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( ४३ )
मुहपत्ती मुखें धरकें दक्षिण हाथ गुरु सन्मुख करके सर्व पाठ कहे. पीछे विधिती दो वांदणा देकर चायरिय उवज्जाए इत्यादि त्रण गाथा कहकें करेमि जंते सामाइयं इवामि गमि Transi इत्यादि कही चारित्र शुद्धि निमित्तें काउस्सग्ग करे ० ० तस्स उ० अन्न || कहकें आठ नवकार अथवा दो लोगस्सका काउस्सग्ग करी पारिके पीछे दर्शनशुद्धि निमित्तें प्रगट लोगस्स कही सबलोए अरिहंत चेश्याएं० ॥ वंदावति० ॥ अन्नक्षू [० ॥ कहकें एक लोगस्सका काजस्सग्ग करी पारिके ज्ञान शुद्धि निमित्तें पुरकरवरदीवड्ढे कहिकें सुयस्स जगव० ॥ वंदवति० ॥ न्नन्नू ॥ कहकें एक लोगस्सका काजस्सग्ग करे. पीछे पारिके सिद्धाणं बुद्धाणं० कहकें वेयाबच्चगराएं न कहे पीछे सुदेवया करेमि काउस्सगं अन्न० ॥ कही एक नवकारनो कास्सग्ग करे. पीछे गुरुका योग न होवे तो एक श्रावक का पारिकें नमोईत्सिद्धा० कहिकें श्रुत देवताकी स्तुति कहे. गुरु दुवे तो, गुरु कहे. और दूजा सर्व स्तुति सुकें काउस्सग्ग पारे. अब श्रुतदेवताकी स्तुति कहे, सो लिखते हैं ||
|| श्रुतदेवताकी स्तुति ॥ ४८
सुवर्णशालिनी देयात्, द्वादशांगी जिनोद्भवा ॥ श्रुतदेवी सदा मह्यमशेषश्रुतसंपदम् ॥ १ ॥ पीछे खित्तदेवयाए, करेमि कासगं० ॥ अन्न० ॥ कहकें, एक नवकार चिंतवी पूर्वनी परें क्षेत्र देवता की स्तुति कहे, सो लिखते हैं ।॥
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