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(२१)
॥ अथ अप्नुछि॥ ॥श्वाकारेण संदिस्सह जगवन् अनुच्चिमि अप्रिंतर देवसियं खामेलं ॥ श्वं खामेमि देवसियं जं किंचि अप्पत्तियं ॥ परप्पत्तियं नत्ते पाणे विणए वेत्रावच्चे बालावे संसावे उच्चासणे ॥ समासणे अंतरजासाए उवरिलासाए ॥जं किंचि मजाविणयपरिहीणं सुदुमं वा वायरं वा ॥ तुने जाणह अहं न जाणामि ॥ तस्स मिलामि उक्क ॥ इति ॥३॥
॥ इहां गुरु पण मिलामि उक्कम कहे. पी. बे वांदणा देई नूमि प्रमार्जन करता हुआ पाछे पगे अवग्रह बाहिर आयकें पायरिय उवज्काए इत्यादि तीन गाथा कहे, सो लिखते हैं।
॥अथ श्रआयरिश उवज्काए सूत्र ॥ श्रायरिश्र उवन्काए, सीसे साहम्मीए कुल गणे अ॥ जे मे कया कसाया, सवे तिविहेण खामेमि ॥१॥ सबस्स समणसंघस्स, नगव अंजलिं करिश्र सीसे ॥ सवं खमावश्त्ता, खमामि सबस्स अहयंपि ॥२॥ सबस्स जीवरासिस्स, नाव: धम्मो-निहिश-निअचित्तो॥ सर्व खमावश्त्ता, खमामि सबस्स श्रयंपि ॥३॥ इति ॥ ३३ ॥ . पी करेमि ते इलामि गमि काउस्सग्गं तस्सुत्तरि० ॥ श्रीमहावीर स्वामी उमासी तप चिंतवणा निमित्तं करेमि काउ. स्सग्गं अन्न ॥ कह के काउस्सग्गमें श्रीवीरकृत उम्मासी तप चितवन करे ॥ तप चिंतवना न आवेतो लोगस्सका अथवा चोवीश नवकारका काउस्सग्ग करे, काउस्सग्ग पारि
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