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(९८) जाय ॥ संघ आयो सेबूंजे पास ॥ सहनीपूगी मननी आस ॥११॥ नयणे निरख्यो सेजुजराय ॥ मणि माणक मोत्यांसुं वधाय ॥ तिण ठामै रही महोछवकियो ॥ भरते आणंदपुरवासियो ॥१२॥ संघसेजै ऊपरचढ्यो ॥ फरसंता पातिक झडपड्यो । केवल ज्ञानी पगलां तिहां ॥ प्रणम्यारायण रूखछै जिहां ॥ १३ ॥ केवलज्ञानी सनात्र निमित्त ॥ ईशानेंद्र आणी सुपवित्त ॥ नदी से सोहामणी ॥ भरतें दीठी कौतुकभणी ॥ १४ ॥ गणधरदेवतणे उपदेश ॥ इंट्रैवलिदीधो आदेस ॥ श्रीआदिनाथतणो देहरो॥ भरतकरायो गिरिसेहरो ॥ १५॥ सोनानो प्रासाद उत्तंग ॥ रतन तणी प्रतिमा मनरंग ॥ भरतै श्रीआदीसरतणी ॥ प्रतिमा थापी सोहामणी ॥ १६ ॥ मरुदेवानी प्रतिमाभली ॥ माहीपूनिम थापीरली ॥ ब्राह्मी सुंदरी प्रमुखप्रासाद ॥ भरतै थाप्या नवलैनाद ॥ १७ ॥ इम अनेक प्रतिमाप्रासाद ॥ भरतकराया गुरुसुप्रसाद ॥ भरत तणो पहिलो उद्धार ॥ सगलोही जाणै संसार ॥ १८ ॥ ढाल सिंधूडो (आसाउरी)॥ भरत तणे पाटै आठमे ॥ दंडवीरज थयो रायोजी । भरततणीपरै संघकीयो । सेर्बुजसंघवी कहायोजी ॥१॥ सेठेजै उद्धार सांभलो ॥ सोलमोटा श्रीकारोजी ॥ असंख्यात वीजावली ॥ तेह न कहुं अधिकारोजी ॥ से० ॥२॥ चैत्यकरायो रूपातणो॥ सोनानो बिंबसारोजी॥ मूलगोबिंवभंडारीयो॥पच्छिमदिशि तिणवारोजी ॥ से० ॥३॥ सेव॒जैनी जात्रा करी ॥ सफलकियो अवतारोजी॥दंडवीरज राजातणो॥ए वीजो उद्धारोजी ॥ से०॥४॥ सोसागरोपमा वितिक्रम्या ॥ दंडवीरजथी जिवारोजी ॥ ईशानें
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