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(४१)
गवत्ति ॥ अन्ननु०॥ कहिके एक नवकारका काउस्सग्ग करे. पारिके उक्त स्तुतिकी छूसरी गाथा कहे, सो लिखते हैं ।
॥सुर नरवर किन्नर, वंदित पद अरविंद ॥ कामितजर पूरण, अभिनव सुरतर कंद ॥ नवियणने तारे, प्रवहण सम निशिदीस ॥ चोवीशे जिनवर, प्रणमुं विशवावीस ॥१॥ यह दूसरी गाथा कहिके काजस्सग्ग पारे. पीछे पुरकरवरदी० वंदण वत्तिश्राए० अन्नत्थू कहिके एक नवकारका काउस्सग्ग करकें, पारिके उक्त स्तुतिकी तीसरी गाथा कहे, सो लिखते हैं।
॥ अरथे करि आगम, जाख्या श्रीनगवंत ॥ गणधरते गूंथ्या, गुणनिधि ज्ञान अनंत ॥ सुरगुरु पण महिमा, कहि न शके एकंत ।। समरु सुखसायर, मन शुझ सूत्र सिशांत ॥ ३ ॥ यह गाथा कहिकें सिघाण बुखाणं० ॥ वेयावच्चगराणं अन्नत्थू ॥ कही कालस्सग्ग करके पारी उक्त स्तुतिकी चोथी गाथा कहे, सो लिखते हैं ।
॥ सिहायिकादेवी, वारे विधन विशेष ॥ सहु संकट चूरे, पूरे आश अशेष ॥ अहोनिश कर जोमी, सेवे सुर नर ईद ॥ जंपे गुण गण श्म श्रीजिनलाल सूरिंद ॥४॥ इति महावीरजिनस्तुतिः॥ यह चोथी स्तुति कहिके वेठकें नमोत्थूणं कहे. पीछे एक खमासमण देईके श्रीआचार्यमिश्रदूसरा खमासमण दीये. पीने श्रीउपाध्यायजी मिश्र तीसरा खमासमण देकर श्री वर्तमान आचार्यजीका नाम लेके मिश्र चोथे खमासमण में सर्व साधुजी मिश्र इसीतरें कहकर गोमा लीयें बैठके मस्तक नमावी
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