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(१४९) श्रुतकेवलिसुविहाण, त्रिकरणयोगेवंदता, पामेकोड कल्याण ॥२॥ एकादशी तिथीवर्णवं, शास्त्रतणे अनुसार, विधिपूर्वक आराधता, पामे भवनोपार ॥ ३॥ (ढाल पहली) पणिहारीनीदेशी ॥ नेमिजिनेसरउपदिशै, सुखकारीरेलोय, सांभले कृष्णराजान, वालाछो, द्वारिकानगरी समवसयों ॥ सु० ॥ रेवताचलउद्यान ॥ वा० ॥४॥ पर्वाराधनफल कह्यो ॥ सु०॥ सांभले परषदा बार ॥ वा० ॥ पर्युषण चउमासा भला ॥ सु० ॥ नवपद
ओलीसार ॥ वा० ॥५॥ पंचमीबीजआठम कही । सु०॥ जिनकल्याणक जाण ॥ वा० ॥ एकादशी इमजाणियै ॥ सु०॥ पर्वाधिकमनआण ॥ वा०॥६॥ मिगसरसुदि एकादशी ॥ सु०॥ पर्वमांहि श्रीकार, ॥ वा० ॥ अरनाथदीक्षा ग्रही ॥ सु०॥ पाम्योभवनोपार ॥ वा० ॥७॥ मल्लिजन्मसंजमलियो । सु० ॥ पाम्योकेवलज्ञान ॥ वा०॥ नमिनाथने ऊपनो ॥ सु०॥ केवलनाण प्रधान ॥ वा० ॥८॥ पांचकल्याणक अतिभला ॥ सु० ॥ थया इणभरतमझार ॥ वा०॥ तिमहिजऐरवत खेत्रमा ॥ सु०॥ भाखेजगदाधार ॥ वा० ॥९॥ पांचभरत ऐरवतवलि ॥ सु०॥ पांचकल्याणकजाण ॥ वा० ॥ दशखेत्रना इम जाणियै ॥सु०॥ पचाशकल्याणक आण ॥वा० ॥ १० ॥ तीनकालगिणतांथका ॥ सु० ॥ दोढसैकल्याणकथाय ॥ वा० ॥ तिथीमाहिसिरोमणि ॥ सु० ॥ इग्यारससुखदाय ॥ वा० ॥११॥ अनंतकल्याणकइणपरे ॥ सु०॥ अनंत चोवीसी जोय ॥ वा० ॥ मौनकरीआराधिये ॥ सु० ॥ एहथी सिवसुखहोय ॥ वा० ॥१२॥ चोविहारउपवासथी ॥ सु० ॥ पौसहकरिनेसार ॥वा०॥ सुगुरुचरणसेबीकरी ॥ सु०॥
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