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( ए५ )
दोय धोला जिनपति, दोय काला दोय नीलाजी || लांबनवरण प्रमाण सूशोजित, सोले जिनवर पीलाजी | सत्तरवेदी पूजा करीने, चैत्यप्रवामी कीजेजी ॥ पर्वपजुषण पूरवपुन्ये, पाम्या ला जाणीजे जी ॥ २ ॥ कल्पसूत्र निजघर पधरावी, रात्रिजागो तिहां कीजेजी ॥ वरघोको सजिसंघमलीने, सद्गुरुनें आणी दीजेजी ॥ नव- इग्यारह-तेरह - वायणा, निसुणी दुर्गति वारोजी ॥ पूजा प्रजावना सद्गुरु भक्ति, करिनें जन्म सुधारोजी ॥ ३ ॥ साहमी वल करियें जावे, वारंवार उजमंताजी ॥ केई शीयल-तप-संयम पाले, जाव अधिक जलसंताजी ॥ दिवस पर्युषण सेवो, जिम सेवे सूर इन्दाजी ॥ सुयदेवी सुपाये जाखे, जिन कृपाचन्द्रसूरीन्दाजी ॥४॥ इति पदम् ॥ इति पदम् जावा नयाग नरिंद विंद | सबिंद संपु पयार विंदं । वंदे जसो निकिय चारु चंदं । कल्लाए कंदं पढमं जिणंदं ॥ १ ॥ चित्तेगदारं रिजदप्पदारं । क्खंगिवारं समसुक्ख कारं । तित्थेसरा दिंतु सया निवारं । अपार संसार समुद्रपारं ॥ २ ॥ अन्ना सत्तु खलणे सुवप्पं । संजुत्ति संदिलिय कोहदपं । संसेमि सित महो णं । निवाणमग्गेवरजाकप्पं ॥ ३ ॥ हंसा हिरूढा वर दाणधन्ना । वाईसिरिया गुणोऽवि वन्ना । निचंsपि श्रम्ह हवन पसन्ना । कुंदिंडु गोखीरतुसार वन्ना ॥ ४ ॥ ॥ अथ चतुर्दशी स्तुति ॥
॥ अविरल कमल गवल मुक्ताफल कुवलय कनक जासुरं ॥ परिमल बहुत कमलदल कोमल पदतखलुलितनरेश्वरं त्रिभुवन
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