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(४) ॥ अथ परसमय तिमिरतरणिं ।। ॥ परसमयतिमिरतरणिं, जवसागर वारितरण वरतरणिं ॥ रागपरागसमीरं वंदे देवं महावीरम् ॥१॥ निरुघसंसारविहारकोरि, पुरन्त नावारिंगणानिकामं ॥ निरन्तरं केवलिसत्तमा वो, जवावहं मोहलरं हरंतु ॥२॥ संदेहकारि कुनयागमरूढगूढ संमोहपंकहरणामलवारिपूरम् ॥ संसारसागरसमुत्तरणोरुनावं, वीरागमं परमसिधिकरं नमामि ॥ ३ ॥ परिमल जरलोजालीढलोलालिमाला, वरकमलनिवासे हारनीहारहासे ।। अविरललवकारागारविचित्तिकारं, कुरुकमलकरे मे मङ्गलं देवि सारम् ॥४॥ इति ॥३५॥ अथवा संसारदावानी तीन गाथा कहे, सो लिखते हैं।
॥अथ संसारदावानीस्तुति ॥ ॥'संसारदावानलदाहनीरं, संमोहधूलीहरणे समीरम् ॥ मायारसादारणसारसीरं, नमामि वीरं, गिरिसारधीरम् ॥१॥ नावावनामसुरदानवमानवेन, चूलाविलोलकमलावलिमालितानि ॥ संपूरितालिनतलोकसमीहितानि, कामं नमामि जिनराज पदानि तानि ॥२॥ बोधागाधं सुपदपदवीनीरपूरानिरामं, जीवाहिंसाविरललहरीसंगमागाहदेहम् ॥ चूलावेलं गुरुगममणीसंकुलं दूरपारं, सारं वीरा गमजलनिधि सादरं साधु सेवे ॥ ३ ॥ श्रामूलालोलधूलीबहुलपरिमलालीढलोलातिमाला, फंकारारावसारामलदलकमलागारजूमीनिवासे ॥ गया
१ साधवियां श्राविका संसारदावानी ३ गाथा कहै नमोऽर्हत् सिद्धान कहे.
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