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( १३० )
॥ अथ रोहणीनी थुइलि० ॥
वासुपूज्य जिनेसर बंदु मनधरिनेह, सुखसंपतिकारण आराधो गुणगेह, रोहणीतपकरतां पामें भवनो पार, सातवरस सत्तावीश जघन्यउत्कृष्टदिलधार ॥ १ ॥ अतीतअनागतवर्तमान त्रिहुकाल, सहुजिन वरप्रणमो आणिभावविसाल, जिन जन्म महोछब सुरपतिकरे सुविचार, इम चोविशजिनवर पूजोविविध प्रकार ॥ २ ॥ चंद्ररोहिणीदिवसे तपआदरिये सार, गुणनो प्रदक्षिणा खमासमणसुविचार, यथाशक्ति करिये चोविहार उपवास, चित्रसैन रोहिणीपरे पामे लीलविलास || ३ || पड़िकमणो दोयटक देववंदनत्रिहुंकाल, आठपोहरिपोषध काउसग्गसुविसाल, सुयदेविसांनिध रोगसोगसहुजाय, जिनकृपाचंद्रसूरि तपसेव्यां सुखाय ॥ ४ ॥ इति थुइ ॥
॥ अथ दीवालिनी थुइलि० ॥
वीरजिनेसरभवणदिनेसर अतिशयगुणनादरियाजी, भव्यकमलप्रतिबोधता शोधता श्रमण संघपरिवरियाजी, हस्तिपालराजानी शभामां अंतिमचोमाशी आयाजी, कातिवदिअमावसरात्रे खातिसिद्धसिधायाजी ॥ १ ॥ कल्याणक श्रीरिषभादिकना पांच पांच मनआणोजी, वीरनो गर्भापहारछठो आगममांहि गवाणोजी, तीनकाल जिनपूजाकरिने दीवालीदिन जागोजी, च्यार आठ दश दोय वंदीने आतम निजवर आणोजी || २ || दीवालीदिन छट्टकरीने गुणना ऋण गुणिजेजी, सोलपहरलग पोषघठविने ध्यान प्रभुनो धरिजेजी, गौतमस्वामी केवलपायो पड़वाने पुन्यवंताजी, एका
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