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खाऊ । उपरांत दुबिहार । (तथा) चौविहार धारणाप्रमाणें रक्खै । (तथा) दिनमध्ये जल पीणैमें आवै तिसका प्रमाण रक्खै । तोलसें तथा मापसे ॥ * ॥ इति चौदह नियमभाषा ॥ १४ ॥ समाप्तम् ॥ * ॥
॥ अथ स्तवनरागठुमरी० ॥
सुमति चरणकज देख आजमनमधुकरलीनोरे || सु०॥ आज० ॥ सुमतिचरणकज अहोनिशी विकसै, अपरकमलकमलावैरे, जिनचरणांबुजसे विभवियण, मकरंदगुण पीनोरे ॥ सुमति० ॥ १ ॥ सुमति सदा आतमने संगै, सहजानंदभवि विलसैरे, अनुभवअमृत पीवेचंगे, निजगुणमे भीनोरे ॥ सुमति० || २ || परमेसर प्रभुपरउपगारी, परमपुरुष मनुहारीरे, पांचमां जिनपति पडिमा सारी, दीठो देव नगीनोरे || सुमति० ॥ ३ ॥ मेघनृपतिकुल नभमणिसोहे, भविजनना मनमोहेरे, सत्यदेव विख्यातिपामी, जगमाजशलीनोरे || सुमति० ॥ ४ ॥ जगवच्छल जगनायक जगगुरू, सेवकजन प्रतिपालकरे, श्रीजिनकृपाचंदनूरिआज भले, दरसनकीनोरे || सुमति० ॥ ५ ॥ इति पदम् ॥
॥ श्रीजिनदत्तसूरिजी उत्पत्ति स्तोत्र लि० ॥
सिरि सुयदेवि पसायकरे । गुरु श्रीजिनदत्तसूरि | बंदिसु वर तरगच्छरयण | सूरिजेम गुणपूरि ॥ १ ॥ संवत् इग्यारे बरसै । बत्तिसै जसु जम्म । वाछिगमंत्रिपिता जणणी । बाहडदेवी सुरम् || २ || इकतालै जिनवय गहिय । गुणहतरै जसुपाट । वहसाखांवदि छटि दिन । पइ प्रणमें सुरथाट || ३ || अंबडसावय
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