड़ी । दाखवनमांहे अमृत अमराहै । त्रण पशुचावती । एसहुलाजी जिनगुणगाजी । इंद्राणीगावती ॥३॥ पारसयक्षकारजदक्षकरे सहुसंघनो । च्यारछेवाहुकच्छवसाहु वरण सांमलवनो। देवी पद्मा सुखनीसद्मा दीये सुखसंपदा । जिन कृपाचंद्र पभणे सूरींद सेवे सुरनरमुदा॥४॥ इति थुइ० ॥ (अथ श्रीमहावीरस्वामी थुइ.) आषाढशुदि छठी स्वर्गथी चवीया ईस । अश्विनवदि तेरस त्रिसला कूखे जगीस । शुदितेरसजनम्या चैत्रमाससुखकार । श्रीवीर जिनेसर वंदुभाव उदार ॥१॥ मिगसर वदि दशमी संजमसुं मनलाय । वैशाखसुदिमें केवल दशमीभाय । कातिअम्मावसि पाम्यो पदनिर्वाण । चोवीसै जिनवर आपो मुज सुखखाण ॥२॥ अरिहंत प्रकास्यो उपधान तप श्रीकार । नवकार इरिया वहि नमुत्थुणं मनुहार । अरिहंत चेइयाणं लोगस्स द्रव्य स्तवजान । सिद्धाणं बुद्धाणं मालसात For Private And Personal Use Only Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१६७) उपधान ॥३॥ विधिसेति वहियै गुरुमुखसुणि सुविचार पिन श्रीमहानिशीथे भाख्योएअधिकार । सिद्धायिकादेवी वांछितदे निरधार । जिनकृपाचंद्र सूरि तपसेव्या जयकार ॥ ४ ॥ इति थुइ० ॥ (अथ उपधान चैत्यवंदन लि.) वीरजिनंदे भाखीयोः उपधानतपविस्तार । सूत्रे गणधर साखियोः महानिशीथमझार ॥१॥ पहलोवीसड नवकारनोः इरिया वीसड़जानः भावस्तव पेतीशनो ठवणास्तवचउआण ॥२॥ लोगस्स अठावीस नो। दव्वत्थवछक्कड़होय । माला उपधान सातमो । सिद्धाणं बुद्धाणं जोय ॥३॥ सातभय निवारवा । सातकरो उपधान । क्रिया शुद्ध करवातणो। एहउपाय सुजान ॥४॥ विधि योगे आराधियेए । तप उत्तम सुखकार । जिन कृपाचंद्रमरिसदा। आगमनो आधार ॥ ५॥ इति चैत्यवंदनं० ॥ इति श्रावकनित्यकृत्यसंपूर्णम् ॥ For Private And Personal Use Only Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar For Private And Personal Use Only Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only