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(११) दोर्नु हाथे मुहपत्ती मुहमे देकर ॥ सबस्सवि राश्य ।। इत्यादि पाठ कहे. परंतु श्वाकारेण संदिस्सह श्वं इस माफक न कहे.
॥अथ सबस्सवि ॥ .. ॥ सबस्स वि देवसिय सुचिंतिम सुनासिय मुञ्चिन्धि
चाकारेण संदिस्सह लगवन् श्वं ॥ तस्स मिहामि उक्कम ॥ इति ॥ २१ ॥ सवेरको देवसिके ठिकाने राश्यं पाठ कहे ॥ .
॥पी नमुबुणं कह के खमा होय के ॥ करेमि ते सामाइयं सावऊ जोगं पच्चरकामि ॥ इत्यादिक पाठ कहे ॥ पीने
वामि गमि कानस्सग्गं जो मे राळ ॥ यह पाठ कहे, सो लिखते हैं।
॥अथ श्वामि गमि ॥ ॥ श्यामि गमि काउस्सग्गं ॥ जो मे देवसिढ अश्यारो कई ॥ काळ वाळ माणसि ॥ नस्सुत्तो उम्मग्गो अकप्पो ॥ अकरणिजो ॥ उज्का विचिंति अणायारो ॥ अणिजिअबो ॥ असावगपाजग्गो ॥ नाणे तह दंसणे चरित्ताचरित्ते ॥ सूए सामाइए ॥ तिहं गुत्तीर्ण ॥ चनहं कसा याणं ॥ पंचहृमणुबयाणं ॥ तिहं गुणवयाणं ॥ चनहं सिरकावयाणं ॥ वारसविहस्स सावगधम्मस्स ॥ जं खंमिश्र जं विराहिथं ॥ तस्स मिलामि कम ॥ इति ॥ इहां देवसिय के ठिकाने राज्य कहना ॥ इति ॥ २॥
॥पीने तस्सुत्तरी ॥ अन्न ऊससिएणं कह कर चारित्र. शुद्धि निमित्त चार नवकार अथवा एक लोगस्सका काजस्सग्ग करी पारिकें दर्शन शुद्धि निमित्त प्रगट लोगस्स कही ।
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