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(५१) वर उपगारी कामित सुरतरु कंदाजी ॥१॥ अरिहंतसिषप्रवचन श्राचारजस्थविरपाठकमन श्राणोजी ॥ साधुनाण दंसणदसमो-पद विनयचारित्र वखाणो जी ॥ ब्रह्मक्रिया तप गोयम जिनपद समाधिपूर्वश्रुतजाणो जी ॥ श्रुतनक्ति तीरथ प्रनावन वीसथानक पहिचानो जी॥२॥ श्रीमुखवीर जिनेसर जाखे ए पद सेवो प्राणी जी ॥ तीर्थकरपद एहथी लहियै जिन श्रागमनी वाणी जी ॥ ज्ञाता अंगे गणधरदेवे विवरीने घणीबाणी जी ॥ ए आराधनथी सिव लहियै निरुपमसुखनिसानीजी ॥३॥ तीन काल पांचेशकस्तव देव वंदन विधि कीजे जी ॥ काउसग्गपरदक्षिणा गुणनो विधिसुं जिनपूजीजे जी॥ खमासमण विहुं टंकपमिकमणो स्तवना नित्य सुणीजे जी॥ कृपाचंग सुयदेवि पसाये मन वंछित फल सीजे जी ॥४॥ इति ॥ वीसथानक स्तुति ॥१॥
॥अथ श्री बीजनी स्तुति ॥ ॥ मनसुख वंदो लावेनवियण श्रीसीमंधर राया जी ॥ पांचसैं धनुष प्रमाण विराजित कंचनवरणी कायाजी ॥ श्रेयांशनरपति सत्यकि नंदन वृषल लंडन सुखदायाजी ॥ विजय जली पुखलाव विचरे सेवे सुरनर पाया जी॥१॥ काल अतीत जे जिनवर हूवा होस्ये जेह अनंता जी ॥ संप्रतिकाले पंचविदेहे वरतेबीस विख्याता जी॥ अतिशयवंत अनंत गुणाकर जगबंधव जगत्राता जी॥ध्यायकध्येय स्वरूप जे ध्यावे पावे शिव सुख साताजी ॥२॥अरथे श्री अरिहंत प्रकाशी सूत्रे गणधर श्राणी जी॥ मोहमिथ्यात्व तिमिरजरनाशन
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