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(११०)
॥ रागप्रभाती जे करे, प्रह ऊगमते सूर ॥ भूख्यां भोजन संपजे, कुरला करे कपूर ॥१॥ अंगूठे अमृत बसे, लब्धि तणा भंडार ।। जे गुरुगोतमसमरियें, मनबंछित दातार ॥ २॥ पुंडरीक गोय मपमुहा, गणधर गुणसंपन्न ॥ ग्रह उठीनें प्रणमतां चवदेसे बावन्न ॥३॥ खंतिखमं गुणकलियं, सुविणियं सवलद्धिसंपणं ॥ वीरस्स पढमसीसं, गोयमसामी नमसामि ॥ ४ ॥ सर्वारिष्टप्रणाशाय, सर्वाभीष्टार्थदायीने ॥ सर्वलब्धिनिधानाय, गौतमस्वामिने नमः ॥५॥ इति ॥
॥ अथ सूतक विचारलि०॥
॥ पुत्र जन्महोनेसें दिन १० दस सूतक ॥ पुत्रीजन्म होनेसें दिन ११ सूतक मृत्यु होणेसें दिन १२ बारह सूतक, ओरजिस स्त्रीके पुत्र होय, उस स्त्रीके एक मासको सूतक ॥ पुत्र होते मरण पामे तो दिन १ एक सूतक ॥ परदेशें मृत्यु होय तो दिन १ एक सूतक ।। गाय, भैंस, घोडी, सांढ, घरमांहे वियावे तो दिन १ एक सूतक। मरण हूवां कलेवर घर बाहिर लइ जाये जहांतक सूतक ॥ दास दासी अपनी नेश्रायें रहते पुत्र पौत्रादिकका जन्म मरणहोवे तो दिन ३ तीन सूतक ॥ ओर जितना महिनाको गर्भ गिरे तितनेदिन सूतक । अब जिनके मरणका सूतक होवे ये १२ बार दिन देवपूजा न करे, ओर जन्मके सूतकमें घरका १० दसदिन देवपूजा न करे।
ओर अन्य घरका तीन दिन देवपूजा न करे, ओर जो मृतकको छुवा होवे, सो २४ चोवीस प्रहर पडिकमण न करे ॥जो सदा का
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