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(६३) वारजो, देव गतिमां उपजी सुख लंपट थयो, तेथी सुकृत कीनो नही लगारजो ॥ वी० ॥ ॥ कर्म संयोगे एभिमां ऊपनो, श्म नव ज्रमण करंता अनंता वेसजो, जजतां क्रमथी मनुष्य पणो मै पामियों, त्यां पण न लह्यो धर्म तणों लव सेशजो ॥ वी० ॥ए ॥ श्म जव नाटक करतां काल बहु गयो, पुन्य संयोगे पाम्यो प्रनु दीदारजो, स्वामी शासन लागो मुछ्नें मीठमो, हिव प्रनु करुणा करी मुज करो निस्तारजो॥ वी० ॥ ॥१०॥ तुम सरीषा साहिबनी सेवा मैं सही, हिव प्रनु मुजनें जाणों सेवक खासजो, तुम गुण जाणु एटली सूनिजर कीजीये, कृपाचन्छ प्रन्नु पूरो मनमेनी श्रासजो ॥ वी० ॥११॥गुर्जर देशे पानसरे प्रतु लेटिया, वरष उगणीसे उगणोत्तरे शुल दीसजो; मौन ग्यारस मन मोहन प्रनुजी मिट्या, आनंद दायक जयकारी जगदीशजो ॥ वी० ॥ १२॥ इति पदम् ॥
॥अथ दादाजी स्तवन ॥ ॥ सदगुरु करुणा निधान राखोलाज मेरी ॥ स० ॥ टेर ॥ जै जै जिनकुशख सूरि, समरत हाजर हजूर, महकत जिम जस कपूर, महिमाजगतेरी ॥ स०॥१॥ जापर तुमहो दयाल, जिनमें करदो निहाल, संकटको चूरदेवो दोलतकी ढेरी ॥ स० ॥२॥ तुमहो सुरतरु समान, बंछित फल देवो दान ॥ सेवककों दीनजाण, मेटो जवफेरी ॥सासरण आये की राखो साज, वंचित. सब पूरो काज, हरखचंद सरण आए, महिमा सुन तेरी ॥४॥ इति पुनः॥
॥कुशल गुरु देखकें दरशन, मेरा दिल होतहे परशन ॥
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