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(४०) मुणिजण अणिसिघन ॥श्य मई पसिय सुपासनाहथंजणयपुरथि, श्य मुणिवर सिरि अजयदेव विणवा आणिंदिर ॥ ३० ॥ इति श्रीस्तंजनकतीर्थराजश्रीपार्श्वनाथस्तवनम् ॥ - पीने जय महायस कहे, सो लिखते हैं।
॥अथ जय महायस प्रारंजः ॥४६ ॥ जय महायस जय महायस, जय महानाग जय चिंतिय सुह फलय ॥ जय समन परमजाणय, जय जय गुरु गरिम गुरु ॥ जय उहत्त-सत्ताण ताणय, अंजणयध्यिपासजिण ॥ नवियह नीम जवत्थु, जयअवणिंताएंतगुण ॥ तुज्क त्तिसंऊ नमोत्थु ॥१॥ इति ॥
॥पीने शक्रस्तव कहकें खमा होकर अरिहंत चेझ्याणं करेमि काउस्सगं वंदणवत्तिश्राए ॥ अन्नत्थू ॥ इत्यादि पाठ कहकें कास्सग्गमांहे एक नवकार चिंतवी एक श्रावक काउस्सग्ग पारी नमोऽर्हसिघा० ॥ कहीएक गाथा स्तुति कहे, सो लिखते हैं।
॥अथ महावीरजिनस्तुति प्रारंजः ॥५७ ॥ मूरति मन मोहन, कंचन कोमल काय ॥ सिधारण नंदन, त्रिशलादेवी सुमाय ॥ मृगनायक लंबन, सातहाथ तनु मान ॥ दिनदिन सुख दायक, स्वामी श्रीवर्धमान ॥१॥
॥ए स्तुति एक श्रावक कहे. अरु दूसरे श्रावक सब काउस्सग्गमें रहे थके सुने. पीने णमो अरिहंताणं कहके काउस्सग्ग पारे.इसीतरें आगे पण स्तुतिकी चारोंगाथामें जान लेनां. - ॥पीने लोगस्स कहकर सबलोए अरिहंत चेश्याएं० वंद
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