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( ३४ )
॥ अथ संध्याकाल सामायिक विधिर्लिख्यते ॥ ७ || पिछले पोरें धर्मशाला प्रमार्जी वस्त्रादिक पहिलेहे. जो वेरो यो दुवे, तो दृष्टिप मिलेहण करे | पीछे गुरु आर्गे श्रथवा थापनाचार्यजी आगें वी भूमि प्रमार्जी असण वाम पासे मूकी खमासमण देई कहे || इलाका० ॥ सं ॥ ज० ॥ समायिक मुहपत्ती पहिलेढुं ? गुरु कहे पहिलेदेह. कही ॥ फिर खमासम देई मुहपत्ती पहिले हे || पीछे खमासमण देई ॥ शलाका० ॥ सं० ॥ ज० ॥ सामायिक संदिस्सा ? गुरु कहे संदिस्सावेह || फिर खमासमण देई इलाका० ॥ सं० ॥ ज० ॥ सामायिक वाढं ? गुरु कहे, गएद इवं कही फिर खमासमण देई || अवनत श्रई तीन नवकार गुणी कहे. इवाकारेण सं०
गवन् ! पसा करी सामायिक दंरुक उच्चरावोजी ॥ गुरु कहे उच्चरावेमो || पीछे करेमि नंते सामाइयं ॥ इत्यादि सामायिक सूत्र गुरु वचन अनुभाषण करतो थको तीन वार उच्चरी खमासम देई || इलाका० ॥ सं० ॥ ० ॥ इरियावहियं परिकमामि ? गुरु कहे परिक्कमेह || पीछे इवं कही ॥ इवामि परिकमितं ॥ इरियावहियाए इत्यादि पाठसे इरियावहियं पकिमी || एक लोगस्सका काउस्सग्ग करी, णमो अरिहंताणं कही, कारसग्ग पारी मुखें प्रगट लोगस्स कही, नीचे बैठके मुहपत्ती पहिले हि वांदा देई कहे. इछाकार भगवन् ! पसाउ करी पञ्चरकाण करावोजी. पीछे गुरु दिवस चरिम पच्चरकाण करावे ॥ गुरु जावें थापनाचार्य समदें अथवा स्वमुखे वा aha साधर्मी मुखें पच्चरके ने जो तिविहार उपवास की धो
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