________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
वीर्यजी २० सुरपति सारेसेव, ॥३॥ पंचविदेहे बिचरतां ए वीस जिनेसर जाण, कृपाचंद त्रिहुंकालमें नमतां क्रोम कल्याण,॥॥ इति वीस विहरमान चैत्य वंदनं सं०॥
॥अथ चैत्यवंदन ॥ - ॥ जय जय त्रिनुवन श्रादिनाथ, पंचमगति गामी ॥ जय जय करुणा शांत दांत, नवि जन हितकामी ॥ जय जय इंद नरिंद बंद, सेवित सिर नामी ॥ जय जय अतिशयानंतवंत, अंतर्गति जामी॥१॥ पूरव विदेह विराजता ए, श्रीसीमंधर स्वाम ॥ त्रिकरणशुद्ध त्रिहु कालमें, नितप्रति करूं प्रणाम ॥२॥ जं किंचि नाम तिथं० ॥ नमोबूणं जावंति चेड्याळ जावंत केवि साहू ॥ और ॥ णमोऽहसिघाचार्योपाध्याय सर्वसाधुल्यः॥ तक कहिकें सीमंधरजीका स्तवन कहे, सो लिखते हैं।
॥अथ सीमंधरजिनस्तवनम् ॥ ३७
॥ जगजीवन जग वालहो ॥ ए देशी॥ श्रीसीमंधर साहिबा, वीनतमी अवधार लालरे परम पुरुष परमेसरू, श्रातम परम आधार लाल रे ॥ श्री ॥१॥ केवल शान दिवाकरु, नांगे सादि अनंत लाल रे ॥ नासक लोकालोक के, झायक शेय अनंत लाल रे ॥ श्री० ॥२॥ इंन चंच चकीसरू, सुर नर रहे कर जोम लाल रे ॥ पदपंकज सेवे सदा, अणहूंता इक कोम लाल रे ॥ श्री० ॥ ३ ॥ चरण कमबपिंजर वसे, मुज मन हंस नित मेव लाल रे ॥ चरण शरण मोहि श्राशरो, जव जव देवाधिदेव लाल रे ॥श्री० ॥४॥ अधम उचारण गे तुम्हें, दूरहरो जवारक लाल रे ॥ कहे
For Private And Personal Use Only