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(२०) जिनहर्ष मया करी, देजो अविचल सुरक लाल रे ॥ श्री० ॥ ॥५॥ इति ॥
॥अथ वितीय सीमंधरजिनस्तवप्रारंजः ॥३ए ॥ पूर्व विदेह पुखलावती जयो जगपतीरे श्रीसीमंधरस्वाम प्रहसमनितन, रे॥१॥ जगत्रयत्नावप्रकाशता नविप्रतिबोधतारे नपगारी अरिहंत ॥ प्रहः ॥॥ धन्यनयरी धन्यतेनरा धन्य ते धरारे विचरे जिहां जिनराज ॥ प्रद० ॥३॥ धन्य दिवस धन्य ते घमी देखसुं आंखमीरे नक्तिवठस जगवंत ॥ प्रह० ॥४॥ महिर निजर अवधारजो पतितउधारजोरे जिनहर्ष घणे ससनेह प्रहसमनित नमुरे ॥ इति ॥ श्री सीमंधरजीको स्तवन संपूर्ण ॥
॥पी. जयवीयराय वंदणवत्तियाए ॥ अन्नबू कहकें। एक नवकारका काउस्सग्ग करे ॥ पारिके नमोऽर्ह सिचा कही ॥ एक थुनी गाथा कहे, सो लिखते हैं॥
॥ महीममणंपुषसोवामदेहं, जणाणंदणं केवलणाणगेहं ॥ महाएंदलची बहुबुधिराय, सुसेवामि सीमंधरं तिवरायं ॥१॥ ॥ ४० ॥ ३ ॥ श्महीज थिरता हुवे तो, श्रीसिघाचलजीका चैत्यवंदन करे, सो लिखते हैं ॥
॥अथ श्रीसिगिरीचैत्यवंदन ॥ ॥ सिघो-विजायचकी-नमि-विनमि-मुणी घुमरियोमुपिंदो, वाली पन्न-संबो जरह सुक मुणी सेलगो पंथगोवा, रामो कोमी पंचत्राव नरवई नार पंकुपुत्ता । मुत्ताएवं श्रणेगे विमलगिरिमहं सिबमेयं नमामि ॥१॥
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