SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 15
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ६ ) दिहिसंचालेहिं ॥ २ ॥ एवमाइएहिं श्रागारेहिं ॥ जग्गो अविराहि ॥ डु में काउस्सग्गो || ३ || जाव अरिहंताणं, जगवंताणं, नमुक्कारेणं, न पारेमि ॥ ४ ॥ तावकार्य, गणेणं मोपेणं जाणं, अप्पाणं वोसिरामि ॥ ९ ॥ इति ॥ १० ॥ इहां चार नवकार अथवा एक लोगस्सको काउस्सग्ग करे. पीठें णमो अरिहंताणं कदे के काउस्सग्ग पारकें मुखसें प्रगट लोगस्स कहे, सो लिखते हैं | ॥ अथ लोगस्स || || लोगस्स गरे || धम्म तियरे जिणे ॥ अरिहंते कित्तस्सं ॥ चठवीसंपि केवली ॥ १ ॥ उसन मजि च वंदे || संजय मणिंदणं च सुमई च ॥ पचमप्पहं सुपासं ॥ जिणं च चंदष्पहं वंदे || २ || सुविहिं च पुष्पदंतं ॥ सील सिजस वासुपु च ॥ विमलमतं च जिणं ॥ धम्मं संतिंच वंदामि ॥ ३ ॥ कुंथुं खरं च मलिं ॥ वंदे मुणिसुवयं नमि जि च ॥ वंदामि रिनेमिं ॥ पासं तह वयमाणं च ॥ ४ ॥ एवं म अनि ॥ विदुय रय मला पहीए जरमरणा ॥ चतवीसंपि जिवरा || तियरा मे पसीयंतु ॥ ५ ॥ कित्तिय वंदिय महिया || जेए लोगस्स उत्तमा सिद्धग्ग ॥ श्ररु बोदिवानंसमाहिवर मुत्तमं दिंतु ॥ ६ ॥ चंदेसु निम्मलयरा ॥ श्रइचेसु हियं पयासयरा ॥ सागरवर गंजीरा ॥ सिद्धा सिद्धिं नम दिसंतु ॥ ७ ॥ इति ॥ ११ ॥ ॥ पी खमासमण देई इला० संदि० भगवन् बेसो संदि - सावं ? गुरु कहे संदिस्सावेह || पी इ कह के वली खमा For Private And Personal Use Only
SR No.020721
Book TitleShravak Nitya Krutya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinkrupachandrasuri
PublisherNirnaysagar Press
Publication Year1923
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy