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(१२) सबस्सवि देवसिया इत्यादि कहकर तस्समिठामि उक्कम कहे, परंतु 'श्वाकारेण संदिस्सह छ' ए पद न कहे ।।
॥ पीने खमे होकर करेमिलते सामाश्यं ॥ श्वामि गमि काउस्सग्गं जो मे देवसि ॥ तस्सुत्तरि० ॥ अन्ननु०॥इत्यादि कहिके,काजस्सग्ग मांहे आजूना चल प्रहरमें। इत्यादि पाठ चिंतवीं, आठ नवकारका काउस्सग्ग करे. अथवा 'एमो अरिहंताणं' कही काउस्सग्ग पारिकें प्रगट लोगस्स कहे ॥ - पीने संमासा प्रमार्जन पूर्वक बैठकें मुहपत्ती पमिलेहि के वांदणा देवे. पीछे अवग्रहमांहिज उनो थको श्वा० ॥ २० ॥ ज०॥ देवसियं आलोचं, एसा कहे तब गुरु कहे बालोएह. पीने श्वं बालोएमि ॥ यह पाठ कहके अतिचार आलो. पी सबस्स वि देवसिय इत्यादिथी मामीने श्वाकारेण संदिस्सह पर्यंत कहे, तब गुरु पमिक्कमह. यह पाठ कहे ॥
॥पीछे श्वं तस्स मिहामि मुक कहिकें संमासा प्रमार्जि प्रमार्जित जूमिये आसन पर बैठकें जगवन् ! सूत्र जणुं ? एसा कहे. तवगुरु कहे जणेह. पीछे श्वं कही तीन नवकार गणी, तीन करेमि नंते लणीने श्वामि पमिक्कमिडं जोमे देव सिट इत्यादि कही एक श्रावक वंदित्तु कहे. दूसरा सब सुने. पीने रकमा होकर अनुन्निमि आराहणाए इत्यादि संपूर्ण पाठ कही, दो वांदणा देवे, अरु अवग्रह माहिँज खमा दुआ श्वा० ॥ सं० ॥ न० ॥ अनुनिमि अग्नितर देवसियं खामेलं ? गुरु कहे, खामेह ॥
श्वं खामेमि देवसियं कहके गोमालीयें बेठकें वाम हाथे
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