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| 'जान
(८१) रिणो संति ॥ अवहरिअ विग्धसंघा, हवंतु ते संघसंतिकरा: ३॥ सिरियंभणयटिअपाससामि, पयपउमपणयपाणीणं ॥ निदलिअ दुरिअ विंदो, धरणिंदो हरउ दुरिआई ॥४॥ गोमुहपमुरक जरका, पडिहयपडिवरकपरकलरका ते ।। कयसुगुणसंघररका, हवंतु संपत्तसिवसुरका ॥५॥ अप्पडिचकापमुहा, जिणसासणदेवयाउ जिणपणिआ । सिद्धाइआसमेया, हवंतु संघस्स विग्धहरा ॥६॥ सक्काएसासचउरपुरहिओ, बद्धमाणजिणभत्तो॥ सिरिबंभसंति जरको, ररकउ संघ पयत्तेण ॥ ७ ॥ खित्तगिहगुत्तसंताण, देसदेवाहि देवया ताओ ॥ निव्वुइपुरपहियाणं, भवाण कुणंतु सुरकाणि ॥ ८॥ चक्केसरि चकधरा, विहिपहरिउच्छिण्णकंधरा धणि ॥ सिवसरणिलग्ग संघस्स, सव्वहा हरउ विग्याणि ॥ ९॥ तित्थवइ वद्धमाणो, जिणेसरो संगओ सुसंघेण ॥ जिणचंदो भयदेवो, रकउ जिणवल्लहो पहुमं ॥ १० ॥ सोजयउ बद्धमाणो, जिणेसरो सरुव हयतिमिरो ॥ जिणचंदा भयदेवा, पहुणो जिणवल्लहा जेय ॥ ११॥ गुरुजिणवल्लहपाए, भयदेव पहुत्तदायगे वंदे ॥ जिणचंद जिणेसरवद्धमाण तिस्थस्स बुड्डिकए ॥ १२ ॥ जिणदत्ताणं सम्मं, मन्नंति कुणंति जेय कारंति ॥ मणसा वयसा वउसा, जयंतु साहम्मिआ तेवि ॥ १३ ॥ जिणदत्तगुणे नाणाइणो, सया जे धरंति धारिंति ॥ दंसिअसियवायपए, नमामि साहम्मिआ तेवि ॥ १४ ॥ इति षष्ठं सरणम् ॥६॥
॥ उवसग्गहरं पासं, पासं वंदामि कम्मघणमुकं ॥ विसहरविसनिण्णासं, मंगलकल्लाण आवासं ॥१॥ इत्यादि ॥ भवेभवेपासजिणचंद पर्यंत संपूर्ण कहना ॥ ५॥ इति श्रीपार्श्वजिनस्तवनं सप्तमस्मरणम् ॥ ७॥ इति सप्तस्मरणं समाप्तम् ॥
६ श्रा० नि.
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