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॥ अथ देवसियं आलोठं ॥ ॥श्वाकारेण संदिस्सह जगवन् देवसियं आलो श्वं ॥ आलोएमि. जो मे० ॥ इति ॥ २७ ॥ इहां देवसियके ठिकाने राश्यं कहेना ॥
॥पीछे रात्रि संबंधि अतिचार गुरु समद श्राखोये, सो कहते हैं।
॥अथ आलोयण लिख्यते ॥ ॥श्राजुणा चार प्रहर दिवसमें जे में जीव विराध्या होय ॥ सात लाख पृथिवीकाय ॥ सात लाख अप्पकाय ॥ सात लाख तेनकाय, सात लाख वाकाय ॥ दश लाख प्रत्येक वनस्पतिकाय ॥ चनदे लाख साधारण वनस्पति काय ॥ दोय लाख बेइजिय ॥ दोय लाख तेइजिय ॥ दोय लाख चौरिंत्रिय ॥ चार साख देवता ॥ चार लाख नारकी ॥ चार लाख तिर्यंच पंचेंजिय ॥ चनदे लाख मनुष्य एवं चार गतिके चौराशी लाख जीवयोनिमें, माहारे जीवे जे कोइ जीव हण्यो होय, हणाव्यो होय, हणतां प्रते जलो जाण्यो होय, ते सके दु मने वचने कायायें करी तस्स मिलामि मुक्कम ॥ इति ॥ २७ ॥ . ॥ अथ अढारे पापस्थानक आलोजं ॥
॥प्राणातिपात ॥१॥ मृषावाद ॥३॥ अदत्तादान ॥३॥ मैथुन ॥ ४॥ परिग्रह ॥ ५ ॥ क्रोध ॥६॥ मान ॥ ७ ॥ माया ॥ ॥ लोल ॥ ए॥ राग ॥ क्षेष ॥ ११ ॥ कलह ॥१२॥ अन्याख्यान ॥ १३ ॥ पैशुन्य ॥ १४ ॥ रति अरति ॥ १५॥ परपरिवाद ॥ १६ ॥ मायामृषावाद ॥ १७॥ मिथ्यात्वशस्य
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