________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
(४५) जणुं स्तवन सांगलुं ? गुरु कहे लणेह सांजलेह. पी. श्रासन पर बेठकें नमोऽहसिधा कहके बमो स्तवन कहे,सो लिखते हैं।
॥अथ श्री चिंतामणि पार्श्वजिनस्तवनम् ॥ ५० ॥जविका श्रीजिनबिंव जुहारो, आतम परम आधारो रे ॥ ॥ श्री० ॥ ॥ जिनप्रतिमा जिन सारखी जाणो, न करो शंका कां॥आगम वाणीने अनुसार, राखो प्रीति सवाई रे॥ ॥ श्री० ॥१॥ जे जिनबिंब स्वरूप न जाणे, ते कहिये किम जाणे ॥ नूला तेह अज्ञाने नरिया, नहिं तिहां तत्व पिगणे रे ॥ ज० ॥ श्री० ॥२॥ अंबम श्रावक श्रेणिकराजा, रावण प्रमुख अनेक ॥ विविधपरें जिन नगति करता, पाम्या धर्म विवेक रे ॥ न० ॥ श्री० ॥ ३ ॥ जिन प्रतिमा बहु जगतें जोता, होय निश्चय उपगार ॥ परमारथ गुण प्रगटे पूरण, जो जो आपकुमार रे ॥ ज० ॥ श्री० ॥ ४॥ जिनप्रतिमा आकारें जलचर, बे बहु जलधि मकार ॥ ते देखी बहुता मत्स्यादिक, पाम्या विरतिप्रकार रे ॥जम् ॥ श्री० ॥ ५ ॥ पांचमे अंगे जिन प्रतिमानो, प्रगटपणे अधिकार ॥ सूरियान सुर जिनवर पूजा रायपसेणी मकार रे ॥ ज० ॥श्री० ॥६॥ दशमे अंगे अहिंसा दाखी, जिन पूजा जिन राज एहवा
आगम अरथ मरोमी, करिये केम अकाज रे ॥ ॥ श्री. ॥७॥ समकितधारी सतीय प्रौपदी, जिन पूज्या मन रंगे ॥ जो जो एहनो अरथ विचारी, के ज्ञाता अंगें रे ॥ ज०॥
१ ११ गाथासे स्तवनकी कम गाथा होवे तो ॐ वरकनक गाथा ? कहना इति संपदाय.
For Private And Personal Use Only