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(३३) सामायिक पारेमि ॥ गुरु कहे आयारो न मोत्तवो ॥ पीने तहत्ति कही, अर्थ नमि ऊनो श्रको, तीन नवकार गुणी नीचो गोमालीये बेसी मस्तक नमावी ॥ जयवं दसमलदो॥ इत्यादिगाथा कहे, सो लिखते हैं ॥
॥अथ जयवं दसमलदो ॥५४ ॥जयवं दसमजद्दो, सुदंसणो धूलिजद्द वयरोय ॥ सफलीकयगिहचाया, साहू एवं विहा हुँती ॥१॥ साहूण वंदणेणं, नास पावं असंकिया नावा ॥ फासु अदाणे निकार, अनिग्गहो नाण माईणं ॥२॥उनमन्बो मूढमणो, कित्तिय मित्तंपि संजर जीवो ॥ जं च न संजरामि अहं, मिठामि मुक्कम तस्स ॥३॥ जं जं मणेण चिंतियं, असुहं वायाश् नासियं किंचि ॥ असुहं काएण कयं, मिनामि उक्क तस्स ॥४॥ सामाश्य पोसह संध्यिस्स जीवस्स जाइ जो कालो। सो सफलो बोधवो, सेसो संसार फलहेज ॥ ५॥ सामायिक विधे लीधुं विधे कीg, विधि करतां अविधि आशातना लागी होय, दश मनका, दश वचनका, बारह कायाका वत्तीस मुषणमांहि जो कोश् उषण सागो होय, सो सदु मन कर, वचन कर, कायायें करी मिळामि मुक्कम ॥ इति सामायिक पोसह पारवानी गाथा ॥ ॥
॥ अथवा पहिला सामायिक पारी कें, पीछे पमिलेहण करे.. शहां यथायोग्य अवसरे गुरुकुं सुहरा पूरे ॥
दूसरा खमासमण देवे, श्रीजिनपतिसूरिजीकी समाचारीमें एसें कयो हे ॥ इति सामायिक पारण विधि ॥
श्राव०३
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