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( ३६ )
॥ श्रथ जयति लिख्यते ॥ ४९ ॥ ॥ जय तिदु वरकप्परुरक जय जिए धन्नं तरि, जय ति कलाएकोस रिअक्करि केसरि ॥ तिदुपजण अविलंघिया जुवणत्तय सामिश्र, कुणसुसुहाई जिस पास यंजय पुरचि ॥ १ ॥ तइ समरंत लहंति कत्ति वर पुत्तकसत्तई, धम सुवन्न हिरम पुस जनुंजइ रई ॥ पिरकहि मुरक असंखसुरक तुह पास पसाइए, इय तिदुखण वरकप्परुरकसुरकर कुए मह जिए || २ || जरजकर परिजुन कसणहुछसुकुछिए, चरकुरकीए खएखुप नर सलि सूलिए ॥ तुह जिए सरणरसायण लढु हुंति पुण्सव, जय धमंतरि पास महवि तु रोगहरो भव ॥ ३ ॥ विकाजोइस मंततंत सिङ्घि
पयत्ति, व विह सिद्धि सिकाइ तुह नामिए ॥ तु नामि पवित्त वि जण होइ पवित्तन, तं तद्दृऋण कलाकोस तु पास निरुत्तन ॥ ४ ॥ खुद्द पवत्त मंत-तंतजंता विसुत्तर, चरथिरगरलगदुग्गखग्गरिज वग्ग विगंज || shares as निवार दय करि, रिाई दर स पासदेन पुरिअक्करिकेसरि ॥ ५ ॥ तुह आणा थंने जीमदयुद्धुर सुरवर, ररकस - जरक - फणिंद विंद चोरानलजलहर || जलथलचारिरन्दखुद्द पसु जोइणि जो, श्य तिहुण
विसंधिया जय पास सुसामिका ॥ ६ ॥ पि
दिल जत्तिन्नर. निप्जर, रोमंचं चित्राचारुकाय किसरनर सुरवर ॥ जसु सेवा कमकमलजुल परकालिया कलिमलु, सो जुवपत्तयसामि पास मह मद्दन रिजबलु ॥ ७ ॥ जय जोश्र
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