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॥ अथ पुमरीकगणधरजीस्तवनं । श्री पुंगरीक गणधर नमुं, पुंगरगिरि सिणगार खाल रे ॥ पांचकोम मुनि परिवखा, कीधो अणसण सार, लाल रे ॥ पुंग ॥१॥ आदीसर जिन उपदिसे, ए तीरथ परसाद, लाल रे ॥ शिवकमला तुमे पामशो, मेटी सद् विखवाद लाल रे ॥ पुंम ।। ॥२॥तीरथ पतीमां हूं अबु, प्रथमतीरथ श्म जाण, लासरे।। प्रथम सिह सिघाचले, तुमे श्रास्यो महिराण, लालरे ॥ पुंग ॥३॥ प्रनुनी प्राणा श्रादरी संलेखना चितलाय, लालरे ॥ चैत्रीदिन शिवपुर सह्या, घातीकर्म खपाय, साखरे ॥ पुंम ॥ ॥४॥यात्रा विधीसु कीजिए, जिनजी दियो उपदेश, लालरे॥ कृपाचंद गिरिराजनी, चाहे सेवा हमेश, सासरे ॥ पुंम ॥ ५॥ श्ती श्री पुंगरीक गणधरजी स्तवनं ॥
॥अथ श्रीसिघाचलस्तवनम् ॥ सिघाचल गिरि नेव्या रे ॥ धन्य नाग्य हमारा विमलाचलगिरि० ॥ एह गिरिवरनो महिमा मोटो, कहेतां न श्रावे पारा ॥रायण रूख समोसस्या स्वामी, पूर्व नवाणू वारा रे ॥ध ॥१॥ मूलनायक श्रीश्रादिजिनेश्वर, चोमुख प्रतिमा चारा ॥ अष्ट अव्यसें पूजो लावें, समकित मूल आधारारे ॥ध ॥२॥ दूर देशान्तरथी हूं शहां आयो, श्रवण सुणी गुण तोरा ॥ पतितउधारण बिरुद तुमारो, एह तीरथ जग सारारे ॥ ध० ॥३॥नाव नक्तिसें प्रनु गुण गावे अपना जन्म सुधारा ॥ जात्रा करि जवि जन शुल नावे, नरक तिर्यंच गति वारारे ॥धः॥४॥ संवत अढार तयांसी मास आषाढे, वदि
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