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( १४८ )
॥ वा० ॥ कल्पसूत्रमनुहार ॥ ज० || २ || आगम प्रकरणचरित्र - वणा || मा० ॥ वा० || एमाप्रकटपणे तूंजोय ॥ ज० ॥ वं० ॥ षट् कल्याणक वीरना || मा० || वा० || आगम मांहे होय ॥ ज० ॥ वं० ॥ ३ ॥ पजूसणकल्पे को || मा० वा० ॥ पचास दिवस प्रमाण । तेह नवि मानेमानथी । मा० ॥ वा० ॥ जिनआज्ञा सुखखाण || ज० वं० ॥ ४ ॥ इम अनेक कल्पना करि ॥ मा० ॥ वा० ॥ मनमांन्योमांनेकोय ॥ ज० ॥ चं ॥ तुजआगम मुज मनवस्यो || मा० ॥ वा० ॥ एहिजभव भव होय० ॥ ज० ॥ वं ॥ ५ ॥ विसंवादघणो पड्यो || मा० ॥ वा० ॥ केहनेकहियेजाय ॥ ज० वं० ॥ अतिशयज्ञानी तणो पड्यो || मा० ॥ वा० ॥ विरहते केम खमाय ॥ ज० ॥ वं० || ६ || दुःखमकालमा ऊपनो || मा० ॥ वा० ॥ दक्षिण भरत मझार ॥ ज० ॥ वं० ॥ प्रभुनोसरणो मे ग्रो ॥ मा० ॥ वा० ॥ प्रभुछोप्राणआधार ॥ ज० ॥ वं० ॥ ७ ॥ तारक तारो तातजी || मा० ॥ वा० ॥ हुंछु सेवकतुज्झ ॥ ज० ॥ वं० ॥ अपराधि घणा तारिया ॥ मा० ॥ वा० || केमविसारसोमुज्झ ॥ ज० ॥ वं० ॥ ८ ॥ कलस || श्रीवीर जिनवर भविकसुखकर मात त्रिशलानंदनो । मैथुएयो आगम भक्तिसंयुतदुरितकर्म निकंदनो । शुभवरस उगणीसेचमोत्तरभाद्रवसुदिआठमसमें जिन कृपाचंद्रसूरिस्तवनकीधो अनुभवज्ञानप्रकाश ॥ २४ ॥ इति अष्टमी वृद्धस्तवन संपूर्णम् ॥
॥ अथ इग्यारसनो २ ढालनो स्तवन लि० ॥ ॥ दुहा ॥ खस्तिश्री मंगलकरण, हरणतापजिणचंद, वीरजिनेंददिनेंदसम, प्रणमुंधरिआनंद ॥ १ ॥ गौतम आदि गणधरा,
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