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(१५) संसारसारे वरकमखकरे तारहाराजिरामे, वाणसिदोहो नवविरहवरं देहि मे देवि सारम् ॥ ४॥ इति ॥ ३६॥
॥इत्यादि तीन गाथा जणी, शक्रस्तव कहे. पीछे खमा होकर अरिहंतचेश्याएं करेमि काउस्सग्गं ॥ वंदणवत्तिश्राएअन्नच ॥ इत्यादि पाठ कहकें ॥
॥काउस्सग्गमांहे एक नवकार चिंतवी ॥ एक श्रावक प्रथम काजस्सग्ग पारी नमोऽहत्सिधा कही ॥ एक गाथा स्तुतिकी कहे, सो लिखते हैं.
॥ अश्वसेन नरेसर वामादेवी नंद ॥ नव कर तनु निरुपम, नीलवरण सुखकंद ॥ अहि लंग्न सेवित, पनमावश्धरणिंद ॥ प्रह ऊगी प्रण, नित प्रति पास जिणंद ॥१॥ए गाथा एक जण कहे । मुसरे सब कामस्सग्गमाहे रह्या हुआ सुणे ॥ पीछे एमो अरिहंताणं कहिके कानस्सग्ग पारे ॥ सतरे आगे पण जाणणा ॥ पीने लोगस्स कहे ॥ सबलोए अरिहंत चेइ
आणं करेमि काउस्सग्गं वंदण वत्ति० ॥ अन्नन ॥ इत्यादि कहिकें । एक नवकारका काउस्सग्ग करी पारिकें जी स्तुति कहे, सो लिखते हैं ॥
॥ कुलगिरिवेयडश, कणयाचल अभिराम ॥ मानुषोत्तर नंदी, रुचक कुंमल सुखाम ।। नुवणेसर व्यंतर, जोइस विमापीय धाम वर्ते ते जिणवर, पूरो मुल मन काम ॥२॥ ___॥ पीछे पुस्करवरदीव कहके सुयस्स लगव. वंदण
अन्नब्लू० ॥ कही ॥ एक नवकारका कानस्सग्ग करी पारिकें ॥ त्रीजी स्तुति कहे, सो लिखते हैं.
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