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जिहां अंगग्यारे, बारे उपांग उबेद ॥ दस पयन्ना दाख्या, मूल सूत्र चलनेद ॥ जिन आगम षटपव्य, सप्तपदारथ जुत्त। सांजलि सईहतां, तुटे करम तुरत्त ॥ ३ ॥
॥पीछे सिखाएं बुखाणं ॥ कहके वेयावच्चगराणं० ॥ ॥ अन्ननु कही ॥ एक नवकारका काउस्सग्ग करी पारिज नमोऽर्हसिघा० कहके चोथी स्तुति कहे, सो लिखते हैं ॥
पउमावई देवी, पार्श्वयक्ष परत ॥ सङ संघना संकट दूर करेवा दक्ष ॥ समरो जिनलक्ति, सूरि कहे इकचित्त ॥ सुख सुजस समापे, पुत्र फलन बहु वित्त ॥४॥ इति ॥ ३७॥
॥ पीछे नीचा बैठकें णमोनु कहकें ॥ तीन खमासमणे पूर्वोक्त रीतें॥श्राचार्य,उपाध्याय, सर्वसाधु मिश्रकही वांदे ॥२॥
॥ इतना विधि कियां पीनें स्थिरता दुवे तोखमासमण तीन बखत देई ॥ इलाकारेण संदिस्सह नगवन् ॥ चैत्यवंदन करूं यह पाठ कह कर चैत्य वंदन करे. सो लिखते हैं ॥
॥अथ श्री वीसविहरमानजीको चैत्यवंदन ॥ ॥ सीमंधर १ युगमंधर २ बाडु ३ सुबाहु ५ जाण सुजात ५ स्वयंप्रनु६सातमा, शपनानन ७ मन आण, ॥१॥ अनंतवीर्यने । सूर प्रनु ए विमल १० वज्रधर ११ कहियै, चंजानन १५ बंजबाहुजी १३ जुजंग १५ नेमप्रज्जु १५ लहियै,॥२॥ईश्वर १६श्री वयरसेनजी १७ महाजन १७ जिनदेव, देवजस १५ अजित
१ विधिप्रपा १ सामाचारीशतक १ श्रावक विधिप्रकाश ३ विगेरेमे अढाऊोसु कहणा कह्या नही जो कहते हैं सो विधि नहीं है ॥ किंतु गड्डरीया प्रवाह है॥
१ टीप्पणी २-उत्तर दिशा सामु श्रीमंधरजीका चैत्यवंदन करे.
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