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(१२२) आपदसहुटलै । सयल सांतिसुख संपत्ति मिले । आधिव्याधी चिंतासंताप । ते छंडी नवि मंडै व्याप ॥७॥ पाप दोष नविलागैतिहां गुरुदरसण उत्कंठा जिहां । सेवतां सुरतरूनीछांहि । निश्चैदालिद्र मेटैवाहि ॥ ८ ॥ विसहर विसनर विसनरनाह । भूतप्रेतग्रह व्यंतर राह । गुरुनामें जेनकरै पीड़। भाजै भावठ भवभय भीड़।।९।। रोग सोग सविनासै दूर । अंधकार जिम ऊगैसूर । मूरखफीटी पंडित थाय । प्रभु पसाय दुख दुरीय पुलाय ॥ १०॥ दिन दिन जिन सासन उद्योत । तिहां अछै भव सायर पोत । सोसदगुरुमें भेट्यो आज । रलीयरंगसीधा सविकाज ॥ ११ ॥ (ढाल ) अज घर अंगण सुरतरू फलियो। चिंतामणि कर कमले मिलियो । उदयो परमाणंद घरे ॥ १२ ॥ आज दीहमें धन्ने गिणियौ । जुग पररागम जोमें थुणियौ । चंद्र गच्छ महिमानिलोए ॥१३॥ कांइ करो पृथविपतिसेवा । काइ मानवो देवीदेवा । चिंता आंणो कांइमने ॥१४॥ वार वारए कवित भणीजै । श्रीजिनकुशल सरि समरीजै । सरै काज आयास विणे ॥ १५ ॥ संवत चवद इक्यासी वरसै । मुलक वाहड मेरुपुर मन हरसै । अजिय जिणेसर वर भवणौ ॥ १६ ॥ कीयो कवित ए मंगल कारण । विधन हरण सहुपाप निवारण । कोइ मत संसो धरो मनें ॥ १७ ॥ जिम जिम सेवै सुरनर राया । श्रीजिन कुशल मुनीसर पाया । जयसागर उवझाय थुणे ॥ १८ ॥ इम जो सदगुरु गुण अभिनंदै । ऋद्धि समृद्धि सो चिर नंदै । मन बंछित फल मुझ हुवोए ॥ १९ ॥ दादाजी श्रीजिनकुशलसूरजी उत्पत्ति विचार गर्भित स्तवन संपूर्णम् ॥
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