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(३१) बाउम जोमवारा ॥ प्रचुके चरण परताप संघमें, हमारतन प्रनु प्यारारे ॥ध० ॥ ५ ॥ इति ॥
॥अथ श्रीसिघाचलस्तवनं लिख्यते ॥ ॥ सिरि सिघाचल गिरिवर राया परमातम पद संपद पाया, श्री अनजिनेसर जिनराया प्रनु मया करी, दिल रंजन दिदारकि मुजने दीजिये ॥ १॥ जे समता सुख सुधा आपे, जमता युत कुमतिलता कापे, वलि बोध बीजने थिर थापे ॥ प्रनु०॥ ॥२॥ पर पुद्गलममता दूरगमे, चेतनता निजघरमांहिं रमे, तिहां जनम मरण सहू दुःख विरमे ॥ प्रनु० ॥३॥ जेहथी लवपरणति चितनवसे अध्यातम अनुन्नव गुण विकसे तिहां सहज समाधि दशा उबसे ॥ प्रनु ॥॥ए अध्यातम वीनति मधुरी ॥ वाचक-गणि-क्षमा कल्याण करी ॥ ते सफल करो मुज हेत धरि ॥ प्रनु० ॥ ५॥
इति सिघाचलस्तवनं संपूर्णम् ॥ ४२ ॥ पीने जयवीयराय० ॥ वंदणवत्तियाए ॥ अन्न३० ॥ कहके एक नवकारका काउस्सग्ग करे ॥ पारिकं नमोऽहसिधा ॥ कहके स्तुति कहे सो लिखते हैं ।
॥ शत्रुजगिरि नमियें षनदेव पुमरीक ॥ शुन तपनो महिमा, सुणि गुरु मुख निरनीक ॥ शुष मन उपवासें, विधिशुं चैत्यवंदनीक ॥ करिये जिन आगल, टासी वचन अलीक ॥ १॥ इति ॥ ४३ ॥४॥पीने फुरसद होवे तो पमिलेहण करे, सो लिखते हैं।
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