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(५५) अनि नव सूर समाणी जी॥ नवोदधि तरणी मोक्ष नीसरणी नयनिक्षेप सोहाणी जी ॥ ए जिन वाणी अमिय समाणी आराधो नविप्राणी जी ॥३॥ शासनदेवी सुरनर सेवि श्रीपंचांगुलिमाई जी ॥ विघन विमारणी संपत्ति कारण। सेवक जन सुखदाई जी॥ त्रिनुवनमोहनी अंतरजामनी जगजसज्योतिसवाईजी सानिधकारी संघने होयज्यो श्रीजिनहर्ष सहाईजी ॥४॥ इति ॥ बीज स्तुतिः॥२॥
॥अथ ज्ञानपंचमी स्तुति ॥ ॥ पंच अनंत महंत गुणाकर पंचमि गति दातार । उत्तम पंचमि तप विधि दायक ग्यायक नाव अपार ॥ श्रीपंचानन लांजन लांछित वांबित दान सुदद । श्रीवर्धमान जिणंदसु वंदो आणंदो जविपत् ॥१॥ पूरण पंचमहाश्रवरोधक बोधक जव्य उदार ॥ पंच अणुव्रत पंच महाव्रत विधि विस्तारक सार ॥ जे पंचेंजिय दमि सिव पुहता, ते सगला जिनराय ॥ पंचमी तप धर नवियण ऊपर सुधिर करो सुपसाय ॥२॥ पंचाचार धुरंधर युगवर पंचम गणधर वांण ॥ पंच ज्ञान वि चार विराजित नाजित मद पंच वाण ॥ पंचम काल तिमिरजरमांहे दीपक सम सोनंत ॥ पंचमी तप फल मूल प्रकाशक ध्यावो जिनसिधांत ॥ ३॥ पंच परम पुरुषोत्तम सेवा कारक जे नरनार ॥ वलि निरमल पंचमी तप धारक तेह लणी सुविचार ॥ श्रीसियायिका देवी अह निस आपो सुरक श्रमंद ॥ श्रीजिनलाल सुरिंद पसायै कहै जिनचंद मुणिंद ॥४॥इति श्रीज्ञानपंचमि स्तुतिः ॥३॥
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