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(४४) ॥ अथ देत्रदेवताकी स्तुति ॥ ४ए ॥ यासां क्षेत्रगताः संति, साधवः श्रावकादयः ॥ जिनाज्ञा साधयंतस्ता, रदंतु क्षेत्रदेवताः ॥ १ ॥ इति ॥
॥पीजे खमा दुवा एक नवकार कही, संमासा प्रमार्जि नकमो बेवके मुहपत्ती पमिलेही विधिशुं दो वांदणां दे पच्चरकाण नहि लिया होय तो पच्चरकाण करे पीने स्वामो अणुसहि ॥ कही बेठे. गुरु एक स्तुति कह्यां पीने श्रावक समस्त मस्तकमें अंजलि करिके णमो खमासमणाणं ।। णमोऽहत्सिहा कही ॥णमोऽस्तु वर्षमानाय इत्यादि तीन स्तुति कहे. श्राविका णमो खमासमणाणं कही संसारदावाकी स्तुति ३ कहे.
॥अथ नमोऽस्तु वर्षमानाय ॥ ॥ नमोऽस्तु वर्धमानाय, स्पर्षमानाय कर्मणा ॥ तऊयावासमोझाय, परोदाय कुतीर्घिनाम् ॥ १॥ येषां विकचारविंदराज्या, ज्यायः क्रमकमलावलिं दधत्या ॥ सदृशैरिति संगतं प्रशस्य, कथितं संतु शिवाय ते जिनेन्त्राः॥२॥ कषायतापाबितजंतु निर्वृति, करोति यो जैनमुखांबुदोजतः ॥ स शुक्र मासोनववृष्टिसन्निनो, ददातु तुष्टिं मयि विस्तरो गिराम् ॥३॥ श्वसितसुरनिगंधा लीढङ्गीकुरङ्गं मुखशशिनमजस्रं बिज्रती या बिनर्ति ॥ विकचकमलमुच्चैः साऽस्त्वचिंत्यप्रजावा, सकलसुखविधात्री प्राणनाजां श्रुताङ्गी ॥ ४ ॥ इति ॥
॥ यह तीन गाथा कहकें पी- णमोत्थूर्ण कहकें एक श्रावक खमासमण देई कहे श्वाका० ॥ सं॥ ज० ॥ स्तवन जणुं ? दूसरा खमासमण देई कहे ॥ श्वा० ॥ सं० ॥ ज० ॥ स्तवन
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