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(९७) ॥ ११ ॥ जालिमयालीनेउवयाली ॥ प्रमुखसाधुनीकोडिरे ॥ साधुअनंता से@जैसीधा, प्रणमुंबेकरजोडिरे ॥ से० ॥१२॥ ढाल चोपाईनी ॥ सेचुंजैना कहुं सोलउद्धार ॥ ते सुणिज्यो सहुको सुविचार ॥ सुणतां आणंद अंगनमाय ॥ जनमजनमना पातिकजाय ॥१॥ रिषभदेव अयोध्यापुरी ॥ समवसर्यास्वामी हितकरी ॥ भरतगयो बंदणनै काज ॥ ये उपदेश दियोजिनराज ॥२॥ जगमाहै मोंटा अरिहंतदेव ॥ चौसठइंद्रकरै जसुसेव ॥ तेहथी मोटो संघकहाय ॥ जेहनें प्रणमें जिनवरराय ॥३॥ तेहथी मोटो संघवीकयो ॥ भरतसुणीनेंमनगहगह्यो ॥ भरत कहै ते किमपामियै ॥ प्रभु कहै सेव॒जै जात्राकियै ॥४॥ भरत कहै संघवीपदमुझ ॥ थेआपो हुंअंगजतुझ ॥ इंद्राण्या अक्षतवास ॥ प्रभुआपै संघवीपदतास ॥५॥ इंद्रे तिणवेला ततकाल ॥ भरत सुभद्रा विहुँनैमाल ॥ पहिरावी घरसंप्रेडिया ॥ सखरसोनाना रथआपिया ॥ ६ ॥ ऋषभदेवनी प्रतिमावली ॥ रत्नतणी दीधी मनरली ॥ भरतै गणधरघरतेडिया ॥ सांतिक पोष्टिक सहु तिहां किया ॥ ७ ॥ कंकोत्री मुंकी सहुदेस ॥ भरत तेडायो संघ असेस ॥ आयो संघ अयोध्यापुरी ॥ प्रथमथकी रथजात्राकरी ॥ ८॥ संघभगतिकीधी अतिघणी ॥ संघ चलायो सेजभणी ॥ गणधर बाहूबलिकेवली ॥ मुनिवरकोडि साथेलियावली ॥९॥ चक्रवर्तिनी सगली रिद्धि ॥ भरतें साथे लीधीसिद्धि ॥ हयगयरथपायकपरिवार ॥ तेतो कहतां नावैपार ॥१०॥ भरतेसरसंघवी कहवाय ॥ मारगचैत्य उधरतो
७ श्रा० नि.
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