________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
(५६) जवन सुदीप्रदीपक मणिकलिका विमल केवलं ॥ नवनव युगलजलधि परमित जिनवरनिकरं नमाम्यहं ॥१॥ व्यंतर नगर रुचिक वैमानिक कुलगिरि कुंमसकुंमले ॥ तारक मेरुजलधि नंदीसर गिरि गजदंतसु मंझले ॥ वक्षस्कार नवन वन जोचर कुरुवैतान्य कुंजिगा ॥ त्रिजगति जयति विदितशाश्वतजिननतिततिरिहमोहपारगा ॥२॥ श्रुतरलैक जलधि मधु मधुरिम रसन्नर गुरु सरोवरं ॥ परमततिमिरकिरणहरणोबुर दिन कर किरण सहोदरं ॥ गमनयहेतुलंगगंजीरिमगणधरदेव गीष्पदं ॥ जिनवर वचन मवनिमवतात् शुचिदिशतु नतेषु संपदं ॥३॥ श्रीमधीर चमर तीर्थाधिप मुखकमलाधिवासिनी ॥ पार्वण चंड विशद वदनोज्वल राज मराल गामिनी ॥ प्रदिशतु सकल देव देवी गण परिकलिता सतामियं ॥ बिच कलधवल कुवलकल मूर्तिः श्रुतदेवी श्रुतोच्चयं ॥५॥इति चतुर्दशीस्तुति ॥२॥
॥राग रेखता ॥ ॥ श्रये प्रनास पाटण में, चंप्रनुकादरस पाया ॥ बरस जगणीस गुणसके, चरणकज देख सुख पाया ॥ आ० ॥१॥ माधवदि दूजके दिवस, फरस कर कीन सुचि काया ॥ गये सब पाप अब मेरे, हरखसे प्रनुका गुण गाया ॥ श्राप ॥२॥संजवजिनराज मन मोहै, पारसबवि स्यामवरण बाया ॥सांति प्रनुसांतिमुज दीजे, परम शिवमसि प्रनु पाया|श्रा ॥३॥ चरम प्रत्तु वीरजी राजै, आदि जिनराज मन जाया ॥ अजितजिन देख मन हरखे, नेम कीसीस ग्रही गया ॥श्रा॥५॥ जगतमें देव सब निरखे, मेरे दिल कोइ नही जाया ॥ प्रबल
For Private And Personal Use Only