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॥ अथ खमासमण ॥ ॥श्वामि खमासमणो वंदिन जावणिकाए निसीहिश्राए मबएण वंदामि ॥ इति ॥३॥
॥अथ सुगुरुने सुखशाता पृला ॥ ॥श्चकार जगवन् सुहराइ, सुहदेवसी, सुख तप शरीर निराबाध सुखसंयम यात्रा निर्वहोगेजी ? स्वामी शाता बेजी? इति ॥४॥ एम कही सुगुरुने नमस्कार करे, तथा सुख साता, पूरे तेवारें गुरु कहे देवगुरु प्रसाद ॥
॥पी3 नीचे बैठ के जिमणा हाथ नीचा कर के अप्नुहिमि कहे पी3 खमासमण देके श्वाकारेण संदिस्सह जगवन् सामायिक मुहपत्ती पमिलेहुं ? गुरु कहे, पमिलेहेह. पी3 छ कही मुजी खमासमण देई मुहपत्ती पमिलेहे ॥
॥ अथ मुहपत्ती पमिलेहणके पच्चीश बोल लिखते हैं ॥५॥
॥ सूत्र, अर्थ साचो सईई ॥ १ ॥ सम्यक्त्व मोहनी ॥२॥ मिथ्यात्व मोहनी ॥३॥ मिश्रमोहनी ॥४॥ परिहलं. यह चार बोल मुहपत्ती खोलती बिरीयां कहणां ॥
॥ कामराग ॥ १॥ स्नेहराग ॥२॥ दृष्टिराग ॥३॥ परिहरु ॥ यह सात बोल प्रथम कहीजें ॥ .
॥ सुगुरु ॥१॥ सुदेव ॥॥ सुधर्म ॥३॥ श्रादरं ॥ कुगुरु ॥१॥ कुदेव ॥२॥ कुधर्म ॥३॥ परिहरं ॥ ज्ञान ॥१॥ दर्शन ॥२॥ चारित्र ॥ ३॥ आदरं ॥ यह नव पमिखेहणमावे हाथे करीयें ॥ ॥ज्ञानविराधना ॥१॥ दर्शनविराधना ॥२॥ चारित्र
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