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(३५) हुवे, तो मुहपत्ती पमिलेहि पच्चरकाण करे ॥ वांदणा न देवे, अने जो चनविहार उपवास दुवे, तो पच्चरकाण करवू ने नहीं॥ ते माटें मुहपत्ती नहिं पमिलेहे ॥ ए विस्तार विधि हे ॥ पीने एक खमासमण देई इलाका ॥ सं० ॥ ॥ सद्याय संदिस्साउं? गुरु कहे, संदिस्सावेह. पीने श्वं कही वली खमासमणदेई ॥ इबा० ॥ सं० ॥ न ॥ सजाय करूं ? गुरु कहे करेह ॥ पीने श्वं कही । खमासमण देई ॥ ननो थको मधुर स्वरें श्राव नवकारनी सजाय करे ॥ पीने खमासमण देई॥श्वा० ॥ सं० ॥नम्॥ बेसणुं संदिस्सा ? गुरु० संदिस्सावेह ॥ फिर खमासमण देई बा ॥ सं० ॥ ॥ वेसणुं गउं ? गुरु कहे, छाएह ॥ पीने खं कही जो शीत कालादि हुवे तो खमासमण दे॥श्चा०॥संगालः॥पांगरणुं संदिस्साउं?गुरु कहे, संदिस्सावेह ॥ फिर खमासमण देई ।। श्वा ॥ सं० ॥ ज० ॥ पांगरj पमिग्गहूं ? गुरु कहे पमिग्गएह ॥ पीने श्वं कही शुल ध्यान करे ॥ इति संध्यासामायिक विधिः ॥
॥अथ देवसि पमिकमण विधिलिख्यते ॥ प्रथम त्रण खमासमण देई ॥ श्वा ॥ सं० ॥ न ॥ चैत्यवंदन करुं ? गुरु कहे करेह. पीछे चं कही ॥ जय तिढुअण कहे ॥ जिसमें परकी तथा चनमासी तथा संवबरीके रोज तीस गाथा कहेनी ॥ और दिनोमें तो पांच गाथा पहेलेकी, और दोय गाथा पिगमीकी, एवं सात गाथा कहेनेकी प्रवृत्ति देखमें आवे हैं. अब जयतिहुश्रण लिखते हैं॥
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