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श्री० ॥ ८ ॥ विजयसुरें जिम जिनवर पूजा, कीधी चित्त थिर राखी ॥ व्यजाव बिहूं दें कीनी, जीवाजिगम हो साखी रे ॥ ज० ॥ श्री० ॥ ए ॥ इत्यादिक बहु आगम साखें, कोई शंका मत करजो ॥ जिनप्रतिमा देखी नित नवलो, प्रेम घणो चित्त धरजो रे ॥ ज० ॥ श्री० ॥ १० ॥ चिंतामणि प्रनु पास पसायें, सरधा होजो सवाई ॥ श्रीजिनवान सुगुरु उपदेश, श्री जिनचंद्र सवाईरे ॥ ज० ॥ श्री० ॥ ११ ॥ इति श्री चिंतामणि पार्श्व जिनस्तवनम् ||
॥ पीछे तीन खमासम आचार्य, उपाध्याय, सर्व साधु वांदी, फेर खमासमणे || इलाका० ॥ सं ॥ ज० ॥ देवसि प्रायवित्त विशुद्धिनिमित्तं काजस्सग्ग करूं ? गुरु कहे, करेह. पीछें
कह देवसि प्रायवित्त विशुद्धि निमित्तं करेमि का स्सगं अन्नतु ० ० ॥ कहै शोले नवकार अथवा चार लोगस्सका कारसग्ग करे, पारीके लोगस्स कडे.
|| पीठें खमासम देकर इछाका० ॥ सं० ॥ ज० ॥ समस्त खुदो दवाव करेमि काउस्सग्गं ॥ अन्नत्थू० ॥ इत्यादि कही. शोल नवकार अथवा चार लोगस्सका काजस्सग्ग करे, पारिके ॥ प्रगट लोगस्स कहे. पीछें खमासमण देईकें ॥ इवा० ॥ सं० ॥ जगवन् चैत्यवंदन करूं || एसा कह कर यंत्रणा पार्श्वनाथजीका चैत्यवंदन करे, सो लिखते हैं ॥
॥ अथ श्री यंजणा पार्श्वनाथजी का चैत्यवंदन ॥ ५१ || श्री सेठी तटिनीत पुरवरे श्रीस्तंभने स्वर्गिरौ, श्री पूज्याजयदेवसूरिविबुधाधीशैः समारोपितः ॥ संसिक्तः स्तुति निर्जलैः
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