________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
(१०)
॥ अथ जय वीराय ॥ ॥ जय वीयराय जगगुरु ॥ होउ ममं तुह पन्नाव जयवं॥ नवनिवे मग्गाणुसारिया इक फलसिद्धी॥ लोगविरुषच्चाउँ॥ गुरुजणपूया परत्थकरणं च ॥ सुहगुरुजोगो तबयण सेवणा आनवमखमा ॥ २० ॥
॥ इत्यादि जय वीयराय पर्यंत चैत्यवंदन करे ॥ पी खमासमण दे के श्ला० ॥सालण॥ कुसुमिण मुसुमिण राई पायचित्त विसोहणकाउस्सग्ग करूं ? गुरु कहे करेह. पी3 श्वं कह कर कुसुमि ण सुमिण राई पायलितविसोहण करेमि काजस्सग्गं ॥ अन्न ऊससिएणं ॥ इत्यादिपाठ कहेके सोले नवकार अथवा चार लोगस्सका चंदेसु निम्मलयरा पर्यंत चिंतनकर के काउस्सग्ग करे ॥ पी एमो अरिहंताणं कहकर काउस्सग्ग पारी मुखसें एक लोगस्सका पाठ प्रगट कहें. जो रात्रिमें मूल गुण संबंधि मोटको दूषण लागो होवे तो कालस्सग्गमाहे ॥ सागरवरगंजीरा पर्यंतचिंतवे ॥ इति संप्रदाय ॥
॥अब पमिक्कमणा गयवेका अवसर हुवा ॥ जब खमासमाण देश श्री श्राचार्यजी मिश्र कहि के वांदीयें ॥१॥ खमासमण दे श्रीनपाध्यायजी मिश्र कहि के वांदी ॥२॥खमासमण देश जंगम युगप्रधान वर्तमान नट्टारक श्रीधर्माचार्यजीका नाम लेके मिश्रकही वांदीयें ॥३॥खमासमण देश के सर्व साधुजीकुं मिश्रकही वांदीयें॥४॥इसतरे चार खमासमणसें पमिकमणा गवी गोमालीय बैठ के मस्तक नमायकर
For Private And Personal Use Only