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( १३ ) के आठ नवकारका कालस्सग्गकरे काउस्सग्गके मांहे आजुणा चार प्रहर चिंतवे. सो आगे लिखेगें. पीछे सिधाएंबुघाणका पाठ कहे, सो लिखते हे ॥
॥अथ सिधाणं बुखाणं ॥ ॥ सिघाणं वुक्षाणं, पारगयाणं परंपरगयाणं ॥ लोअग्गमुवगयाणं, नमो सया सबसिखाणं ॥ १॥ जो देवाणवि देवो, जं देबा पंजली नमसंति ॥ तं देवदेवमहिरं, सिरसा वंदे महावीरं ॥२॥ कोवि नमुक्कारो, जिणवरवसहस्स वघमाणस्स ।। संसारसागरा, तारेश् नरं व नारिं वा ॥ ३ ॥ उर्जित सेलसिहरे, दिरका नाणं निसीहिया जस्स ॥ तं धम्मचकवादि, अरिघ्नेमिं नमसामि ॥४॥ चत्तारि अझ दस दो, य बंदिया जिणवरा चवीस ॥ परमनिन्थिन, सिधा सिधिं मम दिसंतु ॥ ५॥ इति ॥ २॥
॥अथ वेावच्चगराणं ॥ ॥ वेत्रावच्चगराणं संतिगराणं ॥ सम्मदिसिमा हिगराणं ॥ करेमि काउस्सगं ॥ श्रन्न शहा कहनानहि ॥ इति ॥ २३ ॥
॥पीने संमासा प्रमाऊन पूर्वक बेठ के मुहपत्ती पमिलेहे. पीछे वांदणा दे. तिनका विधि कहते हैं।
॥अवग्रहके बाहिर उन्ना हुआ आधा नीचा नमकर श्वामि • खमासमणो वंदिलं जावणिजाए निसीहिआए अणुजाणह मे मिजग्गहं. इतनो पार कहकर नूमि प्रमार्जन करता हुआ निसीहि कह के योमा श्रवग्रहमें प्रवेश कर के संमासा प्रमाजैन कर के उक्कमा बेठ के माबे हाथमें मुहपत्ति लेके माबे
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