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(५४) सनवंत ॥ जिनचं सुसेवक वेयावच्च करत ॥ श्रीसंघ सकलने आराधक बहु जाण ॥ जिन शासनदेवी देव करो कट्याण ॥ शति ॥ ग्यारस स्तुति ॥४॥
॥अथ परकीचौदश स्तुति ॥ प्रथम तीर्थकर आदिजिनेश्वर जाकी कीजे सेव, गबचौ रासी जेहने थाप्या जाकी करणी एह ॥ तेहने पाखी चौदस कीजे बीजे अंग कहाय, पाखी सूत्र प्रथम तुम देखो जिम जिम संशय जाय ॥१॥ चवीसे जिन पूजा कीजे मानो जिनकी बाण, कल्पसूत्रनी पाखी चौदस जोवो चतुर सुजान ।। ण पर गम गम तुम देखो चौदस पाखी होय, जूला कांश नमो तुम प्राणी साचो जिनधर्म जोय ॥२॥ चवदसरे दिन पाखी कीजे सूत्रे केरी साख, जविक जीव श्क थाराधो टीका चूर्णी नाष्य ॥श्रावस्यकसूत्र इण पर बोले चनदसरे दिन पाखी, चउद-पुरवधर श्न पर बोले ते निश्चय मन राखी ॥३॥श्रुतदेवी श्क मन बाराधो मन वांछित फल होय, जे जे आशासूधी पाले ज्यानो विघन हरेय । सेवक इणपर करे वीनती सूधो समकित पाय, खरतरगच मंमण कुमति विहंमण माणिक्यसूरि गुरूराय ॥४॥इति ॥
॥अथ पर्युषणापर्वस्य स्तुतिः प्रारंजः॥ । ॥ वीरजिनेसर जग अलवेसर, राजग्रही समोसरियाजी ॥ पर्वपजुषण ऋण परिजाखे, चनविहसंघ परिवरियाजी॥ भाषाढचनमासाथी पच्चाश, दिननी संख्या जाणोंजी॥ संवचरि पमिकमणों करीने, श्रातम निजघराणोंजी ॥१॥ दोयराता
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