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( ४ )
इलाकारेण संदिस्सह जगवन् ॥ सामायिक संदिस्सावुं ? गुरु कहे संदिस्सावेह || पीढ़ें छं कहकें फेर खमासमण देके इन्वा० सं० ॥ ज० ॥ सामायिक ठानं ? गुरु कड़े गए | १
॥ पी इ कही खमासमा देइ थोको झुकी तीन नवकार गुणी, इछाकारेण संदिस्सद जगवन् पसाउ करी सामायिक दंरुक उच्चरावोजी ॥ गुरु कहे उच्चरावेमो ॥ पीठें करेमि जंते सामाज्यं इत्यादि सामायिक सूत्र तीने वार उच्चरे ॥ ॥ श्र सामायिकनुं पञ्चरकाण ॥
॥ करेमि जंते सामाइयं, सावऊं जोगं पञ्चरकामि ॥ जावनियमं पशुवासामि ॥ 5विहं तिविदेणं मणेणं वायाए काएणं, न करेमि, न कारवेमि, तस्स जंते पमिकमामि निंदामि रिहामि अप्पा बोसिरामि ॥ इति ॥ ७ ॥
॥ पीठें खमासमादे के इलाकारेण संदिस्सह जगवन् इरियावहियं परिकमामि ॥ गुरु कहे परिक्कमेह, पी इ कही ॥ इलामि पकिमि इरियावहियाए इत्यादि पाठ कहे सोलि - खते हैं ॥
१ टिप्पणी-व्यवहार जाष्य चतुर्थोदेशके १ व्यवहार जाप्य टीकामें तीनवेर करेमि जंते उच्चरणा साधुके पाठ में कहा है साधुके अनुयायि श्रावक होयसो जीती नवेर उच्चरे २ विधि प्रपामे ३ तथा जिनपति सूरिकृत समाचारी में ४ इत्यादि बहुत विधिवाद के शास्त्रो में तीन वेर करेमि जंते उच्चरणा कहा है
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