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(७) शिवफलः स्फूर्जत्फणापक्षवः, पार्थः कटपतरुःस मे प्रथयतां नित्यं मनोवांछितम् ॥ १॥ श्राधि व्याधिहरो देवो, जीरावलीशिरो मणिः॥पार्श्वनाथो जगन्नायो, नित्यनायो नृणां श्रिये॥॥इति ॥
पी. नमोबुणं सेलेके जयवीयराय सुधी कहे ॥ पीने खमासमण पूर्वक मस्तक नमावी सिरि अंजणयध्यि पास सामिणो' इत्यादि दोय गाथा कहे, सो लिखते हैं.
॥अथ श्रीयंत्रणयध्यिपाससामिणो ॥ ५२ ॥ श्रीधनयज्यिपाससामिणो सेस तिवसामीणं ॥ तिक समुन्नय कारणं, सुरासुराणं च सवेसि ॥१॥ एसमहं सरणचं, कामस्सग्गं करेमि सत्तीए ॥ जत्तीए गुण सुध्यिस्स, संघस्स समुन्नय निमित्तं ॥ २॥ इति ।
॥ श्रीयंत्रणापार्श्वनाथजी आराधवा निमित्तं करेमि कानरसग्गं ॥ पी- खमे होके बंदण व० ॥ अन्नत्थू० ॥ कही चार लोगस्सका काउस्सग्ग करिके पीने पारी प्रगट लोगस्स कही कें॥ श्री खरतरगच सिणगारहारजंगम युगप्रधान नट्टारक दादाजी श्रीजिनदत्त सूरिजी चारित्र चूमामणीजी आराधवा निमित्तं करेमि कानस्सगं ॥ अन्नत्थू० कहिकें, एक लोगस्सका कानस्सग्ग करे, पीछे प्रगट लोगस्स कहकें॥
॥ श्रीखरतरगल सिणगारहार जंगमयुग प्रधान लट्ठारक दादाजी श्रीजिनकुशलसूरिजी चारित्र चूमामणीजी आराधया निमित्तं करेमि कालस्सग्गं ॥ अन्नत्थू० कहिके एक लोगस्सका काउस्सग्ग करे पीछे प्रगट लोगस्स कहि बैठ के मावो गोमो
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