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(३५) ॥अथ पमिलेहण विधि ॥ ५ ॥ ॥ खमासमण देई श्वाकारेण संदिस्सह जगवन् ॥ पमिलेहए संदिस्साउं? गुरु कहे. संदिस्सावेह ॥बीजे खमासमणे॥श्चाका संपला पमिलेहण करूं ? गुरु कहे, करेह ॥ पीने श्वं कही मुहपत्ती पमिलेहे ॥ इमहीज दोय खमासमणे अंगपमिलेहण संदिस्सा ॥अंगपमिलेहण करूं कहके धोतियुं कणदोरो पमिलेहके खमासमण देई श्वाकारे ॥ सं० ॥ जगवन् ! पसात करी पमिलेहण पमिलेहावो जी. एम कही ॥थापनाचार्य पमिलेहके रके, अने जो गुरुवादिक थापनाचार्य पमिलेहे, तो पण खमासमण देई आग्यामाँगे, पीने खमासमण देई ॥ श्वास ॥ सं० ॥ ज० ॥ मुहपत्ती पमिलेहुं ? गुरु कहे पमिलेहेह ॥पीने छ कही ॥ मुहपत्ती पमिलेही ॥ दोय खमासमणे ॥श्वाका ॥ सं॥न ॥ जेहिपमिलेहण संदिस्साचं ॥ उही पमिलेहण करुं ॥ एम कही कंबल वस्त्रादि पमिलेहे ॥ पीने पौषधशाला प्रमाजी, काजो विधिशुं परमवी खमासमण देई इरियावही पमिकमे ॥ ए मूलविधि जाणवो ॥ इतनी स्थिरता न होवे, तोजी दृष्टिपमिलेहण तो अवश्य करणी ॥ अवनी प्रायः एसेही करते दिखते हैं।
अब सामायिक पारणेका विधि कहते हैं ॥ ६॥ ॥पीने सामायिक पारे ॥ एक खमासमण देई ॥ मुहपत्ति पमिलेहे ॥ फिर खमासमण देई ॥ श्वा० ॥ सं० ॥ ॥ सामायिक पारुं ॥ गुरू कहे 'पुणोवि कायबो, पीने यथाशक्ति कही वली खमासमण देई कहे. श्वाका० ॥ सं० ॥ ॥
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