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(५०) हि शांतिपदं यायात् , सूरिः श्रीमानदेवश्च ॥ १७ ॥ उपसर्गाः क्षयं यांति, विद्यते विघ्नववयः॥ मनः प्रसन्नतामेति, पूज्यमाने जिनेश्वरे ॥ १० ॥ सर्वमंगलमांगट्यं, सर्वकट्याणकारणम् ॥ प्रधानं सर्वधर्माणां, जैनं जयति शासनम् ॥ १० ॥ इति ॥
॥पीने चीराकका अथवा बीजलीका चांदणा पमा होय तो इरियावहि ॥ तस्सुत्तरी. अन्न कहिके, एक लोगस्सका काउस्सग्ग करे, पीठे प्रगट लोगस्स कही पूर्वकी परें सामायिक पारे. एक स्तवन दादाजीको कहे देवसी पनिकमणा विधिः संपूर्णः॥
॥अथ श्रीनुवन देवताकी श्रु॥ ॥ चतुर्वर्णाय संघाय, देवी नुवनवासिनी, निहत्य सुरितान्येषा, करोतु सुखमदयम् ॥१॥
॥ श्राथुइ मकान वदले तो कहे ॥
अन्यथा नहि कहे. ॥अथ श्री वरकनक पाठ प्रारंजः॥ वरकणय संखविहुम, मरगय घणसन्निहं विगय मोहं, सत्तरिसयंजिणाणं, सवामरपूश्यं वंदे स्वाहा ॥१॥ . जवणवई वाणमंतर, जोइसवासी विमाणवासीय, जे केवि मुख्देवा, ते सवे जवसमंतु मे स्वाहा ॥ ॥ इति ॥
॥अथ वीशस्थानकस्तुतिर्लिख्यते ॥ . ॥श्रादीसर अलवेसरजगपतिनविमनसायर चंदा जी ॥ सेजमगण मुख विहंमण श्रनुत ज्योतिसोहंदा जी ॥ सुखसंपति कारण जगतारण सेवे सुरनर इंदा जी ॥ करुणाकर जिन
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